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भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।

  

KANISHKBIOSCIENCE E -LEARNING PLATFORM - आपको इस मुद्दे से परे सोचने में मदद करता है, लेकिन UPSC प्रीलिम्स और मेन्स परीक्षा के दृष्टिकोण से मुद्दे के लिए प्रासंगिक है। इस 'संकेत' प्रारूप में दिए गए ये लिंकेज आपके दिमाग में संभावित सवालों को उठाने में मदद करते हैं जो प्रत्येक वर्तमान घटना से उत्पन्न हो सकते हैं !


kbs  हर मुद्दे को उनकी स्थिर या सैद्धांतिक पृष्ठभूमि से जोड़ता है।   यह आपको किसी विषय का समग्र रूप से अध्ययन करने में मदद करता है और हर मौजूदा घटना में नए आयाम जोड़कर आपको विश्लेषणात्मक रूप से सोचने में मदद करता है।

 केएसएम का उद्देश्य प्राचीन गुरु - शिष्य परम्परा पद्धति में "भारतीय को मजबूत और आत्मनिर्भर बनाना" है। 

भारत में राज्यों के राज्यपाल


संदर्भ:

हाल ही में, राष्ट्रपति द्वारा 8 राज्यों में नए राज्यपालों की नियुक्ति की गयी है।

भारत में राज्यों के राज्यपाल (अनुच्छेद 152-162):

(Governors of States in India)

  • भारत में राज्यपाल, राज्य का नाममात्र प्रमुख होता है, जबकि मुख्यमंत्री, राज्य का वास्तविक प्रमुख होता है।
  • 7 वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम 1956 के अनुसार, एक ही व्यक्ति दो या अधिक राज्यों का राज्यपाल हो सकता है।
  • नियुक्ति: राज्यपाल तथा उप-राज्य्पाल्की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

पदमुक्ति (Removal):

सामान्यतः राज्यपाल के पद का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, किंतु इसे कार्यकाल की समाप्ति से पूर्व भी पद-मुक्त किया जा सकता है: राज्यपाल, राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत पद धारण करता है, तथा प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्टपति द्वारा पद से बर्खास्त किया जा सकता है।

राज्यपाल को पद से हटाने के लिए राष्ट्रपति की भांति महाभियोग का कोई प्रावधान नहीं है।

राज्यपाल की प्रमुख विवेकाधीन शक्तियाँ:

  1. अविश्वास-प्रस्ताव पारित होने के पश्चात, मुख्यमंत्री द्वारा सलाह देने पर राज्यपाल विधान सभा भंग कर सकते हैं। इसके पश्चात, यह राज्यपाल पर निर्भर करता है कि वह आगे क्या निर्णय लेगें।
  2. वह, राज्य में संवैधानिक मशीनरी की विफलता के बारे में राष्ट्रपति को सिफारिश कर सकते हैं।
  3. वह, राज्य विधायिका द्वारा पारित किसी विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति के लिए आरक्षित कर सकते हैं।
  4. विधानसभा में किसी भी राजनीतिक दल के स्पष्ट बहुमत नहीं होने पर, राज्यपाल द्वारा किसी को भी मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।
  5. राज्यपाल, असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम सरकारों द्वारा, स्वायत्त जनजातीय जिला परिषदों को खनिज उत्खनन के लिए लाइसेंस से प्राप्त रॉयल्टी की, देय राशि का निर्धारण करता है।
  6. राज्य के प्रशासनिक और विधायी मामलों के संबंध में मुख्यमंत्री से जानकारी प्राप्त कर सकता है।
  7. राज्य विधायिका द्वारा पारित किसी भी साधारण बिल पर सहमति देने से इनकार कर सकता है।

राज्यपाल की संवैधानिक स्थिति के साथ समस्या:

  • राज्यपाल को केवल केंद्र सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।
  • राष्ट्रपति के विपरीत, राज्यपाल का कार्यकाल निश्चित नहीं होता है। वह केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी की इच्छानुसार पद धारित करता है।
  • नियुक्ति का तरीका और कार्यकाल की अनिश्चितता दोनों, राज्यपाल को राजनीति प्रेरित परिस्थितियों में केंद्र सरकार के अनुसार कार्य करने हेतु बाध्य कर सकते है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

भारत के राष्ट्रपति द्वारा अपने हस्ताक्षर और मुहर के तहत वारंट द्वारा किन पदों पर नियुक्तियां की जाती हैं?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. अनुच्छेद 163 और 174 का अवलोकन
  2. जब विधानसभा सत्र बुलाने की बात आती है तो क्या राज्यपाल मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद की सलाह से बाध्य होते हैं?
  3. मुख्यमंत्री की नियुक्ति कौन करता है?
  4. राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियाँ
  5. राज्यपाल का कार्यकाल

मेंस लिंक:

राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय।

सहकारिता मंत्रालय


(Ministry of Cooperation)

संदर्भ:

देश में ‘सहकारिता आंदोलन’ को मजबूत करने के लिए एक नया ‘सहकारिता मंत्रालय’ (Ministry of Cooperation) का गठन किया गया है।

नए मंत्रालय की भूमिकाएं / कार्य:

  1. यह मंत्रालय देश में सहकारिता आंदोलन को मजबूत करने के लिए एक अलग प्रशासनिक, कानूनी और नीतिगत ढांचा प्रदान करेगा।
  2. यह सहकारी समितियों को जमीनी स्तर तक पहुंचने वाले एक सच्चे जनभागीदारी आधारित आंदोलन को मजबूत बनाने में भी सहायता प्रदान करेगा।
  3. यह मंत्रालय सहकारी समितियों के लिए ‘कारोबार में सुगमता’ के लिए प्रक्रियाओं को कारगर बनाने और बहु-राज्य सहकारी समितियों (multi-state cooperatives – MSCS) के विकास को सक्षम बनाने की दिशा में कार्य करेगा।

‘सहकारी समितियां’ क्या होती हैं?

(Cooperative Societies)

  • सहकारी समिति, संयुक्त-स्वामित्व और लोकतांत्रिक रूप से नियंत्रण के माध्यम से, अपने सामूहिक आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए, स्वेच्छा से एकजुट हुए व्यक्तियों का एक स्वायत्त संघ होती है।
  • इन समितियों में, लाभकारिता की आवश्यकता, समिति के सदस्यों की आवश्यकताओं और समुदाय के व्यापक हितों से संतुलित होती है।

सहकारी समितियों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:

  1. संविधान (97वां संशोधन) अधिनियम, 2011 के माध्यम से, भारत में कार्यरत सहकारी समितियों के संबंध में संविधान के भाग IXA (नगरपालिका) के ठीक बाद एक नया भाग IXB जोड़ा गया।
  2. इसी संशोधन द्वारा, संविधान के भाग III के अंतर्गत अनुच्छेद 19(1)(c) में भारत के सभी नागरिकों को ‘संगम या संघ’ के साथ-साथ ‘सहकारी समिति’ बनाने का मूल अधिकार अंतःस्थापित किया गया है।
  3. सहकारी समिति के ऐच्छिक गठन, स्वायत्त कार्यवाही, लोकत्रांत्रिक नियंत्रण और व्यावसायिक प्रबन्धन में वृद्धि करने हेतु, संविधान में ‘राज्य के नीति निदेशक तत्वों’ (भाग IV) के अंतर्गत एक नया अनुच्छेद 43B जोड़ा गया है।

सरकार द्वारा सहयोग:

भारत सरकार द्वारा वर्ष 2002 में ‘बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम’ (Multi-State Co-operative Societies Act) लागू किया गया और सहकारी समितियों को ‘स्वायत्त, स्वतंत्र और लोकतांत्रिक संगठनों’ के रूप में प्रोत्साहित करने और इनके विकास के लिए सहयोग करने हेतु वर्ष 2002 में ‘राष्ट्रीय सहकारिता नीति भी तैयार की गई। जिससे ये सहकारी समितियां, देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में अपनी उचित भूमिका निभा सकें।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 2012 को ‘अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष’ घोषित किया गया था? Click here

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. सहकारी समितियों के बारे में
  2. प्रकार
  3. भूमिकाएं और कार्य
  4. संवैधानिक प्रावधान

मेंस लिंक:

भारत में सहकारिता आन्दोलन के इतिहास पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

विषय: सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय।

 केंद्रीय सूचना आयोग (CIC)


(Central Information Commission)

संदर्भ:

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को ‘केंद्रीय सूचना आयोग’ (Central Information Commission) में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति, रिक्तियों और लंबित मामलों की नवीनतम जानकारी को आधिकारिक तौर पर प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

संबंधित प्रकरण:

उच्चतम न्यायालय में दायर एक याचिका में, वर्ष 2019 के एक फैसले में शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए निर्देशों को लागू करने के लिए सरकारी अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की गई है।

सुप्रीमकोर्ट के फैसले में,

  1. केंद्र और राज्य सरकारों को पारदर्शी और समयबद्ध तरीके से केंद्रीय और राज्य सूचना आयोगों में रिक्त पदों को भरने के लिए कई निर्देश जारी किए थे।
  2. अदालत ने ‘केंद्रीय सूचना आयोग’ में मौजूद रिक्तियों को भरने के लिए केंद्र को तीन महीने का समय दिया था।

‘केंद्रीय सूचना आयोग’

(Central Information Commission)

केंद्रीय सूचना आयोग का गठन, सूचना अधिकार अधिनयम, 2005 के अंतर्गत, वर्ष 2005 में केंद्र सरकार द्वारा किया गया था।

  • सदस्य: आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त तथा अधिकतम दस सूचना आयुक्त होते हैं।
  • नियुक्ति: आयोग के सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा एक चयन समिति की सिफारिश पर नियुक्त किया जाता है। इस चयन समिति में अध्यक्ष के रूप में प्रधान मंत्री, तथा सदस्य के रूप में लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता और प्रधान मंत्री द्वारा नामित केंद्रीय कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं।
  • कार्यकाल: मुख्य सूचना आयुक्त और एक सूचना आयुक्त, केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित अवधि तक या 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, जो भी पहले हो, पद पर कार्यरत रहते हैं।
  • आयोग के सदस्य पुनर्नियुक्ति के पात्र नहीं होते हैं।

‘केंद्रीय सूचना आयोग’ के कार्य एवं शक्तियां:

  1. आयोग का प्रमुख कार्य, सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत मांगी गई जानकारी के संबंध में किसी भी व्यक्ति की शिकायत प्राप्त करना और उसकी जांच करना है।
  2. आयोग, उचित आधार होने पर (स्वतः संज्ञान लेते हुए) किसी भी मामले में जांच का आदेश दे सकता है।
  3. जांच के दौरान, आयोग के पास किसी भी संबंधित व्यक्ति को बुलाने, दस्तावेजों की मांग करने आदि के संबंध में एक सिविल कोर्ट के समान शक्तियां होती हैं।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि ‘सूचना का अधिकार अधिनियम’, 2005 में संशोधन के द्वारा केंद्र सरकार को देश में सभी सूचना आयुक्तों के कार्यकाल, वेतन, भत्ते और सेवा की अन्य शर्तों को निर्धारित करने हेतु नियम बनाने का अधिकार दिया गया है? आरटीआई अधिनियम, 2005 के तहत सूचना आयुक्तों का कार्यकाल पांच वर्ष, या पैंसठ वर्ष की आयु, जो भी पहले हो, निर्धारित किया गया था। आरटीआई अधिनियम में अन्य कौन से परिवर्तन किए गए हैं? Read here

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. आरटीआई अधिनियम के बारे में
  2. सीआईसी और आईसी की शक्तियां और कार्य
  3. नियुक्ति और पदमुक्ति

मेंस लिंक:

केन्द्रीय सूचना आयोग में सुधारों की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।

कप्पा और लैम्डा – Sars-CoV-2 के नए वेरिएंट


(Kappa And Lambda- Newest Sars-CoV-2 Variants)

संदर्भ:

हाल ही में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा कोविड- 19 के ‘कप्पा’ (Kappa) और लैम्डा (Lambda) वेरिएंट को ‘वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट’ (Variant of Interest – VoI) के रूप में नामित किया गया है।

भारत के लिए चिंता के विषय:

  1. ‘कप्पा’ वैरिएंट के बारे में सबसे पहले भारत में पता चला था और देश में GISAID पहल के लिए जमा किए गए 30,000 संचयी नमूनों में 3,500 से अधिक नमूने इसी वैरिएंट के हैं।
  2. पिछले 60 दिनों में, भारत द्वारा जमा किए गए सभी नमूनों में 3 प्रतिशत कप्पा वैरिएंट के नमूने है। वास्तव में, GISAID तालिका में कप्पा वैरिएंट के नमूने जमा करने में भारत शीर्ष स्थान पर है, और इसके पश्चात् ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, आदि का स्थान है।

लैम्डा वैरिएंट’ क्या है?

(Lambda Variant)

लैम्डा, संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी द्वारा चिह्नित किया गया नवीनतम ‘वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट’ (VoI) है।

  • इस वैरिएंट की पहचान पहली बार पिछले साल दिसंबर में ‘पेरू’ में की गई थी और GISAID के साथ, लगभग 26 देशों द्वारा अब तक साझा किए गए नमूनों में इस वैरिएंट का पता चला है।
  • इस वैरिएंट के सर्वाधिक नमूने ‘चिली’ में पाए गए है, इसके बाद सूची में क्रमशः अमेरिका और पेरू का स्थान है।

‘वैरिएंट ऑफ़ इंटरेस्ट’ (VoI) क्या होता है?

  • ‘वैरिएंट ऑफ़ इंटरेस्ट’ का तात्पर्य, किसी वायरस में होने वाले उन आनुवंशिक उत्परिवर्तनों से होता है, जो ‘संचारण क्षमता और बीमारी की गंभीरता को प्रभावित करने, या प्रतिरक्षा से बचाव करने के लिए जाने जाते है, या इसके लिए भविष्यवाणी की जाती है।
  • किसी वैरिएंट को ‘वैरिएंट ऑफ़ इंटरेस्ट’ के रूप में नामित करना इस तथ्य की स्वीकृति भी होती है, कि यह वैरिएंट कई देशों और जनसंख्या समूहों में महत्वपूर्ण सामुदायिक प्रसारण का कारण बन चुका है।

वेरिएंट ऑफ कंसर्न (VOC):

(Variant of Concern)

जब किसी वेरिएंट की वजह से, वायरस संक्रामकता में वृद्धि, बीमारी का अधिक गंभीर होना (जैसे- अस्पताल में भर्ती या मृत्यु हो जाना), पिछले संक्रमण या टीकाकरण के दौरान उत्पन्न एंटीबॉडी में महत्त्वपूर्ण कमी, उपचार या टीके की प्रभावशीलता में कमी या नैदानिक उपचार की विफलता देखने को मिलती है, तो उसे ‘वेरिएंट ऑफ कंसर्न’ (VOC) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि GISAID, WHO द्वारा 2008 में देशों के लिए जीनोम अनुक्रम साझा करने के लिए शुरू किया गया एक सार्वजनिक मंच है? इसके बारे में अधिक जानने हेतु देखें

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. जीनोम अनुक्रमण क्या है?
  2. क्रियाविधि
  3. आरएनए बनाम डीएनए
  4. जीन क्या होते हैं?
  5. ‘वैरिएंट ऑफ़ इंटरेस्ट’ (VoI) और ‘वेरिएंट ऑफ कंसर्न’ (VOC) क्या हैं?

मेंस लिंक:

‘जीनोम अनुक्रमण’ क्या होता है? यह कोविड- 19 के प्रसार को रोकने में किस प्रकार सहायक है?

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

विषय: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।

टेली-लॉ कार्यक्रम


(Tele-Law programme)

संदर्भ:

हाल ही में, न्याय विभाग द्वारा ‘जन सेवा केंद्रों’ (Common Service Centres – CSC) के माध्यम से अपने टेली-लॉ कार्यक्रम के तहत 9 लाख से अधिक लाभार्थियों तक पहुंचने का नया कीर्तिमान बनने के अवसर पर एक कार्यक्रम आयोजित किया।

‘टेली-लॉ प्रोग्राम’ के बारे में:

इस कार्यक्रम का आरंभ, किसी मामले का मुकदमेबाजी शुरू होने से पहले के चरण में ही समाधान करने के उद्देश्य से, वर्ष 2017 में  इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के सहयोग से ‘विधि एवं न्याय मंत्रालय द्वारा किया गया था।

  • इसके तहत, जिन वादियों को कानूनी सलाह की आवश्यकता होती है, उन्हें वकीलों से जोड़ने के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाओं और टेलीफोन सेवाओं का उपयोग किया जाता है।
  • टेली-लॉ अवधारणा के अंतर्गत, ‘राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण’ (SALSA) और ‘जन सेवा केंद्रों’ (CSC) में तैनात वकीलों के एक पैनल के माध्यम से कानूनी सलाह देने की सुविधा प्रदान की जाती है।
  • इस कार्यक्रम का उद्देश्य ज़रूरतमंदों, विशेषकर हाशिए पर रहने वाले और वंचित व्यक्तियों तक विधिक सहायता पहुँचाना है।

लाभ / महत्व:

  • टेली लॉ सर्विस, किसी को भी अपना कीमती समय और पैसा बर्बाद किए बिना कानूनी सलाह लेने में सक्षम बनाती है।
  • विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 12 के तहत उल्लिखित मुफ्त कानूनी सहायता के लिए पात्र लोगों के लिए यह सेवा निःशुल्क है। अन्य सभी से इस सेवा के लिए मामूली शुल्क लिया जाता है।
  • यह पहल. ‘सतत विकास लक्ष्य-16’ (SDG-16) के अनुरूप है। SDG-16 का उद्देश्य “सतत विकास के लिए शांतिपूर्ण और समावेशी समाजों को बढ़ावा देना, सभी के लिए न्याय तक पहुंच प्रदान करना और सभी स्तरों पर प्रभावी, जवाबदेह और समावेशी संस्थानों का निर्माण करना” है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

समाज के कमजोर वर्गों को मुफ्त कानूनी सेवाएं प्रदान करने और विवादों के सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए लोक अदालतों का आयोजन करने के लिए ‘विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम’, 1987 के तहत ‘राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण’ (NALSA) का गठन किया गया है। इसके बारे में अधिक जानने हेतु देखें (संक्षेप में पढ़ें)।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. NALSA के बारे में
  2. सीएससी के बारे में
  3. टेली लॉ प्रोग्राम क्या है?
  4. ‘लोक अदालत’ के बारे में

स्रोत: पीआईबी।

 

विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।

क्षतिपूर्ति संबंधी मुद्दों से अमेरिकी वैक्सीन अनुदान में बाधा


संदर्भ:

क्षतिपूर्ति संबंधी नियामक मुद्दों की वजह से अमेरिका द्वारा किए जाने वाले वैक्सीन अनुदान में बाधा पड़ रही है।

पृष्ठभूमि:

अमेरिका द्वारा भारत सहित दर्जनों देशों के लिए अमेरिका निर्मित कोविड-19 टीकों की 80 मिलियन खुराकें दान करने की घोषणा की गई थी।

‘क्षतिपूर्ति शर्त’ के बारे में:

(Indemnity Clause)

सरल शब्दों में, क्षतिपूर्ति का अर्थ, किसी नुकसान की स्थिति में अथवा वित्तीय तनाव के विरुद्ध प्रदान की जाने वाली सुरक्षा होता है।

  • कानूनी भाषा में, इसका अर्थ, किसी एक पक्ष द्वारा, उसकी वजह से होने वाले नुकसान की भरपाई, दूसरे पक्ष के लिए करना उसका संविदात्मक दायित्व होता है।
  • यह शर्त, आमतौर पर बीमा अनुबंधों में प्रयोग की जाती है।

भारत के मामले में, यदि सरकार विदेशी टीका निर्माताओं को देश में अपनी वैक्सीन शुरू करने के लिए क्षतिपूर्ति सुरक्षा देती है, तो टीका लेने के बाद किसी तरह की शिकायत करने वाले नागरिकों को क्षतिपूर्ति करने का दायित्व सरकार का होगा, न कि वैक्सीन निर्माता का।

क्षतिपूरण के लिए अपवाद:

क्षतिपूरण (indemnification) हेतु कई सामान्य अपवाद हैं।

क्षतिपूर्ति प्रावधान के तहत उन दावों या हानियों के लिए क्षतिपूर्ति दिए जाने की सूची से बाहर किया जा सकता है, जो क्षतिपूर्ति प्राप्त करने वाले पक्ष के निम्नलिखित कार्यों की वजह से होते हैं:

  1. लापरवाही या घोर लापरवाही।
  2. उत्पादों का अनुचित तरीके से उपयोग।
  3. समझौते में अपने दायित्वों का पालन करने में विफलता।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि WHO ने Covax गठबंधन के माध्यम से कोविड-19 टीकों के लिए एक नो फॉल्ट क्षतिपूर्ति कार्यक्रम’ शुरू किया है?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘क्षतिपूर्ति शर्त’ क्या है?
  2. इसका प्रयोग प्रायः कहाँ किया जाता है?
  3. लाभ
  4. भारत में आयात किए जा रहे महत्वपूर्ण टीके।

मेंस लिंक:

क्षतिपूर्ति शर्त के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


नवेगांव-नागझिरा टाइगर रिज़र्व (NNTR)

हाल ही में महाराष्ट्र के ‘नवेगांव-नागझिरा टाइगर रिज़र्व’ (Navegaon-Nagzira Tiger Reserve- NNTR) में एक दुर्लभ मेलानिस्टिक तेंदुआ (Melanistic Leopard) देखा गया है। आमतौर पर इसे ब्लैक पैंथर (Black Panther) के रूप में जाना जाता है।

  • इस टाइगर रिजर्व में, नवेगांव राष्ट्रीय उद्यान, नवेगांव वन्यजीव अभयारण्य, नागझिरा वन्यजीव अभयारण्य, नया नागझिरा वन्यजीव अभयारण्य और कोका वन्यजीव अभयारण्य के अधिसूचित क्षेत्र शामिल हैं।
  • NNTR, मध्य भारत के प्रमुख बाघ अभयारण्यों जैसे मध्य प्रदेश के कान्हा और पेंच टाइगर रिजर्व, महाराष्ट्र के पेंच और ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व, छत्तीसगढ़ के इंद्रावती और अचानकमार टाइगर रिजर्व तथा, अप्रत्यक्ष रूप से तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के कवल और नागार्जुनसागर टाइगर रिजर्व के साथ जुड़ा हुआ है।
  • यह उमरेद-करहंदला अभयारण्य और ब्रह्मपुरी डिवीज़न (महाराष्ट्र) जैसे महत्त्वपूर्ण बाघ क्षेत्रों से भी जुड़ा हुआ है।

भालिया गेहूं

(Bhalia wheat)

हाल ही में, भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication- GI) प्रमाणित भालिया किस्म के गेहूं की पहली खेप गुजरात से केन्या और श्रीलंका को निर्यात की गई है।

  • जीआई प्रमाणित गेहूं की इस किस्म में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है और यह स्वाद में मीठा होता है।
  • भालिया गेहूं की फसल प्रमुख रुप से गुजरात के भाल क्षेत्र में पैदा की जाती है।
  • गेहूं की इस किस्म की एक विशिष्ट विशेषता यह है कि इसे बारिश के मौसम में बिना सिंचाई के उगाया जाता है और गुजरात में लगभग दो लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि में इसकी खेती की जाती है।

यह बिना सिंचाई के बारानी परिस्थितियों में उगाया जाता है और गुजरात में लगभग दो लाख हेक्टेयर कृषि भूमि में खेती की जाती है।

 

खादी प्राकृतिक पेंट

(Khadi Prakritik Paint)

हाल ही में, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री श्री नितिन गडकरी खादी प्राकृतिक पेंट के ‘ब्रांड एंबेसेडर’ बने हैं।

  • यह खादी और ग्रामोद्योग आयोग द्वारा विकसित यह गाय के गोबर से निर्मित भारत का पहला पेंट है।
  • यह एक पर्यावरण के अनुकूल, गैर विषाक्त पेंट है,यह अपनी तरह का पहला उत्पाद है, जिसमें एंटी-फंगल और एंटी-बैक्टीरियल गुण समाहित हैं।
  • यह पेंट किसानों की आय बढ़ाने और देश में स्वरोजगार पैदा करने के दोहरे उद्देश्यों के साथ लॉन्च किया गया है।

सोशल मीडिया बोल्ड है।

 सोशल मीडिया युवा है।

 सोशल मीडिया पर उठे सवाल सोशल मीडिया एक जवाब से संतुष्ट नहीं है।

 सोशल मीडिया में दिखती है ,

बड़ी तस्वीर सोशल मीडिया हर विवरण में रुचि रखता है।

 सोशल मीडिया उत्सुक है।

 सोशल मीडिया स्वतंत्र है। 

 सोशल मीडिया अपूरणीय है। 

लेकिन कभी अप्रासंगिक नहीं। सोशल मीडिया आप हैं।

 (समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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