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भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।

 


 

 KANISHKBIOSCIENCE E -LEARNING PLATFORM - आपको इस मुद्दे से परे सोचने में मदद करता है, लेकिन UPSC प्रीलिम्स और मेन्स परीक्षा के दृष्टिकोण से मुद्दे के लिए प्रासंगिक है। इस 'संकेत' प्रारूप में दिए गए ये लिंकेज आपके दिमाग में संभावित सवालों को उठाने में मदद करते हैं जो प्रत्येक वर्तमान घटना से उत्पन्न हो सकते हैं !


kbs  हर मुद्दे को उनकी स्थिर या सैद्धांतिक पृष्ठभूमि से जोड़ता है।   यह आपको किसी विषय का समग्र रूप से अध्ययन करने में मदद करता है और हर मौजूदा घटना में नए आयाम जोड़कर आपको विश्लेषणात्मक रूप से सोचने में मदद करता है।

 केएसएम का उद्देश्य प्राचीन गुरु - शिष्य परम्परा पद्धति में "भारतीय को मजबूत और आत्मनिर्भर बनाना" है।

 

पुडुचेरी में नारायणसामी की विश्वास-मत में पराजय



संदर्भ:

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पुदुचेरी में, कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार भंग हो गयी है।

मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी ने सदन में विश्वास मत खोने के बाद उप राज्यपाल तमिलिसाई सौंदराराजन को अपना इस्तीफा सौंप दिया है।

राज्य में आगामी संभावित परिदृश्य:

  1. एक संभावना के रूप में, विपक्षी दलों द्वारा एक गठबंधन सरकार बनाने का दावा किया जा सकता है।
  2. चूंकि, राज्य में जल्द ही चुनाव होने वाले है, इसलिये उप-राज्यपाल, राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकती हैं।
  3. उप-राज्यपाल, निवर्तमान मुख्मंत्री नारायणसामी से चुनाव होने तक कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करने को कह सकती हैं।

भारतीय संदर्भ में राष्ट्रपति शासन

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 356 के अनुसार-

राष्ट्रपति, यदि इस तथ्य से संतुष्ट होते हैं कि, किसी राज्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गयी है, कि राज्य सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार शासन नहीं चला पा रही है, तो अनुच्छेद 356 के तहत भारत के राष्ट्रपति, राज्य सरकार को निलंबित कर सकते हैं और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा सकते है।

इसे राज्य आपातकाल (State Emergency) अथवा संवैधानिक आपातकाल (Constitutional Emergency) भी कहा जाता है।

 

  1. राष्ट्रपति शासन लागू करना
  2. संबंधित प्रावधान
  3. राज्यपाल की रिपोर्ट
  4. संसदीय अनुमोदन और अवधि
  5. निरसन
  6. राष्ट्रपति शासन के तहत राज्य विधायिका की स्थिति


‘राष्ट्रपति शासन’ क्या है? यह विवादास्पद क्यों है? चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन सेसंबंधित विषय।

एक्यूट (तीव्र) इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES)


(Acute Encephalitis Syndrome)

संदर्भ:

उत्तरी बिहार के मुजफ्फरपुर ज़िले में, इस साल का पहला ‘एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम’ (Acute Encephalitis Syndrome-AES) का संदेहास्पद मामला दर्ज किया गया है।

आमतौर पर ‘एक्यूट (तीव्र) इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम’ (AES),  को स्थानीय रूप से ‘चमकी बुखार’ कहा जाता है, और यह प्रायः गर्मियों के दौरान उत्तर बिहार के बाढ़-प्रवण जिलों में फैलता है।

पृष्ठभूमि:

वर्ष 2019 में, उत्तरी बिहार के पांच जिलों से ‘एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम’ (AES) के मामले दर्ज किये गए थे तथा इस बीमारी से 150 से अधिक बच्चों की मौत हुई थी। AES से ग्रसित 600 से अधिक बच्चों को SKMCH सहित अन्य अस्पतालों में भर्ती कराया गया था और जिनमे से लगभग 450  बच्चे बचाए जा सके।

‘एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम’ (AES) बारे में:

  • ‘एक्यूट (तीव्र) इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम’, एक समुच्चयबोधक शब्द है, जिसका प्रयोग, अस्पतालों, नैदानिक ​​न्यूरोलॉजिकल लक्षणों, जैसे कि मानसिक भ्रांति, आत्मविस्मृति (disorientation), ऐंठन (convulsion), उन्माद (delirium) अथवा कोमा से ग्रसित बच्चों के संदर्भ में किया जाता है।
  • विषाणु अथवा जीवाणुओं से होने वाला मेनिनजाइटिस (Meningitis), विषाणुओं से होने वाला इंसेफेलाइटिस (ज्यादातर जापानी इंसेफेलाइटिस), जीवाणुओं के कारण होने वाला एन्सेफैलोपैथी (encephalopathy), दिमागी मलेरिया (cerebral malaria) और स्क्रब टाइफस (scrub typhus) को सामूहिक रूप से ‘एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम’ कहा जाता है।
  • इस बीमारी से, बच्चे तथा वयस्क युवा सर्वाधिक प्रभावित होते है और इससे रुग्णता और मृत्यु दर में काफी वृद्धि हो सकती है।

लक्षण:

इसके लक्षणों में, तीव्र बुखार की शुरुआत और मानसिक स्थिति (मानसिक भ्रांति, आत्मविस्मृति ऐंठन, उन्माद अथवा कोमा) में परिवर्तन तथा, अथवा साल के किसी भी समय किसी भी उम्र के व्यक्ति में दौरा पड़ने शुरुआत को शामिल किया जाता है।

इस बीमारी का कारण:

तीव्र एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम (AES) को एक बहुत ही जटिल बीमारी माना जाता है क्योंकि यह बैक्टीरिया, कवक, वायरस और कई अन्य एजेंटों के कारण हो सकती है।

  • जापानी इंसेफेलाइटिस वायरस (Japanese encephalitis virus – JEV) भारत में AES का प्रमुख कारण है, (लगभग 5% – 35% तक)।
  • निपाह वायरस (Nipah virus), जीका वायरस (Zika virus) भी AES के कारक एजेंट के रूप मे पाए गए हैं।

यह  बीमारी लीची के फलों से किस प्रकार संबंधित है?

उत्तर और पूर्वी भारत में AES के प्रकोप को, बच्चों द्वारा अधपके लीची के फल को खाली पेट खाने से जोड़ा गया है।

  • अधपके लीची के फल में ‘हाइपोग्लाइसीन ए’ (Hypoglycin A) तथा ‘मिथाइलीनसाइक्लोप्रोपाइलग्लिसिन’ (methylenecyclopropylglycine MCPG) नामक विषाक्त तत्व होते हैं, जिन्हें अधिक मात्रा में खाने पर ‘उल्टी’ होने लगती है।
  • हाइपोग्लाइसीन A, एक प्राकृतिक रूप से अधपके लीची में पाया जाने वाला ‘अमीनो एसिड’ है, जिसके कारण खतरनाक रूप से उल्टी (Jamaican vomiting sickness) होती है। तथा MCPG, लीची के बीजों में पाया जाने वाला  एक जहरीला तत्व होता है।

कुपोषित बच्चों को प्रभावित करने संबंधी कारण:

  • रक्त में ग्लूकोज की मात्रा तेजी से कम होने पर मस्तिष्क में गंभीर रूप से विकृतियाँ (एन्सेफैलोपैथी / encephalopathy) होने लगती है, जिससे दौरा पड़ना शुरू हो जाता है, और ग्रस्ति व्यक्ति कोमा में चला जाता है तथा कई मामलों में मृत्यु भी हो जाती है।
  • ऐसा इसलिए होता है क्योंकि, अल्पपोषित बच्चों में ग्लाइकोजन के रूप में पाए जाने वाले पर्याप्त ग्लूकोज रिजर्व की मात्रा कम होती है और बीच में गैर-कार्बोहाइड्रेट स्रोतों से होने वाले ग्लूकोज का उत्पादन अवरुद्ध हो जाता है जिससे उनमें ब्लड-शुगर स्तर की मत्रा में कमी हो जाती है।
  • इस कारण, मस्तिषकीय विक्षिप्तता तथा दौरे पड़ने लगते हैं।

आवश्यक उपाय:

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  1. सुरक्षित पेयजल और उचित स्वच्छता सुविधाओं तक पहुंच में वृद्धि करना।
  2. JE/AES के खतरों का सामना करने वाले बच्चों की पोषण स्थिति में सुधार।
  3. प्रकोपों के फैलने ​​से पहले निवारक उपायों की तैयारी।
  4. वेक्टर नियंत्रण।
  5. आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं आदि के माध्यम से बच्चों, अभिभावकों में बेहतर जागरूकता पैदा करना।

AES


  1. ‘एक्यूट (तीव्र) इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम’ (AES) के कारण?
  2. वायरस, बैक्टीरिया तथा कवक से फैलने वाले रोग।
  3. हाइपोग्लाइकेमिया क्या है?
  4. जापानी इंसेफेलाइटिस (Japanese encephalitis – JE) क्या है?
  5. कुपोषित बच्चों में लीची फल खाने से समस्या कैसे बढ़ जाती है?


‘एक्यूट (तीव्र) इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम’ (AES) क्या है? इसके कारक एजेंटों के बारे में चर्चा कीजिए।  क्या आपको लगता है कि बिहार में एन्सेफैलोपैथी के कारण होने वाली मौतों को रोकने में अधिकारी-गण कई स्तरों पर विफल रहे है? उपयुक्त सुझाव दीजिए।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

 

Floryday WW

विषय: शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष, ई-गवर्नेंस- अनुप्रयोग, मॉडल, सफलताएँ, सीमाएँ और संभावनाएँ; नागरिक चार्टर, पारदर्शिता एवं जवाबदेही और संस्थागत तथा अन्य उपाय।

‘सूचना का अधिकार अधिनियम’ में किए गए संशोधन


संदर्भ:

उच्चतम न्यायालय ने, ‘सूचना के अधिकार कानून’ में किए गए संशोधनों को चुनौती देने वाली सांसद जयराम रमेश की याचिका पर, एक वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद भी, जवाब दाखिल नहीं करने के संबंध में केंद्र सरकार की आलोचना की है।

संबंधित प्रकरण:

याचिकाकर्ता का तर्क है, कि ‘सूचना के अधिकार कानून’ में किए गए संशोधनों द्वारा केंद्र सरकार को उसकी मनमर्जी के मुताबिक़, मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के कार्यकाल, वेतन और सेवा शर्तों को निर्धारित करने की बेमिसाल शक्तियां प्रदान गयी हैं

याचिकाकर्ता ने दलील दी है, कि आरटीआई संशोधन अधिनियम 2019 और इसके नियम, केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) को सरकार के अधीन लाकर, आयोग की निष्पक्षता और स्वतंत्रता को पंगु बना देते है।

आरटीआई अधिनियम’ में किए गए संशोधन:

  1. केंद्र के लिए केंद्रीय स्तर तथा राज्य स्तर पर सूचना आयुक्तों के वेतन और सेवा शर्तों को निर्धारित करने की शक्ति होगी।
  2. केंद्रीय मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का कार्यकाल: इनकी नियुक्ति ‘केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित अवधि के लिए की जाएगी’।
  3. मूल अधिनियम में, राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त के वेतन, भत्ते और सेवा की शर्तों को “चुनाव आयुक्त के समान”, तथा राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन और अन्य सेवा शर्तें, ‘राज्य सरकार के मुख्य सचिव’ के समान निर्धारित की गयी थी। क़ानून में संशोधन के तहत, इनके वेतन और सेवा शर्तों को ‘केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किए जा सकता हैं’।

इन संशोधनों की आलोचना:

  1. इन संशोधनों को केंद्रीय सूचना आयुक्त की ‘स्वतंत्रता के लिए खतरा’ के रूप में देखा जा रहा है।
  2. मुख्य सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्त तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के समान दर्जा प्राप्त होता है, संशोधन के द्वारा इनके दर्जे में कमी किये जाने से वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों को निर्देश जारी करने संबंधी उनकी क्षमता में कमी होगी।
  3. संशोधन के तहत, केंद्र सरकार को, मुख्य सूचना आयुक्त और अन्य सूचना आयुक्तों के कार्यकाल, वेतन, भत्ते और सेवा की अन्य शर्तों को निर्धारित करने के शक्ति प्रदान की गयी है। यह सूचना आयोग संस्था को मूल रूप से कमजोर करेगा तथा इससे सूचना आयोग द्वारा स्वतंत्र रूप से कार्य करने की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
  4. सरकार द्वारा इस विधेयक पर कोई सार्वजनिक विचार-विमर्श नहीं किया गया।

संशोधन लागू करने के संदर्भ में सरकार के तर्क:

  • ‘आरटीआई अधिनियम’ संशोधन के उद्देश्य में कहा गया है, कि ‘भारत के निर्वाचन आयोग और केंद्र और राज्य सूचना आयोगों का अधिदेश अलग-अलग है। इसलिए, उनकी स्थिति और सेवा शर्तों को तदनुसार तर्कसंगत बनाने की आवश्यकता है’।
  • मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश का दर्जा दिया गया है, लेकिन उसके निर्णयों को उच्च न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती है।
  • इसलिए, आरटीआई अधिनियम में कुछ विसंगतियों को ठीक करने के लिए यह संशोधन लाया गया है। यह संशोधन वर्ष 2005 में पारित अधिनियम को कमजोर नहीं करते है। आरटीआई संशोधन समग्र आरटीआई संरचना को मजबूत करेंगे।

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प्रीलिम्स लिंक:

  1. अधिनियम के तहत लोक प्राधिकरण की परिभाषा
  2. अधिनियम के तहत अपवाद
  3. मुख्य सूचना आयुक्त के बारे में
  4. राज्य सूचना आयुक्त
  5. सार्वजनिक सूचना अधिकारी
  6. नवीनतम संशोधन

मेंस लिंक:

भारत में ‘सूचना का अधिकार अधिनियम’ के तहत प्रमुख हितधारकों द्वारा निभाई गई भूमिका पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: भारत एवं इसके पड़ोसी-संबंध।

केरल सरकार द्वारा अमेरिकी फर्म के साथ समझौता रद्द


संदर्भ:

Depositphotos [CPS] WW

हाल ही में, केरल सरकार ने केरल शिपिंग एंड इनलैंड नेविगेशन कॉरपोरेशन (KSINC) तथा एक अमेरिकी फर्म EMCC इंटरनेशनल के मध्य हुए विवादास्पद समझौते को रद्द कर दिया है। यह समझौता राज्य के तटवर्ती समुद्र में समुद्री संपदा की पैदावार हेतु डीप-सी ट्रालिंग बेड़े के निर्माण व संचालन करने हेतु किया गया था।

संबंधित प्रकरण:

विपक्ष ने इस सौदे को, राज्य की सागरीय संपदा बेचने और लाखों मछुआरों की आजीविका को खतरे में डालने का प्रयास बताया था।

समझौता क्या था? परियोजना के उद्देश्य क्या थे?

इस समझौते के घोषित उद्देश्यों में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का प्रयोग करते हुए गहरे समुद्र में मछली पकड़ना था।

  • परियोजना के घटकों में ‘ईएमसीसी द्वारा प्रस्तावित डिजाइन के अनुसार 400 गहरे समुद्र में मछली पकड़ने वाले ट्रॉलर का निर्माण करना शामिल है।
  • ईएमसीसी गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के लिए 60 लाख मछुआरों को प्रशिक्षित और तैनात करेगा। उनकी कौशल क्षमता को उन्नत किया जाएगा, और प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार के अवसरों के मामले में स्थानीय मछली पकड़ने वाले समुदाय को लाभ होगा।

प्रस्तावित परियोजना किस प्रकार मत्स्य पालन नीति के खिलाफ है?

वर्ष 2017 में, केंद्र सरकार द्वारा, देश के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (exclusive economic zoneEEZ) के गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के लिए विदेशी ट्रॉलर को दी गई अनुमति वापस ले ली थी।

  • देश का EEZ समुद्र तट से 370 किमी दूरी तक विस्तृत है।
  • भारतीय जल में विदेशी जहाजों द्वारा अवैध रूप से मछली पकड़ना, ‘भारतीय समुद्री क्षेत्र (विदेशी जहाज अधिनियम के तहत मत्स्यन विनियमन)’, 1981 के प्रावधानों के तहत दंडनीय है।

इसके अलावा, केरल राज्य की मत्स्य नीति, 2018 में लागू की गई थी, जिसके तहत भी राज्य के तटीय क्षेत्र में विदेशी और देशी कॉर्पोरेट जहाजों को अनुमति देने का विरोध किया गया है।

  • राज्य की नीति, पारंपरिक मछुआरों को गहरे समुद्र में मछली पकड़ने वाले जहाजों का मालिक बनाकर गहरे समुद्र में मछली पकड़ने हेतु सक्षम बनाने की है।
  • इसके अलावा, तटीय जल क्षेत्र में जहाजों की संख्या पर प्रतिबंध होगा। केवल पारंपरिक मछुआरों को ही उनकी पुरानी नावों के बदले नए जहाज ले जाने की अनुमति दी जाएगी।
МТС Банк РКО [CPS] RU

‘डीप-सी ट्रॉलिंग’ / गहरे समुद्र में मत्स्यन

‘डीप सी ट्रॉलिंग’ (Deep Sea Trawling) के लिए औद्योगिक तरीके से अथवा प्रणालीगत मत्स्यन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसमें समुद्री जीवों जैसे मछली, झींगा, कॉड आदि को पकड़ने के लिए भारी वजन वाले बड़े जालों को समुद्री सतह पर फैला दिया जाता है। यह मत्स्य के लिए सबसे प्रमुख विधि मानी जाती है, बड़े पैमाने पर दुनिया भर में प्रचलित है।

‘डीप-सी ट्रॉलिंग’ का पर्यावरण पर प्रभाव:

‘डीप-सी ट्रॉलिंग’ में प्रयुक्त उपकरण, समुद्री वनस्पति एवं जीवों के साथ-साथ, समुद्री सतह पर स्थित अवसादी संरचनाओं को नष्ट करके, बड़े पत्थरों को उलट-पलट करके, निमज्जित अवसादों को अस्तव्यस्त करते हुए तथा पंक युक्त सागरीय सतह पर गंभीर प्रभाव डालते है।

 

स्रोत: द हिंदू

 


सामान्य अध्ययन- III


 

विषय: संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा को चुनौती, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में मीडिया और सामाजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका, साइबर सुरक्षा की बुनियादी बातें, धन-शोधन और इसे रोकना।

राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति


(National Cyber Security Strategy)

संदर्भ:

महामारी के दौरान अपने नेटवर्क पर होने वाले साइबर हमलों को देखते हुए, रेल मंत्रालय, अपने अधिकारियों को इंटरनेट आचारनीति, साइबर स्वच्छता और मोबाइल फोन सहित आईटी के बेहतर उपयोग के लिए सर्वोत्तम तरीकों में शिक्षित करने हेतु ‘सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ़ एडवांस कंप्यूटिंग’ (C-DAC) की सेवाएँ ले रहा है।

यह, रेलवे की राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति का एक हिस्सा है।

आवश्यकता:

  • केवल जनवरी 2019 में, IRCTC वेबसाइट तथा 3,440 जगहों पर स्थित 10,394 पीआरएस टर्मिनलों से 61 करोड़ यात्रियों द्वारा टिकट बुक किये गए, जिससे 3,962.27 करोड़ रुपए का राजस्व अर्जित हुआ। 10 जनवरी, 2019 को 9.38 लाख यात्रियों ने टिकट बुक किए, और इसके नौ दिन पश्चात प्रति सेकेण्ड 671 बुकिंग की गयी।
  • हालाँकि, महामारी के दौरान, आधिकारिक कामकाज में संचार के इलेक्ट्रॉनिक साधनों पर अधिक निर्भर हो गया। इसलिए, यह आवश्यक है कि सभी अधिकारी जिम्मेदारी लें और आधिकारिक सूचनाओं से संबंधित गोपनीयता, विश्वसनीयता आदि सुनिश्चित करने हेतु आईटी के बुनियादी ढांचे का उपयोग करते समय समुचित प्रक्रियाओं का पालन करें।

C- DAC के बारे में:

  • सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग (C-DAC), इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के अंतर्गत एक प्रमुख अनुसंधान एवं विकास संगठन है। यह आईटी, इलेक्ट्रॉनिक्स और संबंधित क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास कार्यों को निष्पादित करता है।
  • वर्ष 1988 में C-DAC की स्थापना, संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा सुपर कंप्यूटरों के आयात को मना करने के बाद, देश में सुपर कंप्यूटरों का निर्माण करने के लिए की गई थी। उस समय से, सी-डैक सुपरकंप्यूटर की कई पीढ़ियों के निर्माण का कार्य कर रहा है। इसकी शुरुआत वर्ष 1988 में 1 GF के PARAM सुपरकंप्यूटर के साथ हुई थी।

स्रोत: द हिंदू

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


वर्टिकल लॉन्च शॉर्ट रेंज सरफेस टू एयर मिसाइल (VL-SRSAM)

  • VL-SRSAM को समुद्र-में तैरते हुए लक्ष्यों सहित नजदीकी सीमाओं पर विभिन्न हवाई खतरों को बेअसर करने के लिए निर्मित किया गया है।
  • इसे, भारतीय नौसेना के लिए डीआरडीओ द्वारा स्वदेशी तौर पर डिजाइन और विकसित किया गया है।
  • इस कनस्तर आधारित अत्याधुनिक हथियार प्रणाली की मारक क्षमता लगभग 40 किमी है।

 अग्नि सुरक्षा प्रशिक्षण के लिए कौशल विकास केंद्र (SDC)

यह, उत्तर प्रदेश में ‘पिलखुवा’ नामक जगह पर स्थित है।

  • दिल्ली स्थित डीआरडीओ प्रयोगशाला, ‘सेंटर फॉर फायर, एक्सप्लोसिव एंड एनवायरमेंट सेफ्टी’ (CFEES) द्वारा बनाई गई इस सुविधा का उद्देश्य, बहुमूल्य मानव जीवन और मूल्यवान संपत्ति को बचाने हेतु प्रशिक्षित मानव संसाधनों, अग्नि सुरक्षा प्रौद्योगिकी और उत्पादों को विकसित करना है।
  • भारत में अपनी तरह के पहले, कौशल विकास केंद्र (SDC) को, अग्नि शमन बलों तथा सशस्त्र बलों के कौशल में वृद्धि करने तथा चुनौतियों का सामना करने के लिए वास्तविक स्थिति में आग पर नियन्त्रण करने संबंधी सिमुलेशन सिस्टम की स्थापना तथा अत्याधुनिक तकनीकों को अपनाकर निर्मित किया गया है।

उथुरू थिला फाल्हू (UTF)

(Uthuru Thila Falhu)

  • भारत और मालदीव के मध्य ‘सिफावारु- उथुरू थिला फाल्हू’ (Sifvaru –Uthuru ThilafalhuUTF) में एक मालदीव के राष्ट्रीय रक्षा बल कोस्ट गार्ड हार्बर को विकसित करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं।
  • इस समझौते का उद्देश्य बंदरगाह का “विकास, समर्थन और रखरखाव” करना है और यह मालदीव सरकार द्वारा अप्रैल 2013 में मालदीवी रक्षा बलों की क्षमता बढ़ाने के लिए भारत सरकार से किए गए अनुरोध का एक हिस्सा है।

ज़ोल्गेन्स्मा जीन थेरेपी

(Zolgensma gene therapy)

ज़ोल्गेन्स्मा जीन थेरेपी एक बार दिया जाने वाला इंजेक्शन है। यह दोषपूर्ण जीन को सामान्य जीन से प्रतिस्थापित कर देता है और विकार को ठीक करता है। वर्ष 2019 में, अमेरिकी दवा नियंत्रक FDA द्वारा दो साल से कम उम्र के बच्चों के लिए इस चिकित्सा को मंजूरी दी गयी थी।

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 (समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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