गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) संशोधन अधिनियम मामले के एक आरोपी को झारखंड हाईकोर्ट से मिली जमानत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को बृहस्पतिवार को शर्मिंदगी झेलनी पड़ी। शीर्ष अदालत ने NIA द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए मौखिक रूप से टिप्पणी की, जिस तरह से आप जा रहे हैं ऐसा लगता है कि आपको एक व्यक्ति के अखबार पढ़ने को लेकर भी समस्या है।
इस मामले में आरोपी एक कंपनी के महाप्रबंधक पर कथित तौर पर जबरन वसूली के लिए तृतीय प्रस्तुति समिति (TPC) नामक एक माओवादी समूह के साथ जुडे़ होने का आरोप है। हाईकोर्ट के आदेश का विरोध करते हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने चीफ जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ के समक्ष कहा कि महाप्रबंधक टीपीसी के जोनल कमांडर के निर्देश पर जबरन वसूली करता था। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, जिस तरह से आप जा रहे हैं, ऐसा लगता है कि आपको एक व्यक्ति के अखबार पढ़ने पर भी समस्या है। यह कहते हुए पीठ ने NIA की याचिका को खारिज कर दिया।
तीन साल जेल में रहा महाप्रबंधक
मेसर्स आधुनिक पावर एंड नेचुरल रिसोर्सेज लिमिटेड के महाप्रबंधक संजय जैन को दिसंबर, 2018 में जबरन वसूली रैकेट चलाने और टीपीसी से जुड़े होने के आरोप में पकड़ा गया था। दिसंबर, 2021 में हाईकोर्ट द्वारा जमानत दिए जाने तक वह हिरासत में था।
टीपीसी को पैसे देने पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) संशोधन अधिनियम की धाराएं नहीं
हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत देते हुए कहा था कि हो सकता है कि टीपीसी आतंकी गतिविधियों में लिप्त हो, लेकिन अपीलकर्ता द्वारा टीपीसी को राशि का भुगतान करना और टीपीसी सुप्रीमो से मुलाकात करना यूएपीए की धारा-17 और 18 के दायरे में नहीं आता। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था, यूएपीए अपराध प्रथम दृष्टया केवल इसलिए नहीं बनते क्योंकि उन्होंने टीपीसी द्वारा मांगी गई राशि का भुगतान किया।
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