कुछ क्षेत्रों में मामूली वृद्धि को छोड़कर, कुल मिलाकर, बजट में वंचित समुदायों के सशक्तिकरण के लिए समर्पित योजनाओं और व्यापक (अम्ब्रेला) कार्यक्रमों के लिए आवंटन में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं की गई है।
by महेश कुमार
सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी), जोकि संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाए गए 17 लक्ष्यों का एक समूह है, जिन्हे सभी सदस्य देशों द्वारा 2020 तक हासिल किया जाना था, जिसका नारा यह था की "कोई भी पीछे न छूट जाए"। यह नारा एसडीजी को हासिल करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के सार्वभौमिक मूल्यों के तीन मार्गदर्शक सिद्धांतों का हिस्सा है।
"कोई भी पीछे न छूट जाए," एक परिवर्तनकारी सिद्धान्त है, जो "सभी संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों की स्पष्ट प्रतिबद्धता का प्रतिनिधित्व करता है और जिसका मक़सद गरीबी को उसके सभी रूपों में समाप्त करना, भेदभाव और बहिष्कार को समाप्त करना, और उन असमानताओं और कमजोरियों को कम करना जो लोगों को समाज में पीछे छोड़ देती हैं और उनकी क्षमता और उनके प्रति मानवता को कमजोर कर देती हैं।”
भारत सरकार ने एसडीजी को हासिल करने की अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है। नीति आयोग ने देश-विशिष्ट संकेतक विकसित किए और सभी राज्यों के लिए 17 लक्ष्यों में से प्रत्येक के लिए एसडीजी की उपलब्धियों पर एक वार्षिक रिपोर्ट जारी की है। नीति आयोग की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक एसडीजी इंडेक्स पर देश ने 100 में से 66 अंक हासिल किए हैं। एसडीजी-2 में (यानि भूख के खात्मे), एसडीजी-1 (कोई गरीबी नहीं), एसडीजी-5 (लिंग समानता), एसडीजी-4 (गुणवत्ता वाली शिक्षा), और एसडीजी 10 (कम असमानता) पर देश को कम अंक मिले हैं।
एसडीजी की उपलब्धियां सामाजिक रूप से वंचित तबकों जैसे दलितों, जनजातियों, विमुक्त और खानाबदोश जनजातियों, धार्मिक अल्पसंख्यकों, विकलांग लोगों (पीडब्ल्यूडी) और महिलाओं और लड़कियों के सशक्तिकरण पर निर्भर करती हैं। "कोई भी पीछे न छूट जाए" के मामले में हाशिये पर मौजूद लोगों के सशक्तिकरण पर ध्यान देने की जरूरत है। इसलिए वंचित या हाशिए के समुदायों के लोगों को बजटीय सहायता प्रदान करने की भी जरूरत है।
बजट को हाशिए या वंचित तबकों के नज़रिए से देखने का एक तरीका उन मंत्रालयों को आवंटन को देखना है जो इन वर्गों के लिए हैं।
केंद्रीय बजट, अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के कल्याण के लिए बने मंत्रालयों में योजनाओं और कार्यक्रमों को सूचीबद्ध करते हुए बयान प्रदान करता है। इस बजट के साथ प्रदान किया गया एक जेंडर बजट स्टेटमेंट (स्टेटमेंट 13) भी है जो विभिन्न मंत्रालयों द्वारा महिला सशक्तिकरण और महिला विकास पर खर्च की जा रही राशि को दर्शाता है।
संबंधित मंत्रालयों को आवंटन
देश के अलग-अलग मंत्रालय आदिवासियों और अल्पसंख्यकों की विकास संबंधी जरूरतों को पूरा करते हैं। सामाजिक न्याय मंत्रालय अन्य लोगों के अलावा दलितों, पीडब्ल्यूडी और डीएनटी आबादी को सशक्त बनाने के लिए काम करता है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को महिलाओं को सशक्त बनाना अनिवार्य है। जैसा कि नीचे दी गई तालिका में दिखाया गया है, इन मंत्रालयों को बजट आवंटन पिछले वर्ष की तुलना में थोड़ा सा अधिक है।
वंचित तबकों के विभिन्न मंत्रालयों (एससी, एसटी, अल्पसंख्यक, पीडब्ल्यूडी, महिला एवं बाल विकास) के लिए बजट आवंटन (करोड़ रुपये में)
कुल मिलाकर, इन मंत्रालयों को बजट का आवंटन कम मिला है, और एमडब्ल्यूसीडी, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय और विकलांग लोगों के विभाग के बजट में शायद ही कोई उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। वर्ष 2021-22 में मंत्रालयों के बजट में बजट आवंटन से भी उल्लेखनीय कमी आई है क्योंकि सभी मंत्रालयों के संशोधित बजट वर्ष 2021-22 के बजट अनुमान से कम हैं। 2021-22 के संशोधित बजट में एमटीए और एमडब्लूसीडी के लिए 1,000 करोड़ रुपये और जनजातीय मामलों के मंत्रालय के लिए 500 करोड़ रुपये से अधिक की गिरावट आई है। इसका मतलब है कि इन मंत्रालयों के कार्यक्रमों में कोविड वर्ष में महत्वपूर्ण कमी देखी गई होगी।
विभिन्न मंत्रालयों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आवंटन
जनजातीय उप योजना (टीएसपी) और अनुसूचित जाति उप योजना (एससीएसपी) आदिवासियों और दलितों के विकास के लिए महत्वपूर्ण रणनीतियां हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की कुल जनसंख्या में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की संख्या क्रमश: 16.6 प्रतिशत और 8.6 प्रतिशत है। लेकिन इन उप-योजनाओं के तहत आवंटन देश में एसटी और एससी के जनसंख्या अनुपात से कम है।
टीएसपी और एससीएसपी 2022-23 (करोड़ रुपये में)
केंद्रीय बजट 2022-23 में, अनुसूचित जनजातियों का आवंटन कल्याण 89,265 करोड़ रुपये (विवरण 10बी के अनुसार) है, जो केंद्र प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) और केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं (सीएस) के तहत कुल बजटीय आवंटन का 5.5 प्रतिशत है। इसी तरह, अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए कुल आवंटन 142,342.36 करोड़ रुपये (विवरण 10ए के अनुसार) है, जो केंद्र प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) और केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं (सीएस) के तहत कुल बजटीय आवंटन का 8.8 प्रतिशत है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आवंटन कुल योजनाओं के बजट के प्रतिशत के रूप में उनके जनसंख्या अनुपात से कम है।
पिछले वर्ष की तुलना में, 2022-23 में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कल्याण के लिए कुल बजट में केवल 10 -11 प्रतिशत की मामूली वृद्धि हुई है।
जेंडर रिस्पॉन्सिव बजट?
सरकार एक जेंडर बजट स्टेटमेंट (GBS) (स्टेटमेंट 13) भी जारी करती है, जिसमें मंत्रालयों में महिलाओं और लड़कियों के लिए आवंटन को दिखाया जाता है। जीबीएस के तहत दिखाई गई कुल राशि हमेशा कुल केंद्रीय बजट का लगभग 5-6 प्रतिशत रही है, और 2005-06 में शुरू होने के बाद से सिर्फ एक बार इसने 6 प्रतिशत को पार किया था। इस साल फिर से, कुल लिंग बजट 4.33 प्रतिशत होने का अनुमान है, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में भी कम है जब यह 4.40 प्रतिशत था।
जेंडर बजट विवरण (करोड़ रुपये में)
यद्यपि पिछले वर्ष की तुलना में जेंडर बजट के आकार में वृद्धि हुई है, अधिकांश वृद्धि जेंडर बजट के भाग बी में है, जिसमें 30-99 प्रतिशत महिला लाभार्थियों वाली योजनाओं को सूचीबद्ध किया गया है। लिंग बजट के भाग ए में वृद्धि, जिसमें 100 प्रतिशत महिला लाभार्थियों वाली योजनाओं को सूचीबद्ध किया गया है, पिछले वर्ष की तुलना में वह केवल 5 प्रतिशत है।
जीबीएस के तहत निर्धारित कुल बजट में से केवल 15.7 प्रतिशत भाग-ए के तहत आवंटित किया गया है। इसकी तुलना में, कुल जेंडर बजट का 84.3प्रतिशत जीबीएस के भाग बी से आता है।
वंचित तबकों के लिए विशिष्ट योजनाएं
यदि हम वंचित तबकों के लिए बनी सशक्तिकरण की कुछ महत्वपूर्ण और विशिष्ट योजनाओं को देखें, तो अनुसूचित जनजातियों के विकास के लिए व्यापक कार्यक्रम में 4,303 करोड़ रुपये से घटकर 4,111 करोड़ रुपये कर दिए गए हैं। अल्पसंख्यकों के विकास के लिए अम्ब्रेला कार्यक्रम में 300 करोड़ रुपये की वृद्धि की गई है। मिशन शक्ति (महिलाओं के संरक्षण और सशक्तिकरण के लिए मिशन) का बजट 3,100 करोड़ रुपये पर अटका हुआ है। अनुसूचित जाति के लिए उच्च शिक्षा के लिए कुल छात्रवृत्ति 450 करोड़ रुपये से घटकर 364 करोड़ रुपये हो गई है, और अनुसूचित जाति और अन्य लोगों के लिए प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति में भी 725 करोड़ रुपये से घटकर 500 करोड़ रुपये हो गई है। हालांकि, अनुसूचित जाति के लिए पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति में आवंटन में वृद्धि के कारण अनुसूचित जाति के लिए कुल व्यापक कार्यक्रम में 2,200 करोड़ रुपये की पर्याप्त वृद्धि देखी गई है। व्यापक (अंब्रेला) प्रोग्राम के तहत बाकी योजनाओं में या तो बजट रुका हुआ है या फिर गिरावट आई है।
इस प्रकार, केंद्रीय बजट 2022-23 में वंचित समुदायों के लिए कोई महत्वपूर्ण आवंटन नहीं किया गया है। सामाजिक न्याय और सभी के लिए एसडीजी हासिल करने की दृष्टि से बजट में वंचित समुदायों पर ध्यान देना जरूरी है।
(लेखक निसार अहमद बजट एनलिसिस और रिसर्च सेंटर, जयपुर के निदेशक हैं)
SOURCE ; newsclick
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