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भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।

 

  

KANISHKBIOSCIENCE E -LEARNING PLATFORM - आपको इस मुद्दे से परे सोचने में मदद करता है, लेकिन UPSC प्रीलिम्स और मेन्स परीक्षा के दृष्टिकोण से मुद्दे के लिए प्रासंगिक है। इस 'संकेत' प्रारूप में दिए गए ये लिंकेज आपके दिमाग में संभावित सवालों को उठाने में मदद करते हैं जो प्रत्येक वर्तमान घटना से उत्पन्न हो सकते हैं !


kbs  हर मुद्दे को उनकी स्थिर या सैद्धांतिक पृष्ठभूमि से जोड़ता है।   यह आपको किसी विषय का समग्र रूप से अध्ययन करने में मदद करता है और हर मौजूदा घटना में नए आयाम जोड़कर आपको विश्लेषणात्मक रूप से सोचने में मदद करता है।

 केएसएम का उद्देश्य प्राचीन गुरु - शिष्य परम्परा पद्धति में "भारतीय को मजबूत और आत्मनिर्भर बनाना" है।  

 

युद्ध अपराध


(War Crimes)

संदर्भ:

हाल ही में, ‘अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय’ के एक अभियोजक द्वारा ‘रूस के आक्रमण के बाद “यूक्रेन की स्थिति” पर एक जांच शुरू की गयी है।

अभियोजक का मानना है, कि इस बात पर विश्वास करने के उचित आधार मौजूद हैं, कि वर्ष 2014 से यूक्रेन में तथाकथित ‘युद्ध अपराध’ (War Crimes) और ‘मानवता के खिलाफ अपराध’ (Crimes Against Humanity) दोनों ही किए जा रहे हैं।

संबंधित प्रकरण:

‘अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय’ (ICC) के लिए “आक्रामकता के अपराध के संबंध में” कई प्रश्न प्राप्त हुए है, किंतु यह अदालत “इस कथित अपराध पर अपने अधिकार क्षेत्र” का प्रयोग नहीं कर सकती है, क्योंकि रूस और यूक्रेन दोनों ही ‘अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय’ की संस्थापक ‘रोम संविधि’ (Rome Statute) पर हस्ताक्षरकर्ता नहीं हैं।

लेकिन, अब ‘अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय’ का मानना ​​​​है, कि इस अदालत के पास इस मामले में अपनी शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार क्षेत्र है, क्योंकि इससे पहले यूक्रेन दो बार – एक बार 2014 में रूस के क्रीमिया पर कब्जा करने के बाद तथा दूसरी बार, वर्ष 2015 में यूक्रेन द्वारा अदालत के अधिकार क्षेत्र को “अनिश्चित अवधि” को मान्यता देते समय – अदालत के अधिदेश को स्वीकार कर चुका

क्या रूस द्वारा यूक्रेन में युद्ध अपराध किए गए है?

  • 28 फरवरी की सुबह, यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर खार्किव (Kharkiv) के केंद्र में रूसी ग्रैड मिसाइलों ने कहर बरपाया।
  • यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की के अनुसार, मिसाइलों से जानबूझकर नागरिकों को निशाना बनाया गया और यह हमला ‘युद्ध अपराध’ है।

‘युद्ध अपराध’ क्या होते है?

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, ‘युद्ध अपराध’ (War Crime), अंतरराष्ट्रीय या घरेलू सशस्त्र संघर्ष के दौरान नागरिकों या ‘शत्रु लड़ाकों’ के खिलाफ किए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय कानूनों का गंभीर उल्लंघन होते है।

  • नरसंहार और मानवता के खिलाफ अपराधों के विपरीत, ‘युद्ध अपराध’ को सशस्त्र संघर्ष के संदर्भ में किए जाने वाले अपराधों को शामिल किया जाता है।

 

‘जिनेवा कन्वेंशन’

वर्ष 1949 में हस्ताक्षरित चार ‘जिनेवा कन्वेंशन’ (Geneva Conventions) में ‘युद्ध अपराधों’ (War Crimes) का अर्थ स्पष्ट किया गया था।

चौथे जेनेवा कन्वेंशन के अनुच्छेद 147 में युद्ध अपराधों को “जानबूझकर अत्यधिक पीड़ा पहुचाने अथवा शरीर या स्वास्थ्य पर गंभीर चोट पहुंचाने, गैरकानूनी रूप से निर्वासन या स्थानान्तरित करने, बंधक बनाने अथवा गैरकानूनी रूप से कैद करने, व्यापक स्तर पर विनाश करने और परिसम्पत्तियों पर कब्ज़ा करने सहित जानबूझकर हत्याएं, यातना देने, अन्य अमानवीय तरीकों और सैन्य-जरूरतों के तहत गैर-तर्कसंगत, जानबूझकर और निर्दयतापूर्वक किए जाने वाले कार्यो के रूप में परिभाषित किया गया है”।

अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय (ICC) घटनाक्रम:

‘अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय’ की रोम संविधि के द्वारा अपराधों की सूची का विस्तार किया गया है, जिसमे ‘युद्ध अपराधों’ के तहत आने वाले अपराधों को भी शामिल किये गए हैं। उदाहरण के लिए, इस क़ानून के तहत, जबरन गर्भाधान को युद्ध अपराध के रूप में माना जाएगा।

समानता, पहचान और पूर्वविधान:

इस मानवीय कानून के तीन मुख्य स्तंभ, समानता (Proportionality), पहचान (Distinction),   पूर्वविधान (Precaution) के सिद्धांत हैं। यदि इनमें से किसी एक या सभी सिद्धांतों का उल्लंघन किया जाता है, तो इसे युद्ध अपराध माना जाएगा।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

  1. नैतिकता और युद्ध अपराध: https://www.bbc.co.uk/ethics/war/overview/crimes_shtml.
  2. युद्ध अपराधों के उदाहरण: https://en.m.wikipedia.org/wiki/List_of_war_crimes.

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. जिनेवा कन्वेंशन द्वारा परिभाषित युद्ध अपराधों की परिभाषा
  2. अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय (ICC) के बारे में
  3. सदस्य और अधिकार क्षेत्र
  4. यूक्रेन और रूस युद्ध

मेंस लिंक:

युद्ध अपराध क्या होता है? इस संबंध में कौन से ‘अंतरराष्ट्रीय अभिसमय’ लागू किए गए हैं।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।

CAATSA से छूट


(CAATSA waiver)

संदर्भ:

वर्तमान में जारी ‘यूक्रेन संकट’ पर और पश्चिमी देशों के बीच बढ़ते तनाव के बीच, भारत के समक्ष ‘एस-400’ समझौते को लेकर, निकट भविष्य में समय पर रक्षा प्रणाली की डिलीवरी पर अनिश्चितता तथा ‘अमेरिकी प्रतिद्वंद्वियों को प्रतिबंधो के माध्यम से प्रत्युत्तर अधिनियम‘ (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act – CAATSA) के तहत अमेरिकी प्रतिबंध लगाए जाने के खतरे का भी सामना कर रहा है। विदित हो कि, भारत के मॉस्को और कीव, दोनों के साथ प्रमुख रक्षा सहयोग संबंध हैं।

वर्तमान चिंता का विषय:

  1. अतीत में, रूस और यूक्रेन के बीच जारी तनाव की वजह से ‘भारतीय वायु सेना’ (IAF) के ‘AN-32 परिवहन बेड़े’ के आधुनिकीकरण में काफी देरी हो चुकी है।
  2. अतः, नवीनतम चिंता यह है, कि इस युद्ध के परिणामस्वरूप, रूस की अपनी घरेलू प्रतिबद्धताओं तथा पश्चिम द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण, रूस से भारत को एस-400 रक्षा प्रणाली की होने वाली डिलीवरी में देरी हो सकती है।

भारत-रूस सैन्य व्यापार का अवलोकन:

रूस, भारत का विभिन्न प्लेटफॉर्म एवं प्रौद्योगिकियों- जिनको अन्य देशों द्वारा साझा करने से मना कर दिया गया-  को साझा करने वाला एक पारंपरिक सैन्य आपूर्तिकर्ता रहा है। हाल के वर्षों में भारत और रूस के बैच सहयोग- संबंध और गहरे हुए हैं।

  • उदाहरण के लिए, 43बिलियन डॉलर के S-400 वायु रक्षा प्रणाली समझौते तथा अन्य महत्वपूर्ण सौदों के साथ भारत-रूस के मध्य व्यापार 2018 के 15 बिलियन डॉलर की सीमा को पार कर गया है।
  • आज भी, भारतीय सैन्य सूची में 60% से अधिक- विशेष रूप से लड़ाकू जेट, टैंक, हेलीकॉप्टर और पनडुब्बियां आदि – उपकरण रूसी- उत्पत्ति की है। इसके अलावा कई प्रमुख सौदों पर वार्ता जारी है।
  • भारत ने युद्धपोतों के लिए आठ ‘ज़ोर्या-मशप्रोएक्ट (Zorya-Mashproekt) गैस टर्बाइन इंजनों’ के लिए यूक्रेन के साथ एक पृथक समझौते पर भी हस्ताक्षर किए गए हैं।
  • यूक्रेन, 2009 में अंतिम रूप दिए गए एक सौदे के तहत, भारतीय वायुसेना के 100 से अधिक एएन-32 परिवहन विमानों का उन्नयन भी कर रहा है।

S-400 वायु रक्षा प्रणाली एवं भारत के लिए इसकी आवश्यकता:

S-400 ट्रायम्फ (Triumf) रूस द्वारा डिज़ाइन की गयी एक मोबाइल, सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली (surface-to-air missile system- SAM) है।

  • यह विश्व में सबसे खतरनाक, आधुनिक एवं परिचालन हेतु तैनात की जाने वाली लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली SAM (MLR SAM) है, जिसे अमेरिका द्वारा विकसित, ‘टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस’ (Terminal High Altitude Area Defence – THAAD) से काफी उन्नत माना जाता है।

current affairs

 

CAATSA क्या है?

‘अमेरिकी प्रतिद्वंद्वियों को प्रतिबंधो के माध्यम से प्रत्युत्तर अधिनियम’ (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act- CAATSA) का प्रमुख उद्देश्य दंडात्मक उपायों के माध्यम से ईरान, उत्तर कोरिया और रूस को प्रत्युत्तर देना है।

  • यह क़ानून वर्ष 2017 में अधिनियमित किया गया था।
  • इसके तहत, रूस के रक्षा और ख़ुफ़िया क्षेत्रों में महत्वपूर्ण लेनदेन करने वाले देशों के खिलाफ लगाए जाने वाले प्रतिबंधो को शामिल किया गया है।

Current Affairs

लगाये जाने वाले प्रतिबंध:

  1. अभिहित व्यक्ति (sanctioned person) के लिए ऋणों पर प्रतिबंध।
  2. अभिहित व्यक्तियों को निर्यात करने हेतु ‘निर्यात-आयात बैंक’ सहायता का निषेध।
  3. संयुक्त राज्य सरकार द्वारा अभिहित व्यक्ति से वस्तुओं या सेवाओं की खरीद पर प्रतिबंध।
  4. अभिहित व्यक्ति के नजदीकी लोगों को वीजा से मनाही।

Current Affairs

 

सौदे का महत्व:

S-400 रक्षा प्रणाली समझौते संबंधी निर्णय इस बात का एक बहुत सशक्त उदाहरण है, कि अंतरराष्ट्रीय भागीदारों को चुनने के लिए, विशेषकर राष्ट्रीय हित और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों की बात आती है, तब हमारी रक्षा और रणनीतिक साझेदारी कितनी उन्नत है, और भारतीय संप्रभुता कितनी मजबूत है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप ‘बुनियादी समझौतों’ (Foundational Agreements) के बारे में जानते हैं? तीन समझौतों को ‘बुनियादी समझौता’ कहा जाता है।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. CAATSA किससे संबंधित है?
  2. CAATSA के तहत अमेरिकी राष्ट्रपति की शक्तियां।
  3. लगाये जाने वाले प्रतिबंधों के प्रकार।
  4. भारत और रूस के बीच महत्वपूर्ण रक्षा सौदे।
  5. ईरान परमाणु समझौते का अवलोकन।

मेंस लिंक:

CAATSA की विशेषताओं और महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


सामान्य अध्ययन-III


 

विषय: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।

आर्टेमिस कार्यक्रम


संदर्भ:

नासा के आर्टेमिस कार्यक्रम (Artemis Program) की चंद्रमा पर पहली क्रू लैंडिंग, वर्ष 2026 में होने की संभावना है। इस बीच, नासा द्वारा मई 2022 में आर्टेमिस 1 (Artemis 1) को लॉन्च किया जाएगा।

देरी के कारण: NASA के अनुसार, मानव के सतह पर उतरने संबंधी प्रणाली (Human Landing System) और नासा के अगली पीढ़ी के स्पेससूट के विकास और परीक्षण हेतु अभी और अधिक्त समय चाहिए।

आर्टेमिस क्या है?

आर्टेमिस (ARTEMIS) का पूरा नाम “ऐक्सेलरैशन, रीकनेक्शन, टर्ब्युलन्स एंड इलेक्ट्रोडायनामिक्स ऑफ़ मून’स इंटरएक्शन विद द सन” (Acceleration, Reconnection, Turbulence and Electrodynamics of Moon’s Interaction with the Sun) अर्थात चंद्रमा का सूर्य के साथ अंतःक्रिया का गतिवर्धन, पुन:संयोजन, विक्षोभ तथा विद्युत्-गतिकी है।

यह नासा द्वारा चंद्रमा पर भेजा जाने वाला अगला मिशन है।

उद्देश्य:

इसका उद्देश्य, चंद्रमा की चट्टानी सतह, जहाँ इसकी रक्षा के लिए कोई चुंबकीय क्षेत्र नहीं होता है- पर  सूर्य का विकिरण के टकराने के प्रभाव को मापना है।

ग्रीक पौराणिक कथाओं में, ‘आर्टेमिस’ अपोलो की जुड़वां बहन और चंद्रमा की देवी थी।

मिशन का महत्व:

आर्टेमिस कार्यक्रम के तहत, नासा द्वारा वर्ष 2024 तक चंद्रमा की सतह पर पहली बार किसी महिला को तथा अगले पुरुष को उतारा जाएगा।

मिशन विवरण:

  • स्पेस लॉन्च सिस्टम (SLS) नामक नासा के शक्तिशाली नए रॉकेट से ‘ओरियन अंतरिक्ष यान’ में सवार अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी से लगभग सवा लाख मील की दूरी पर चंद्रमा की कक्षा में भेजा जाएगा।
  • अंतरिक्ष यात्री ‘ओरियन यान’ को गेटवे (Gateway ) पर डॉक करेंगे और चंद्रमा की सतह पर अभियान हेतु मानव लैंडिंग सिस्टम में पहुंचेंगे।
  • अभियान की समाप्ति पर अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी पर सुरक्षित लौटने हेतु फिर से ओरियन पर सवार होने लिए ‘कक्षीय चौकी’ (orbital outpost) पर लौट आएंगे।

आर्टेमिस 1, आर्टेमिस 2 एवं आर्टेमिस 3:

नासा द्वारा अपनी गहन अंतरिक्ष अन्वेषण प्रणालियों का परीक्षण करने हेतु चंद्रमा के चारों ओर दो मिशन भेजे जाएंगे।

  1. आर्टेमिस 1 (Artemis 1) का लक्ष्य, एक बार उड़ान भरने वाले ओरियन अंतरिक्ष यान के साथ, अभी तक एक बार भी उडान नहीं भरने वाले ‘स्पेस लॉन्च सिस्टम रॉकेट’ के संयोजन का उपयोग करके चंद्रमा के चारों ओर एक मानव रहित अंतरिक्ष यान भेजना है।
  2. आर्टेमिस 2 (Artemis 2): वर्ष 2024 में चंद्रमा की परिक्रमा करने वाले आर्टेमिस 2 मिशन को लांच करने के साथ, नासा द्वारा आर्टेमिस कार्यक्रम का विस्तार करने की योजना है।
  3. इसके बाद वर्ष 2020 के दशक में भेजे जाने वाले अन्य चालक दल सहित मिशनों से पहले वर्ष 2025 में आर्टेमिस 3 मिशन भेजा जाएगा।

वैज्ञानिक उद्देश्य:

  • दीर्घावधि तक अन्वेषण करने के दौरान आवश्यक पानी और अन्य महत्वपूर्ण संसाधनों का पता लगाना और उनका उपयोग करना।
  • चंद्रमा के रहस्यों की जांच करना और पृथ्वी तथा ब्रह्मांड के बारे में अधिक जानकारी जुटाना।
  • अंतरिक्ष यात्री द्वारा मात्र तीन दिन दूर स्थित किसी अन्य खगोलीय पिंड की सतह पर रहने और कार्य करने के बारे में जानकारी जुटाना।
  • मंगल मिशन पर अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने से पहले हमें जिन तकनीकों की आवश्यकता है, उन्हें प्रमाणित करना। मंगल मिशन में तीन साल तक का समय लग सकता है।

चंद्र अन्वेषण:

  1. वर्ष 1959 में, सोवियत संघ का बिना चालक दल का लूना 1 और लूना 2 चंद्रमा पर जाने वाला पहला रोवर बना।
  2. इससे पहले कि अमेरिका द्वारा अपोलो 11 मिशन को चंद्रमा पर भेजा गया, और इसने 1961 और 1968 के बीच तीन श्रेणियों की रोबोटिक मिशन चंद्रमा पर भेजे।
  3. जुलाई 1969 के बाद से वर्ष 1972 तक 12 अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा की सतह पर भ्रमण कर चुके हैं।
  4. 1990 के दशक में, अमेरिका द्वारा रोबोटिक मिशन क्लेमेंटाइन और लूनर प्रॉस्पेक्टर के साथ चंद्र अन्वेषण फिर से शुरू किया गया।
  5. 2009 में, अमेरिका ने ‘लूनर टोही ऑर्बिटर’ (Lunar Reconnaissance Orbiter – LRO) और लूनर क्रेटर ऑब्जर्वेशन एंड सेंसिंग सैटेलाइट (LCROSS) के प्रक्षेपण के साथ ‘रोबोटिक चंद्र अभियानों’ की एक नई श्रृंखला शुरू की।
  6. 2011 में NASA ने ARTEMIS मिशन की शुरुआत की।
  7. 2012 में, ‘ग्रेविटी रिकवरी एंड इंटीरियर लेबोरेटरी’ (GRAIL) अंतरिक्ष यान ने चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण का अध्ययन किया।
  8. अमेरिका के अलावा यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, जापान, चीन और भारत ने चंद्रमा पर अन्वेषण हेतु विभिन्न मिशन भेजे जा चुके हैं। चीन के द्वारा चंद्रमा की सतह पर दो रोवर उतारे गए हैं, जिसमें 2019 में चंद्रमा के सबसे दूरस्थ किनारे की ओर पहली बार लैंडिंग भी शामिल है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

20 जुलाई, 1969 को, नील आर्मस्ट्रांग और एडविन “बज़” एल्ड्रिन, अपोलो 11 मिशन के हिस्से के रूप में चंद्रमा पर कदम रखने वाले पहले मानव बने थे।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. विभिन्न क्रेटरों के नाम और चंद्रमा पर उनकी अवस्थिति
  2. चंद्रमा पर अब तक भेजे गए मानवयुक्त मिशन
  3. चांद पर भारत द्वारा भेजे गए मिशन

मेंस लिंक:

नासा के आर्टेमिस कार्यक्रम पर एक टिप्पणी लिखिए।

Current Affairs

 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

विषय: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।

रूस-यूक्रेन संकट का सेमीकंडक्टर चिप्स की वैश्विक स्तर पर कमी पर प्रभाव


संदर्भ:

रूस और यूक्रेन, वैश्विक स्तर पर ‘अर्धचालक आपूर्ति श्रृंखला’ (Semiconductor Supply Chain) के महत्वपूर्ण केंद्र हैं। ये दोनों देश इस उद्योग के लिए ‘पैलेडियम’ जैसी दुर्लभ धातुएं और ‘नियॉन’ जैसी गैसें  उपलब्ध कराते हैं, जिनका लगभग सभी आधुनिक उपकरणों और उपकरणों में मौजूद सिलिकॉन वेफर्स के उत्पादन में उपयोग किया जाता है।

मौजूदा रूस-यूक्रेन संकट के बीच, तनाव एवं युद्ध की स्थिति ‘सेमीकंडक्टर चिप्स की वैश्विक स्तर पर कमी’ को और खराब कर सकती है।

संबंधित प्रकरण:

जिस तरह, वैश्विक अर्धचालक उद्योग  (Semiconductor Industry) के लिए रूस दुर्लभ धातुओं की आपूर्ति करता है, उसी तरह यूक्रेन, चिप-उत्पादन उद्योग के लिए आवश्यक गैसों की आपूर्ति करता है। इस प्रकार, अर्धचालकों की आपूर्ति श्रृंखला में तनाव बढ़ाने की संभावना है। सेमीकंडक्टर चिप्स, एशिया-प्रशांत क्षेत्र में ऑटो और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं।

‘सेमीकंडक्टर चिप्स’ के बारे में:

अर्धचालक अर्थात सेमीकंडक्टर्स (Semiconductors) – जिन्हें एकीकृत सर्किट (आईसी), या माइक्रोचिप्स के रूप में भी जाना जाता है – प्रायः सिलिकॉन या जर्मेनियम या गैलियम आर्सेनाइड जैसे यौगिक से निर्मित होते हैं।

सेमीकंडक्टर चिप्स का महत्व:

  • ‘सेमीकंडक्टर चिप्स’, सभी आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स और ‘सूचना और संचार प्रौद्योगिकी’ उपकरणों के ‘दिल और दिमाग’ के रूप में कार्य करने वाले बुनियादी ‘बिल्डिंग ब्लॉक्स’ होते हैं।
  • ये चिप्स अब समकालीन ऑटोमोबाइल, घरेलू गैजेट्स और ईसीजी मशीनों जैसे आवश्यक चिकित्सा उपकरणों का एक अभिन्न अंग बन चुके हैं।

इनकी मांग में हालिया वृद्धि:

  • कोविड -19 महामारी की वजह से, दिन-प्रतिदिन की आर्थिक और आवश्यक गतिविधियों के बड़े हिस्से को ऑनलाइन रूप से किए जाने या इन्हें डिजिटल रूप से सक्षम बनाए जाने के दबाव ने, लोगों के जीवन में चिप-संचालित कंप्यूटर और स्मार्टफोन की ‘केंद्रीयता’ को उजागर कर दिया है।
  • दुनिया भर में फ़ैली महामारी और उसके बाद लगाए गए लॉकडाउन की वजह से जापान, दक्षिण कोरिया, चीन और अमेरिका सहित देशों में ‘महत्वपूर्ण चिप बनाने वाली सुविधाओं’ को भी बंद कर दिया गया।
  • ‘सेमीकंडक्टर चिप्स’ की कमी का व्यापक अनुवर्ती असर पड़ता है। पहले ‘चिप्स’ का अधिक मात्रा में भंडारण किए जाने से इसकी मांग में वृद्धि होती है, जो बाद में आपूर्ति में कमी का कारण बन जाती है।

भारत की सेमीकंडक्टर मांग और संबंधित पहलें:

  • भारत में, वर्तमान में सभी प्रकार की चिप्स का आयात किया जाता है, और वर्ष 2025 तक इस बाजार के 24 अरब डॉलर से 100 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।
  • केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा, हाल ही में, एक ‘अर्धचालक और प्रदर्शन विनिर्माण पारितंत्र’  (Semiconductors and Display Manufacturing Ecosystem) के विकास में सहयोग करने के लिए ₹76,000 करोड़ की राशि आवंटित की गयी है।
  • भारत ने ‘इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स एंड सेमीकंडक्टर्स’ के निर्माण को बढ़ावा देने हेतु योजना (Scheme for Promotion of Manufacturing of Electronic Components and Semiconductors) भी शुरू की है, जिसके तहत इलेक्ट्रॉनिक्स घटकों और अर्धचालकों के निर्माण के लिए आठ साल की अवधि में 3,285 करोड़ रुपये का बजट परिव्यय मंजूर किया गया है।

आगे की चुनौतियां:

  1. उच्च निवेश की आवश्यकता
  2. सरकार की ओर से न्यूनतम वित्तीय सहायता
  3. संरचना क्षमताओं (Fab Capacities) की कमी
  4. PLI योजना के तहत अपर्याप्त अनुदान
  5. संसाधन अक्षम क्षेत्र

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक्स को दुनिया भर में ‘मेटा-संसाधन’ के रूप में मान्यता प्राप्त है? ‘मेटा-संसाधन’ (Meta-Resource) क्या होते हैं?

रूस, पैलेडियम (Palladium) का दुनिया का सबसे बड़ा तथा ‘प्लेटिनम’ का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। इसके अलावा रूस, यूरोप के कुल सोने का लगभग 80 प्रतिशत उत्पादन करता है।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन’ के बारे में
  2. सेमीकंडक्टर डिजाइन और निर्माण में भारत की स्थिति?
  3. ‘राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स नीति’ के तहत प्रमुख प्रस्ताव।
  4. उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन योजना- इसकी घोषणा कब की गई थी?
  5. इस योजना का कार्यान्वयन

मेंस लिंक:

सेमीकंडक्टर्स या चिप्स/इंटीग्रेटेड सर्किट (Integrated Circuits – ICs) का बढ़ता महत्व और इसके निर्माण एवं डिजाइन में चीन का अनुभव, भारत में चिप डिजाइन पर ध्यान केंद्रित किए जाने के संबंध में एक मजबूत आधार प्रदान करता है। टिप्पणी कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

आईपीसीसी रिपोर्ट


(IPCC Report)

संदर्भ:

हाल ही में, ‘अंतर-सरकारी जलवायु परिवर्तन समिति’ (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC)  की छठी आकलन रिपोर्ट (Sixth Assessment Report) का दूसरा भाग जारी किया गया।

  • रिपोर्ट के इस दूसरे भाग में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों, जोखिमों और कमजोरियों और अनुकूलन विकल्पों के बारे में आकलन किया गया है।
  • रिपोर्ट का पहला भाग, पिछले साल अगस्त में जारी किया गया था, जोकि जलवायु परिवर्तन के वैज्ञानिक आधार पर केंद्रित था।

‘छठी आकलन रिपोर्ट’ (AR6) क्या है?

संयुक्त राष्ट्र द्वारा गठित ‘जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल’ (IPCC) की छठी आकलन रिपोर्ट (Sixth Assessment Report – AR6), जलवायु परिवर्तन से संबंधित वैज्ञानिक, तकनीकी और सामाजिक-आर्थिक जानकारी का आकलन करने के उद्देश्य से तैयार की जाने वाली रिपोर्टों की एक श्रृंखला में छठी रिपोर्ट है।

  • यह रिपोर्ट अतीत, वर्तमान और भविष्य की जलवायु का अवलोकन करते हुए जलवायु परिवर्तन की  भौतिकी का आंकलन करती है।
  • इस रिपोर्ट में, मानव-जनित उत्सर्जन की वजह से हमारे ग्रह में होने वाले परिवर्तन और हमारे सामूहिक भविष्य के लिए इसके निहितार्थों के बारे में बताया गया है।

पहली आकलन रिपोर्ट वर्ष 1990 में जारी की गयी थी। इस रिपोर्ट में, पृथ्वी की जलवायु की स्थिति का सबसे व्यापक मूल्यांकन किया जाता है।

अब तक, क्रमशः 1990, 1995, 2001, 2007 और 2015 में पांच आकलन रिपोर्टें जारी की जा चुकी हैं।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • नवीनतम रिपोर्ट में, पहली बार, जलवायु परिवर्तन के क्षेत्रीय और क्षेत्रीय प्रभावों का आकलन किया गया है।
  • इसमें दुनिया भर के मेगा-शहरों के समक्ष खड़े जोखिमों और उनकी कमजोरियों को शामिल किया गया है। उदाहरण के लिए, रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई में समुद्र के स्तर में वृद्धि और बाढ़ का उच्च जोखिम मजूद है, जबकि अहमदाबाद में ग्रीष्म लहरों का गंभीर खतरा है।

स्वास्थ्य पर प्रभाव:

पहली बार, आईपीसीसी रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के स्वास्थ्य प्रभावों का अवलोकन किया गया है।

  • रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन से- विशेष रूप से एशिया के उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में- मलेरिया और डेंगू जैसे वेक्टर जनित और जल जनित रोगों में वृद्धि हो रही है।
  • तापमान में वृद्धि होने की वजह से, संचार, श्वसन, मधुमेह और संक्रामक रोगों से संबंधित मौतों के साथ-साथ, शिशु मृत्यु दर में भी वृद्धि होने की संभावना है।
  • ग्रीष्म लहरों, बाढ़ एवं सूखे जैसी चरम मौसमी घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति, और यहां तक ​​कि वायु प्रदूषण भी कुपोषण, एलर्जी संबंधी बीमारियों के साथ-साथ ‘मानसिक विकारों’ में भी योगदान दे रहे हैं।

भारत विशिष्ट अध्ययन:

रिपोर्ट में भारत को एक संवेदनशील हॉटस्पॉट के रूप में चिह्नित किया गया है, जिसके कई क्षेत्र और महत्वपूर्ण शहर बाढ़, समुद्र के स्तर में वृद्धि और ग्रीष्म लहरों जैसी जलवायु आपदाओं के बहुत अधिक जोखिम का सामना कर रहे हैं।

  • मुंबई, समुद्र के स्तर में वृद्धि और बाढ़ के उच्च जोखिम का सामना कर रहा है।
  • अहमदाबाद, ग्रीष्म-लहरों के गंभीर खतरे का सामना कर रहा है।
  • चेन्नई, भुवनेश्वर, पटना और लखनऊ सहित कई शहर, गर्मी और उमस के खतरनाक स्तर के करीब पहुंच रहे हैं।
  • परिवहन, पानी, स्वच्छता और ऊर्जा प्रणालियों सहित बुनियादी ढांचे को, चरम एवं धीमी शुरुआत वाली जलवायु घटनाओं की वजह से नुकसान पंहुच रहा है, जिसके परिणामस्वरूप आर्थिक नुकसान, सेवाओं में व्यवधान और लोक-कल्याण पर प्रभाव पड़ता है।
  • 2050 तक 877 मिलियन की अनुमानित आबादी – 2020 की 480 मिलियन आबादी से लगभग दोगुना- के साथ शहरी भारत, देश के अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक जोखिम में है।
  • आईपीसीसी के अनुसार, वर्तमान में, भारत में ‘वेट-बल्ब तापमान’ (Wet-Bulb Temperatures) शायद ही कभी 31 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो पाता है। आमतौर पर, देश के अधिकांश हिस्सों में अधिकतम वेट-बल्ब तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस रहता है।

आईपीसीसी रिपोर्ट का महत्व:

  • ‘अंतर-सरकारी जलवायु परिवर्तन समिति’ (IPCC) की रिपोर्ट, विश्व के तमाम देशों द्वारा जलवायु परिवर्तन का सामना करने हेतु बनाई जाने वाली नीतियों के लिए एक ‘वैज्ञानिक आधार’ प्रदान करती है।
  • आईपीसीसी रिपोर्ट्स, अपने आप में नीतिगत निर्देशात्मक नहीं होती हैं; इन रिपोर्ट्स में यह बही बताया जाता है कि, देशों या सरकारों को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। ये रिपोर्ट्स, केवल यथासंभव वैज्ञानिक प्रमाणों के साथ तथ्यात्मक स्थितियों को प्रस्तुत करती हैं।
  • और फिर भी, ये रिपोर्ट्स जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कार्य योजना तैयार करने में बहुत मददगार हो सकती हैं।
  • ये रिपोर्टें, वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों की प्रतिक्रियाओं पर निर्णय करने हेतु ‘अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन वार्ताओं’ का आधार भी बनती हैं। इन्हीं वार्ताओं के तहत, पेरिस समझौते और पहले क्योटो प्रोटोकॉल का निर्माण किया गया था।

अंतर-सरकारी जलवायु परिवर्तन समिति’ (IPCC) के बारे में:

‘अंतर-सरकारी जलवायु परिवर्तन समिति’ (Intergovernmental Panel on Climate Change – IPCC), मानव प्रेरित जलवायु परिवर्तन पर जानकारी एवं ज्ञान में वृद्धि करने हेतु उत्तरदायी, संयुक्त राष्ट्र का एक अंतर सरकारी निकाय है।

  • इसकी स्थापना, वर्ष 1988 में ‘विश्व मौसम विज्ञान संगठन’ (WMO) और ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP)’ के द्वारा की गयी थी।
  • मुख्यालय: जिनेवा, स्विट्जरलैंड।
  • कार्य: नीति निर्माताओं को, जलवायु परिवर्तन के वैज्ञानिक आधार, इसके प्रभावों और भविष्य के जोखिमों और अनुकूलन और शमन के विकल्पों का नियमित आकलन प्रदान करना।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

वेट-बल्ब तापमान (Wet-Bulb Temperatures), गर्मी एवं आर्द्रता का संयोजन करने हेतु एक माप होती है। 31 डिग्री सेल्सियस का ‘वेट-बल्ब तापमान’ मनुष्यों के लिए अत्यंत खतरनाक होता है। 35 डिग्री वेट-बल्ब तापमान में, तंदुरस्त एवं स्वस्थ वयस्क भी, लगभग छह घंटे से अधिक समय तक जीवित नहीं रह सकते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


 पार्टिसिपेटरी नोट्स

पार्टिसिपेटरी नोट्स या पी-नोट्स (Participatory notes / P-Notes) पंजीकृत विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) द्वारा, SEBI में पंजीकृत हुए बगैर भारतीय प्रतिभूतियों में निवेश करने के इच्छुक – विदेशी निवेशकों को जारी किए जाने वाले वित्तीय उपकरण होते हैं।

  1. पी-नोट्स, इक्विटी शेयर सहित ऑफशोर डेरिवेटिव इंस्ट्रूमेंट्स (ODIs) अथवा अंतर्निहित परिसंपत्तियों के रूप में ऋण प्रतिभूतियां होते हैं।
  2. ये निवेशकों को तरलता (liquidity) प्रदान करते हैं तथा इनके स्वामित्व को पृष्ठांकन (Endorsement) और डिलिवरी के माध्यम से स्थान्तरित किया जा सकता है।
  3. हालांकि, सभी विदेशी संस्थागत निवेशक ( Foreign Institutional Investors- FIIs) को प्रत्येक तिमाही में सेबी के लिए इस प्रकार के सभी निवेशों की रिपोर्ट करनी होती है, परन्तु उनके लिए वास्तविक निवेशकों की पहचान का खुलासा करने की आवश्यकता नहीं होती है।

 

स्वेज़ नहर

स्वेज़ नहर (Suez Canal), मिस्र में अवस्थित कृत्रिम समुद्र-स्तरीय जल मार्ग है। यह नहर, स्वेज के स्थलडमरूमध्य (Isthmus) से होकर उत्तर-दक्षिण दिशा में प्रवाहित होती है।

  • यह अफ्रीका और एशिया को विभाजित करते हुए भूमध्य सागर को लाल सागर से जोड़ती है।
  • यह यूरोप, हिंद महासागर और पश्चिमी प्रशांत महासागर के आसपास के देशों के बीच सबसे छोटा समुद्री मार्ग है।
  • यह विश्व का सर्वाधिक इस्तेमाल किया जाने वाले जहाज-मार्गों में से एक है, और विश्व व्यापार का 12% से अधिक भाग इस मार्ग से होता है।

चर्चा का कारण:

नकदी की तंगी से जूझ रहे मिस्र ने, हाल ही में, स्वेज नहर से गुजरने वाले जहाजों के लिए पारगमन शुल्क में 10% तक की बढ़ोतरी की है।


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