KANISHKBIOSCIENCE E -LEARNING PLATFORM - आपको इस मुद्दे से परे सोचने में मदद करता है, लेकिन UPSC प्रीलिम्स और मेन्स परीक्षा के दृष्टिकोण से मुद्दे के लिए प्रासंगिक है। इस 'संकेत' प्रारूप में दिए गए ये लिंकेज आपके दिमाग में संभावित सवालों को उठाने में मदद करते हैं जो प्रत्येक वर्तमान घटना से उत्पन्न हो सकते हैं !
kbs हर मुद्दे को उनकी स्थिर या सैद्धांतिक
पृष्ठभूमि से जोड़ता है। यह आपको किसी विषय का समग्र रूप से
अध्ययन करने में मदद करता है और हर मौजूदा घटना में नए आयाम जोड़कर आपको
विश्लेषणात्मक रूप से सोचने में मदद करता है।
केएसएम का उद्देश्य प्राचीन गुरु - शिष्य परम्परा पद्धति में "भारतीय को मजबूत और आत्मनिर्भर बनाना" है।
पूर्ण चंद्र ग्रहण एवं ‘सुपरमून’
संदर्भ:
26 मई को ‘पूर्ण चंद्र ग्रहण’ (Total lunar eclipse) तथा ‘सुपरमून’ (Supermoon), दो खगोलीय घटनाएं घटित होंगी। गौरतलब है, कि सुपरमून और पूर्ण चंद्रग्रहण की घटनाएं लगभग छह वर्षों के पश्चात एक साथ हो रही हैं।
‘सुपरमून’ क्या है?
जिस समय चंद्रमा अपनी कक्षा में पृथ्वी के सर्वाधिक नजदीक होता है, और साथ ही अपने पूर्ण आकार में होता है, तब इस स्थिति को ‘सुपर मून’ (Supermoon) कहा जाता है।
- पृथ्वी के सर्वाधिक नजदीक होने की वजह से, इस स्थिति में चंद्रमा अपने सामान्य आकार से अधिक बड़ा दिखाई देता है।
- किसी एक विशिष्ट वर्ष में, लगातार दो से चार पूर्ण सुपरमून (Full Supermoons) तथा दो से चार नए सुपरमून (New Supermoons) की घटनाएँ हो सकती हैं।
कृपया ध्यान दें:
- चंद्रमा द्वारा पृथ्वी की परिक्रमा के दौरान, एक ऐसी स्थिति आती है, जिसमे दोनों के मध्य दूरी सबसे कम (औसतन लगभग 360,000 किमी) होती है, अर्थात चंद्रमा और पृथ्वी एक-दूसरे के सर्वाधिक नजदीक होते है। इस स्थिति को ‘उपभू’ अथवा पेरिजी (Perigee) कहा जाता है।
- तथा, पृथ्वी की परिक्रमा के दौरान चंद्रमा, जब पृथ्वी से सर्वाधिक दूरी (लगभग 405,000 किमी) पर होता है, तो इसे ‘अपभू’ अथवा ऐपोजी (Apogee) कहा जाता है ।
26 मई को होने वाले खगोलीय घटना के दौरान चंद्रमा का रंग ‘लाल’ दिखने का कारण:
पूर्ण चंद्रग्रहण होने के कारण चंद्रमा भी लाल रंग का दिखाई देगा। ऐसा इसलिए है, क्योंकि इस दौरान पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है, और चंद्रमा पर पड़ने वाले सूर्य के प्रकाश के कुछ भाग को अवरुद्ध कर देती है। और, जब यह सौर-प्रकाश, पृथ्वी के वातावरण से छन कर गुजरता है, तो पृथ्वी की छाया के किनारों को हल्का कर देता है, जिससे चंद्रमा का रंग गहरा गुलाबी प्रतीत होता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- सुपरमून क्या है?
- ‘सुपरमून’ और ‘ब्लड मून’ में अंतर?
- ‘चंद्र ग्रहण’ क्या है?
- सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के बीच अंतर?
- सूर्य और चंद्रमा की उपभू और अपभू स्थितियां।
- कुछ खगोलीय घटनाओं के दौरान चंद्रमा लाल रंग का क्यों दिखाई देता है?
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
सामान्य अध्ययन- II
विषय: संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व, संघीय ढाँचे से संबंधित विषय एवं चुनौतियाँ, स्थानीय स्तर पर शक्तियों और वित्त का हस्तांतरण और उसकी चुनौतियाँ।
वाक् एवं अभिव्यक्ति संबंधी अपराधों को परिभाषित करने हेतु समिति
संदर्भ:
चूंकि, भारतीय दंड संहिता (IPC) में “‘द्वेषपूर्ण भाषण’ (Hate Speech)” को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है, अतः ‘आपराधिक कानून सुधार समिति’ (Committee for Reforms in Criminal Laws) द्वारा पहली बार इस तरह के भाषणों को परिभाषित करने का प्रयास किया जा रहा है।
इस समिति द्वारा शीघ्र ही अपनी रिपोर्ट पेश किए जाने की संभावना है।
क्या ‘हेट स्पीच’ को कहीं और परिभाषित किया गया है?
हाल ही में, ‘पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो’ (Bureau of Police Research and Development- BPRD) द्वारा साइबर उत्पीड़न संबंधी मामलों पर जांच एजेंसियों के लिए एक मैनुअल प्रकाशित किया गया है, जिसमें ‘हेटस्पीच’ को एक ऐसी भाषा के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसके द्वारा किसी व्यक्ति को, उसकी पहचान या अन्य अभिलक्षणों (जैसेकि, यौन अभिरुचि, विकलांगता, धर्म आदि) के आधार पर बदनाम, अपमानित, धमकाया और लक्षित किया जाता है।
एक मानक परिभाषा की आवश्यकता:
कानूनी तौर पर, किसी भी ‘हेट स्पीच’ अथवा ‘अभद्र भाषा’ पर आपराधिक धाराओं को केवल तब ही लागू किया जा सकता है, जब इसके द्वारा किसी प्रकार की हिंसा भड़कती है, या कानून और व्यवस्था में बाधा पहुचती है। चूंकि, इसकी कोई उपयुक्त परिभाषा नहीं है, इसलिए केवल किसी की आलोचना करने को भी ‘अभद्र भाषा’ या ‘हेट स्पीच’ कह दिया जाता है।
‘आपराधिक कानून सुधार समिति’ के बारे में:
वर्ष 2019 में, गृह मंत्रालय द्वारा राज्यों, सुप्रीम कोर्ट, उच्च न्यायालयों, बार काउंसिल ऑफ इंडिया, बार काउंसिल ऑफ स्टेट्स, और विश्वविद्यालयों से आपराधिक कानूनों में व्यापक संशोधन पर सुझाव मांगने के बाद, वर्ष 1860 में बनाई गई ‘भारतीय दंड संहिता’ (IPC) और ‘आपराधिक प्रक्रिया संहिता’ (CrPC) की पूरी जाँच करके ठीक करने का फैसला किया गया था।
- इसके बाद एक गठित की समिति द्वारा ‘आईपीसी’ में सुधारों से संबंधित विषयों की एक विस्तृत जांच की जा रही है।
- इस समिति ने निर्णय लिया है, कि आईपीसी’ में तदर्थ परिवर्तन किए जाने की बजाय, सभी लंबित मुद्दों जैसे कि ‘हेट स्पीच’ पर विश्वनाथन समिति द्वारा की गई सिफारिशों की जांच की जा सकती है, और फिर ‘भारतीय दंड संहिता’ में व्यापक परिवर्तन किए जा सकते हैं।
‘हेट स्पीच’ को जन्म देने वाले कारक:
- व्यक्तियों द्वारा ‘हेट स्पीच’ को फ़ैलाने का मुख्य कारण यह है कि वे अपने मस्तिष्क में बसी हुई रूढ़िवादी प्रथाओं में विश्वास करते हैं और इन रूढ़ियों के कारण ये यह मानते हैं कि, एक अन्य वर्ग या व्यक्तियों का समूह उनसे हीन है, और उसके लिए, उनके बराबर अधिकार नहीं दिए जा सकते हैं।
- शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व के अधिकार की परवाह किए बिना किसी विशेष विचारधारा से चिपके रहने की जिद, ‘हेट स्पीच’ की आग और भड़का देती है।
‘हेट स्पीच’ से लोकतंत्र के दो प्रमुख सिद्धांतों को खतरा है:
- सभी के लिए समान गरिमा की गारंटी।
- समावेशिता (inclusiveness) से सार्वजानिक भलाई।
‘हेट स्पीच’ को चिह्नित करने हेतु आवश्यक मापदंड:
- भाषण की चरम-सीमा
- उकसाना अथवा उत्तेजना पैदा करना
- भाषण को लिखने वाले की सामाजिक स्थिति
- भाषण से प्रभावित होने वाले पीड़ितों सामाजिक स्थिति
- भाषण की क्षमता
- भाषण का संदर्भ
इस पहलू से संबंधित दंडात्मक प्रावधान:
- भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code– IPC) की धारा 153A और 153B के तहत दो समूहों के बीच दुश्मनी और नफरत फैलाने वाले कृत्यों को दंडित करने का प्रावधान है।
- आईपीसी की धारा 295A, जानबूझकर या दुर्भावनापूर्ण इरादे से किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए दंडित करने से संबंधित है।
- आईपीसी की धारा 505(1) और 505(2), विभिन्न समूहों के बीच द्वेष या घृणा उत्पन्न करने वाली सामग्री के प्रकाशन और प्रसार को अपराध माना गया है।
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951 की धारा 8 के तहत, वाक् स्वतंत्रता का अवैध उपयोग करने वाले किसी व्यक्ति को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किया गया है।
- आरपीए की धारा 123(3A) और 125 के तहत, चुनावों के संदर्भ में जाति, धर्म, समुदाय, जाति या भाषा के आधार पर दुश्मनी को बढ़ावा देने पर प्रतिबंध लगाया गया है और इसे भ्रष्ट चुनावी प्रथाओं के तहत शामिल किया गया है।
प्रीलिम्स लिंक:
- क्या ‘हेट स्पीच’ को आईपीसी के तहत परिभाषित किया गया है?
- ‘हेट स्पीच’ से संबंधित नियामक प्रावधान
- अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सम्बन्ध में अपवाद
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (आरपीए) की धारा 8
- ‘हेट स्पीच’ से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के प्रासंगिक फैसले
मेंस लिंक:
‘हेट स्पीच’ को परिभाषित करने की आवश्यकता क्यों है? चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।
वन स्टॉप सेंटर योजना (OSC Scheme)
(One Stop Centre scheme)
संदर्भ:
केंद्र सरकार द्वारा ‘लिंग आधारित हिंसा’ से पीड़ित भारतीय महिलाओं को सहायता प्रदान करने हेतु 9 देशों में स्थित 10 मिशनों में ‘वन स्टॉप सेंटर’ (One Stop Centres– OSCs) स्थापित किए जाएगें।
‘वन स्टॉप सेंटर’ स्थापित किए जाने वाले मिशन, सऊदी अरब के जेद्दा और रियाद, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, सिंगापुर, बहरीन, कुवैत, कतर, ओमान, और यूएई में स्थित हैं।
योजना के बारे में:
सखी के नाम से लोकप्रिय इस केंद्र प्रायोजित योजना को ‘महिला एवं बाल विकास मंत्रालय’ (MWCD) द्वारा तैयार किया गया है।
- यह ‘राष्ट्रीय महिला सशक्तिकरण मिशन’ हेतु अम्ब्रेला योजना की एक उप-योजना है।
- लक्षित समूह: ‘वन स्टॉप सेंटर’ (OSC), जाति, वर्ग, धर्म, क्षेत्र, यौन अभिरुचि या वैवाहिक स्थिति को ध्यान में रखे बगैर, हिंसा से प्रभावित 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों सहित सभी महिलाओं का को सहायता प्रदान करेंगे।
निम्नलिखित सेवाओं तक पहुंच प्रदान करने हेतु इन केंद्रों को महिला हेल्पलाइन के साथ एकीकृत किया जाएगा:
- आपातकालीन प्रतिक्रिया और बचाव सेवाएं
- चिकित्सा सहायता
- प्राथमिकी दर्ज करने में महिलाओं की सहायता
- मनो-सामाजिक सहयोग एवं परामर्श
- कानूनी सहायता और परामर्श
- आश्रय
- वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा
वित्तीयन:
इस योजना को ‘निर्भया फंड’ के माध्यम से वित्त पोषित किया जाएगा। केंद्र सरकार, इस योजना के तहत राज्य सरकारों /संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों के लिए 100% वित्तीय सहायता प्रदान करेगी।
सुरक्षा की आवश्यकता:
- लिंग आधारित हिंसा (Gender Based Violence– GBV): यह एक वैश्विक स्वास्थ्य, मानवाधिकार और विकास संबंधी मुद्दा है, और यह, भूगोल, वर्ग, संस्कृति, उम्र, नस्ल और धर्म को पार करते हुए दुनिया के हर कोने में हर समुदाय और देश को प्रभावित करता है।
- ‘हिंसा उन्मूलन’ पर वर्ष 1993 की संयुक्त राष्ट्र घोषणा के अनुच्छेद 1, में लिंग आधारित दुर्व्यवहार की परिभाषा निर्धारित की गई है। इसके अनुसार- लिंग आधारित दुर्व्यवहार में, लैंगिक हिंसा से संबंधित किसी भी कृत्य, जिसके परिणामस्वरूप शारीरिक, यौन या मनोवैज्ञानिक नुकसान होता है, या होने की संभावना है, तथा सार्वजनिक या निजी जीवन में महिलाओं को पीड़ा पहुंचाने, ऐसे कृत्यों की धमकी देने, जबरदस्ती करने या मनमाने ढंग से उन्हें स्वतंत्रता से वंचित करने, को शामिल किया गया है।
- भारत में लिंग आधारित हिंसा के उदहारण; बलात्कार सहित घरेलू और यौन हिंसा के सार्वभौमिक रूप से प्रचलित स्वरूपों से लेकर दहेज, ऑनर किलिंग, एसिड अटैक, डायन-शिकार, यौन उत्पीड़न, बाल यौन शोषण, व्यावसायिक यौन शोषण हेतु तस्करी, बाल विवाह, लिंग-चयनात्मक, गर्भपात और सती जैसी खतरनाक प्रथाओं आदि के मामले अक्सर पाए जाते हैं।
प्रीलिम्स लिंक:
- वन स्टॉप सेंटर योजना के उद्देश्य
- योजना की विशेषताएं
- वित्त पोषण
- निर्भया फंड क्या है?
मेंस लिंक:
वन स्टॉप सेंटर योजना के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।
कथित शिनजियांग दुर्व्यवहार पर ब्रिटेन में पीपुल्स ट्रिब्यूनल गठित करने की चीन द्वारा भर्त्सना
संदर्भ:
चीन के शिनजियांग क्षेत्र में उइगर और अन्य तुर्की मुस्लिम आबादी के नरसंहार किए जाने संबंधी आरोपों की जांच करने हेतु ब्रिटेन में एक जन-न्यायाधिकरण (People’s Tribunal) गठित करने की योजना की चीन द्वारा निंदा की गई है।
संबंधित प्रकरण:
शिनजियांग प्रांत, चीन की प्रमुख विदेश नीति के लिए एक सिरदर्द बन गया है। शिनजियांग में लाखों की संख्या में उइगर, कज़ाखों और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों को पुनर्शिक्षित (re-education) शिविरों में कैद करने का आरोप लगाया जाता है।
- इन शिविरों में इन समुदायों को अपनी पारंपरिक संस्कृति का त्याग करने तथा चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी और उसके नेता शी जिनपिंग के प्रति निष्ठा की शपथ लेने के लिए विवश किया जाता है।
- इस क्षेत्र की महिलाओं ने भी गवाही दी है, कि उन्हें गर्भनिरोधक तरीकों से गुजरने के लिए मजबूर किया गया है और बताया है, कि कैद में बंद माता-पिताओं से उनके बच्चों को से लिया जाता है।
- बलात श्रम कराए जाने संबंधी दावों के मद्देनजर कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने शिनजियांग के प्रमुख कपास उद्योग के साथ संबंध तोड़ लिए हैं।
इन आरोपों पर चीन की प्रतिक्रिया:
चीन का कहना है, कि वह शिनजियांग क्षेत्र में चीनी शासन के खिलाफ वर्षों से भड़क रही हिंसक घटनाओं के बाद जिहादी प्रचार से प्रभावित लोगों को कट्टरपंथी बनने से रोकने के लिए केवल नौकरी-प्रशिक्षण और परामर्श प्रदान कर रहा है।
ट्रिब्यूनल तथा इसके निहितार्थ:
- इस ट्रिब्यूनल को सरकारी समर्थन प्राप्त नहीं है।
- इसकी अध्यक्षता प्रमुख वकील जेफ्री नाइस (Geoffrey Nice) द्वारा की जाएगी। ये, सर्बिया के पूर्व राष्ट्रपति स्लोबोडन मिलोसेविक (Slobodan Milosevic) के खिलाफ अभियोजन का नेतृत्व कर चुके हैं तथा अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के साथ काम करते हैं।
- हालांकि, ट्रिब्यूनल का फैसला किसी भी सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं होगा, फिर भी इसके आयोजकों को उम्मीद ,है कि सार्वजनिक रूप से सबूत देने से, शिनजियांग में किए जा रहे कथित दुर्व्यवहार से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई करने को मजबूर होना पड़ेगा।
उइगर कौन हैं?
- उइगर (Uighurs) मुख्य रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यक तुर्की नृजातीय समूह हैं, जिनकी उत्पत्ति के चिह्न ‘मध्य एवं पूर्वी एशिया’ में खोजे जा सकते हैं।
- उइगर समुदाय, तुर्की भाषा से मिलती-जुलती अपनी भाषा बोलते हैं, और खुद को सांस्कृतिक और नृजातीय रूप से मध्य एशियाई देशों के करीब मानते हैं।
- चीन, इस समुदाय को केवल एक क्षेत्रीय अल्पसंख्यक के रूप में मान्यता देता है और इन्हें देश का मूल-निवासी समूह मानने से इंकार करता है।
- वर्तमान में, उइगर जातीय समुदाय की सर्वाधिक आबादी चीन के शिनजियांग क्षेत्र में निवास करती है।
- उइगरों की एक बड़ी आबादी पड़ोसी मध्य एशियाई देशों जैसे उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान और कजाकिस्तान में भी पाई जाती है।
दशकों से उइगर मुसलमानों पर चीनी सरकार द्वारा आतंकवाद और अलगाववाद के झूठे आरोपों के तहत, उत्पीड़न, जबरन हिरासत, गहन-जांच, निगरानी और यहां तक कि गुलामी जैसे दुर्व्यवहार किये जा रहे हैं।
प्रीलिम्स लिंक:
- उइघुर कौन हैं?
- शिनजियांग कहाँ है?
- हान चीनी कौन हैं?
- शिनजियांग प्रांत की सीमा से लगे भारतीय राज्य।
मेंस लिंक:
उइघुर कौन हैं? हाल ही में इनके समाचारों में होने संबंधी कारणों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।
अमेरिकी विदेश मंत्री द्वारा गाजा को समर्थन देने का वादा
संदर्भ:
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन द्वारा हाल ही हुए विनाशकारी युद्ध के बाद ‘गाजा’ के लिए ‘अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने’ का प्रण लिया है। किंतु, किसी भी सहायता को ‘गाजा’ के उग्रवादी ‘हमास’ शासकों से अलग रखने की बात भी कही है।
संबंधित प्रकरण:
- इज़राइल और हमास के बीच 11 दिन तक चली लड़ाई में 250 से अधिक लोग मारे गए, जिनमें ज्यादातर फिलिस्तीनी थे, और आर्थिक रूप से बरबाद तटीय क्षेत्र में व्यापक विनाश हुआ था।
- हाल ही में लागू हुआ संघर्ष विराम अभी जारी है, लेकिन इस संघर्ष विराम से इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के किसी भी अंतर्निहित मुद्दे का हल नहीं निकला है।
नोट: इस मुद्दे को पहले विस्तार से कवर किया जा चुका है-
- INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 12 May 2021 – INSIGHTSIAS (insightsonindia.com)
- INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 19 May 2021 – INSIGHTSIAS (insightsonindia.com)
स्रोत: द हिंदू
सामान्य अध्ययन- III
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
ग्रीनलैंड की हिमचादर से जुडी हुई नदियों में ‘पारा’ का उच्च स्तर
संदर्भ:
एक हालिया शोध के अनुसार, ‘ग्रीनलैंड की हिमचादरों’ (Greenland Ice Sheet) से जलापूर्ति होने वाले जल-निकायों में ‘पारे’ (Mercury) की उच्च सांद्रता पाई गई है।
पाए गए पारे का स्तर:
- नदियों में विशेष रूप से घुले हुए पारे की मात्रा लगभग 1 – 10 ng L-1 (किसी ओलंपिक स्विमिंग पूल में नमक-कण के आकार के बराबर पारे की मात्रा) पाई गई है।
- ग्रीनलैंड हिमचादरों द्वारा पोषित जल निकायों में, वैज्ञानिकों ने ‘पारे’ का स्तर 150 ng L-1 से अधिक पाया है, जोकि किसी औसत नदी में पाए जाने वाले पारे की मात्रा से कहीं अधिक है।
‘पारे’ की उच्च सांद्रता के पीछे कारण:
यह, अधिकांश संदूषकों के मामलों की भांति किसी उद्योग अथवा अन्य मानवजनित गतिविधियाँ के कारण नहीं है। हिमनदों अर्थात ग्लेशियरों के पहाडी ढलानों पर नीचे की ओर धीमी गति से विसर्पण करने के दौरान ‘पारा-समृद्ध आधार-शैलों’ (Mercury-rich bedrock) का अपक्षरण होता है, और हिमनदों के पिघलने पर ये अपक्षरित शैल-कण प्रवाहित होकर जल-निकायों में पहुँच जाते है।
वर्तमान चिंताएं:
अब तक, प्रत्यक्ष मानवजनित गतिविधियों, जैसेकि उद्योगों से निर्गत होंने वाले मरकरी अर्थात पारे की रोकथाम हेतु प्रयास किये जा रहे थे।
- किंतु अब, हिमनद जैसे जलवायु के प्रति संवेदनशील वातावरण से ‘पारा’ ने निर्मुक्त होने के बारे में पता चला है, और इन पारा-स्रोतों का प्रबंधन करना काफी कठिन साबित होगा है।
- इसके अलावा, इसकी वजह से ‘जल प्रदूषण’ में वृद्धि भी होगी, क्योंकि पृथ्वी लगातार गर्म हो रही है और हिमचादरें और ग्लेशियर पहले से कहीं अधिक तेजी से पिघल रहे हैं।
इस नवीनतम खोज का महत्व:
- इस नई खोज से हमें ज्ञात हुआ है, कि हिमनदों के माध्यम से भी विषाक्त पदार्थों का प्रवाह होता है। अब शोधकर्ताओं को यह अध्ययन करना होगा कि, इन विषाक्त पदार्थों का जल-गुणवत्ता तथा जल-धाराओं के समीप रहने वाले समुदायों पर क्या प्रभाव पड़ता है और इससे गर्म होती दुनिया में क्या परिवर्तन हो सकते है?
- साथ ही, हमें पृथ्वी की भू-रासायनिक और जैविक प्रक्रियाओं पर इसके प्रभाव को समझने में मदद मिलेगी।
पारा के बारे में प्रमुख तथ्य:
- स्रोत: पारा (Mercury), प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला एक तत्व है, और यह वायु, जल और मृदा में पाया जाता है। यह, शैल-अपक्षय, ज्वालामुखी विस्फोट, भूतापीय गतिविधियों, वनाग्नि, इत्यादि प्राकृतिक प्रक्रियाओं के माध्यम से वातावरण में निर्मुक्त होता है। इसके अलावा, मानवीय गतिविधियों के माध्यम से भी वातावरण में ‘पारा’ निर्मोचित होता है।
- विषाक्त प्रभाव: पारा, मनुष्य के तंत्रिका तंत्र, पाचन और प्रतिरक्षा प्रणाली, और फेफड़ों, गुर्दे, त्वचा और आंखों पर विषाक्त प्रभाव डाल सकता है।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक प्रमुख रसायन– विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा ‘पारा’ के लिए ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक’ शीर्ष दस रसायनों में से एक माना गया है।
- मिनामाता रोग: यह मिथाइलमरकरी (Methylmercury) विषाक्तता के कारण होने वाला एक विकार है, जिसे पहली बार जापान की मिनामाता खाड़ी के निवासियों में देखा गया था। यह रोग ‘पारा औद्योगिक कचरे’ से दूषित मछली खाने के परिणामस्वरूप फैला था।
‘मिनामाता अभिसमय’ के बारे में:
‘पारे पर मिनामाता अभिसमय’ (Minamata Convention on Mercury), मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को ‘पारा’ और इसके यौगिकों के प्रतिकूल प्रभावों से बचाने के लिए एक वैश्विक संधि है।
- इस संधि पर, वर्ष 2013 में, जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में आयोजित अंतर-सरकारी वार्ता समिति के पांचवें सत्र में हस्ताक्षर किये गए थे और इसे वर्ष 2017 में लागू किया गया।
- इस अभिसमय का एक मुख्य उद्देश्य मानवजनित गतिविधियों से होने वाले ‘पारे’ के निर्मोचन को इसके पूरे जीवनचक्र में नियंत्रित करना है।
- यह एक संयुक्त राष्ट्र संधि है।
- यह अभिसमय, ‘पारा’ के अंतरिम भंडारण और अपशिष्ट में बदल जाने पर इसका निपटान, पारे से दूषित स्थलों और स्वास्थ्य-संबंधी मुद्दों का समाधान भी करता है।
भारत द्वारा इस अभिसमय की अभिपुष्टि की गई है।
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘पारा’ के बारे में- स्रोत, संदूषण और स्वास्थ्य पर प्रभाव।
- मिनामाता रोग के बारे में।
- मिनामाता सम्मेलन क्या है?
- विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा ‘घोषित ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक’ शीर्ष दस रसायन?
- किसी अभिसमय पर अभिपुष्टि करने का अर्थ।
मेंस लिंक:
पारा संदूषण पर एक टिप्पणी लिखिए और इस मुद्दे के समाधान के लिए किए जा रहे अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
विषय: संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा को चुनौती, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में मीडिया और सामाजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका, साइबर सुरक्षा की बुनियादी बातें, धन-शोधन और इसे रोकना।
सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021
(The Information Technology (Intermediaries Guidelines and Digital Media Ethics Code) Rules, 2021)
संदर्भ:
आचार संहिता और त्रि-स्तरीय शिकायत निवारण ढांचे सहित डिजिटल सामग्री को विनियमित करने के लिए नए आईटी नियम (26 मई) से लागू हो गए हैं।
पृष्ठभूमि:
इसी वर्ष 25 फरवरी को, केंद्र सरकार द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 87 (2) के तहत शक्तियों के प्रयोग करते हुए और पूर्व के सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ) नियम, 2011 का निवर्तन करते हुए, सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 तैयार किए गए थे। ये नियम 26 मई से लागू किए जाएंगे।
नए नियमों का अवलोकन:
- इन नियमों के तहत, देश भर में ‘ओवर द टॉप’ (OTT) और डिजिटल पोर्टलों द्वारा एक ‘शिकायत निवारण प्रणाली’ गठित करना अनिवार्य किया गया है। उपयोगकर्ताओं के लिए सोशल मीडिया का दुरुपयोग किए जाने के खिलाफ अपनी शिकायत दर्ज कराने हेतु यह आवश्यक है।
- महत्वपूर्ण सोशल मीडिया कंपनियों के लिए ‘एक मुख्य अनुपालन अधिकारी’ (Chief Compliance Officer) की नियुक्ति करना अनिवार्य होगा, इसके साथ ही ये कंपनियां एक नोडल संपर्क अधिकारी भी नियुक्त करेंगी, जिससे कानून प्रवर्तन एजेंसियां कभी भी संपर्क कर सकेंगी।
- शिकायत अधिकारी (Grievance Officer): सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, एक शिकायत अधिकारी को भी नियुक्त करेंगे, जो 24 घंटे के भीतर कोई भी संबंधित शिकायत दर्ज करेगा और 15 दिनों में इसका निपटारा करेगा।
- सामग्री को हटाना (Removal of content): यदि किसी उपयोगकर्ता, विशेष रूप से महिलाओं की गरिमा के खिलाफ शिकायतें- व्यक्तियों के निजी अंगों या नग्नता या यौन कृत्य का प्रदर्शन अथवा किसी व्यक्ति का प्रतिरूपण आदि के बारे में- दर्ज कराई जाती हैं, तो ऐसी सामग्री को, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को शिकायत दर्ज करने के 24 घंटे के भीतर हटाना होगा।
- मासिक रिपोर्ट: इनके लिए, हर महीने प्राप्त होने वाली शिकायतों की संख्या और इनके निवारण की स्थिति के बारे में मासिक रिपोर्ट भी प्रकाशित करनी होगी।
- समाचार प्रकाशकों के लिए विनियमन के तीन स्तर होंगे – स्व-विनियमन, किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश या एक प्रतिष्ठित व्यक्ति की अध्यक्षता में एक स्व-नियामक निकाय, और ‘प्रथा सहिंता एवं शिकायत समिति’ सहित सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा निगरानी।
‘महत्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थ’ और इसके लाभ:
50 लाख से अधिक पंजीकृत उपयोगकर्ताओं वाली सोशल मीडिया कंपनियों को नए मानदंडों के अनुसार ‘महत्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थ‘ माना जाएगा।
अनुपालन न करने की स्थिति में क्या होगा?
- फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप मैसेंजर जैसे सोशल मीडिया दिग्गजों को नए सूचना प्रौद्योगिकी नियमों का पालन नहीं करने पर प्रतिबंध का सामना करना पड़ सकता है।
- यदि वे संशोधित नियमों का पालन नहीं करते हैं तो इनको “मध्यस्थ” के रूप में अपनी स्थिति खोने का जोखिम भी है और वे आपराधिक कार्रवाई के लिए भी जिम्मेदार हो सकते हैं।
संबंधित चिंताएं:
- विभिन्न औद्योगिक निकायों ने, विशेष रूप से महामारी को देखते हुए, सरकार को एक साल की अनुपालन खिड़की प्रदान करने के लिए लिखा है।
- नए नियमों के तहत आईटी अधिनियम की धारा 79 के तहत मध्यस्थों को दी गई ‘सेफ हार्बर’ की संभावित अनुपलब्धता पर भी चिंता व्यक्त की गई है।
- उन्होंने नए नियमों के एक अनुच्छेद पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया है, जिसके तहत मध्यस्थों द्वारा गैर-अनुपालन करने पर कर्मचारियों के ऊपर आपराधिक दायित्व डाला जा सकता है। इन औद्योगिक निकायों ने, व्यवसाय करने में सुगमता को ध्यान में रखते हुए इसे निरस्त करने का आग्रह किया है।
- एंड-टू-एंड एन्क्रिप्टेड प्लेटफॉर्म में ‘ओरिजिनेटर ट्रैसेबिलिटी मैंडेट’ प्लेटफॉर्म के सुरक्षा तंत्र को कमजोर कर सकता है। यह सभी नागरिकों को, शत्रु-कर्मियों द्वारा किए जाने वाले साइबर हमले के प्रति अतिसंवेदनशील बना सकता है।
- इसके अतिरिक्त, मौजूदा डेटा प्रतिधारण अधिदेश में सुरक्षा जोखिमों और तकनीकी जटिलताओं के अलावा भारत और विदेशों में उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता को जोखिम में पड़ सकती है।
प्रीलिम्स लिंक:
- नए नियमों का अवलोकन
- परिभाषा के अनुसार ‘मध्यस्थ’ कौन हैं?
- ‘सेफ हार्बर’ संरक्षण क्या है?
- नए नियमों के तहत ‘शिकायत निवारण तंत्र’
मेंस लिंक:
नए आईटी नियमों के खिलाफ क्या चिंता जताई जा रही है? इन चिंताओं को दूर करने के तरीकों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
सामान्य अध्ययन- IV
विषय: लोक प्रशासन में लोक/सिविल सेवा मूल्य और नैतिकता: स्थिति और समस्याएं; सरकारी और निजी संस्थानों में नैतिक चिंताएँ और दुविधाएँ।
वायुयान में विवाह पर नागरिक उड्डयन महानिदेशालय द्वारा कार्रवाई की जाए: विशेषज्ञ
संबंधित प्रकरण:
नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA), द्वारा एक चार्टर्ड स्पाइसजेट की उड़ान में 161 यात्रियों द्वारा मिड-एयर शादी समारोह में भाग लेने और कोविड मानदंडों का उल्लंघन करने संबंधी मामले की जांच शुरू की गई है।
- कोविड मानदंडों का उल्लंघन करते हुए शादी की रस्में भी उड़ते हुए जहाज पर पूरी की गयी। वर-वधू द्वारा शादी की रस्में पूरी करने के दौरान वायुयान मदुरै के मीनाक्षी अम्मा मंदिर के ऊपर उड़ता रहा।
- हालांकि, कंपनी का कहना है कि उसकी जानकारी में यह नहीं था, कि जहाज पर रस्में निभाई जाएंगी।
DGCA द्वारा जारी किए गए नियम:
- मार्च में, DGCA ने सभी एयरलाइनों, हवाई अड्डों और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) को एक परिपत्र जारी किया था, जिनके तहत उड़ान के दौरान बार-बार चेतावनी देने के बावजूद, कोविड-19 प्रोटोकॉल का उल्लंघन करने वाले यात्रियों को “उपद्रवी यात्री” के रूप में घोषित किए जाने का प्रावधान निर्धारित किया गया था।
- इसका अर्थ है, कि जो यात्री उड़ान के दौरान अपने मास्क ठीक से नहीं पहनते हैं या सामाजिक दूरी के मानदंडों का पालन नहीं करते हैं, वे कम से कम तीन महीने के लिए नो-फ्लाई सूची में शामिल किए जा सकते हैं।
- उल्लंघन करने वालों को तीन स्तरों पर नो-फ्लाई सूची में शामिल किया सकता हैं: मौखिक दुर्व्यवहार के लिए तीन महीने, शारीरिक हमले के लिए छह महीने, और प्राणों को खतरे में डालने वाले व्यवहार के लिए दो साल या उससे अधिक।
- इन नियमों का अनुसार, एयरलाइन के चालक दल द्वारा शिकायत दर्ज करने के बाद, एयरलाइन द्वारा गठित एक आंतरिक समिति, अपराध की प्रकृति और यात्री को दी जाने वाली सजा के स्तर को निर्धारित किया जाएगा।
हालिया घटना से संबंधित मुद्दे:
- किसी ने भी मास्क और पीपीई किट नहीं पहना हुआ था
- कोई सोशल डिस्टेंसिंग नही
- 100 से अधिक लोगों की सभा
- सभी सुरक्षा मानदंडों का उल्लंघन करना
स्रोत: द हिंदू
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
पीडियाट्रिक इन्फ्लैमेटरी मल्टी-सिस्टम सिंड्रोम (PIMS-TS)
PIMS-TS, को बच्चों में होने वाले ‘मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम’ (MIS-C) के नाम से भी जाना जाता है। यह SARS-CoV-2 संक्रमण से जुड़ी एक दुर्लभ स्थिति है, और इसे पहली बार अप्रैल 2020 में परिभाषित किया गया था।
- कारण: इस स्थिति को पैदा करने वाले कारकों के बारे में अभी जानकारी नहीं है, लेकिन इसे एक दुर्लभ ‘प्रतिरक्षा अति-प्रतिक्रिया’ (immune overreaction) माना जाता है। यह स्थिति, हल्के अथवा लक्षणहीन SARS-CoV-2 संक्रमण होने के लगभग चार से छह सप्ताह बाद दिखाई देती है।
- लक्षण: इस स्थिति के लक्षणों में बुखार, दाने निकलना, आंखों में संक्रमण और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल लक्षण (जैसे दस्त, पेट दर्द, मतली) आदि शामिल हैं। कुछ दुर्लभ मामलों में, इस स्थिति से शरीर के कई अंग कार्य करने में विफल भी हो सकते है।
चर्चा का कारण:
एक संक्षिप्त अध्ययन में पता चला है, कि SARS-CoV2 से जुड़े दुर्लभ पीडियाट्रिक इंफ्लेमेटरी मल्टीसिस्टम सिंड्रोम (PIMS-TS) के अधिकांश लक्षण छह महीने के बाद ठीक हो जाते हैं।
WHO की बायो हब पहल
(WHO BioHub initiative)
बायोहब (BioHub), रोगाणुओं के भंडारण, साझा और विश्लेषण करने के लिए एक वैश्विक सुविधा होगी।
- महत्व: वर्तमान में, देशों के मध्य, रोगाणुओं का बंटवारा द्विपक्षीय रूप से किया जाता है; WHO की बायोहब इस प्रक्रिया में तेजी लाएगा।
- WHO और स्विट्जरलैंड ने इस सुविधा को शुरू करने के लिए एक ‘समझौता ज्ञापन’ पर हस्ताक्षर किए हैं।
- नोवेल कोरोनावायरस रोग (कोविड-19) महामारी और जोखिमों का आकलन करने और जबाबी कार्रवाई शुरू करने के लिए रोगज़नक़ जानकारी साझा करने के महत्व को रेखांकित करने की आवश्यकता को देखते हुए यह कदम महत्वपूर्ण है।
कर्नाटक में उडुपी में बुद्ध की लघु प्रतिमा
कर्नाटक में उडुपी जिले के अलेम्बी में एक परित्यक्त कुएं से निकाले गए मलबे के बीच बुद्ध की एक लघु प्रतिमा प्राप्त हुई है।
विवरण:
- यह प्रतिमा नौ सेंटीमीटर ऊँची, पाँच सेंटीमीटर चौड़ी और दो सेंटीमीटर मोटी है।
- इस मूर्ति में बुद्ध ‘धर्म चक्र प्रवर्तन मुद्रा’ में कमल के आसन पर विराजमान हैं।
- आसन के नीचे धर्म चक्र के दोनों ओर छह शिष्य विराजमान हैं।
- प्रतिमा में भगवान बुद्ध, कपड़े और कान की बाली पहने हुए हैं।
- सिर के शीर्ष पर एक छोटी उष्निशा (Ushnisha) दिखाई गई है।
- सिर के पिछले भाग में एक सुंदर नक्काशीदार गोलकार लोब दिखाई देता है।
- मूर्ति के शीर्ष कोनों पर, दो यक्ष और उनकी पीठ के दोनों ओर, दो पंखों वाले घोड़ों को उकेरा गया है।
- यह, मूर्तिकला की गुप्त शैली में निर्मित है।
इस खोज का महत्व:
परंपरागत रूप से, प्राचीन तुलु नाडु पर बनवासी के कदंबों के अधीन बताया जाता है। बनवासी के गुप्त और कदंबों के मध्य वैवाहिक संबंध थे। इसलिए, बुद्ध की मूर्ति की खोज कोई असामान्य बात नहीं है।
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सोशल मीडिया अपूरणीय है।
लेकिन कभी अप्रासंगिक नहीं। सोशल मीडिया आप हैं।
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)
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