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भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।

 

  

KANISHKBIOSCIENCE E -LEARNING PLATFORM - आपको इस मुद्दे से परे सोचने में मदद करता है, लेकिन UPSC प्रीलिम्स और मेन्स परीक्षा के दृष्टिकोण से मुद्दे के लिए प्रासंगिक है। इस 'संकेत' प्रारूप में दिए गए ये लिंकेज आपके दिमाग में संभावित सवालों को उठाने में मदद करते हैं जो प्रत्येक वर्तमान घटना से उत्पन्न हो सकते हैं !


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 केएसएम का उद्देश्य प्राचीन गुरु - शिष्य परम्परा पद्धति में "भारतीय को मजबूत और आत्मनिर्भर बनाना" है।  

 

संविधान के अनुच्छेद 80 में संशोधन का प्रस्ताव


संदर्भ:

हाल ही में, चंडीगढ़ नगर निगम ने संविधान के अनुच्छेद 80 में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।

  • इस संशोधन में, चंडीगढ़ नगर निगम के पार्षदों द्वारा राज्यसभा में एक प्रतिनिधि भेजने का प्रस्ताव किया गया है।
  • इस संबंध में एक निजी सदस्य विधेयक भी पेश किया गया है।

महत्वपूर्ण आधार तथ्य:

  • भारत के संविधान का अनुच्छेद 80, ‘राज्यों की परिषद’ की संरचना से संबंधित है। इस परिषद् को उच्च सदन (राज्य सभा) कहा जाता है।
  • चंडीगढ़, विधान सभा रहित एक केंद्र शासित प्रदेश है। चंडीगढ़ से निचले सदन (लोकसभा) या ‘हाउस ऑफ द पीपल’ में एक संसद सदस्य (एमपी) की सीट निर्धारित है।
  • चंडीगढ़ के निवासी प्रत्यक्ष मतदान के माध्यम से हर पांच साल में एक सांसद का चुनाव करते हैं।

प्रस्तावित विधेयक में की गयी मांग:

प्रस्तावित विधेयक (निजी सदस्य विधेयक) के द्वारा एक प्रावधान जोड़ने की मांग की गयी है, जिसके तहत, ‘राज्यों की परिषद’ में केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ का प्रतिनिधि एक ‘निर्वाचक मंडल’ (Electoral College) द्वारा चुना जाएगा।

  • निर्वाचक मंडल में संविधान के अनुच्छेद 80 में ‘पंजाब नगर निगम’ (चंडीगढ़ तक विस्तार) अधिनियम, 1994 के तहत गठित ‘चंडीगढ़ नगर निगम’ के निर्वाचित सदस्य शामिल होने चाहिए।
  • संविधान की चौथी अनुसूची में संशोधन करते हुए, इसमें ‘प्रविष्टि 32’, ‘चंडीगढ़’ जोड़ने की मांग की गई है।
  • ‘चौथी अनुसूची’ में राज्यों की परिषद में ‘सीटों के आवंटन’ संबंधी प्रावधानों का विवरण दिया गया है।

विधिक आपत्तियां:

  • नगर निगम के निर्वाचित पार्षद, उच्च सदन (राज्यसभा) के लिये सदस्य का चयन करने हेतु ‘निर्वाचक मंडल’ का गठन नहीं कर सकते हैं क्योंकि यह नगर निगम (संविधान द्वारा परिभाषित) की शक्तियों से परे है।
  • यदि ‘नागरिक निकाय’ (Civic Body) के कार्यों को, इसके सूचीबद्ध कार्यों के दायरे से अधिक विस्तारित किया जाना सुसंगत नहीं होगा, तथा यह किसी भी नगर निगम के संवैधानिक अधिदेश के खिलाफ होगा।

राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन:

राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव परोक्ष रूप से व्यक्तियों द्वारा, अर्थात विधायकों द्वारा किया जाता है।

  • राज्य की विधान सभा के सदस्यों द्वारा ‘एकल संक्रमणीय मत’ (Single Transferable Vote – STV) पद्धति से आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर राज्य सभा चुनाव में मतदान किया जाता है। प्रत्येक विधायक के मत की गणना केवल एक बार की जाती है।
  • राज्यसभा की सीट जीतने के लिए, उम्मीदवार को एक आवश्यक संख्या में मत प्राप्त करना अनिवार्य होता है। यह संख्या निम्नलिखित सूत्र का उपयोग करके ज्ञात की जाती है:

आवश्यक वोट = वोटों की कुल संख्या / (राज्यसभा सीटों की संख्या + 1) + 1।

राज्यसभा, इसकी संरचना और कार्यों के बारे में अधिक जानने के लिए पढ़िए।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि दिल्ली के लिए ‘राज्यसभा’ में तीन सीट निर्धारित है?

  • दिल्ली में, राज्यसभा के लिए सांसदों का चयन ‘दिल्ली महानगर परिषद’ के सदस्यों द्वारा किया जाता है।
  • ‘महानगर परिषद’ (Metropolitan Council) और ‘नगर निगम’ (Municipal Corporation) में अंतर होता है।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. राज्यसभा के बारे में
  2. राज्य सभा में प्रतिनिधित्व वाले केंद्र शासित प्रदेश
  3. राज्य सभा की संरचना
  4. राज्यसभा के लिए सदस्यों का चुनाव
  5. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 80

मेंस लिंक:

हाल ही में, चंडीगढ़ नगर निगम ने संविधान के अनुच्छेद 80 में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान कर दी है। इस कदम के संभावित प्रभावों के बारे में चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: विभिन्न अंगों के बीच शक्तियों का पृथक्करण विवाद निवारण तंत्र और संस्थानों के बीच।

उच्चतम न्यायालय द्वारा मृत्युदंड पर ऐतिहासिक निर्णय का प्रवर्तन


(SC enforces a landmark ruling on death penalty)

संदर्भ:

मौत की सजा के मामलों पर सुनाए गए ऐतिहासिक फैसले के चार दशक से अधिक समय बाद, सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने मृत्युदंड प्राप्त कैदी का मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन किया जाना अनिवार्य कर दिया है।

‘दोषी के लिए क्या फांसी ही एकमात्र उचित सजा है’ इसका परीक्षण करते समय खंडपीठ द्वारा ‘कैदी के आचरण पर एक रिपोर्ट’ की भी मांग की गयी है।

अदालत की टिप्पणी:

‘बचन सिंह मामले’ में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए, न्यायमूर्ति ललित ने’ मौत की सजा के मामलों’ पर एक व्याख्यान श्रृंखला में हाल ही में कहा था, कि ऐसे मामलों में अदालत की “पूर्ण सहायता” के लिए न केवल मामले से संबंधित सबूत पेश करने की आवश्यकता होती है, बल्कि कैदी के मानसिक स्वास्थ्य की नवीनतम स्थिति को भी प्रस्तुत की जानी चाहिए।

बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य (1980) में सुप्रीम कोर्ट का फैसला:

इस फैसले में, किसी मृत्युदंड की सजा केवल “दुर्लभतम” (Rarest of Rare) अपराध के मामले में दिए जाने के सिद्धांत को स्थापित किया गया था, और सजा सुनाते समय अभियुक्तों के संबंध में ‘उत्तेजक’ तथा ‘गंभीरता कम करने वाली’ परिस्थितियों के तुलनात्मक विश्लेषण को अनिवार्य किया गया था।

  1. इस निर्णय में यह निर्धारित किया गया, कि अदालत के लिए अपराध एवं अपराधी दोनों की जांच करनी चाहिए, और फिर यह तय करना चाहिए कि मामले से संबंधित तथ्यों के प्रकाश में मृत्युदंड ही एकमात्र उपयुक्त सजा है अथवा नहीं।
  2. इसके साथ ही, मामले से संबंधित ‘उत्तेजक’ तथा ‘गंभीरता कम करने वाले’ तथ्यों और परिस्थितियों पर जोर दिया गया था।

माची सिंह बनाम पंजाब राज्य मामला (1983):

इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा “दुर्लभतम” अपराध के सिद्धांत को स्पष्ट किया गया और मौत की सजा के मामलों में कुछ मार्गदर्शक सिद्धांत निर्धारित किए गए।

  • उत्तेजक या भड़काऊ परिस्थितियों (Aggravating Circumstances) में, अपराध करने का तरीका, अपराध करने का मकसद, अपराध की गंभीरता और अपराध से पीड़ित को शामिल किया गया था।
  • ‘गंभीरता कम करने वाली परिस्थितियों’ (Mitigating Circumstances) में, किसी आरोपी के सुधार और पुनर्वास की संभावना, उसका मानसिक स्वास्थ्य और उसके पिछले जीवन को शामिल किया गया था।

‘मौत की सजा को लंबा करने’ और ‘पुनर्विचार याचिकाओं’ पर अदालत की टिप्पणी:

2014 में, सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला सुनाते हुए कहा, कि बिना किसी स्पष्ट कारण के फांसी देने में देरी को ‘मृत्युदंड’ को कम करने का आधार माना जा सकता है, और कैदी या उसके रिश्तेदार, या यहां तक ​​कि लोक-भावना से भरा कोई उत्साही नागरिक, इस तरह की सजा के लघुकरण किए जाने की मांग करते हुए एक रिट याचिका दायर कर सकता है।

  • फैसले में यह कहा गया है, कि मौत की सजा के निष्पादन को लंबे समय तक रोकने का ‘सजायाफ्ता कैदियों’ पर “अमानवीय प्रभाव” पड़ता है। इन कैदियों को, उनकी दया याचिका के लंबित रहने के दौरान मौत की छाया में वर्षों तक इंतजार करने की पीड़ा का सामना करना पड़ता है। और इस तरह की अत्यधिक देरी से निश्चित रूप से उनके शरीर और दिमाग पर एक दर्दनाक प्रभाव पड़ेगा।
  • इसी वर्ष, उच्चतम न्यायालय की एक संविधान पीठ ने यह भी कहा कि, मौत की सजा प्राप्त अपराधी की ‘पुनर्विचार याचिका’ पर खुली अदालत में तीन-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुनवाई की जाएगी। इससे पहले, ऐसे मामलों पर, बिना किसी मौखिक बहस के जजों के चैंबर में दो जजों की बेंचों द्वारा विचार किया जाता था।

आगे की चुनौतियां:

  • सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष कार्य की विशालता को इस तथ्य से समझा जा सकता है, कि भारत में निचली अदालतों द्वारा 2022 में पहले ही 50 से अधिक लोगों को मौत की सजा सुनाई जा चुकी है और इनमें अक्सर प्रक्रियात्मक और मूल कानूनों का उल्लंघन किया गया होता है।
  • सुप्रीम कोर्ट के लिए भारत में सभी अदालतों में मौत की सजा सुनाए जाने में निष्पक्षता और अनुकूलता में संतुलन लाना आसान नहीं होगा, लेकिन अदालत द्वारा इस मामले को सीधा समाधान करने हेतु चुना जाना निश्चित रूप से उल्लेखनीय एवं सराहना योग्य है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

प्रोजेक्ट 39A, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली में चलाया जा रहा एक आपराधिक न्याय अनुसंधान और कानूनी सहायता कार्यक्रम है। इसके तहत, मौत की सजा के मामलों में बड़े पैमाने पर काम किया गया है।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. उच्चतम न्यायालय की विभिन्न पीठें
  2. विधि आयोग- संरचना, उद्देश्य और कार्य
  3. मृत्युदंड के खिलाफ अपील
  4. राष्ट्रपति की क्षमादान शक्तियाँ
  5. सुप्रीम कोर्ट के इस संदर्भ में प्रासंगिक फैसले

मेंस लिंक:

‘सामूहिक विवेक’ अथवा ‘सामूहिक चेतना’ (Collective conscience) क्या है? यह न्यायालयों के निर्णयों को किस प्रकार प्रभावित करता है? चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।

बीजू स्वास्थ्य कल्याण योजना


(Biju Swasthya Kalyan Yojana)

संदर्भ:

हाल ही में, ओडिशा सरकार द्वारा अपनी प्रमुख ‘बीजू स्वास्थ्य कल्याण योजना’ (Biju Swasthya Kalyan Yojana) के तहत लाभार्थियों को ‘स्मार्ट स्वास्थ्य कार्ड’ वितरित किए गए हैं।

‘बीजू स्वास्थ्य कल्याण योजना’ के बारे में:

इस योजना का आरंभ 15 अगस्त 2018 को किया गया था।

इसका उद्देश्य, आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के स्वास्थ्य संरक्षण पर विशेष जोर देना और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्रदान करना है।

इस योजना के दो घटक हैं:

  1. पहला, उपकेंद्र स्तर से लेकर जिला मुख्यालय अस्पताल स्तर तक, राज्य सरकार की स्वास्थ्य सुविधाओं में सभी के लिए (आय, स्थिति या निवास की परवाह किए बिना) मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं।
  2. दूसरा, राज्य में 70 लाख से अधिक आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के लिए जिला मुख्यालय अस्पताल स्तर से आगे मुफ्त स्वास्थ्य सेवा की अतिरिक्त सुविधा।

पात्रता:

पिछले साल स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर की गयी घोषणा के बाद, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) और राज्य खाद्य सुरक्षा अधिनियम (SFSA) के तहत आने वाले सभी परिवार भी ‘बीजू स्वास्थ्य कल्याण योजना’ (BSKY) के तहत लाभ पाने के पात्र हो गए है।

इस योजना के तहत लाभ:

  • बीजू स्वास्थ्य कल्याण योजना के तहत नामांकित प्रत्येक परिवार, राज्य सरकार से 5 लाख रुपये की आर्थिक सहायता पाने के लिए पात्र होता है, जबकि महिलाओं को इस योजना के तहत 10 लाख रुपये का सुरक्षा कवर प्रदान किया जाता है।
  • ‘जिला मुख्यालय अस्पताल स्तर तक के सभी सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में, सभी व्यक्तियों के लिए मुफ्त दवाएं, मुफ्त निदान, मुफ्त डायलिसिस, मुफ्त कैंसर कीमोथेरेपी, मुफ्त ओटी, मुफ्त आईसीयू, इन-पेशेंट प्रवेश आदि सहित सभी स्वास्थ्य सेवाएं मुफ्त उपलब्ध करायी जाती हैं।

‘बीजू स्वास्थ्य कल्याण योजना’ बनाम ‘आयुष्मान भारत’

‘बीजू स्वास्थ्य कल्याण योजना’ (BSKY) की शुरुआत के लगभग एक महीने बाद, केंद्र सरकार द्वारा 28 सितंबर, 2018 को अपनी स्वास्थ्य योजना – ‘आयुष्मान भारत’ – लॉन्च की गयी थी।

ओडिशा, केंद्र सरकार की स्वास्थ्य कवरेज योजना को स्वीकार नहीं करने वाले चार राज्यों में से एक है।

मुख्य अंतर:

  • पैकेज सीमा (Package Cap): आयुष्मान भारत के तहत सालाना 5 लाख रुपये दिए जाने का प्रावधान है, जबकि ‘बीजू स्वास्थ्य कल्याण योजना’ के तहत 10 लाख रुपये तक प्रदान किए जाते हैं।
  • कवरेज: ‘बीजू स्वास्थ्य कल्याण योजना’ के तहत 90 लाख से अधिक परिवारों को कवर किया गया है, जबकि ‘आयुष्मान भारत’ के तहत केवल 60 लाख परिवारों को कवर किया जा सकता है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि ‘राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन’ के कार्यान्वयन करने की जिम्मेदारी ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण’ को सौंपी गयी है?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. बीजू स्वास्थ्य कल्याण योजना
  2. आयुष्मान भारत के घटक
  3. PMJAY- प्रमुख विशेषताएं
  4. पात्रता
  5. राष्ट्रीय स्वास्थ्य एजेंसी के बारे में
  6. सेहत योजना

मेंस लिंक:

प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY) के महत्व और क्षमताओं पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।

WHO की महामारी संधि


(WHO’s pandemic treaty)

संदर्भ:

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सदस्यों द्वारा 24 फरवरी, 2022 को ‘महामारी संधि’ (Pandemic Treaty) के लिए पहले दौर की वार्ता का आयोजन किया गया।

बैठक का उद्देश्य, भविष्य में फैलने वाली महामारियों को रोकने हेतु, एवं महामारी फैलने की स्थिति से निपटने हेतु तैयारी और प्रतिक्रिया में सुधार करने के लिए “अभिसमय, समझौते या अन्य अंतर्राष्ट्रीय उपायों” पर काम करने के तरीकों और समयसीमा पर सहमत होना था।

‘महामारी संधि’ के बारे में:

दिसंबर 2021 में, ‘स्वास्थ्य सभा’ (Health Assembly) द्वारा- अपनी स्थापना के बाद- अपने दूसरे विशेष सत्र में “द वर्ल्ड टुगेदर” शीर्षक से एक निर्णय पारित किया गया था।

  • निर्णय के तहत, स्वास्थ्य संगठन द्वारा WHO संविधान के अनुच्छेद 19 के अनुपालन में, ‘महामारी संधि’ की सामग्री का मसौदा तैयार करने और वार्ता करने हेतु एक अंतर सरकारी वार्ता निकाय (Intergovernmental Negotiating BodyINB) की स्थापना की गयी थी।
  • ‘महामारी संधि’ में उभरते हुए वायरस के डेटा साझाकरण और जीनोम अनुक्रमण और टीकों और दवाओं के समान वितरण और दुनिया भर में संबंधित अनुसंधान जैसे पहलुओं को शामिल करने की उम्मीद है।

आवश्यकता:

  • कोविड-19 महामारी के समाधान में अब तक टीकों का असमान वितरण देखा गया है, और गरीब देश निवारक दवा प्राप्त करने के लिए दूसरों की दया पर निर्भर रहे हैं।
  • अधिकांश देशों द्वारा “पहले मैं” (Me-First) का दृष्टिकोण अपनाया गया, जोकि वैश्विक महामारी से निपटने का एक प्रभावी तरीका नहीं है।

यह संधि, वर्तमान या भविष्य की महामारियों से लड़ने के लिए उठाया गया पर्याप्त कदम क्यों नहीं है?

इस संधि में केवल एक विशेष मुद्दे से निपटने के लिए सिफारिशें प्रदान की गयी है, जबकि देशों के लिए, विशेषकर भूमध्यरेखा के दक्षिण में स्थित देशों को सार्वजनिक स्वास्थ्य लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए संसाधनों और क्षमताओं की आवश्यकता की अनदेखी की गयी है।

  • इन कमियों या क्षमता-असमानताओं को दूर करने पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। अमीर देशों में चार महीनों में कहीं अधिक बूस्टर शॉट्स दिए जा चुके हैं, जबकि गरीब देशों में पूरे साल टीकाकरण जारी रहा है। यह तथ्य वैश्विक उत्तर और दक्षिण में क्षमता-असमानता को दर्शाता है।
  • किसी भी वैश्विक प्रयास के तहत, क्षमताओं के समान वितरण को सुनिश्चित करना चाहिए, ताकि वैश्विक दक्षिण में स्थित देशों और क्षेत्रों को आवश्यक दवाओं, सामग्रियों, निर्माण और आपूर्ति श्रृंखलाओं पर संप्रभुता प्राप्त हो सके।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

WHO संविधान के अनुच्छेद 19 के अंतर्गत, ‘विश्व स्वास्थ्य सभा’ को स्वास्थ्य के मामलों पर अभिसमयों या समझौतों को अपनाने का अधिकार प्रदान किया गया है। ऐसे अभिसमयों या समझौतों को पारित के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है।

क्या आप जानते हैं कि तंबाकू नियंत्रण पर ‘WHO फ्रेमवर्क कन्वेंशन’ की स्थापना ‘अनुच्छेद 19’ के तहत की गयी थी और यह अभिसमय 2005 में लागू हुआ था?

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।

अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी


संदर्भ:

हाल ही में, रूस ने ‘अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी’ (International Atomic Energy Agency – IAEA) को सूचित करते हुए जानकारी दी है, कि उसके सैन्य बलों ने यूक्रेन के ‘ज़ापोरिज्जिया परमाणु ऊर्जा संयंत्र’ (Zaporizhzhia Nuclear Power Plant) के आसपास के क्षेत्र पर नियंत्रण कर लिया है।

IAEA द्वारा यूक्रेन के परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों की सुरक्षा और सुरक्षा पर विशेष ध्यान देने के साथ-साथ देश में जारी गतिविधियों पर बारीकी से निगरानी की जा रही है।

संबंधित चिंताएं:

अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के दौरान, पहली बार ‘एक बड़े और स्थापित परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम केंद्रों’ के बीच कोई सैन्य-संघर्ष जारी है।

अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के बारे में:

अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की स्थापना, वर्ष 1957 में संयुक्त राष्ट्र संघ भीतर ‘वैश्विक शांति के लिए परमाणु संगठन’ के रूप की गयी थी।

  • यह एक अंतरराष्ट्रीय स्वायत संगठन है।
  • IAEA, संयुक्त राष्ट्र महासभा तथा सुरक्षा परिषद दोनों को रिपोर्ट करती है।
  • इसका मुख्यालय वियना, ऑस्ट्रिया में स्थित है।

प्रमुख कार्य:

  1. IAEA, अपने सदस्य देशों तथा विभिन्न भागीदारों के साथ मिलकर परमाणु प्रौद्योगिकियों के सुरक्षित, सुदृढ़ और शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने के लिए कार्य करता है।
  2. इसका उद्देश्य परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना तथा परमाणु हथियारों सहित किसी भी सैन्य उद्देश्य के लिए इसके उपयोग को रोकना है।

IAEA द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रम:

  1. कैंसर थेरेपी हेतु कार्रवाई कार्यक्रम (Program of Action for Cancer Therapy- PACT)
  2. मानव स्वास्थ्य कार्यक्रम
  3. जल उपलब्धता संवर्धन परियोजना
  4. नवोन्मेषी परमाणु रिएक्टरों और ईंधन चक्र पर अंतर्राष्ट्रीय परियोजना, 2000

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप भारत की ‘परमाणु मारक क्षमता’ (Nuclear Triad) के बारे में जानते हैं?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. JCPOA क्या है? हस्ताक्षरकर्ता
  2. ईरान और उसके पड़ोसी।
  3. IAEA क्या है? संयुक्त राष्ट्र के साथ संबंध
  4. IAEA के सदस्य
  5. IAEA के कार्यक्रम।
  6. बोर्ड ऑफ गवर्नर- रचना, मतदान और कार्य
  7. यूरेनियम संवर्धन क्या है?

मेंस लिंक:

संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA)  पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


सामान्य अध्ययन-III


 

विषय: आपदा और आपदा प्रबंधन।

क्लस्टर बम एवं थर्मोबैरिक हथियार


(Cluster Bombs and Thermobaric Weapons)

संदर्भ:

रूस द्वारा यूक्रेन में खतरनाक थर्मोबैरिक बमों (Thermobaric Bombs) – या वैक्यूम बमों – का इस्तेमाल शुरू कर दिया गया है।

वर्ष 2008 के ‘क्लस्टर हथियारों पर अभिसमय’ (Convention on Cluster Munitions) के द्वारा ‘क्लस्टर हथियारों’ (Cluster weaponry) पर प्रतिबंध लगा दिया गया था; हालांकि, इस अभिसमय पर यूक्रेन और रूस द्वारा हस्ताक्षर नहीं किए गए हैं।

थर्मोबैरिक हथियार:

थर्मोबैरिक हथियारों (Thermobaric Weapons) को ‘निर्वात बम’ या ‘वैक्यूम बम’ (Vacuum Bombs) भी कहा जाता है, क्योंकि ये हाई-वोल्टेज विस्फोट उत्पन्न करने के लिए आसपास के क्षेत्रों से ‘ऑक्सीजन’ सोख लेते हैं।

  1. इन बमों के विस्फोट की लहर, पारंपरिक बमों की तुलना में अधिक तीव्रता और अवधि की होती है और यह मनुष्यों को वाष्पीकृत तक कर सकती है।
  2. हालांकि इन बमों का उपयोग टैंकों और ऐसे अन्य सैन्य वाहनों को नष्ट करने में नहीं किया जा सकता है, किंतु ये आवासीय या वाणिज्यिक परिसरों जैसे नागरिक स्थानों को नष्ट करने में सक्षम होते हैं।

क्लस्टर बम (Cluster bombs):

‘क्लस्टर युद्ध सामग्री’ (Cluster munitions), एक बड़े क्षेत्र में अंधाधुंध रूप से मनुष्यों को घायल करने या मारने के लिए तथा हवाई पट्टियों, रेलवे या पावर ट्रांसमिशन लाइनों जैसे बुनियादी ढांचे को नष्ट करने के लिए डिज़ाइन किए गए ‘गैर-सटीक हथियार’ (Non-Precision Weapons) होते हैं।

  1. क्लस्टर बमों को किसी विमान से गिराया जा सकता है तथा किसी प्रक्षेप्यास्त्र से प्रक्षेपित किया जा सकता है, जिसमे यह अपनी उड़ान के दौरान चक्राकार गति करते हुए कई छोटे-छोटे बमों को गिराते हैं।
  2. इनमें से कई छोटे बम तत्काल नहीं फट पाते है, लेकिन जमीन पर पड़े रहते हैं और अक्सर आंशिक रूप से या पूरी तरह से छिपे रहते हैं तथा इनका पता लगाना और नष्ट करना मुश्किल होता है। लड़ाई बंद होने के बाद तक, ये बम लंबे समय तक ‘नागरिक आबादी’ के लिए खतरा बने रहते हैं।

‘क्लस्टर युद्ध सामग्री पर अभिसमय’

(Convention on Cluster Munitions)

‘क्लस्टर युद्ध सामग्री पर अभिसमय’ (Convention on Cluster Munitions), क्लस्टर बमों के सभी प्रकार के इस्तेमाल, हस्तांतरण, उत्पादन और भंडारण पर रोक लगाने वाली एक एक अंतरराष्ट्रीय संधि है। क्लस्टर बम (Cluster Bombs), एक प्रकार का विस्फोटक हथियार होते है, जो किसी एक क्षेत्र में छोटे-छोटे बमों का बिखराव (“बमबारी”) करते हैं।

  1. इसके अतिरिक्त, कन्वेंशन के तहत, पीड़ितों की सहायता, दूषित साइटों की सफाई, जोखिम कम करने संबंधी जानकारी, और बमों के भंडार को नष्ट करने में सहयोग करने हेतु एक फ्रेमवर्क स्थापित किया गया है।
  2. इस अभिसमय / कन्वेंशन को 30 मई 2008 को डबलिन में अपनाया गया था।
  3. अब तक, इस अभिसमय को 110 राष्ट्रों द्वारा अपनाया जा चुका है, और 13 अन्य देशों ने इस पर हस्ताक्षर किए हैं, लेकिन अभी तक इसकी पुष्टि नहीं की है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

‘वैक्यूम बम’ के इस्तेमाल को किसी भी अंतरराष्ट्रीय कानून या समझौते द्वारा निषिद्ध नहीं किया गया है, किंतु आवसीय क्षेत्रों, स्कूलों या अस्पतालों में नागरिक आबादी के खिलाफ इनका प्रयोग किए जाने पर, वर्ष 1899 और 1907 के हेग अभिसमयों के तहत कार्रवाई की जा सकती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


  पाक की खाड़ी में भारत का पहला डुगोंग अभ्यारण्य

डुगोंग के संरक्षण के लिए भारत का पहला ‘डुगोंग संरक्षण रिजर्व’ (Dugong conservation reserve) तमिलनाडु के समीप ‘पाक की खाड़ी’ (Palk Bay) में बनाया जाएगा।

  • जानवरों के संरक्षण के लिए इसे भारत और श्रीलंका के बीच ‘मन्नार की खाड़ी’ एवं ‘पाक की खाड़ी’ में स्थापित किया जाएगा।
  • यह रिजर्व तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी तट पर ‘पाक की खाड़ी’ में 500 किमी के क्षेत्र में विस्तृत होगा।
  • डुगोंग (Dugongs) विलुप्त होने के कगार पर हैं, और इनकी आबादी ‘अंडमान और निकोबार द्वीप समूह’ में 100 से कम बची है।
  • ‘मन्नार की खाड़ी’ और ‘कच्छ की खाड़ी’ दोनों स्थानों पर इनकी संख्या बहुत कम दर्ज की गयी है।

डुगोंग: समुद्री गाय

(Dugong: The sea cow)

  • यह ‘अंडमान और निकोबार द्वीप समूह’ का राज्य पशु है।
  • डुगोंग (Dugong) एक समुद्री जानवर है जिसे विश्व संरक्षण संघ (IUCN) द्वारा वैश्विक स्तर पर ‘विलुप्त होने की संभावना’ के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
  • यह लुप्तप्राय समुद्री प्रजाति, समुद्री घास और क्षेत्र में पाई जाने वाली अन्य जलीय वनस्पतियों पर जीवित रहती है।
  • यह एकमात्र शाकाहारी समुद्री स्तनपायी जीव है और ‘डुगोंगिडे’ (Dugongidae) परिवार की एकमात्र मौजूदा प्रजाति है।

 

विश्वभारती विश्वविद्यालय

विश्वभारती (Visva-Bharati) एक लोक अनुसंधान केंद्रीय विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय महत्व का संस्थान है। यह विश्वविद्यालय शांतिनिकेतन, पश्चिम बंगाल, भारत में स्थित है

  • इस विश्वविद्यालय की स्थापना रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा की गयी थी, और इन्होने इसे ‘विश्व-भारती’ का नाम दिया, जिसका अर्थ होता है भारत के साथ विश्व का मिलन।
  • विश्व भारती को 1951 में, संसद के एक अधिनियम द्वारा एक ‘केंद्रीय विश्वविद्यालय’ और ‘राष्ट्रीय महत्व का संस्थान’ घोषित किया गया था।

 

SIMBA – कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित फोटो-पहचान सॉफ्टवेयर

गुजरात वन विभाग द्वारा एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई)-आधारित फोटो-पहचान सॉफ्टवेयर विकसित किया गया है।

  • इस सॉफ्टवेयर को विशेष रूप से ‘एशियाई शेरों की व्यक्तिगत रूप से पहचान करने’ के लिए पैटर्न / चिह्नों को अलग करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
  • इस सॉफ्टवेयर का नाम सिम्बा अर्थात ‘एशियाटिक लायंस हेतु इंटेलिजेंस मार्किंग बेस्ड आइडेंटिफिकेशन सॉफ्टवेयर’ (Software with Intelligence Marking Based identification of Asiatic lions – SIMBA) है।
  • SIMBA एक गहन मशीन लर्निंग तकनीक के साथ काम करता है। यह तकनीक, प्रति-युग्म तुलना करने हेतु ‘बिंदु-पैटर्न’ से मिलान करती है और एक जीव की मूछों के बालों (Whisker) के देखे गए पैटर्न में परिवर्तनशीलता, चेहरे पर निशान की उपस्थिति, कानों पर निशान और तस्वीर के अन्य मेटाडेटा के आधार पर उसकी ‘निजी पहचान’ को स्वचालित रूप से स्पष्ट कर देती है।
  • यह सॉफ्टवेयर, फोटोग्राफ से किसी विशिष्टता को भी छांट निकालता है, और समान पैटर्न को एक समूह में प्रदर्शित कर सकता है।
  • एशियाई शेर, IUCN की रेड लिस्ट के तहत ‘लुप्तप्राय’ के रूप में सूचीबद्ध है।

 

अल्पकालीन छुट्टी

लंबी अवधि के कारावास के मामले में, अल्पकालीन छुट्टी / ‘फरलो’ (Furlough) दिया जाता है।

‘फरलो’ को बिना किसी कारण के समय-समय पर दिए जाने वाले तथा कैदी को पारिवारिक और सामाजिक संबंधों को बनाए रखने में सक्षम बनाने हेतु ‘थोड़े समय की छुट्टी’ के अधिकार के मामले के रूप में देखा जाता है। जबकि, पैरोल (Parole), का अधिकार से कोई संबंधी नहीं होता है और पर्याप्त आधार होने के बावजूद किसी कैदी को ‘पैरोल’ देने से इनकार किया जा सकता है।

‘फरलो’ एवं ‘पैरोल’ देने का अधिकार:

  • पैरोल और फरलो संबंधी विषय, 1894 के जेल अधिनियम के तहत आते हैं। चूंकि जेल राज्य का विषय है, इसलिए राज्य सरकार के ‘जेल अधिनियम’ के तहत पैरोल देने से संबंधित नियमों को परिभाषित किया जाता है।
  • पैरोल, राज्य कार्यकारिणी द्वारा प्रदान की जाती है। पैरोल खारिज किए जाने की स्थिति में, दोषी व्यक्ति सक्षम प्राधिकारी के आदेश को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का रुख कर सकता है।
  • साथ ही, नियमित पैरोल के अलावा, जेल का अधीक्षक भी आकस्मिक मामलों में सात दिनों की अवधि तक पैरोल दे सकता है। 

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