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विश्व के इतिहास में 18वीं सदी तथा बाद की घटनाएँ यथा औद्योगिक क्रांति, विश्व युद्ध।

  

KANISHKBIOSCIENCE E -LEARNING PLATFORM - आपको इस मुद्दे से परे सोचने में मदद करता है, लेकिन UPSC प्रीलिम्स और मेन्स परीक्षा के दृष्टिकोण से मुद्दे के लिए प्रासंगिक है। इस 'संकेत' प्रारूप में दिए गए ये लिंकेज आपके दिमाग में संभावित सवालों को उठाने में मदद करते हैं जो प्रत्येक वर्तमान घटना से उत्पन्न हो सकते हैं !


kbs  हर मुद्दे को उनकी स्थिर या सैद्धांतिक पृष्ठभूमि से जोड़ता है।   यह आपको किसी विषय का समग्र रूप से अध्ययन करने में मदद करता है और हर मौजूदा घटना में नए आयाम जोड़कर आपको विश्लेषणात्मक रूप से सोचने में मदद करता है।

 केएसएम का उद्देश्य प्राचीन गुरु - शिष्य परम्परा पद्धति में "भारतीय को मजबूत और आत्मनिर्भर बनाना" है।  

रवांडा नरसंहार


(Rwanda genocide)

संदर्भ:

काह ही में, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने कहा है कि वह ‘रवांडा नरसंहार’ में अपने देश की भूमिका को स्वीकार करते है और क्षमा की उम्मीद करते हैं।

फ़्रांस द्वारा यह व्यक्तव्य, रवांडा द्वारा आरोप लागने के कई वर्षो बाद जारी किया गया है। रवांडा ने फ्रांस पर, वर्ष 1994 में, देश में हुई नृशंसता में शामिल होने का आरोप लगाया था।

रवांडा’ की भौगोलिक अवस्थिति:

‘रवांडा’ (Rwanda) मध्य अफ्रीका में अवस्थिति एक स्थल-रुद्ध देश है।

  • इसकी राजधानी ‘किगाली’ है।
  • जनसंख्या संघटन: हुतु समुदाय (Hutus)- बहुसंख्यक तथा तुत्सी समुदाय (Tutsi) – अल्पसंख्यक।

‘रवांडा नरसंहार’ के बारे में:

रवांडा नरसंहार (Rwandan genocide) को तुत्सी समुदाय के खिलाफ हुए नरसंहार के रूप में भी जाना जाता है। यह रवांडा में, हुतु समुदाय के बहुमत वाली सरकार के सदस्यों द्वारा तुत्सी समुदाय के लोगो का जातिसंहार संबंधी सामूहिक हत्याकांड था।

7 अप्रैल से जुलाई 1994 के बीच 100 दिनों की अवधि के दौरान लगभग 800,000 से अधिक रवांडा-वासी मारे गए थे।

कारण:

  • प्रथम विश्व युद्ध के बाद, रवांडा, लीग ऑफ नेशंस द्वारा जारी अधिकार-पत्र से बेल्जियम के अधीन सौंप दिया गया था, और अपने शासन के दौरान बेल्जियम ने हुतु बहुसंख्यक आबादी की बजाय तुत्सी अल्पसंख्यकों का पक्ष लिया।
  • जिसकी वजह से, तुत्सी और हुतु के बीच सांप्रदायिक दरार और चौड़ी हो गई।
  • हुतु लोगों द्वारा अल्पसंख्यक तुत्सी के उत्पीड़न में वृद्धि होने से, तनाव और हिंसा, रवांडा को स्वतंत्रता प्राप्त करने से पहले ही विरासत में मिले थे।
  • वर्ष 1959 में हुई ‘हुतु क्रांति’ के कारण हजारों तुत्सी लोगों को देश से पलायन करने पर विवश होना पड़ा।
  • वर्ष 1962 में आजादी हासिल करने के बाद भी तुत्सी समुदाय के खिलाफ जातीय रूप से प्रेरित हिंसा जारी रही।
  • 1994 में हुए नरसंहार का तत्कालिक कारण, रवांडा सरकार के उदारवादी हुतु नेता हब्यारीमाना (Habyarimana) द्वारा अरुशा समझौते (Arusha agreement) पर हस्ताक्षर और इसके बाद विमान दुर्घटना में हब्यारीमाना की हत्या था।

फ्रांसीसी संबंध:

फ़्रांस ने, रवांडा को आजादी हासिल होने के बाद से, हुतु प्रभुत्व वाली सरकार के साथ घनिष्ठ राजनयिक संबंध बनाए रखे।

  • 1994 के गृहयुद्ध के दौरान, जब फ्रांस को लगा कि तुत्सी विद्रोही, हुतु मिलिशिया को हरा देंगे, तब उसने रवांडा में अपनी सेना भेजी। फ्रांस ने नरसंहार करने वाले कई हुतु षड्यंत्रकारियों को बचाया, यहां तक ​​कि उन्हें फ्रांस में आश्रय/शरण भी दी।
  • इसलिए, फ्रांस पर, हुतु षड्यंत्रकारियों द्वारा इस नरसंहार की साजिश के बारे में जानने और सहायता करने का आरोप लगाया जाता है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

आप सोच रहे होंगे कि नरसंहार पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया क्या थी और क्या इन अपराधों के लिए किसी को दोषी ठहराया गया था?

इसके लिए देखें: bbc.com

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. रवांडा कहाँ है?
  2. मानचित्र पर किगाली की अवस्थिति
  3. नरसंहार के बारे में
  4. कारण और परिणाम

मेंस लिंक:

रवांडा नरसंहार पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: द हिंदू

 


सामान्य अध्ययन- II


 

विषय: संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय।

‘संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना’ (MPLADS)


(MP Local Area Development Scheme)

संदर्भ:

हाल ही में, कुछ सांसदों द्वारा लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिखकर ‘संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना’ (MP Local Area Development Scheme- MPLADS) को फिर से शुरू करने की मांग की गई है।

पृष्ठभूमि:

केंद्र सरकार द्वारा अप्रैल 2020 में ‘आपदा प्रबंधन अधिनियम’ का प्रयोग करते हुए संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास (MPLAD) योजना को निलंबित कर दिया गया था।

‘संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना’ (MPLADS) के बारे में:

  • इस योजना की शुरुआत दिसंबर, 1993 में की गयी थी।
  • इसका उद्देश्य संसद सदस्यों के लिए, स्थानीय जरूरतों के आधार पर सामुदायिक अवसंरचनाओं सहित मूलभूत सुविधाओं और स्थाई सामुदायिक परिसंपत्तियों का विनिर्माण करने के लिए विकासात्मक प्रकृति के कार्यों की सिफारिश करने हेतु, एक तंत्र प्रदान करना था।
  • MPLAD योजना, पूरी तरह से भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित योजना है।
  • इसके तहत प्रत्येक संसदीय क्षेत्र को वार्षिक रूप से 5 करोड़ रुपए की MPLADS निधि प्रदान की जाती है।

विशेष फोकस:

सांसदों के लिए, वार्षिक रूप से दी जाने वाली MPLADS निधि की न्यूनतम 15 प्रतिशत राशि अनुसूचित जाति की आबादी वाले क्षेत्रों में, तथा 7.5 प्रतिशत राशि अनुसूचित जनजाति की आबादी वाले क्षेत्रों में कराए जाने वाले कार्यों पर व्यय करना अनिवार्य है।

निधि को जारी करना:

  • इस योजना के तहत, सांसद निधि, सीधे जिला अधिकारियों को सहायता अनुदान (Grants in-Aid) के रूप में जारी की जाती है।
  • योजना के तहत जारी की गयी निधि गैर-व्यपगत (Non-Lapsable) होती है।
  • यदि किसी विशेष वर्ष में निधि जारी नहीं जाती है तो इसे पात्रता के अनुसार, अगले वर्षो में कराए जाने वालों कार्यों में जोड़ दिया जाएगा। इस योजना के तहत सांसदों की भूमिका अनुसंशा करने की होती है।
  • इस योजना के तहत, सांसदों की भूमिका मात्र सिफ़ारिशी होती है।
  • जिला प्राधिकरण के लिए, कार्यों संबंधी पात्रता की जांच करने, निधि स्वीकृत करने और कार्यान्वयन हेतु एजेंसियों का चयन करने, कार्यों को प्राथमिकता देने, समग्र निष्पादन का निरीक्षण करने और योजना की जमीनी स्तर पर निगरानी करने का अधिकार होता है
  • जिला प्राधिकरण द्वारा, सम्बंधित जिले में कार्यान्वयित की जा रही कम से कम 10% परियोजनाओं का प्रति वर्ष निरीक्षण किया जाएगा।

कार्यों के लिए अनुसंशा:

  1. लोकसभा सदस्य अपने संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों में कराए जाने वाले कार्यों की सिफारिश कर सकते हैं।
  2. राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य, संबंधित राज्य में कहीं भी कराए जाने वाले कार्यों की सिफारिश कर सकते हैं।
  3. लोकसभा और राज्यसभा के नामित सदस्य, देश में कहीं भी कराए जाने वाले कार्यों का चयन व सिफारिश कर सकते हैं।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

  1. क्या हमें MPLAD योजना की आवश्यकता है? यहां पढ़ें: https://www.prsindia.org/theprsblog/do-we-need-mlad-scheme.
  2. MPLADS के निलंबन से विवाद क्यों बढ़ गए हैं? यहां पढ़ें: https://www.thehindubusinessline.com/news/why-suspension-of-mplads-has-raised-hackles/articleece/amp/.

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. MPLADS संसद आदर्श ग्राम योजना से किस प्रकार सम्बद्ध है?
  2. नामित सांसद अपने कार्यों की सिफारिश किन क्षेत्रों में कर सकते हैं?
  3. क्या एससी और एसटी कल्याण पर कोई विशेष ध्यान केंद्रित है?
  4. अनुदान और ऋण के बीच अंतर?
  5. कार्यान्वयन करने वाली एजेंसियां

मेंस लिंक:

क्या MPLADS द्वारा सार्वजनिक सेवाओं को प्रदान किए जाने वाले प्रावधानों में मौजूदा अंतराल को पाटने में सहायता की गयी है? आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।

बीते दशक के दौरान संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं में चीन के प्रभुत्व में वृद्धि: एक अध्ययन


संदर्भ:

चीन द्वारा, संयुक्त राष्ट्र (United Nations– UN) और संबंधित संस्थाओं में अपने प्रभाव का विस्तार करने के लिए पिछले एक दशक के दौरान कई कदम उठाए गए हैं।

चीन द्वारा उठाए गए विभिन्न कदम:

  1. वित्त पोषण में वृद्धि: चीन द्वारा, इन संगठनों के लिए दिए जाने वाले स्वैच्छिक दान में लगभग 350 प्रतिशत की वृद्धि की गई है।
  2. प्रभावशाली स्थिति (Dominant position): चीन ने महत्वपूर्ण ‘संयुक्त राष्ट्र की गैर-बहुपक्षीय संस्थाओं’ (non-UN multilateral bodies) में अपने प्रभुत्व में वृद्धि की है, और वर्तमान में चीन, कार्मिकों और वित्त पोषण के संदर्भ में, ‘अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संगठन’ (International Telecommunication Union – ITU) तथा ‘संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन’ (UNIDO), जैसे कई संगठनों में अपनी ‘प्रभावशाली स्थिति’ रखता है।
  3. फोकस ग्रुप: चीन का ध्यान उन संस्थाओं पर रहा है, जो चीनी कंपनियों की सफलता को बढ़ावा देने और बीजिंग की ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ जैसी परियोजनाओं के पक्ष में अंतरराष्ट्रीय मानकों को तय करने में मदद करती हैं।

इन उपायों के प्रभाव:

  1. संयुक्त राष्ट्र की 15 प्रमुख एजेंसियों में से चार एजेंसियां चीन के प्रत्यक्ष नेतृत्त्व में है– ‘अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संगठन’ (ITU), ‘संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन’ (UNIDO), खाद्य और कृषि संगठन (FAO) और अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO)।
  2. विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO), संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO), और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) सहित संयुक्त राष्ट्र की नौ एजेंसियों में चीनी उपाध्यक्ष मौजूद हैं।

इन स्थितियों से चीन को होने वाला लाभ:

  1. ‘अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संगठन’ में शामिल चीनी प्रतिनिधि दो कार्यकालों से इसमें सेवारत हैं। यह स्थिति, हुआवेई जैसी चीन-समर्थित कंपनियां और इनके मानकों को, अफ्रीकी महाद्वीप, प्रशांत-क्षेत्र, और दक्षिण एवं दक्षिण पूर्व एशिया जैसे अभी तक कम पहुच वाले बाजारों में संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों द्वारा किए जा रहे विकास कार्यो में, शामिल करने और इन्हें लागू करने को सुनिश्चित करती है
  2. UNIDO: चीन ने ‘संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन’ (UNIDO) को अपनी ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) परियोजना से जोड़ दिया है, और UNIDO अब इसका समर्थन करता है।
  3. ICAO: हवाई यातायात और सुरक्षा मानकों को निर्धारित करने वाले ‘अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन’ (ICAO) में अपनी स्थिति के परिणामस्वरूप चीन ने महामारी के दौरान, ताइवान को किसी भी चर्चा में शामिल नहीं करने को सुनिश्चित किया है। और चीन ने, इसी भांति विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), जिसमे भी चीन का असंगत प्रभाव है, की चर्चाओं में ताइवान को शामिल नहीं होने दिया है।

अन्य देशों की प्रतिक्रिया:

वर्ष 2019 में अमेरिका द्वारा, चीन से आने वाली डाक और मेल पर डाक-टिकटों की कीमत बढ़ाने हेतु डाक संधि (Postal Treaty) पर फिर से बातचीत शुरू की गई। अमेरिका ने यह निर्णय इस जानकारी के अपने संज्ञान में आने के बाद में लिया, कि देश के भीतर एक स्थान से दूसरे स्थान पर कोई सामान भेजना, चीन से अमेरिका को पैकेज भेजने की तुलना में अधिक महंगा है।

चीन के इन कदमों का भारत किस प्रकार मुकाबला कर सकता है?

  1. नियम-निर्माता के रूप में अधिक सक्रिय भूमिका।
  2. अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन, और ‘आपदा रोधी अवसंरचना हेतु गठबंधन’ (Coalition for Disaster Resilient Infrastructure- CDRI), जैसे अपने स्वयं के बहुपक्षीय समूहों की स्थापना और नेतृत्व।
  3. भारतीय हितों में बड़ी भूमिका निभाने की संभावना वाली एजेंसियों और निकायों में अपने स्वैच्छिक योगदान में वृद्धि है।
  4. संयुक्त राष्ट्र तंत्र में नीति-निर्माणक प्रभावशाली पदों के लिए भारतीय नागरिकों को प्रायोजित करना।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

  1. संयुक्त राष्ट्र के लिए दो स्रोतों से वित्त पोषण प्राप्त है- निर्धारित और स्वैच्छिक। क्या आप उनके बीच अंतर जानते हैं? यहां पढ़ें: https://www.google.com/amp/s/www.devex.com/news/simplifying-the-un-budget-77709/amp.
  2. संयुक्त राष्ट्र संघ के कितने अंगों के बारे में आपको पता हैं? देखें: https://www.un.org/en/about-us/un-charter/chapter-3.

 

प्रीलिम्स लिंक:

निम्नलिखित ‘संयुक्त राष्ट्र संगठनों’ के बारे में संक्षेप में अध्ययन करें:

  1. ITU
  2. UNIDO
  3. FAO
  4. ICAO
  5. IMF
  6. IMO

मेंस लिंक:

चीन ने संयुक्त राष्ट्र के कई अंगों पर अपने प्रभाव में किस प्रकार वृद्धि की है और इसका भारत पर क्या प्रभाव पड़ सकता है? चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।

संयुक्त अरब अमीरात का गोल्डन वीजा


(UAE’s Golden Visa)

संदर्भ:

हाल ही में, बॉलीवुड अभिनेता संजय दत्त को ‘संयुक्त अरब अमीरात’ (United Arab Emirates- UAE) सरकार द्वारा ‘गोल्डन वीजा’ (Golden Visa) प्रदान किया गया है।

‘गोल्डन वीजा’ क्या है?

वर्ष 2019 में, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) द्वारा ‘दीर्घकालिक निवास वीजा’ जारी करने के लिए एक नई प्रणाली लागू की गयी थी, जिसके तहत विदेशी नागरिकों को, बिना किसी स्थानीय प्रायोजक के ‘संयुक्त अरब अमीरात’ में रहने, काम करने और अध्ययन करने की सुविधा प्रदान की जाती है। इसके अलावा, इस नई व्यवस्था के तहत विदेशी नागरिकों को 100 प्रतिशत स्वामित्व के साथ अपना व्यवसाय करने की भी सुविधा उपलब्ध होती है।

‘गोल्डन वीज़ा’ के तहत दिए जाने वाले प्रस्ताव:


गोल्डन वीज़ा प्रणाली, मुख्यतः निम्नलिखित समूहों से संबंधित व्यक्तियों को दीर्घकालिक निवास (5 और 10 वर्ष) के लिए अवसर प्रदान करती है:

निवेशक, उद्यमी, उत्कृष्ट प्रतिभा वाले व्यक्ति जैसे शोधकर्ता, चिकित्सा पेशेवर, विज्ञान एवं अन्य ज्ञान-क्षेत्रों से संबंधित व्यक्ति तथा असाधारण छात्र।

Eligibility requirements (Have a brief overview; need not mug up):

पात्रता हेतु आवश्यकताएँ: (संक्षिप्त अवलोकन करें; रटने की आवश्यकता नहीं है)

निवेशकों के लिए:

  • न्यूनतम 10 मिलियन AED (संयुक्त अरब अमीरात दिरहम) के सार्वजनिक निवेश के बराबर, किसी निवेश कोष या कंपनी के रूप में पूंजी जमा।
  • किए जाने वाले कुल निवेश का 60% गैर-अचल संपत्तियों के रूप में होना चाहिए।
  • निवेश की जाने वाली राशि, ऋण के रूप में नहीं दी जानी चाहिए, अन्यथा संपत्ति संबंधी मामलों में सारी जिम्मेवारी निवेशकों की होगी।
  • निवेशक के लिए, न्यूनतम तीन साल तक निवेश को प्रतिधारित करने में सक्षम होना चाहिए।
  • व्यापार में भागीदारों को शामिल करने के लिए ‘गोल्डन वीजा’ का विस्तार किया जा सकता है, बशर्ते कि प्रत्येक भागीदार 10 मिलियन AED का योगदान करे।
  • ‘गोल्डन वीजा’ धारक के पति या पत्नी और बच्चों के साथ-साथ एक कार्यकारी निदेशक और एक सलाहकार भी इस वीजा सुविधा में शामिल हो सकते हैं।

विशिष्ट प्रतिभा वाले व्यक्तियों के लिए:

इस श्रेणी में डॉक्टर, शोधकर्ता, वैज्ञानिक, निवेशक और कलाकारों को शामिल किया गया है। इन व्यक्तियों को उनके संबंधित विभागों और क्षेत्रों द्वारा दी गई मान्यता के बाद, 10 साल का वीजा प्रदान किया जा सकता है। इस वीजा में उनके जीवनसाथी और बच्चों भी शामिल होंगे।

5 साल के वीजा के लिए पात्रता:

  • निवेशक को न्यूनतम 5 मिलियन AED के सकल मूल्य की संपत्ति में निवेश करना होगा।
  • अचल संपत्ति में निवेश की गई राशि ऋण के आधार पर नहीं होनी चाहिए।
  • संपत्ति को कम से कम तीन साल के लिए बरकरार रखा जाना चाहिए।

उत्कृष्ट छत्रों के लिए:

  • सरकारी और निजी माध्यमिक विद्यालयों में न्यूनतम 95% ग्रेड हासिल करने वाले उत्कृष्ट छात्र।
  • देश के और विदेशी विश्वविद्यालयों के छात्रों का स्नातक स्तर पर कम से कम 75 का GPA होना चाहिए।

इस कदम के पीछे कारण:

  • संयुक्त अरब अमीरात की अर्थव्यवस्था को कोविड -19 महामारी और तेल की गिरती कीमतों की वजह से बुरी तरह प्रभावित हुई है, जिसकी वजह से कई प्रवासियों को देश छोड़ना पड़ा है।
  • UAE सरकार के कदम का उद्देश्य, इन प्रवासियों को वापस लाना और खाड़ी देश में ‘प्रतिभाशाली लोगों और उत्कृष्ट मष्तिष्क वाले व्यक्तियों’ को रखने और राष्ट्र निर्माण में मदद करना है।
  • सरकार द्वारा दी जा रही ये छूटें, विभिन्न विशेषज्ञता वाले क्षेत्रों के प्रतिभाशाली पेशेवरों को आकर्षित करेंगी और दुनिया के सबसे प्रतिभाशाली दिमागों के लिए संयुक्त अरब अमीरात में करियर बनाने की अपील के साथ नवाचार, रचनात्मकता और अनुप्रयुक्त अनुसंधान को प्रोत्साहित करेंगी।

भारत के लिए महत्व:

  • यह नए नियम, खाड़ी देशों में अधिक भारतीय पेशेवरों और व्यापारियों को आकर्षित करेंगे और इससे भारत-यूएई संबंधों को मजबूत होंगे।
  • यह नियम, कोविड-19 से संबंधित प्रतिबंधों में ढील दिए जाने के बाद फिर से काम शुरू इच्छुक भारतीयों की खाड़ी देश में वापस जाने की सुविधा भी प्रदान करेंगे। ज्ञातव्य है, कि भारत ने नवंबर 2020 की शुरुआत में ‘खाड़ी सहयोग परिषद’ (GCC) के सदस्य देशों से इसके लिए अनुरोध भी किया था।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप भारत और पाकिस्तान के मध्य संयुक्त अरब अमीरात द्वारा मध्यस्थता के बारे में जानते हैं? इसके बारे में और पढ़ें:

https://www.google.com/amp/s/www.aljazeera.com/amp/news/2021/4/15/uae-is-mediating-between-india-and-pakistan-says-senior-diplomat.

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. मध्य पूर्व के महत्वपूर्ण देश और उनकी अवस्थिति
  2. भारत और संयुक्त अरब अमीरात- द्विपक्षीय व्यापार और कच्चे तेल की आपूर्ति
  3. संयुक्त अरब अमीरात में भारतीय प्रावासी- संख्या और महत्व
  4. गोल्डन वीजा क्या है?
  5. पात्रता
  6. लाभ

मेंस लिंक:

यूएई गोल्डन वीजा योजना के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

 

विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।

गाजा पर हमले को युद्ध अपराधका दर्जा दिए जाने की संभावना


संदर्भ:

हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार प्रमुख ने कहा है, कि गाजा पर इजरायल के हालिया घातक हवाई हमले ‘युद्ध अपराध’ की श्रेणी में रखे जा सकते हैं।

इसी दौरान,  कई देश इस विषय पर एक व्यापक, अंतरराष्ट्रीय जांच शुरू करने के बारे में चर्चा कर रहे हैं।

आगे क्या हो सकता है?

यदि नागरिकों और नागरिक संपत्तियों पर इन हमलों के प्रभाव को अंधाधुंध और असंगत पाया जाता है, तो इन इजराइली हमलों के लिए ‘युद्ध अपराध’ की श्रेणी में शामिल किया जा सकता है।

पृष्ठभूमि:

हाल ही लिए ‘संघर्ष विराम’ से पहले, इजरायल द्वारा गाजा पर किए गए हवाई हमलों और तोपों के गोलों से 254 फिलिस्तीनी मारे गए, जिनमे 66 बच्चे भी शामिल थे, और 11 दिनों तक चली इस लड़ाई में 1,900 से अधिक लोग घायल हुए हैं।

‘युद्ध अपराध’ क्या होते है?

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, ‘युद्ध अपराध’ (War Crime), अंतरराष्ट्रीय या घरेलू सशस्त्र संघर्ष के दौरान नागरिकों या ‘शत्रु लड़ाकों’ के खिलाफ किए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय कानूनों का गंभीर उल्लंघन होते है।

  • नरसंहार और मानवता के खिलाफ अपराधों के विपरीत, युद्ध अपराध को सशस्त्र संघर्ष के संदर्भ में किए जाने वाले अपराधों को शामिल किया जाता है।

‘जिनेवा कन्वेंशन’

वर्ष 1949 में हस्ताक्षरित चार ‘जिनेवा कन्वेंशन’ (Geneva Conventions) में ‘युद्ध अपराधों’ (War Crimes) का अर्थ स्पष्ट किया गया था।

चौथे जेनेवा कन्वेंशन के अनुच्छेद 147 में युद्ध अपराधों को “जानबूझकर अत्यधिक पीड़ा पहुचाने अथवा शरीर या स्वास्थ्य पर गंभीर चोट पहुंचाने, गैरकानूनी रूप से निर्वासन या स्थानान्तरित करने, बंधक बनाने अथवा गैरकानूनी रूप से कैद करने, व्यापक स्तर पर विनाश करने और परिसम्पत्तियों पर कब्ज़ा करने सहित जानबूझकर हत्याएं, यातना देने, अन्य अमानवीय तरीकों और सैन्य-जरूरतों के तहत गैर-तर्कसंगत, जानबूझकर और निर्दयतापूर्वक किए जाने वाले कार्यो के रूप में परिभाषित किया गया है”।

अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय (ICC) घटनाक्रम:

‘अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय’ की रोम संविधि के द्वारा अपराधों की सूची का विस्तार किया गया है, जिसमे ‘युद्ध अपराधों’ के तहत आने वाले अपराधों को भी शामिल किये गए हैं। उदाहरण के लिए, इस क़ानून के तहत, जबरन गर्भाधान को युद्ध अपराध के रूप में माना जाएगा।

समानता, पहचान और पूर्वविधान:

इस मानवीय कानून के तीन मुख्य स्तंभ, समानता (Proportionality), पहचान (Distinction),   पूर्वविधान (Precaution) के सिद्धांत हैं। यदि इनमें से किसी एक या सभी सिद्धांतों का उल्लंघन किया जाता है, तो इसे युद्ध अपराध माना जाएगा।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

  1. नैतिकता और युद्ध अपराध: https://www.bbc.co.uk/ethics/war/overview/crimes_shtml.
  2. युद्ध अपराधों के उदाहरण: https://en.m.wikipedia.org/wiki/List_of_war_crimes.

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. जिनेवा कन्वेंशन द्वारा परिभाषित युद्ध अपराधों की परिभाषा।
  2. अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय (ICC) के बारे में।
  3. सदस्य और अधिकार क्षेत्र।
  4. गाजा कहाँ है?
  5. मानचित्र पर गोलान हाइट्स का पता लगाएँ।

स्रोत: द हिंदू

 


सामान्य अध्ययन- III


 

विषय: संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा को चुनौती, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में मीडिया और सामाजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका, साइबर सुरक्षा की बुनियादी बातें, धन-शोधन और इसे रोकना।

व्हाट्सएप द्वारा दिल्ली हाई कोर्ट में अपील


संदर्भ:

व्हाट्सएप ने, त्वरित संदेश प्लेटफार्मों द्वारा, संदेशों के ‘मूल लेखकों’ की पहचान करने में सहायता करने को अनिवार्य बनाने वाले, भारत सरकार द्वारा लागू किये गए नए और सख्त आईटी नियमों के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया है।

याचिका में 26 मई से लागू किए गए नियमों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।

नए नियमों की विवादास्पद धाराएँ:

सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 (The Information Technology (Guidelines for Intermediaries and Digital Media Ethics Code) Rules, 2021) के अनुसार, “संदेश सेवाएं प्रदान करने वाला मध्यस्थ, सक्षम न्यायालय द्वारा पारित न्यायिक आदेश अथवा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के अनुसार सक्षम प्राधिकारी द्वारा धारा 69 के तहत पारित आदेश के बाद “अपने कंप्यूटर संसाधन पर ‘सूचना के मूल जनक’ की पहचान उजागर करेगा”।

इस धारा की प्रयोज्यता:

नियमों में कहा गया है, कि इस तरह के आदेश, केवल भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों या सार्वजनिक व्यवस्था से संबंधित अपराधों, और इसके अलावा बलात्कार, यौन-प्रदर्शन संबंधी सामग्री या बाल यौन शोषण सामग्री और न्यूनतम पांच साल के कारावास से दंडनीय अपराधों, की रोकथाम करने, पता लगाने, जांच करने, अभियोजन या दंड के प्रयोजनों से पारित किए जायेंगे।

व्हाट्सएप द्वारा दिए गए तर्क:

  1. व्यक्तियों के निजता के अधिकार को दुर्बल करते हैं: ये नियम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्याभूत ‘निजता के मौलिक अधिकार’ का उल्लंघन करते हैं।
  2. के.एस. पुट्टस्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के खिलाफ: इस मामले में अदालत द्वारा ‘निजता का अधिकार’ संविधान के तहत प्रत्याभूत मौलिक अधिकार बताया गया है।
  3. पहचान जाहिर न करने का अधिकार (right to anonymity): हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने पुष्टि करते हुए कहा है, कि, ‘पहचान जाहिर न करने का अधिकार’,निजता के अधिकार’ में शामिल है।
  4. एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन को तोड़ना: भारत में ‘सूचना के मूल जनक’ की पहचान जाहिर करने को शुरू से महत्वपूर्ण नुकसान होगा, जिसमे ‘एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन को तोड़ना’ तथा विधिसम्मत अभिव्यक्ति को भयभीत करना भी शामिल होगा।
  5. वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन: निजता, अलंघनीय रूप से वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार से जुड़ा होती है, क्योंकि यह लोगों को अलोकप्रिय, लेकिन विधिसम्मत, विचारों को व्यक्त करने के परिणामस्वरूप उत्पन्न प्रतिशोध से बचाती है।

ध्यान दें:

हमने नए आईटी नियमों के बारे में पहले भी कवर किया है: INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 26 May 2021 – INSIGHTSIAS (insightsonindia.com)

 

इंस्टा जिज्ञासु:

संविधान के अनुच्छेद 21 में कितने अधिकार शामिल हैं? यहां पढ़ें: http://www.legalserviceindia.com/articles/art222.htm.

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. नए आईटी नियमों का अवलोकन
  2. परिभाषा के अनुसार ‘मध्यस्थ’ कौन हैं?
  3. नियम कब लागू हुए?
  4. पुट्टस्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला
  5. पहचान जाहिर न करने का अधिकार संविधान में प्रदत्त किस अधिकार के अंतर्गत आता है?

मेंस लिंक:

निजता, अलंघनीय रूप से वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार से जुड़ा होती है, क्योंकि यह लोगों को अलोकप्रिय, लेकिन विधिसम्मत, विचारों को व्यक्त करने के परिणामस्वरूप उत्पन्न प्रतिशोध से बचाती है। टिप्पणी कीजिए।

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

मेकेदातु में अवैध निर्माण संबंधी आरोपों की जांच हेतु समिति


संदर्भ:

एक मीडिया रिपोर्ट के आधार पर स्वतः संज्ञान लेते हुए, ‘राष्ट्रीय हरित अधिकरण’ (NGT) द्वारा मेकेदातु (Mekedatu) में अनधिकृत निर्माण गतिविधि के आरोपों की जांच करने हेतु एक संयुक्त समिति नियुक्त की गई है। ज्ञातव्य है, कि मेकेदातु में कर्नाटक सरकार द्वारा कावेरी नदी पर एक बांध बनाने का प्रस्ताव रखा गया था।

इस प्रकार के मामलों पर NGT का अधिकार क्षेत्र:

यदि कोई परियोजना, ‘पर्यावरणीय प्रभाव आकलन’ का अध्ययन किए बगैर तथा आवश्यक मंजूरी प्राप्त किए बिना, शुरू की जाती है, तो यह पर्यावरण को प्रभावित करने वाला एक अनधिकृत कार्य होगा। ऐसे मामलों में, ‘राष्ट्रीय हरित अधिकरण’ (NGT) को हस्तक्षेप करने का पूरा अधिकार प्राप्त होगा।

मेकेदातु की अवस्थिति:

मेकेदातु का अर्थ, बकरी की छलांग (goat’s leap) होता है। मेकेदातु एक गहरा खड्ड (gorge) है तथा यह कावेरी और उसकी सहायक अर्कावती नदी के संगम पर स्थित है।

मेकेदातु परियोजना से संबंधित विवाद:

इस परियोजना का उद्देश्य, बेंगलुरू शहर के लिए पीने के प्रयोजन हेतु पानी का भंडारण और आपूर्ति करना है। इस परियोजना के माध्यम से लगभग 400 मेगावाट बिजली उत्पन्न करने का भी प्रस्ताव किया गया है।

  • परियोजना का उद्देश्य बेंगलुरू शहर के लिए पीने के उद्देश्यों के लिए पानी का भंडारण और आपूर्ति करना है। परियोजना के माध्यम से लगभग 400 मेगावाट (मेगावाट) बिजली उत्पन्न करने का भी प्रस्ताव है।
  • तमिलनाडु ने यह कहते हुए आपत्ति जताई है, कि इस परियोजना से तमिलनाडु में कावेरी नदी के जल का प्रवाह प्रभावित होगा।
  • तमिलनाडु का यह भी कहना है कि यह परियोजना उच्चतम न्यायालय और कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण (CWDT) के अंतिम आदेश का उल्लंघन करती है, जिसके अनुसार- अंतर-राज्यीय नदियों के पानी पर कोई भी राज्य विशेष स्वामित्व का दावा नहीं कर सकता है, और न ही किसी राज्य के लिए अन्य राज्यों को इन नदियों के पानी से वंचित करने का दावा करने अधिकार है।

कावेरी नदी:

  • कावेरी नदी का उद्गम दक्षिण-पश्चिमी कर्नाटक राज्य में पश्चिमी घाट के ब्रह्मगिरी पर्वत से होता है। इसे दक्षिण भारत की गंगा भी कहा जाता है।
  • यह नदी बेसिन, तीन राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में विस्तृत हैं: तमिलनाडु, 43,868 वर्ग किलोमीटर, कर्नाटक, 34,273 वर्ग किलोमीटर, केरल, 2,866 वर्ग किलोमीटर और पुदुचेरी।
  • प्रमुख सहायक नदियाँ: हेमावती, लक्ष्मीतीर्थ, काबिनी, अमरावती, नोयल और भवानी नदियाँ।
  • कावेरी नदी पर जलप्रपात: कावेरी नदी पर तमिलनाडु में होगेनक्कल जलप्रपात तथा कर्नाटक राज्य में भारचुक्की और बालमुरी जलप्रपात अवस्थित है।
  • बांध: तमिलनाडु में सिंचाई और जल विद्युत प्रयोजन हेतु मेट्टूर बांध का निर्माण किया गया था।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

कावेरी घाटी में मेकेदातु बांध परियोजना से चार संकटग्रस्त प्रजातियों को किस प्रकार खतरा हो सकता है, यह समझने के लिए  इस लेख को पढ़ें:

https://www.google.com/amp/s/www.thenewsminute.com/article/how-mekedatu-dam-project-cauvery-valley-endangers-four-threatened-species-140376%3famp.

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. कावेरी की सहायक नदियाँ।
  2. बेसिन में अवस्थित राज्य।
  3. नदी पर स्थित महत्वपूर्ण जलप्रपात तथा बांध।
  4. मेकेदातु कहाँ है?
  5. प्रोजेक्ट किससे संबंधित है?
  6. इस परियोजना के लाभार्थी।

मेंस लिंक:

मेकेदातु परियोजना पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: द हिंदू

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


ल्युव्र संग्रहालय

(Louvre museum)

  • यह पेरिस में स्थित दुनिया का सबसे बड़ा ‘कला संग्रहालय’ है।
  • यह दुनिया में सबसे ज्यादा देखा जाने वाला संग्रहालय भी है।
  • इस संग्रहालय में ‘मोनालिसा’ की क्लासिक पेंटिग रखी हुई है, जिसका दुनिया भर के सांस्कृतिक संगठन और कला प्रेमी प्रदर्शनी के तौर में देखना पसंद करते हैं।

चर्चा का कारण:

कला इतिहासकार और क्यूरेटर ‘लॉरेंस डेस कार्स’ (Laurence des Cars), ल्युव्र संग्रहालय के 228 साल के इतिहास में इसकी अध्यक्ष नियुक्त होने वाली पहली महिला बन गई हैं।

चर्चित स्थल: भीतरकणिका राष्ट्रीय उद्यान

ओडिशा में स्थित ‘भीतरकणिका राष्ट्रीय उद्यान’ (Bhitarkanika National Park), अपने मैंग्रोव वनों, प्रवासी पक्षियों, कछुओं, ज्वारनदमुखी मगरमच्छों और अनगिनत सँकरी खाड़ियों के लिए प्रसिद्ध है।

  • यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा मैंग्रोव वन क्षेत्र है।
  • भीतरकणिका में तीन संरक्षित क्षेत्र, भीतरकणिका राष्ट्रीय उद्यान, भीतरकणिका वन्यजीव अभयारण्य और गहिरमाथा समुद्री अभयारण्य शामिल हैं।
  • भीतरकणिका, ब्राह्मणी, बैतरणी, धामरा और महानदी नदी तंत्र के मुहाने पर स्थित है।
  • इसमें देश के ज्वारनदमुखी या खारे पानी के मगरमच्छों की 70% आबादी पायी जाती है। इन मगरमच्छों का संरक्षण काफी पहले वर्ष 1975 में शुरू किया गया था।
  • भीतरकणिका में जीवों की विभिन्न प्रजातियों की विस्तृत श्रंखलापाई जाती हैं, जिनमें 3,000 चित्तीदार हिरण, पक्षी प्रजातियां और जंगली सूअर, सियार, लकड़बग्घा, जंगली बिल्ली, मछली पकड़ने वाली बिल्लियाँ, पानी की निगरानी करने वाली छिपकली, रीसस मकाक, लंगूर, भारतीय सिवेट बिल्ली और खरगोश जैसी प्रजातियां शामिल हैं।
  • इस क्षेत्र को सितंबर 1998 में एक राष्ट्रीय उद्यान और अगस्त 2002 में यूनेस्को द्वारा रामसर साइट के रूप में नामित किया गया था।

चर्चा का कारण:

भीतरकणिका में चक्रवात ‘यास’ की वजह से सैकड़ों पेड़ गिर गए है और जीवों पर इसके प्रभाव का आंकलन किया जा रहा है।


चर्चित प्रजाति- कृष्णमृग

हाल ही में, मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) द्वारा जारी नवीनतम पशुगणना के आंकड़ों के अनुसार, पिछले छह वर्षों में ओडिशा में कृष्णमृगों (Blackbuck) की आबादी दोगुनी हो गई है।

  • पशुगणना के आंकड़ों के अनुसार, कुल मृगों की संख्या 7,358 है जिनमे मादा मृगों की संख्या 4,196 तथा नर मृगों की संख्या 1,712 है तथा युवा मृगों की संख्या 1,450 पाई गई है।
  • कृष्णमृग, ओडिशा राज्य के दक्षिणी भाग में स्थित गंजम जिले में ही पाया जाता है।
  • संरक्षण स्थिति: वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (1992 में संशोधित) के अनुसार ‘काला हिरण’ या कृष्णमृग, अनुसूची-1 में सूचीबद्ध है और रेड डेटा बुक के अनुसार इसे ‘असुरक्षित (Vulnerable) माना जाता है।
  • काले हिरण को ओडिशा और गंजम में कृष्णसारा मृग (Krushnasara Mruga) के नाम से जाना जाता है।

अन्य संबंधित तथ्य:

  • राजस्थान का बिश्नोई समुदाय कृष्णमृग और चिंकारा के संरक्षण के प्रयासों के लिए दुनिया भर में जाना जाता है।
  • यह, आंध्र प्रदेश, हरियाणा और पंजाब का राज्य पशु है।

संरक्षित क्षेत्र:

  1. वेलावदार कृष्णमृग अभयारण्य – गुजरात
  2. प्वाइंट कैलिमेरे वन्यजीव अभयारण्य।
  3. नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व
  4. कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान

 

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 (समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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