निमाड़ के लोक संस्कृति पुरुष गांधीवादी पं. रामनारायण उपाध्याय ने गांधी जी से वर्धा में भेंटकर उनके आश्रम में काम करने की इच्छा जाहिर की थी। तब महात्मा गांधी ने उन्हें जवाबदारी देते हुए कहा था कि मेरे आश्रम में रहने के बजाए गांव में ही रहकर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की मदद करें। अधिकांश भारत गांवों में ही बसा है। इसके बाद पद्मश्री उपाध्याय ने ग्राम कालमुखी में ही रहकर आसपास के गांवों में भी काम किया।
यह जानकारी देते हुए निमाड़ लोक संस्कृति न्यास के सचिव हेमंत उपाध्याय ने कहा कि तब कालमुखी में जन्मे रामनारायण उपाध्याय के ममेरे भाई सुकमार पगारे तब ठक्करबा के आश्रम में ही अपनी सेवाएं दे रहे थे। वे अनेक बार जेल भी गए। उन्होंने खंडवा आने पर मार्ग दर्शन देते हुए कहा कि लोक सेवा के साथ लोक साहित्य व सिंगाजी पर भी लेखन कर गांधी के विचारों का प्रचार-प्रसार करें। साथ ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की तन -मन- धन से मदद करें । खंडवा में उनकी बैठक आजादी के काफी पहले से एक भारतीय आत्मा पं. माखनलाल के यहां थी। कर्मवीर के प्रकाशन में भी माखन दादा का हाथ बंटाते थे।
महात्मा गांधी की 125वीं जयंती पर विधानसभा में दिया था भाषण
गांधी जी की 125 वीं जयंती पर विधानसभा में जिन दो हस्तियों के भाषण हुए थे, उनमें पं. रामनारायण उपाध्याय खंडवा व डीपी पाठक जबलपुर गांधीवादी व बिजली कर्मचारी संघ फेडरेशन के महामंत्री थे।
गांधी युग की विभूतियां सहित अनेक पुस्तकें लिखीं
पं. रामनारायण उपाध्याय गांधीवादी होकर उनके सिद्धांतों पर ही चले। वे पद्मश्री व साहित्य वाचस्पति भी थे। उन्होंने निमाड़ के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का संक्षिप्त जीवनी व परिचय ‘निमाड़ के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी’ नामक पुस्तक में दिया है। अन्य पुस्तकों का प्रकाशन व संकलन किया। जिनमें गांधी युग की विभूतियां, गांधी की राह पर गांधी दर्शन भाग एक, भाग दो, भाग तीन एवं चार, यात्रा की पगडंडियां, बोलता हिंदुस्तान, युग पुरुष गांधी, अहिंसा की कहानी, गांधी जी की विचारधारा प्रमुख है। पंडित उपाध्याय ने 2 अक्टूबर 1998 को ही गांधी जयंती पर निमाड़ लोक संस्कृति न्यास को आम जनता के लिए सुलभ कराया था। छात्रों की सुविधा हेतु गांधी छात्रावास का संचालन दादा ने किया । गांधी साहित्य के प्रचार-प्रसार हेतु वे प्रतिदिन सुबह शाम अपने छोटे भाई शिवनारायण उपाध्याय के साथ गांधी भवन के हाल में गादी पर बैठते थे। पुस्तकालय का संचालन करते थे। गांधी संस्थान दिल्ली से गांधी साहित्य परममित्र भाई भवनी प्रसाद मिश्र से प्राप्त कर बच्चों को पढ़ने के लिए प्रदान करते थे।
जंगलों के रास्ते खंडवा और इंदौर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आते थे कालमुखी
खंडवा-इंदौर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सीधे खंडवा आने की बजाए जंगलों के रास्ते हीरापुर, अटूट होते हुए कालमुखी आते थे। जहां उनके ठहरने खाने की व्यवस्था के साथ अन्य मदद भी होती थी। इंदौर से आने वालों में श्रीराम आगार व उनके साथी होते थे। बाबूलाल सोनी उन्हें खंडवा ले जाते थे। जंगल के रास्ते अतर रेलवे से होते हुए या नागचून के रास्ते खंडवा आते थे।
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