गुरुवार से शुरू हुई खुदाई के दौरान सती माता मंदिर के पीछे पत्थर की शिलाएं दिखाई देने पर काम रोका गया। शुक्रवार सुबह शिलाओं के आसपास सावधानी से खुदाई की गई तो मंदिर का स्ट्रक्चर दिखाई देने लगा। मौके पर मंदिर के शिखर वाले हिस्से दिखाई दे रहे हैं। अभी आसपास खुदाई नहीं की गई है।
मूल गर्भगृह के बराबर का है मंदिर, महाकाल के आगे चल रही खुदाई को रोका गया, अब ऑर्कियोलॉजी एक्सपर्ट की निगरानी में कराई जाएगी
महाकाल मंदिर परिसर में खुदाई के दौरान एक हजार साल पुराना मंदिर मिला है। पुराविदों के अनुसार यह राजा भोज के समय का होने का अनुमान है। यहां और भी मंदिर, मूर्तियां और भग्नावशेष मिलने की संभावना है। परिसर में चल रही खुदाई अब ऑर्कियोलॉजी एक्सपर्ट की निगरानी में कराई जाएगी। खुदाई में निकले मलबे की भी विशेषज्ञ निगरानी करेंगे। मलबे में सोने-चांदी के सिक्के मिलने की भी उम्मीद है।
मंदिर परिसर का विस्तार किया जा रहा है। आगे के हिस्से में महाकाल शिखर दर्शन उद्यान और इसके नीचे न्यू वेटिंग एरिया बनाया जा रहा है। यह काम यूडीए कर रहा है। निर्माण के लिए ऊपरी सतह से ओंकारेश्वर मंदिर के तल तक खुदाई की जा रही है।
मंदिर मिलने के बाद काम रोक दिया गया। मंदिर प्रबंध समिति के अधिकारियों की जानकारी में आने के बाद विक्रम विश्वविद्यालय के पुराविद् डॉ. रमण सोलंकी से इसका अवलोकन कराया गया है। मंदिर समिति के सहायक प्रशासक मूलचंद जूनवाल के अनुसार मंदिर जैसी आकृति मिलने के बाद काम रोक दिया है। अब मंदिर समिति द्वारा तैनात आर्कियोलॉजिस्ट की निगरानी में आगे काम कराएंगे। खुदाई के दौरान मिट्टी की अनेक परतें दिखाई दे रही हैं, जिन्हें देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि यहां कई बार भराव हुआ है। यह उल्लेख मिलते हैं कि महाकाल मंदिर परिसर का कई बार निर्माण हुआ है।
राजाओं ने नए मंदिर बनवाए तो आक्रांताओं द्वारा नष्ट करने के बाद फिर मंदिर का निर्माण किया गया। इतिहास में अल्तमश के हमले का उल्लेख है। मौजूदा परिसर 1732 में सिंधिया राजवंश के रामचंद्र शेंडवी द्वारा कराया गया था। इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि खुदाई के दौरान विक्रमादित्य कालीन पुरा अवशेष प्राप्त हों। मलबे में सोने-चांदी के सिक्के भी मिल सकते हैं क्योंकि मंदिर पास ही टकसाल होने का उल्लेख भी साहित्य में मिलता है।
ये देवकुल की निशानी, अन्य मंदिर भी होंगे गढ़कालिका में मिल सकती हैं बस्तियां
विक्रमादित्य शोध पीठ के पूर्व निदेशक डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित के अनुसार महाकाल मंदिर वास्तव में देवकुल था। देवकुल मंदिरों का परिसर कहलाता है। मंदिर के मौजूदा परिसर के अलावा आसपास कई प्राचीन मंदिर मंदिर होने व खुदाई में भी मंदिर मिलने से इस तथ्य की प्रामाणिकता होती है। यहां और भी मंदिर, मूर्तियां, भग्नावशेष मिल सकते हैं। इसके साथ गढ़कालिका क्षेत्र में उत्खनन करने पर बस्तियां मिलने की संभावना है।
पुराविद् डॉ. रमण सोलंकी ने बताया स्ट्रक्चर 1 हजार साल पुराना राजा भोज के समय का हो सकता है। उन्होंने नागर शैली, भूमि शैली आदि में मंदिर निर्माण कराए थे। मौजूदा महाकाल मंदिर नागर शैली का है और जो खुदाई में मंदिर का हिस्सा दिख रहा है वह भूमि शैली का है। जो हिस्से दिख रहे हैं वह मंदिर के पीछे के लगते हैं। पत्थरों पर लता वल्लिकाएं उत्कीर्ण हैं। सज्जित प्रस्तर का उपयोग हुआ है। जो भग्नावशेष दिख रहे हैं वह भी मंदिर के हिस्से हो सकते हैं। खुदाई में निकले मंदिर का गर्भगृह, महाकाल मंदिर का गर्भगृह और सामने की सड़क के पार स्थित प्राचीन गोपालेश्वर महादेव मंदिर का गर्भगृह एक ही तल पर होने की संभावना है।
वेटिंग एरिया की जगह बना सकते हैं संग्रहालय : मंदिर के आगे के हिस्से को शिखर दर्शन गार्डन और इसके नीचे न्यू वेटिंग एरिया बनाया जाना है। यूडीए सीईओ एसएस रावत को विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि निचले हिस्से में बनाए जाने वाले वेटिंग एरिया में ही संग्रहालय बनाया जा सकता है। खुदाई के दौरान जो पुरा अवशेष, मंदिर आदि मिलते हैं तो उन्हें वहीं संरक्षित किया जा सकता है।
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