नगर निगम में मकान के नक्शे पास होने में एक महीने से ज्यादा समय लग रहा है। इस कारण लोग निर्माण शुरू नहीं कर पा रहे। ऑनलाइन सॉफ्टवेयर की गड़बड़ी के कारण मुश्किल आ रही है। इस कारण निर्माण व्यवसाय भी प्रभावित हो रहा है। अफसरों का कहना है ऑनलाइन होने से उनके हाथ में कुछ नहीं है। साफ्टवेयर से परमिशन ऑटो जनरेट होती है।
जो लोग प्लॉट खरीद कर मकान बनाने की जुगत की है, वे परेशान हैं। उन्होंने निगम में नक्शे के लिए आवेदन किया है लेकिन नक्शा पास कराने में एक महीने से ज्यादा वक्त लग रहा है। बिल्डरों व नक्शे पास कराने वाले नागरिकों का कहना है कि नक्शे के लिए तय दस्तावेज प्रस्तुत करने के बाद भी नक्शे पास नहीं हो रहे। कई बार छोटी सी कमी के कारण नक्शा पास नहीं हो पाता और कभी बिना कारण आवेदन रिजेक्ट हो जाता है।
इस कारण निर्माण से जुड़े कारोबारी भी परेशान हैं। जब तक नक्शा पास होता है तब तक निर्माण सामग्री के दाम ऊपर-नीचे हो जाते हैं। नगरीय निकायों में नक्शों की मंजूरी करने वाला ऑनलाइन बिल्डिंग परमिशन एबीपीएएस सॉफ्टवेयर पूरे प्रदेश में लागू है। इस कारण इसकी गति भी धीमी है। नगरीय प्रशासन विभाग पहले भी 14 से ज्यादा प्रमुख कमियों को दूर करने के लिए हैदराबाद की आईटी कंपनी को नोटिस तक थमा चुका है। बावजूद कमियां दुरुस्त नहीं हुई। फिलहाल नगर निगम में परमिशन के 550 आवेदन पेंडिंग बताए जा रहे हैं।
एबीपीएएस सिस्टम-2 भी नहीं कारगर
एबीपीएएस सिस्टम-1 को बंद कर नवंबर 2019 से नया एबीपीएएस सिस्टम-2 लागू किया था लेकिन सिस्टम लागू होने के 13 माह बाद भी बिल्डिंग परमिशन में लगे आर्किटेक्ट, भवन अधिकारियों द्वारा सॉफ्यवेयर खराबी के चलते फाइल को गलत कंसोल में जाने की परेशानी आ रही है। इसी के साथ नेट प्राब्लम होने से फोटो डाउनलोड न होने, मोबाइल से कंसोल संचालित न होने, स्क्रूटनी में 12 से 20 दिन से ज्यादा समय लगने, मलबा-मसाले की फीस जनरेट न होने, अधीनस्थों की टीप न पढ़ पाने, किसके पास आवेदन लंबित होने की जानकारी न होने, एमआईएस में गलत डेटा आने जैसी समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। देरी की शिकायत मिलने पर ऐसे सॉफ्टवेयर डेवलप करने की कवायद भी हुई थी। भोपाल व इंदौर में ऐसे डेवलप साफ्टवेयर हैं। इससे बिल्डिंग परमिशन की स्क्रूटनी में 24 से 36 घंटे से कम समय लगता है।
बिल्डर बोले- मैन्युअली भी होना चाहिए
ऑनलाइन साॅफ्टवेयर के कारण आ रही परेशानी को देखते भास्कर ने जब बिल्डर्स से बात की तो उनका कहना है मैन्युअली भी यह काम होना चाहिए। यदि साॅफ्टवेयर काम नहीं कर रहा तो कर्मचारी काम को पूरा कर सकते हैं। इससे लोगों को परमिशन मिलने में आसानी होगी। वे अपने घर जल्दी बना सकेंगे। बिल्डर महेश परियानी कहते हैं कि पूरे प्रदेश में दिक्कत है। छोटी सी कमी या बिना किसी कारण नक्शे रिजेक्ट हो जाते हैं। इससे लोग हलाकान हैं। इससे बिल्डिंग कारोबार भी प्रभावित हो रहा है।
राकेश अग्रवाल का कहना है कि निगम को ऐसी व्यवस्था करना चाहिए जिससे लोग परेशान न हो। ब्रजेश पंड्या कहते हैं कि पहले मैन्युअली काम होता था तो छोटी-छोटी कमी हाथों हाथ ठीक हो जाती थी। मुन्ना सोगानी कहते हैं कि निगम इस मामले में राज्य शासन से अनुमति लेकर नई व्यवस्था कर सकता है।
ऑटो जनरेट है सिस्टम : निगमायुक्त क्षितिज सिंघल ने बताया निगम में ऑनलाइन बिल्डिंग परमिशन व्यवस्था अन्य शहरों से बेहतर है। परमिशन प्रक्रिया ऑटो जनरेटेड है। पोर्टल पर विभिन्न चरणों के परीक्षण उपरांत परमिशन जारी होती है।
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