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विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति और विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ, कार्य और उत्तरदायित्व।

 


 

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मुख्यमंत्री: नियुक्ति, शक्ति, कार्य और पद


संदर्भ:

तीरथ सिंह रावत, को उत्तराखंड का नया मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया है।

नियुक्ति:

मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है।

संविधान के अनुच्छेद 164 में किए गए प्रावधानों के अनुसार, राज्यपाल को परामर्श एवं सहायता देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी, जिसका नेतृत्व मुख्यमंत्री द्वारा किया जाएगा।

‘मुख्यमंत्री’ के रूप में किसे नियुक्त किया जा सकता है?

राज्य विधानसभा के लिए आम चुनाव के बाद, सदन में बहुमत हासिल करने वाले दल अथवा गठबंधन द्वारा अपने नेता का चुनाव करते हैं, और राज्यपाल को इसके बारे में सूचित किया जाता है। राज्यपाल, तब औपचारिक रूप से उसे ‘मुख्यमंत्री’ के पद पर नियुक्त करता है और उसे अपने मंत्रिमंडल का गठन करने के लिए कहता है।

राज्य विधानसभा में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं होने की स्थिति में, राज्यपाल प्रायः सबसे बड़े दल के नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करता है।

कार्यकाल:

सैद्धांतिक रूप से, मुख्यमंत्री राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त पद धारण करता है। हालांकि, यथार्थ में मुख्यमंत्री उस समय तक अपने पद पर बना रहता है, जब तक उसे राज्य विधानसभा में सदस्यों का बहुमत हासिल रहता है राज्य के विधानसभा में बहुमत के नेता बने

  • विधानसभा में बहुमत का समर्थन खोने की स्थिति में राज्यपाल, मुख्यमंत्री को बर्खास्त कर सकता है।
  • राज्य विधानसभा भी, उसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित करके पद-मुक्त कर सकती है।

मुख्यमंत्री की शक्तियां और कार्य:

  • राज्यपाल को सहायता और परामर्श प्रदान करता है।
  • मुख्यमंत्री, मंत्रिमंडल का प्रमुख होता है।
  • वह सदन का नेता होता है।
  • वह राज्य-प्रशासन से संबंधित मंत्रिपरिषद के सभी निर्णयों के बारे में राज्यपाल को अवगत कराता है।
  • सदन में मुख्यमंत्री के द्वारा सभी नीतियों की घोषणा की जाती है।
  • वह राज्यपाल को विधानसभा भंग करने की अनुशंसा करता है।
  • वह राज्यपाल को समय-समय पर राज्य विधानसभा के सत्र आहूत करने तथा समाप्त करने के संबंध में सलाह देता है।


  1. मुख्यमंत्री के रूप में किसे नियुक्त किया जा सकता है?
  2. मुख्यमंत्री की नियुक्ति में राज्यपाल की भूमिका
  3. मंत्रिपरिषद
  4. शक्तियाँ
  5. कार्य
  6. कार्यकाल


मुख्यमंत्री की भूमिका एवं कार्यों पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू

 

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विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।

अविश्वास मत


(No-trust vote)

संदर्भ:

हरियाणा में, भारतीय जनता पार्टी-जननायक जनता पार्टी की गठबंधन सरकार के खिलाफ कांग्रेस द्वारा लाया गया अविश्वास प्रस्ताव 55- 32 मतों के अंतर से पराजित हो गया।

‘अविश्वास प्रस्ताव’ क्या होता है?

मंत्रिपरिषद, सामूहिक रूप से लोक सभा / राज्य विधान सभा के प्रति उत्तरदायी होती है और जब तक इसे सदन में बहुमत का विश्वास हासिल रहता है, तब तक यह अपने पद पर बनी रहती है।

इसलिए, मंत्रिपरिषद को हटाने और सरकार को पद-मुक्त करने के लिए अविश्वास प्रस्ताव (No-Confidence Motion) लाया जाता है।

संवैधानिक प्रावधान:

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 75 के अनुसार, मंत्रिपरिषद, सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति जिम्मेदार होगी, तथा अनुच्छेद 164 के अनुसार, मंत्रिपरिषद, सामूहिक रूप से राज्य विधान सभा के प्रति जिम्मेदार होगी।

  • लोकसभा / विधान सभा द्वारा ‘अविश्वास प्रस्ताव’ पारित करके मंत्रिपरिषद पद से हटाया जा सकता है।
  • लोकसभा के नियम 198 में ‘अविश्वास प्रस्ताव’ के लिए प्रक्रिया को निर्दिष्ट किया गया है।

‘अविश्वास प्रस्ताव’ प्रस्तुत करने संबंधी प्रक्रिया:

  • नियम 198 के तहत, सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव केवल लोकसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है।
  • लोक सभा में अविश्वास प्रस्ताव को पेश करने के लिए सदन में न्यूनतम 50 सदस्यों का समर्थन आवश्यक होता है। 50 से कम सदस्यों का समर्थन होने पर यह प्रस्ताव विफल हो जाता है। अविश्वास प्रस्ताव के लिए, सुबह 10 बजे से पहले, कोई भी सदस्य लिखित सूचना दे सकता है।
  • सदन में, अध्यक्ष द्वारा ‘अविश्वास प्रस्ताव’ पढ़कर सुनाया जाएगा और प्रस्ताव के पक्ष होने वाले में सदस्यों से अपने स्थानों पर खड़े होने को कहा जाएगा।
  • यदि तदनुसार कम से कम 50 सदस्य, प्रस्ताव के पक्ष में खड़े होते हैं तो अध्यक्ष द्वारा प्रस्ताव पर चर्चा के लिए एक तारीख निश्चित की जाएगी। किंतु यह तिथि प्रस्ताव पेश करने के 10 दिनों के भीतर ही होनी चाहिए।
  • इसके पश्चात, प्रस्ताव पर मतदान कराया जाता है, जिसके लिए ध्वनि मत, मत विभाजन अथवा किसी अन्य प्रकिया का उपयोग किया जा सकता है।
  • यदि सरकार विश्वास प्रस्ताव हार जाती है अथवा अविश्वास प्रस्ताव बहुमत से स्वीकार कर लिया जाता है तो सरकार को त्याग-पत्र देना होगा।

‘अविश्वास प्रस्ताव’ से संबंधित शर्तें:

  • ‘अविश्वास प्रस्ताव’, केवल लोकसभा या राज्य विधानसभा में पेश किया जा सकता है, जैसा भी मामला हो। इसे राज्य सभा या राज्य विधान परिषद में पेश नहीं किया जा सकता है।
  • यह प्रस्ताव, मंत्रिपरिषद के खिलाफ सामूहिक रूप से लाया जाता है, तथा इसे किसी एक मंत्री अथवा निजी सदस्यों के खिलाफ नहीं लाया जा सकता है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. अविश्वास प्रस्ताव क्या है?
  2. इसे कौन पेश कर सकता है?
  3. प्रक्रिया
  4. क्या इसे राज्यसभा में पेश किया जा सकता है?
  5. अविश्वास प्रस्ताव पारित करने के लिए आवश्यकता
  6. अनुच्छेद 75 किससे संबंधित है?
  7. अनुच्छेद 164।
  8. निंदा-प्रस्ताव और अविश्वास प्रस्ताव के बीच अंतर


अविश्वास प्रस्ताव पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र विधेयक


(National Capital Territory Bill)

संदर्भ:

लोकसभा में, हाल ही में, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली कानून (विशेष प्रावधान) (द्वितीय संशोधन) विधेयक 2021 पारित कर दिया गया है।

प्रमुख प्रावधान:

  • इस विधेयक का उद्देश्य 1 जून, 2014 तक दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में मौजूद अनधिकृत कालोनियों तथा 1 जनवरी 2015 तक जिनमें 50% तक विकास कार्य हो चुका है, को नियमित करना है।
  • इस विधेयक के द्वारा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली कानून (विशेष प्रावधान) द्वितीय अधिनियम, 2011 में संशोधन किया गया है।
  • इस विधेयक के पारित होने से अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वालों पर 31 दिसंबर 2023 तक सीलिंग का खतरा नहीं रहेगा।

पृष्ठभूमि:

वर्ष 2011 के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली कानून (विशेष प्रावधान) द्वितीय अधिनियम, 31 दिसंबर, 2020 तक वैध था। 2011 के अधिनियम के तहत, 31 मार्च, 2002 तक राष्ट्रीय राजधानी में मौजूद, तथा 1 जून 2014 तक जिनमे निर्माण कार्य हो चुका था, उन अनधिकृत कॉलोनियों के नियमितीकरण का प्रावधान किया गया था।

आवश्यकता:

दिल्ली में अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले अधिकाँश लोगों को पर्याप्त एवंउचित सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं और इस विधेयक द्वारा इन कॉलोनियों में रहने वालों को मालिकाना हक प्रदान किया जाएगा। इससे, इन कॉलोनियों के निवासियों को आसानी से संस्थागत ऋण उपलब्ध हो सकेंगे और बुनियादी सुविधाओं में भी सुधार होगा।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. अनुच्छेद 239A बनाम 239AA
  2. दिल्ली सरकार बनाम उप-राज्यपाल की शक्तियाँ
  3. दिल्ली का प्रशासन, राज्य विधानसभाओं वाले अन्य राज्यों के प्रशासन से किस प्रकार भिन्न है?
  4. दिल्ली में विधानसभा कब शुरू की गयी?
  5. दिल्ली उप-राज्यपाल की नियुक्ति कैसे की जाती है?
  6. नए विधेयक की प्रमुख विशेषताएं

मेंस लिंक:

संविधान (साठवाँ संशोधन) अधिनियम, 1991 पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।

प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा निधि


(Pradhan Mantri Swasthya Suraksha Nidhi)

संदर्भ:

हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा निधि (PMSSN) बनाने संबंधी प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान कर दी गई है।

‘प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा निधि’ के बारे में:

  • यह स्वास्थ्य एवं शिक्षा उपकर से प्राप्त होने वाली राशि से स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए ‘एकल गैर-व्यपगत आरक्षित निधि’ (single non-lapsable reserve fund) होगी।
  • PMSSN में भेजी गई इस राशि का इस्तेमाल स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की महत्वपूर्ण योजनाओं में किया जाएगा, जिसमे आयुष्मान भारत-प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY) और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (PMSSY) तथा स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थितियों में आपातकाल एवं आकस्मिक विपत्ति काल में तैयारी एवं प्रतिक्रिया संबंधी योजनाएं शामिल होंगी।
  • किसी भी वित्तीय वर्ष में, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की उक्त योजनाओं का व्यय प्रारंभिक तौर पर PMSSN से लिया जाएगा और बाद में सकल बजट सहायता (Gross Budgetary Support- GBS) से लिया जाएगा।

महत्व:

इसके मुख्य लाभ यह होंगे कि तय संसाधनों की उपलब्धता के जरिए सार्वभौमिक और वहनीय स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच मुहैया कराई जा सकेगी और इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जा सकेगा कि किसी भी वित्तीय वर्ष के अंत में इसके लिए तय राशि समाप्त (लैप्स) नहीं होगी।

स्रोत: पीआईबी

 

विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।

अफगानिस्तान के लिए बिडेन की शांति योजना का तात्पर्य


संदर्भ:

हाल ही में, जो बिडेन प्रशासन द्वारा, हिंसा पर रोक लगाने के उद्देश्य से, अफगान सरकार और तालिबान के लिए एक नई शांति-योजना का प्रस्ताव दिया गया है।

अमेरिकी प्रस्ताव के प्रमुख बिंदु:

  • इसमें रूस, चीन, पाकिस्तान, ईरान, भारत और अमेरिका के प्रतिनिधियों सहित संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में, ‘अफगानिस्तान में शांति सहयोग करने हेतु एक संयुक्त उपागम पर चर्चा करने के लिए’ वार्ता का प्रस्ताव दिया गया है।
  • इस शांति प्रस्ताव का उद्देश्य अफगान नेतृत्व और तालिबान के बीच वार्ता में तेजी लाना भी है।
  • इस प्रस्ताव में, दोनों पक्षों से, अफगानिस्तान में भविष्य की संवैधानिक और शासन व्यवस्था पर आम सहमति तक पहुंचने, एक नई “समावेशी सरकार” के लिए एक रोडमैप तैयार करने; तथा ‘स्थायी एवं पूर्ण युद्ध विराम’ की शर्तों पर सहमत होने का आग्रह किया गया है।

हस्तक्षेप की आवश्यकता:

  • फरवरी 2020 में तालिबान और अमेरिका के मध्य हुए समझौते के अनुसार, अमेरिकी सैनिक 1 मई तक अफगानिस्तान छोड़ने के लिए तैयार हैं। पिछले साल सितंबर में, तालिबान और अफगान सरकार द्वारा ‘दोहा’ में शांति वार्ता की शुरूआत हुई थी, लेकिन इसमें कोई महत्वपूर्ण सफलता नहीं मिली।
  • बिडेन प्रशासन, शांति-वार्ता की धीमी गति को लेकर चिंतित है। अमेरिकी आकलन के अनुसार, यदि अमेरिकी सैनिक, अफगानिस्तान से चले जाते है, तो तालिबान, तत्काल ही अपना प्रभुत्व स्थापित कर लेगा।
  • इसके अलावा, तालिबान द्वारा पहले ही देश के अधिकांश हिस्सों पर कब्जे कर लिया गया है और इसके शहरों पर अपना शिकंजा कस रहा है।

तालिबान पर भारत का पक्ष:

नई दिल्ली द्वारा, अतीत में हुए दो क्षेत्रीय सूत्रीकरणों, ‘मास्को प्रक्रिया’ तथा अप्रैल 2020 में हुई संयुक्त राष्ट्र की “6 + 2 + 1” फार्मूला में, शामिल नहीं किये जाने पर विरोध प्रकट किया गया था, ऐसे में, अमेरिकी प्रस्ताव भारत के लिए एक राहत की बात है।

  • इससे पहले, भारत ने 1996-2001 के तालिबान शासन को मान्यता देने से इनकार कर दिया था और अफगानिस्तान में तालिबान के साथ लड़ाई में ‘नॉर्दर्न अलायन्स’ का समर्थन किया था।
  • भारत लंबे समय से, काबुल में केवल निर्वाचित सरकार से संबंध स्थापित करने का पक्षधर रहा है, और हमेशा से तालिबान को पाकिस्तान-समर्थित एक आतंकवादी संगठन मानता रहा है।
  • भारत एक अफगान के नेतृत्व में, अफगान के अधिकार वाली और अफगान-नियंत्रित शांति प्रक्रिया का समर्थन करता है।

पुनर्विचार की आवश्यकता:

भारत द्वारा तालिबान के साथ किसी प्रकार की संबद्धता से इनकार करने पर पाकिस्तान को भारत के आंतरिक मामलों में प्रॉक्सी के रूप में इसका उपयोग करने के लिए एक मुफ्त जरिया मिल जाएगा।

  • भारत के क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिति को देखते हुए, भारत के लिए अफगानिस्तान की सरकार सहित देश की राजनीतिक ताकतों, अफगानी राजनीतिक संस्थाओं तथा सभी प्रमुख हितधारको के साथ जुड़ना उपयुक्त होगा।
  • तालिबान के साथ इसके गैर-जुड़ाव से अंतरराष्ट्रीय राजनयिक प्रयासों में भारत की भूमिका कम हुई है।

भारत के लिए आगे की राह:

भारत को अब तालिबान के साथ वार्ता के अपने माध्यमों को अपग्रेड करना चाहिए।

  • भारत की संबद्धता, तालिबान के मुख्यधारा की राजनीति में शामिल होने की शर्त पर होनी चाहिए।
  • भारत को अपने पड़ोस में, निर्वासन में बनी सरकार को वैधता नहीं देनी चाहिए (तालिबान का राजनीतिक कार्यालय दोहा में स्थित है)।

स्रोत: द हिंदू

 


सामान्य अध्ययन- III


 

विषय: संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा को चुनौती, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में मीडिया और सामाजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका, साइबर सुरक्षा की बुनियादी बातें, धन-शोधन और इसे रोकना।

दूरसंचार लाइसेंस शर्तों में संशोधन


संदर्भ:

हाल ही में, दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा दूरसंचार कंपनियों के लिए लाइसेंस शर्तों में संशोधन किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  1. नए मानदंडों में विश्वसनीय स्रोतों के लिए दूरसंचार उपकरणों की खरीद हेतु रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा को मानकों के रूप में शामिल किया गया है।
  2. 15 जून से दूरसंचार कंपनियाँ अपने नेटवर्क के लिए केवल विश्वसनीय स्रोतों से ही खरीदे गए दूरसंचार उत्पादों का उपयोग कर सकती हैं।
  3. दूरसंचार कंपनियों को अपने मौजूदा नेटवर्क, जिसमे प्रयुक्त उपकरणों को ‘विश्वसनीय उत्पाद’ के रूप में निर्दिष्ट नहीं किया गया है, को अपग्रेड करने के लिए एक निर्दिष्ट प्राधिकारी से अनुमति लेनी होगी।
  4. विश्वसनीय और गैर-विश्वसनीय दूरसंचार उपकरण स्रोत और उत्पादों की सूची पर निर्णय लेने के लिए राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वयक’ (National Cyber Security Coordinator– NCSC) को निर्दिष्ट प्राधिकारी बनाया गया है।
  5. ‘राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वयक’ के निर्णय, उप-राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (National Security AdvisorNSA) की अध्यक्षता वाली समिति के अनुमोदन पर आधारित होंगे। इस समिति में अन्य विभागों और मंत्रालयों के सदस्य और स्वतंत्र विशेषज्ञ तथा उद्योग क्षेत्र के दो सदस्य शामिल होंगे।

चीनी कंपनियों पर प्रभाव:

यह कदम, संभवतः हुआवेई (Huawei) और जेडटीई (ZTE) जैसी दूरसंचार उपकरण विक्रेता कंपनियों के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है, क्योंकि, इन नियमों के चलते, इनके लिए भविष्य में भारतीय दूरसंचार कंपनियों को उपकरणों की आपूर्ति करने में दिक्कत हो सकती है ।

राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वयक:

  • वर्ष 2014 में, प्रधान मंत्री कार्यालय द्वारा ‘राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वयक’ (NCSC) का एक नया पद सृजित किया गया था।
  • राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वयक’ कार्यालय, साइबर सुरक्षा मामलों पर राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न एजेंसियों के साथ समन्वय स्थापित करता है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र’ (I4C) के बारे में
  2. राष्ट्रीय महत्वपूर्ण सूचना अवसंरचना सुरक्षा केंद्र (NCIIPC)
  3. CERT- In
  4. साइबर स्वच्छ केंद्र
  5. NCSC के बारे में

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा को चुनौती, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में मीडिया और सामाजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका, साइबर सुरक्षा की बुनियादी बातें, धन-शोधन और इसे रोकना।

केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995


(Cable Television Networks (Regulation) Act)

संदर्भ:

कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा एक याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र, राज्य सरकार तथा समाचार पत्रों सहित 70 मीडिया प्लेटफार्मों को एक नोटिस जारी करने का आदेश दिया गया है। याचिका में अधिकारियों को ‘व्यक्तियों के निजता के अधिकार’ की रक्षा के लिए कदम उठाने तथा मीडिया आउटलेट्स को क़ानून का उल्लंघन करते हुए व्यक्तियों की निजता पर हमला करने से रोकने हेतु दिशा-निर्देश जरी करने की मांग की गयी है।

अदालत की टिप्पणी:

  • केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 द्वारा प्रशासित मीडिया द्वारा कोई भी प्रसारण, इस अधिनियम के तहत परिभाषित “प्रोग्राम कोड” की शर्तों के अनुरूप होना चाहिए।
  • मीडिया प्लेटफार्मों में, टीवी चैनल, ऑनलाइन समाचार पोर्टल, समाचार एजेंसियां, सोशल नेटवर्किंग और माइक्रो-ब्लॉगिंग सेवा प्रदाता जैसे फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब शामिल हैं।

केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 के बारे में:

  • केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम के अधीन प्रशासित किसी भी मीडिया द्वारा अधिनियम के प्रावधानों तथा ‘प्रोग्राम कोड’ का पहली बार उल्लंघन करने पर दो साल तक की कैद अथवा 1,000 रुपए तक जुर्माना या दोने हो सकते है, इसके बाद फिर से अपराध करने पर पांच साल तक की कैद तथा 5,000 रुपए तक जुर्माना हो सकता है।
  • ‘प्रोग्राम कोड’ में केबल टीवी चैनलों के लिए एक विस्तृत ‘निषिद्ध’ सूची शामिल की गए है, जिसमे कहा गया है, कि किसी भी प्रकार के अश्लील, अपमानजनक, मिथ्या और परोक्ष में इशारा करने वाले तथा अर्ध-सत्य विवरण देने वाले कार्यक्रमों का प्रसारण नहीं किया जाना चाहिए।

कानून के कार्यान्वयन में चुनौतियां:

  • केबल टीवी नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 की धारा 20 में कहा गया है कि सरकार द्वारा ‘कार्यक्रम एवं विज्ञापन संहिता’ के अनुरूप प्रतीत नहीं होने पर किसी भी कार्यक्रम के प्रसारण या पुन: प्रसारण को विनियमित या प्रतिबंधित किया जा सकता है। ज्ञातव्य है, कि भारत में टेलीविजन सामग्री की निगरानी ‘कार्यक्रम एवं विज्ञापन संहिता’ के द्वारा की जाती है।
  • हालांकि, टीवी पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों को पूर्व-प्रमाणित करने के लिए कोई निकाय नहीं है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मॉनिटरिंग सेंटर (EMMC) द्वारा निजी टीवी चैनलों पर सामग्री प्रसारण की निगरानी की जाती है। EMMC केवल यह देखता है, कि टीवी चैनल ‘प्रोग्राम और एडवरटाइजिंग कोड’ का पालन करते हैं अथवा नहीं।
  • कोड का उल्लंघन करने संबंधी कुछ विशिष्ट शिकायतों पर एक अंतर-मंत्रालय समिति (IMC) द्वारा विचार किया जाता है।

टीवी चैनलों की भूमिका:

  • ‘केबल टीवी नेटवर्क नियम’ के नियम 6 में चैनल को, इसके कार्यक्रमों द्वारा ‘प्रोग्राम और एडवरटाइजिंग कोड’ का उल्लंघन नहीं करने को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी दी गयी है।
  • नियम 6 के उप-खंड ‘C’ में विशेष रूप से उल्लेख किया गया है कि जिन कार्यक्रमों में धर्म या समुदायों पर हमले अथवा धार्मिक समूहों के प्रति अवमानना ​​या सांप्रदायिक दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया जाता हो, उन का केबल पर प्रसारण नहीं होना चाहिए।

इन उपायों की आवश्यकता:

  • संवेदनशील वीडियो फुटेज का प्रसारण, संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रद्दत किसी व्यक्ति के निजता के अधिकार की अवहेलना हो सकता है।
  • मीडिया पर, चाहे वह सोशल नेटवर्किंग साइट्स या जासूसी कैमरों के माध्यम से हो, नागरिकों के निजी जीवन पर छींटाकशी करने से सुरक्षा की आवश्यकता है, ताकि नागरिक अपने अनुसार अपना जीवन जी सकें और उन्हें इसके लिए दूसरों की सोंच की परवाह नहीं करने पड़े।

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा को चुनौती, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में मीडिया और सामाजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका, साइबर सुरक्षा की बुनियादी बातें, धन-शोधन और इसे रोकना।

नए आईटी नियमों के खिलाफ याचिका पर प्रतिक्रिया की मांग


संदर्भ:

दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा नए सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्‍थानों के लिए दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 [IT (Intermediary Guidelines and Digital Media Ethics Code) Rules] चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा गया है। याचिका में दावा किया गया है कि ‘इन नए नियमों के द्वारा, सरकारी निगरानी तथा अस्पष्ट शब्दों वाली ‘आचार संहिता’ के माध्यम से ऑनलाइन समाचार पोर्टलों को विनियमित करने का प्रयास किया जा रहा है।

संबंधित प्रकरण:

नए आईटी नियमों में, दो प्रकार के प्रकाशकों – समाचार प्रकाशक और वर्तमान मामलों संबंधी सामग्री का प्रकाशन करने वाले, तथा ऑनलाइन क्यूरेट की गई सामग्री का प्रकाशन करने वाले- के लिए एक पृथक ‘आचार संहिता’ निर्धारित की गयी है।

  • हालांकि, मूल (आईटी) अधिनियम में डिजिटल समाचार मीडिया को एक अलग श्रेणी के रूप में नहीं रखा गया है, तथा इनके लिए अथवा इनकी सामग्री के लिए कोई विशेष नियम-समूह लागू नहीं किये गए है।
  • मूल अधिनियम द्वारा अपराधों के रूप में विनियमित की जाने वाली सामग्री में, यौन सामग्री, चाइल्ड पोर्नोग्राफी, व्यक्तियों के निजी अंगों का प्रदर्शन, साइबर आतंकवाद आदि को शामिल किया गया था, और इसके लिए सामान्य अदालतों में अभियोग दायर करने व् मुकदमा चलाने का प्रावधान किया गया था।

संबंधित चिंताएं:

ऐसा कहा जा रहा है कि, नए आईटी नियम “डिजिटल समाचार मीडिया के लिए अत्यंत गंभीर रूप से हानिकारक” हैं और यह नियम इनके अधिकारों के लिए विनाशकारी है।

  • नए नियम, अनुच्छेद 19(1)(a) (वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) का उल्लंघन करते है।
  • यह नियम, आईटी अधिनियम की धारा 79 के तहत मध्यस्थों को इनके “सेफ-हार्बर प्रोटेक्शन” से भी वंचित करते हैं।

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पृष्ठभूमि:

आईटी नियम, 2021 में नियमों के दो पृथक समूह तैयार किए गए हैं- एक, ‘मध्यवर्ती इकाईयों’ द्वारा अनुपालन करने वाले मानदंड, तथा दूसरा, ‘आचार संहिता’, जिसका ‘प्रकाशकों’ द्वारा पालन किया जाना है। इसके साथ ही, नियमों में एक त्रि-स्तरीय अनुपालन प्रणाली का भी गठन किया जाना अनिवार्य किया गया है।

स्रोत: द हिंदू

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


देश का सबसे बड़ा तैरता हुआ सौर ऊर्जा संयंत्र

(Country’s biggest floating solar power plant)

उत्पादन क्षमता के हिसाब से देश में अब तक का सबसे बड़ा फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट तेलंगाना के पेड्डापल्ली जिले के रामागुंडम में NTPC द्वारा अपने थर्मल प्लांट के जलाशय में स्थापित किया जा रहा है।

  • इसे अगले मई-जून तक चालू करने की तैयारी है।
  • उत्पादन क्षमता: 100 मेगावाट।

आईएनएस करंज

(INS Karanj)

  • यह स्कॉर्पीअन श्रेणी की तीसरी पारंपरिक डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बी है।
  • इसे हाल ही में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था। 

 

आईएनएस करंज

(INS Karanj)

  • यह स्कॉर्पीअन श्रेणी की तीसरी पारंपरिक डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बी है।
  • इसे हाल ही में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था।

  


सोशल मीडिया बोल्ड है।

 सोशल मीडिया युवा है।

 सोशल मीडिया पर उठे सवाल सोशल मीडिया एक जवाब से संतुष्ट नहीं है।

 सोशल मीडिया में दिखती है ,

बड़ी तस्वीर सोशल मीडिया हर विवरण में रुचि रखता है।

 सोशल मीडिया उत्सुक है।

 सोशल मीडिया स्वतंत्र है। 

 सोशल मीडिया अपूरणीय है। 

लेकिन कभी अप्रासंगिक नहीं। सोशल मीडिया आप हैं।

 (समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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