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18वीं सदी के लगभग मध्य से लेकर वर्तमान समय तक का आधुनिक भारतीय इतिहास- महत्त्वपूर्ण घटनाएँ, व्यक्तित्व, विषय।

  

KANISHKBIOSCIENCE E -LEARNING PLATFORM - आपको इस मुद्दे से परे सोचने में मदद करता है, लेकिन UPSC प्रीलिम्स और मेन्स परीक्षा के दृष्टिकोण से मुद्दे के लिए प्रासंगिक है। इस 'संकेत' प्रारूप में दिए गए ये लिंकेज आपके दिमाग में संभावित सवालों को उठाने में मदद करते हैं जो प्रत्येक वर्तमान घटना से उत्पन्न हो सकते हैं !


kbs  हर मुद्दे को उनकी स्थिर या सैद्धांतिक पृष्ठभूमि से जोड़ता है।   यह आपको किसी विषय का समग्र रूप से अध्ययन करने में मदद करता है और हर मौजूदा घटना में नए आयाम जोड़कर आपको विश्लेषणात्मक रूप से सोचने में मदद करता है।

 केएसएम का उद्देश्य प्राचीन गुरु - शिष्य परम्परा पद्धति में "भारतीय को मजबूत और आत्मनिर्भर बनाना" है।  


वीर सावरकर


संदर्भ:

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अग्रणी हिंदुत्व विचारक वीर सावरकर को उनकी जयंती- 28 मई पर श्रद्धांजलि अर्पित की।

सावरकर और उनके योगदान के बारे में:

  • विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई, 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले में भागुर शहर में हुआ था।
  • वह विदेशी वस्तुओं के विरोधी थे और ‘स्वदेशी’ के विचार का समर्थन करते थे। 1905 में, उन्होंने दशहरे के अवसर पर सभी विदेशी सामानों को अलाव में जला दिया।

समाज सुधार:

वह नास्तिकता और तार्किकता का समर्थन करते थे और उन्होंने रूढ़िवादी हिंदू विचारों का खंडन किया। वस्तुतः, उन्होंने गाय की पूजा को भी अंधविश्वास कह कर खारिज कर दिया था।

संगठनों से जुड़ाव:

  • विनायक सावरकर, वर्ष 1937 से 1943 के दौरान हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे। 22 अक्टूबर 1939 को कांग्रेस मंत्रालयों द्वारा त्यागपत्र दिए जाने के बाद, इनके नेतृत्व में हिंदू महासभा ने मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सिंध, बंगाल और पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत (NWFP) प्रांतों में सरकार बनाने के लिए सहयोग किया।
  • सावरकर ने, पुणे में, “अभिनव भारत समाज” नामक संगठन की स्थापना की।
  • इन्होने, लोकमान्य तिलक की स्वराज पार्टी की सदस्यता भी ग्रहण की। उनके भड़काने वाले देशभक्तिपूर्ण भाषणों और गतिविधियों ने ब्रिटिश सरकार को नाराज कर दिया। परिणामस्वरूप, ब्रिटिश सरकार ने उनकी बी.ए. डिग्री को वापस ले लिया था।
  • इन्होंने ‘फ्री इंडिया सोसाइटी’ की स्थापना की। इस सोसायटी के द्वारा त्योहारों, स्वतंत्रता आंदोलन संबंधी प्रमुख घटनाओं सहित भारतीय कैलेंडर की महत्वपूर्ण तिथियों को मनाया जाता था और यह भारतीय स्वतंत्रता के संदर्भ में विमर्श को आगे बढ़ाने के लिए समर्पित थी।
  • विनायक सावरकर और गणेश सावरकर ने 1899 में नासिक में एक क्रांतिकारी गुप्त समाज मित्र मेला की शुरुआत की थी।

महत्वपूर्ण रचनाएं:

  1. अपनी पुस्तक ‘द हिस्ट्री ऑफ द वॉर ऑफ इंडियन इंडिपेंडेंस’ में सावरकर ने 1857 के सिपाही विद्रोह में इस्तेमाल किए गए गुरिल्ला युद्ध के बारे में लिखा।
  2. इस पुस्तक को अंग्रेजों ने प्रतिबंधित कर दिया था, लेकिन मैडम भीकाजी कामा ने नीदरलैंड, जर्मनी और फ्रांस में पुस्तक प्रकाशित की, जो अंततः यह कई भारतीय क्रांतिकारियों तक पहुंच गई।
  3. उन्होंने अपनी पुस्तक हिंदुत्व में दो राष्ट्र सिद्धांत की स्थापना की, जिसमें हिंदुओं और मुसलमानों को दो अलग-अलग राष्ट्र बताया गया। 1937 में, हिंदू महासभा ने इस विचार को एक प्रस्ताव के रूप में पारित किया।

 

  इंस्टा जिज्ञासु:

वीर सावरकर की विचारधारा की प्रासंगिकता: Read here 

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. मित्रा मेला, अभिनव भारत सोसाइटी और फ्री इंडिया सोसाइटी की स्थापना किसने की थी? इनके उद्देश्य क्या थे?
  2. सावरकर द्वारा लिखित पुस्तकें?
  3. सावरकर की पुस्तक, जो मैडम भीकाजी कामा द्वारा प्रकाशित की गई थी?
  4. मॉर्ले-मिंटो सुधार: प्रमुख प्रावधान
  5. भारत को आज़ाद करने के लिए हथियारों के इस्तेमाल पर सावरकर के विचार
  6. हिंदू महासभा- प्रमुख उपलब्धियां

मेंस लिंक:

देश में होने वाले सामाजिक सुधारों में वीर सावरकर के योगदान पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: विश्व के इतिहास में 18वीं सदी तथा बाद की घटनाएँ यथा औद्योगिक क्रांति, विश्व युद्ध।

जर्मनी द्वारा नामीबिया में औपनिवेशिक काल के दौरान हुए नरसंहार की स्वीकारोक्ति के मायने


संदर्भ:

हाल ही में, जर्मनी द्वारा, एक सदी पहले अपने औपनिवेशिक शासन के दौरान, वर्तमान नामीबिया में हरेरो (Herero) तथा नामा (Nama) समुदाय के लोगों का नरसंहार करने को स्वीकार किया गया है।

इस स्वीकारोक्ति के साथ ही, जर्मनी ने नामीबिया में सामुदायिक परियोजनाओं में सहायता करने हेतु 1.1 बिलियन यूरो (1.2 बिलियन डॉलर) की राशि देने की भी घोषणा की है।

 ‘नरसंहार’ के बारे में- तात्कालिक घटनाक्रम:

  1. वर्ष 1904 से 1908 के मध्य, जर्मन उपनिवेशियों द्वारा तात्कालिक ‘जर्मन साउथ वेस्ट अफ्रीका’ में हरेरो तथा नामा जनजातियों द्वारा औपनिवेशिक शासन के खिलाफ विद्रोह करने पर, इन समुदायों के लाखों पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की हत्या कर दी गई थी।
  2. विद्रोह के कारण: स्थानीय जनजातियों द्वारा जर्मन उपनिवेशियों को अपनी भूमि और संसाधनों के लिए एक खतरे के रूप में देखा था।
  3. महत्वपूर्ण घटना- वाटरबर्ग की लड़ाई (Battle of Waterberg): इस लड़ाई में जर्मन सैनिकों द्वारा रेगिस्तान में महिलाओं और बच्चों सहित लगभग 80,000 हरेरो का पीछा किया गया, जिसमे से मात्र 15,000 लोग जीवित बचे सके।

वर्तमान नामीबिया पर जर्मनी का अधिकार कब तक रहा?

  • 1884 और 1890 के मध्य, जर्मनी ने वर्तमान नामीबिया के कुछ हिस्सों को औपचारिक रूप से उपनिवेश बना लिया था।
  • जर्मनों ने 1915 तक इस क्षेत्र पर शासन किया, जिसके बाद इस पर 75 तक दक्षिण अफ्रीका का नियंत्रण रहा।
  • नामीबिया को अंततः वर्ष 1990 में स्वतंत्रता हासिल हुई।

आगे की कार्रवाई:

कुछ इतिहासकारों द्वारा इन अत्याचारों को बीसवीं शताब्दी का पहला नरसंहार बताया जाता है।

  • इस हालिया स्वीकारोक्ति के पश्चात, जर्मनी द्वारा एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए जाएंगे, जिसके बाद दोनों देशों की संसदों द्वारा इसकी अभिपुष्टि की जाएगी।
  • फिर, जर्मन राष्ट्रपति फ्रैंक-वाल्टर स्टीनमीयर द्वारा नामीबियाई संसद के सामने जर्मनी द्वारा किए गए अपराधों के लिए आधिकारिक रूप से माफी माँगी जाएगी।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आपको लगता है कि ऐतिहासिक रूप से किये गए अन्याय के लिए कानूनी सुधारात्मक उपाय उचित हैं?

यहां पढ़ें:

 

प्रारंभिक लिंक:

  1. 20वीं सदी के प्रारंभ में ‘जर्मन साउथ वेस्ट अफ्रीका’ किसे कहा जाता था?
  2. नामीबिया की भौगोलिक अवस्थिति
  3. नरसंहार के बारे में
  4. हरेरो और नामा जनजाति किस देश में पाई जाती है?

मेंस लिंक:

जर्मनी द्वारा वर्तमान नामीबिया में हरेरो और नामा लोगों के खिलाफ किए गए नरसंहार की स्वीकारोक्ति के प्रभाव पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

 

विषय: महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, गरीबी और विकासात्मक विषय, शहरीकरण, उनकी समस्याएँ और उनके रक्षोपाय।

उच्चतम न्यायालय द्वारा दहेज हत्या मामलों में धारा 304-B के दायरे का विस्तार


संदर्भ:

उच्चतम न्यायालय द्वारा ‘दहेज उत्पीड़न’ को एक “रोगप्रसारक” (Pestiferous) अपराध बताया है, जिसमे महिला “लोभी” पतियों और ससुराल वालों की क्रूरता का शिकार बन जाती है।

साथ ही, कोर्ट ने एक फैसले में संकेत देते हुए कहा है, कि दहेज हत्या पर दंडात्मक प्रावधानों से संबंधित्त धारा 304-B, की एक जकड़ी हुई और शाब्दिक व्याख्या ने ‘लंबे समय से चली आ रही इस सामाजिक बुराई” के खिलाफ लड़ाई को कुंद कर दिया है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 304-B के बारे में:

धारा 304-बी के अनुसार, दहेज हत्या का मामला बनाने के लिए, किसी महिला की मृत्यु, उसके विवाह के सात वर्षो के भीतर, जलने की वजह से अथवा किसी प्रकार की शारीरिक चोटों से, या ‘असामान्य परिस्थितियों’ में होनी चाहिए। इसके अलावा, महिला की ‘मृत्यु से ठीक पहले’ उसे दहेज की मांग के संबंध में अपने पति या ससुराल वालों से क्रूरता या उत्पीड़न का सामना करना पड़ा हो।

धारा 304-B से जुडी समस्याएं:

अदालतों द्वारा ज्यादातर धारा 304-B के संकीर्ण दृष्टिकोण का प्रयोग किया जाता है। उदाहरणार्थ:

  1. अदालतों द्वारा धारा 304-B के वाक्यांश ‘मृत्यु से पहले’ (soon before) की व्याख्या ‘मृत्यु से तुरंत पहले’ (immediately before) के रूप में की जाती है। इस व्याख्या के तहत यह अनिवार्य हो जाता है, कि, महिला के मरने से ठीक पहले के पलों में उसका उत्पीड़न किया गया हो।
  2. धारा में प्रयुक्त “सामान्य परिस्थितियों के अलावा” (otherwise than under normal circumstances) वाक्यांश भी एक उदार व्याख्या की मांग करता है।

भारत में दहेज से संबंधित मौतें- एक त्वरित नज़र:

  • 1999 से 2018 के बीच लगभग एक दशक के दौरान देश में हुई कुल हत्याओं में 40% से 50% मौतें दहेज हत्या की वजह से हुई हैं।
  • मात्र 2019 में भारतीय दंड संहिता की धारा 304-B के तहत दहेज हत्या के 7,115 मामले दर्ज किए गए।

समय की मांग:

  • अद्लातों को, दहेज और दुल्हन को जलाने के लिए दंडित संबंधी कानून की मंशा को ध्यान में रखते हुए धारा 304-B की उदारतापूर्वक व्याख्या करनी चाहिए।
  • बेतुकी व्याख्याओं से बचना चाहिए। इसके बजाय, अदालतों को महिला के उत्पीड़न और उसकी मृत्यु के बीच केवल “निकट और जीवंत लिंक” का अवलोकन करने की आवश्यकता है।
  • अदालत के लिए आरोपी के सामने अपराध में फँसाने वाली परिस्थितियों को भी रखना चाहिए और उसकी प्रतिक्रिया देखनी चाहिए। आरोपी को मामले में अपना पक्ष रखने का पर्याप्त अवसर भी दिया जाना चाहिए।

दहेज और इससे संबंधित अत्याचारों के कारण:

  1. लोभ: वधू के परिवार से भौतिक लाभ की अपेक्षाएं।
  2. निरक्षरता: जिन समुदायों को कानून और नियमों के बारे में जानकारी नहीं है, उनमे दहेज लेने-देने की प्रथाओं के कारण कई अत्याचारों का सामना करना पड़ता है।
  3. कानूनों का पालन करने की इच्छा का अभाव।

समाधान:

  • बालिकाओं को शिक्षित करें।
  • सरकारी पहलों और कानूनों का उचित कार्यान्वयन।
  • मास मीडिया अभियान शुरू किए जाएँ।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि दहेज विरोधी कानून मौजूद है? इनके बारे में पढ़े और कोर्ट ने इनमे क्या-क्या बदलाव किए हैं, इसे जाने: Read here.

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. भारतीय दंड संहिता की धारा 304-B
  2. आईपीसी की धारा 498A
  3. दहेज के मामलों में अभियुक्तों को संरक्षण

मेंस लिंक:

सुप्रीम कोर्ट द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 304-बी की उदार व्याख्या करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है? चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू

 


सामान्य अध्ययन- II


 

विषय: लोकतंत्र में सिविल सेवाओं की भूमिका।

भारतीय प्रशासनिक सेवा (संवर्ग) नियम, 1954 का नियम 6(I)


संदर्भ:

‘कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग’ (DoPT) द्वारा ‘भारतीय प्रशासनिक सेवा (संवर्ग) नियम’, 1954 का नियम 6(I) [Rule 6(I) of the Indian Administrative Service (cadre) Rules, 1954] को लागू करते हुए पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव अलपन बंद्योपाध्याय को भारत सरकार के अधीन नियुक्त करने संबंधी एक अभूतपूर्व आदेश जारी किया गया है।

इस नियम के बारे में:

‘भारतीय प्रशासनिक सेवा (संवर्ग) नियम’, 1954 के नियम 6(I) में कहा गया है: किसी संवर्ग अधिकारी को, संबंधित राज्य सरकारों और केंद्र सरकार की सहमति से, केंद्र सरकार या किसी अन्य राज्य सरकार या किसी निगमित अथवा गैर-निगमित कंपनी, संघ या व्यक्तिक निकाय, जिसका पूर्ण या पर्याप्त स्वामित्व या नियंत्रण केंद्र सरकार या किसी अन्य राज्य सरकार के पास हो, के अधीन सेवा में प्रतिनियुक्त किया जा सकता है।

असहमति के मामले में क्या होता है?

नियम 6(I) में कहा गया है कि, ‘किसी भी असहमति के मामले में, प्रकरण को केंद्र सरकार द्वारा तय किया जाएगा और राज्य सरकार द्वारा केंद्र सरकार के निर्णय को लागू किया जाएगा।”

वर्तमान विषय:

इस नियम के लिए “सत्ता का घोर दुरुपयोग और राज्य के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करने का प्रयास” कहा जा रहा है।

इस प्रकार के मामलों में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय:

  • इससे पहले, दिसंबर 2020 में, गृह मंत्रालय द्वारा पश्चिम बंगाल कैडर के तीन भारतीय पुलिस सेवा (IPS) अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर बुलाया था, लेकिन राज्य सरकार ने उन्हें सेवा-मुक्त नहीं किया।
  • इसके बाद, अदालत में एक याचिका दायर की गई जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि प्रचलित कानूनों में विशिष्ट द्विभाजन है जो खुद ही विरोधाभासी है और यह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।
  • याचिका में दावा किया गया, कि इस नियम ने कानून-व्यवस्था की स्थिति और संबंधित राज्य सरकारों के प्रशासनिक ढांचे में तबाही मचा दी है।

हालांकि, अदालत ने यह याचिका खारिज कर दी।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप अनुच्छेद 131 और सहकारी संघवाद के बारे में जानते हैं?

यहां पढ़ें: 

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. अखिल भारतीय सेवाओं से संबंधित नियम
  2. IAS, IPS और IFS के संवर्गों के प्रबंधन की जिम्मेदारी
  3. सिविल सेवा बोर्ड
  4. राज्य सरकार के अधीन तैनात सिविल सेवा अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की शक्तियां किसके पास हैं?
  5. भारतीय पुलिस सेवा (IPS) अधिकारियों के लिए गृह मंत्रालय की प्रतिनियुक्ति नीति क्या है?

मेंस लिंक:

आईपीएस कैडर नियम, 1954 के आपातकालीन प्रावधानों पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

मध्याह्न भोजन योजना के तहत बच्चों के लिए नकदी सहायता


संदर्भ:

केंद्र सरकार द्वारा सरकारी स्कूलों में कक्षा 1 से कक्षा 8 तक पढ़ने वाले, मध्याह्न भोजन योजना के लाभार्थी, प्रत्येक बच्चे को लगभग ₹100 देने का फैसला किया गया है।

इस प्रकार प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के माध्यम से , ₹1200 करोड़ की कुल राशि, 11.8 करोड़ बच्चों के लिए एकमुश्त भुगतान के रूप में प्रदान की जाएगी।

‘मध्याह्न भोजन योजना’ के तहत नकद भुगतान:

यह राशि, ‘मध्याह्न भोजन योजना’ के तहत ‘खाना पकाने की लागत’ घटक से दी जाएगी।

  • कृपया ध्यान दें, वर्ष 2021-22 में खाना पकाने की लागत, ‘मध्याह्न भोजन योजना’ के लिए केंद्रीय आवंटन का सबसे बड़ा घटक है।
  • इसमें दालों, सब्जियों, खाना पकाने का तेल, नमक और मसालों जैसी सामग्री की कीमतों को शामिल किया गया है।

संबंधित समस्याएं:

कुछ जगहों पर बच्चों को ‘मिड-डे मील’ अर्थात ‘मध्याह्न भोजन’ के बदले नकद राशि तथा कुछ स्थानों पर शुष्क राशन दिया जा रहा है।

  • जोकि हर तरह से, एक दिन में एक बार पौष्टिक भोजन के लिए भी आवश्यक पर्याप्त मात्रा के हिसाब से बहुत कम है।
  • ₹100 प्रति बच्चा मासिक भुगतान के रूप में दी जाने वाली राशि के हिसाब से हर बच्चे को प्रतिदिन ₹4 से भी कम प्राप्त होते हैं।
  • इसलिए, केंद्र सरकार को पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अंडे, सब्जियां, फल, दाल/चना, तेल सहित अधिक मात्रा में घर ले जाने वाला राशन प्रदान करना चाहिए।

‘मध्याह्न भोजन योजना’ के बारे में:

यह योजना, सरकारी विद्यालयों, सहायता प्राप्त स्कूलों तथा समग्र शिक्षा के अंतर्गत सहायता प्राप्त मदरसों में सभी बच्चों के लिए एक समय के भोजन को सुनिश्चित करती है।

  • इस योजना के अंतर्गत, आठवीं कक्षा तक के छात्रों को एक वर्ष में कम से कम 200 दिन पका हुआ पौष्टिक भोजन प्रदान किया जाता है।
  • इस योजना का कार्यान्वयन मानव संसाधन विकास मंत्रालय के द्वारा किया जाता है।
  • इस योजना को एक केंद्रीय प्रायोजित योजना के रूप में 15 अगस्त, 1995 को पूरे देश में लागू किया गया था।
  • इसे प्राथमिक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पौषणिक सहायता कार्यक्रम (National Programme of Nutritional Support to Primary Education: NP– NSPE) के रूप में शुरू किया गया था।
  • वर्ष 2004 में, इस कार्यक्रम को मिड डे मील योजना के रूप में फिर से शुरू किया गया था।

उद्देश्य:

भूख और कुपोषण को दूर करना, स्कूल में नामांकन और उपस्थिति बढ़ाना, विभिन्न जातियों के मध्य समाजीकरण में सुधार करना, जमीनी स्तर पर, विशेष रूप से महिलाओं को रोजगार प्रदान करना।

मध्याह्न भोजन योजना (MDM) नियम 2015 के अनुसार:

  • बच्चों को केवल स्कूल में ही भोजन परोसा जाएगा।
  • खाद्यान्नों की अनुपलब्धता अथवा किसी अन्य कारणवश, विद्यालय में पढाई के किसी भी दिन यदि मध्याह्न भोजन उपलब्ध नहीं कराया जाता है, तो राज्य सरकार अगले महीने की 15 तारीख तक खाद्य सुरक्षा भत्ता का भुगतान करेगी।
  • निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के अंतर्गत अधिदेशित स्कूल प्रबंधन समिति मध्याह्न भोजन योजना के कार्यान्वयन की निगरानी करेगी।

पोषण संबंधी मानक:

  • मध्याह्न भोजन योजना (MDM) दिशानिर्देशों के अनुसार, निम्न प्राथमिक स्तर के लिये प्रतिदिन न्यूनतम 450 कैलोरी ऊर्जा एवं 12 ग्राम प्रोटीन दिए जायेंगे, तथा उच्च प्राथमिक स्तर के लिये न्यूनतम 700 कैलोरी ऊर्जा एवं 20 ग्राम प्रोटीन दिए जाने का प्रावधान है।
  • MHRD के अनुसार, प्राथमिक कक्षाओं के बच्चों के भोजन में, 100 ग्राम खाद्यान्न, 20 ग्राम दालें, 50 ग्राम सब्जियां और 5 ग्राम तेल और वसा सम्मिलित की जायेगी। उच्च-प्राथमिक स्कूलों के बच्चों के भोजन में, 150 ग्राम खाद्यान्न, 30 ग्राम दालें, 75 ग्राम सब्जियां और 7.5 ग्राम तेल और वसा को अनिवार्य किया गया है।

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प्रीलिम्स लिंक:

  1. MDM योजना कब शुरू हुई?
  2. इसका नाम-परिवर्तन कब किया गया था?
  3. केंद्र प्रायोजित और केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं के बीच अंतर?
  4. MDMS किस प्रकार की योजना है?
  5. योजना के तहत वित्त पोषण
  6. पोषक मानदंड निर्धारित
  7. योजना के तहत कवरेज
  8. योजना के तहत खाद्य सुरक्षा भत्ता देने की जिम्मेदारी

मेंस लिंक:

मध्याह्न भोजन योजना के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।

मोनोक्लोनल एंटीबॉडी थेरेपी


(Monoclonal Antibody Therapies)

संदर्भ:

दिल्ली के अपोलो अस्पताल द्वारा, हल्के लक्षण और सह-रुग्णताएं (comorbidities) वाले कोविड-19 रोगियों के लिए एक “एंटीबॉडी कॉकटेल उपचार” (antibody cocktail treatment) की शुरूआत की गई है। इस चिकित्सा प्रक्रिया में ‘मोनोक्लोनल एंटीबॉडी’ को निष्क्रिय करना भी शामिल है।

‘मोनोक्लोनल एंटीबॉडी’ क्या हैं?

  • मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (Monoclonal antibodies- mAbs) कृत्रिम रूप से निर्मित एंटीबॉडी होती हैं, जिनका उद्देश्य शरीर की ‘प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली’ की सहायता करना होता है।
  • ये एक विशेष एंटीजन को लक्षित करती हैं, जोकि प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया प्रेरित करने वाले रोगाणु का ‘प्रोटीन’ होता है

‘मोनोक्लोनल एंटीबॉडी’ किस प्रकार निर्मित की जाती हैं?

प्रयोगशाला में, श्वेत रक्त कोशिकाओं को एक विशेष एंटीजन के संपर्क में लाने पर ‘मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़’ का निर्माण किया जा सकता है।

  • ‘एंटीबॉडीज़’ को अधिक मात्रा में निर्मित करने के लिए, एकल श्वेत रक्त कोशिका का प्रतिरूप (Clone) बनाया जाता है, जिसे एंटीबॉडी की समरूप प्रतियां तैयार करने में प्रयुक्त किया जाता है।
  • कोविड -19 के मामले में, मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़’ तैयार करने के लिए वैज्ञानिक प्रायः SARS-CoV-2 वायरस के स्पाइक प्रोटीन का उपयोग करते है। यह ‘स्पाइक प्रोटीन’ मेजबान कोशिका में वायरस को प्रविष्ट कराने में सहायक होता है।

‘मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़’ की आवश्यकता:

एक स्वस्थ शरीर में, इसकी ‘प्रतिरक्षा प्रणाली’ (Immune System), एंटीबॉडीज़ अर्थात ‘रोग-प्रतिकारकों का निर्माण करने में सक्षम होती है।

  • ये एंटीबॉडीज़, हमारे रक्त में वाई-आकार (Y-shape) के सूक्ष्म प्रोटीन होते हैं, जो सूक्ष्मजीव रोगाणुओं की पहचान करके उन्हें जकड़ लेते हैं तथा प्रतिरक्षा प्रणाली को इन रोगाणुओं पर हमला करने का संकेत करते है।
  • यद्यपि, जिन लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली, इन एंटीबॉडीज़ को पर्याप्त मात्रा में निर्मित करने में असमर्थ होती हैं, उनकी सहायता के लिए वैज्ञानिकों द्वारा ‘मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़’ की खोज की गई है।

इतिहास:

किसी बीमारी के इलाज के लिए एंटीबॉडी दिए जाने का विचार 1900 के दशक प्रचलित हुआ था, जब  नोबेल पुरस्कार विजेता जर्मन प्रतिरक्षा विज्ञानी (Immunologist) ‘पॉल एर्लिच’ (Paul Ehrlich) द्वारा जाबरक्युग्ल’ (Zauberkugel) अर्थात ‘मैजिक बुलेट’ का विचार प्रतिपादित किया गया था। ‘जाबरक्युग्ल’, चुनिंदा रूप से किसी रोगाणु को लक्षित करने वाला योगिक है।

  • तब से, मानवों में नैदानिक ​​उपयोग हेतु स्वीकृत होने वाली विश्व की पहली मोनोक्लोनल एंटीबॉडी, ‘म्युरोमोनाब-सीडी3 (Muromonab-CD3) तैयार होने तक आठ दशकों का समय लगा।
  • ‘म्युरोमोनाब-सीडी3’, एक प्रतिरक्षादमनकारी (Immunosuppressant) दवा है। इसे ‘अंग प्रत्यारोपण’ किए गए रोगियों में तीव्र अस्वीकृति (Acute Rejection) को कम करने के लिए दी जाती है।

अनुप्रयोग:

मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़ अब अपेक्षाकृत आम हो चुकी हैं। इनका उपयोग इबोला, एचआईवी, त्वचा-रोगों (psoriasis) आदि के इलाज में किया जाता है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप पॉलीक्लोनल एंटीबॉडी के बारे में जानते हैं? उनके बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करें:  Read here

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. एंटीबॉडीज़ क्या होती हैं?
  2. मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़ क्या होती हैं?
  3. ये किस प्रकार निर्मित की जाती हैं?
  4. अनुप्रयोग

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।

अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा वायरस की उत्पत्ति की जांच करने का आदेश


संदर्भ:

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने, अमेरिकी खुफिया एजेंसियों से, कोविड-19 वायरस की उत्पत्ति का विश्लेषण करने हेतु किये जा रहे प्रयासों को ‘दोगुना’ करने को कहा है, ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि इस वायरस की उत्पत्ति ‘मानव-पशु संपर्कों से अथवा किसी प्रयोगशाला में हुई दुर्घटना की वजह से हुई है।

संयुक्त राज्य अमेरिका ने यह भी कहा है, कि वह पूरी तरह से, पारदर्शी, साक्ष्य-आधारित अंतरराष्ट्रीय जांच में भाग लेने और सभी संबंधित डेटा और साक्ष्यों तक पहुंच प्रदान करने के लिए चीन पर दबाव डालने हेतु, विश्व भर के समान विचारधारा वाले भागीदारों के साथ काम करना जारी रखेगा।

इस कदम के निहितार्थ:

इस घोषणा से चीन पर SARS-COV-2 वायरस की उत्पत्ति के बारे में अधिक स्पष्ट होने के लिए डाले जा दबाव में और वृद्धि होगी। ज्ञातव्य है, कि कोविड वायरस का प्रकोप सर्वप्रथम चीन के ‘वुहान’ शहर में फैला था, और इसी शहर में ‘वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी’ (WIV) स्थित है।

वुहान स्थित प्रयोगशाला पर ध्यान केंद्रित क्यों किया जा रहा है?

‘वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी’, विभिन्न प्रयोगों के लिए वन्यजीवों की आनुवंशिक सामग्री एकत्र करता है।

  • वर्ष 2002 में फैले SARS-CoV-1 अंतरराष्ट्रीय प्रकोप की शुरुआत चीन से हुई थी, इसके बाद से इस प्रयोगशाला में ‘चमगादड़ से पैदा होने वाले वायरस’ पर व्यापक काम किया गया है।
  • इस प्रकोप की उत्पत्ति की वर्षों तक खोज करने के दौरान दक्षिण-पश्चिम चीन में स्थित एक ‘चमगादड़-गुफा’ (Bat Cave) में SARS के समान वायरस का पता चला था।

वायरस, इस लैब से किस प्रकार बाहर फैला हो सकता है?

  1. शोधकर्ताओं द्वारा किसी वायरस के प्रति मानव संवेदनशीलता को मापने के लिए, जानवरों पर जीवित वायरस के साथ प्रयोग किया जाता है। किसी भी गलती की वजह से रोगजनकों के बाहर निकलने के जोखिम को कम करने के लिए, प्रयोगशाला में सुरक्षात्मक पोशाकों और सुपर वायु निस्यंदन (air filtration) जैसे कठोर सुरक्षा प्रोटोकॉल लागू किये जाते हैं। फिर भी, सख्त से सख्त उपाय भी इस प्रकार के जोखिमों को खत्म नहीं कर सकते। तो, यह भी मानने का एक कारण है कि इस वायरस की उत्पत्ति लैब में हुई होगी।
  2. इसके अलावा, यह प्रयोगशाला ‘हुनान सीफूड मार्केट’ (Huanan Seafood Market) के नजदीक स्थित है, और इसे महामारी की शुरुआत में, वायरस के पशुओं से मनुष्यों में फैलने वाले सबसे संभावित स्थान के रूप में उद्धृत किया गया था। इसी बाजार में, कोविड-19 के सबसे पहले अत्यधिक तेजी से फैलने वाली घटना हुई थी।
  3. ख़ास कर के, चीनी सरकार द्वारा लैब-से वायरस निकलने संबंधी परिदृश्य की पूरी तरह से जांच करने की अनुमति देने से इनकार करने पर इन सिद्धांतों को और बल मिलता है।

वायरस की प्राकृतिक उत्पत्ति परिकल्पना का समर्थन करने वाले वैज्ञानिकों के तर्क:

  • पहली SARS महामारी (चमगादड़), MERS-CoV (ऊंट), इबोला (चमगादड़ या गैर-मानव प्राइमेट) और निपाह वायरस (चमगादड़) जैसी पिछली सदी की सबसे घातक बीमारियों का स्रोत, वन्यजीवों और घरेलू जानवरों के साथ मानव के संबंधों में पाया गया है।
  • हालाँकि, अभी तक कोविड-19 वायरस की उत्पत्ति के लिए किसी जानवर- स्रोत की पहचान नहीं की गई है, किंतु वुहान में स्थित वन्यजीव बाजार के वन्यजीव खंड की दुकानों में लिए गए नमूनों की जांच करने पर ‘पॉजिटिव’ परिणाम मिले हैं, जो किसी संक्रमित जानवर या जानवरों की देखभाल करने वाले किसी मनुष्य से संक्रमण फैलने का संकेत करते हैं।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप बैक्टीरिया, वायरस, कवक और प्रोटोजोआ के बीच अंतर जानते हैं?

यहां पढ़ें: 

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. mRNA क्या है?
  2. जूनोटिक रोग क्या हैं?
  3. SARS, MERS, Ebola और Nipah का अवलोकन
  4. विभिन्न रोगजनकों के कारण होने वाले रोग
  5. SARS-CoV-2 वायरस क्या है?
  6. आरटी पीसीआर टेस्ट क्या है?
  7. एंटीजन और एंटीबॉडी के बीच अंतर।

मेंस लिंक:

यह अभी भी ज्ञात नहीं है कि कोविड-19 वायरस की उत्पत्ति ‘मानव-पशु संपर्कों से अथवा किसी प्रयोगशाला में हुई दुर्घटना की वजह से हुई है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इस मामले पर कैसे विचार कर रहा है, चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


जयंती

जयंती (Jayanti), ‘अरकोनोमिमस सॉस्योर’ (Arachnomimus Saussure) वर्ग के अंतर्गत चिह्नित झींगुर’ (Cricket) की बारहवीं उपवर्ग या प्रजाति घोषित की गई है।

  • ‘झींगुर’ की इस प्रजाति को, प्राणी विज्ञानियों की एक टीम द्वारा छत्तीसगढ़ की कुर्रा गुफाओं (Kurra caves) में अप्रैल 2021 में खोजा गया था।
  • इस प्रजाति का नामकरण, देश के प्रमुख ‘गुफा अन्वेषकों’ में से एक ‘प्रोफेसर जयंत बिस्वास’ के नाम पर किया गया है। प्रोफेसर जयंत ने इस प्रजाति को खोजने में वैज्ञानिकों के दल की काफी सहायता की।
  • सबसे दिलचस्प बात यह है, कि इस नई जयंती प्रजाति के ‘नर झींगुर’ ध्वनि उत्पन्न नहीं कर सकते हैं और उनकी मादा झींगुरों के कान नहीं होते हैं।

वर्ष 1878  में एक स्विस कीटविज्ञानी (Entomologist) ‘हेनरी लुई फ्रेडरिक डी सॉस्योर’ (Henri Louis Frédéric de Saussure) द्वारा मकड़ियों के समान दिखने वाले झींगुरों के वर्ग को ‘अरकोनोमिमस’ (Arachnomimus) नाम दिया गया था। 

 

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 (समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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