उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत 'सेवा में कमी' के लिए एक कोचिंग संस्थान को जिम्मेदार मानते हुए बेंगलूरु में स्थित जिला उपभोक्ता निवारण फोरम ने इस संस्थान को निर्देश दिया है कि वह उस पिता से ली गई फीस वापस करें, जिसकी बेटी कक्षा 9 की परीक्षा में फेल हो गई थी। एक त्रिलोक चंद गुप्ता की तरफ से दायर शिकायत में यह कहा गया था कि संस्थान द्वारा किए गए आश्वासनों और वादों पर भरोसा करते हुए उन्होंने 69,408 रूपये का भुगतान करके अपनी बेटी को दाखिला इस संस्थान में करवाया था,जो 9 वीं कक्षा में पढ़ रही थी। संस्थान ने वादा किया था कि करिक्यूलम के एक भाग के रूप में आईसीएसई पाठ्यक्रम विषयों के अलावा भौतिकी, रसायन विज्ञान, गणित और जीव विज्ञान जैसे विषयों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। लेकिन उनकी सेवांए उतनी अच्छी नहीं निकली,जितनी अच्छी सेवाएं देने का वादा किया गया था। शिकायत में आरोप लगाया गया था कि 'कोई अतिरिक्त कक्षाएं नहीं दी गई, यहां तक कि नियमित कक्षाएं भी ठीक से संचालित नहीं की गई। जिसके परिणामस्वरूप उसकी बेटी के स्कूल में आयोजित यूनिट टेस्ट में खराब अंक आए और वह सभी विषयों में फेल हो गई। वहीं 'साप्ताहिक परीक्षा आयोजित करने से पहले ही सभी उत्तर उपलब्ध करा दिए गए थे ताकि छात्र अधिक अंक हासिल कर सकें।'
शिकायत में कहा गया है कि ये मुद्दे अभिभावक-शिक्षक बैठक के दौरान सामने लाए आए थे। हालांकि, खाली आश्वासन देने के अलावा संस्थान द्वारा कोई भी सार्थक कार्रवाई नहीं की गई। इसलिए, शिकायतकर्ता ने अपनी बेटी को संस्थान से निकालने का फैसला किया और पूरी राशि वापस देने की मांग की। संस्थान की दलीलें आयोग के समक्ष संस्थान ने आरोपों से इनकार किया और दावा किया कि वह अपने आश्वासन के अनुसार अच्छी सेवाएं प्रदान कर रहा था। यह भी कहा गया कि कक्षाएं शुरू होने के बाद, शिकायतकर्ता की बेटी ने संस्थान के रिकॉर्ड के अनुसार पांच महीने से अधिक समय तक कक्षाओं में भाग लिया है। उनकी बेटी अपनी व्यक्तिगत समस्याओं के कारण पाठ्यक्रम से हट गई क्योंकि वह इसके साथ तालमेल नहीं बैठा पा रही थी। इसके अलावा, शिकायतकर्ता ने अपनी ओर से कमी साबित करने के लिए कोई दस्तावेज या सबूत पेश नहीं किया है। वहीं धनवापसी का आवेदन प्राप्त होने पर संस्थान ने एक सद्भावना का प्रदर्शन करने के लिए 26,014 की राशि वापस करने के लिए सहमति व्यक्त कीसंस्थान ने 'मनु सोलंकी व अन्य बनाम विनायका मिशन विश्वविद्यालय' के मामले में राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिए गए निर्णय का हवाला दिया था और प्रस्तुत किया था कि यह एक अच्छी तरह से व्यवस्थित कानून है कि शिक्षा कोई वस्तु नहीं है,भले ही शैक्षिक व कोचिंग संस्थान किसी भी प्रकार की सेवा प्रदान कर रहे हों और शिक्षण संस्थानों द्वारा प्रदान की जाने वाली शिक्षा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत सेवा के दायरे में नहीं आती है।
फोरम का निष्कर्ष सबसे पहले फोरम ने 'मनु सोलंकी व अन्य बनाम विनायका मिशन विश्वविद्यालय' और 'पिन्नाकल इन्स्टिटूट इंजीनियरिंग एंड मैनेजमेंट बनाम बिस्वजीत संतरा व 3 अदर्स' के मामले में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग द्वारा दिए गए फैसलों का हवाला दिया। इनके अनुसार कहा गया किः ''हमारा विचार है कि सेवा प्रदाता जैसे 'कोचिंग सेंटर' यानि ओपी से संबंधित कोई भी दोष या कमी या अनुचित व्यापार व्यवहार उपभोक्ता फोरम के अधिकार क्षेत्र में आता है। इसलिए, शिकायतकर्ता द्वारा दायर की गई शिकायत इस फोरम के समक्ष बनाए रखने योग्य हैं क्योंकि यह माना गया है कि शिकायतकर्ता एक उपभोक्ता है जो नए सीपी अधिनियम, 2019 (पुराने सीपी अधिनियम 1986 की धारा 2 (1) (डी))के दायरे में आता है।'' दूसरा, आयोग ने नोट किया कि शिकायतकर्ता की बेटी का इरादा दूसरे कार्यकाल के लिए कोचिंग कक्षाएं बंद करना था। लेकिन एक सुश्री.लवण्या जो ओपी नंबर-2 हैं,ने वादा किया और आश्वासन दिया कि शिकायतकर्ता की सभी चिंताओं को दूर कर किया जाएगा और वह सभी तरह से सहयोग देंगी ताकि उसे मैथ्स और फिजिक्स के लिए विशेष कक्षाएं प्रदान की जा सकें। उसने यह बताया कि उसकी बेटी के स्कूल में सितंबर 2019 में पहली टर्म की परीक्षा हुई थी और उसके सभी विषयों , प्रतिशत० प्रतिशत नंबर आए थे।
इसलिए सुश्री.लवण्या के आश्वासन पर, शिकायतकर्ता ने 26,250 रुपये की दूसरी किस्त का भुगतान कर दिया। आयोग ने कहा ''यह तथ्य स्पष्ट है कि शिकायतकर्ता की बेटी ने पहले कार्यकाल की कक्षाओं में भाग लिया, लेकिन दूसरी किस्त का भुगतान करने के बाद भी उसने कक्षाओं में भाग नहीं लिया। इस संदर्भ में, संस्थान ने अपने मानदंडों के अनुसार गणना की है और 26,014 रुपये वापस करने के लिए सहमत हो गया। लेकिन हमने इस राशि को 26,250 रुपये तक बढ़ाया, जो कि दूसरी अवधि का शुल्क है। इसप्रकार, शिकायतकर्ता 26,250 रुपये के साथ 5,000 रुपये मुकदमेबाजी की लागत के रूप में भी पाने का हकदार है।'' अध्यक्ष एस.एल पाटिल की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि विपरीत पक्षकार जे.सी चैधरी (आकाश इंस्टीट्यूट के प्रबंध निदेशक) और लवानिया (शाखा प्रमुख, राजाजीनगर) संयुक्त रूप से शिकायतकर्ता को 5,000 की मुकदमेबाजी लागत के साथ 26,250 रुपये वापस करने के लिए जिम्मेदार हैं। यह राशि इस आदेश की प्राप्ति की तारीख से छह सप्ताह के भीतर दे दी जाए,अन्यथा 26,250 की राशि पर 6 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज देना होगा,जो इस शिकायत की तारीख से लेकर राशि प्रदान करने की तारीख की अवधि पर दिया जाएगा।
SOURCE ; hindi.livelaw.
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