कुछ अपवादों को छोड़ दें तो 85 फ़ीसद अस्पताल और उपचार केन्द्र धन के अभाव में महज़ ढाँचे के रूप में खड़े हैं।
विगत दो वर्षों से दुनिया महामारी का दंश झेल रही है। भारत एक बड़ी आबादी वाला देश होने के कारण इस कोरोनावायरस संक्रमण की वजह से चौतरफा संकटों से घिरा हुआ है। देश में सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक संकटों ने यहां के नागरिकों को भविष्य के प्रति आशंकित कर रखा है। अभी भी महामारी का खतरा गया नहीं है और स्वस्थ्य की कई चुनौतियां लोगों के जीवन को प्रभावित किए हुए है।
इसी पृष्ठभूमि में महज कुछ ही दिनों बाद देश की वित्तमंत्री वर्ष 2022-23 का आम बजट पेश करने वाली है। यह मौजूदा एनडीए सरकार के दूसरे कार्यकाल का चौथा बजट होगा। आने वाले बजट में देश के विभिन्न तबके और क्षेत्र की अपनी अपनी उम्मीदें हैं लेकिन मौजूदा दौर में स्वास्थ्य का क्षेत्र सबसे अहम है और यह समय का तकाजा भी है कि बजट में स्वास्थ्य के विषय को विशेष क्षेत्र के रूप में चिह्नित कर उस पर गम्भीरता से काम किया जाए।
स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े संगठन और कम्पनियों की मांग है कि स्वास्थ्य का बजट बढ़े और सरकार स्वास्थ्य ढांचे को और मजबूत करे। चर्चा है कि सरकार आगामी बजट में स्वास्थ्य पर आबंटन को 40-50 फीसद तक बढ़ा सकती है। वर्ष 2021-22 की बात करें तो सरकार ने स्वास्थ्य के लिये लगभग 2.38 लाख करोड़ रुपये आबंटित किये थे।
पिछले बजट में ही सरकार ने कोरोनावायरस संक्रमण से बचाने के लिये 14,000 करोड़ रुपये खासकर वैक्सीन निर्माण के लिये आबंटित किये थे। हो सकता है आगामी बजट में इन रकम में वृद्धि हो लेकिन सवाल है कि स्वास्थ्य बजट तो आबंटित हो जाएंगे लेकिन यह रकम खर्च कैसे होती है? यह मूल्यांकन न तो गम्भीरता से होता है और न सरकार इसमें रुचि लेती है।
यदि इन खर्चों को देखें तो ये कुल जीडीपी का मात्र 1.3 फीसद है, जबकि इसे 3 से 5 फीसद होना चाहिए। विगत दो वर्षों से देश में कोरोनावायरस के आतंक के दौरान सबने देखा कि सबसे बुरी हालत मेहनतकश, गरीब लोगों की थी। सरकारी अस्पताल लगभग नकारा थे।
कुछ अपवादों को छोड़ दें तो 85 फीसद अस्पताल और उपचार केन्द्र धन के अभाव में महज ढाँचे के रूप में खड़े हैं। कोरोना की दूसरी लहर में हुई बड़े पैमाने पर मौतों का तो ठीक से आंकड़ा भी उपलब्ध नहीं है। लेकिन यह तो आम लोगों तथा मीडिया को भी पता है कि कोरोना की दूसरी लहर में लाखों लोगों के मौत का आंकड़ा सरकारी रजिस्टर में दर्ज नहीं है।
जन्ममृत्यु निबंधक, श्मशान और कब्रिस्तान के रिकार्ड तथा बीमा के क्लेम आदि के हवाले से भारत में कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा 30-35 लाख का हो सकता है। ऐसे में सवाल यह है कि आगामी बजट में से क्या प्रावधान किए जाएं कि लोगों को बीमारी/महामारी के मौत से बचाया जा सके।
कोरोना काल के अनुभव बताते हैं कि महामारी, बीमारी की अफरातफरी में सबसे ज्यादा दिक्कत बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों को उठानी पड़ती है। आगामी बजट में यह उम्मीद और अपेक्षा है कि सरकार आकस्मिक स्थिति से निबटने के लिये जिला एवं प्रखंड स्तर पर सक्षम अस्पतालों की व्यवस्था करे। आज भी कई प्रदेशों में जिला स्तर के अस्पताल मरघट की तरह दिखते हैं। वहां न तो पर्याप्त चिकित्सक हैं और न ही दवा। व्यवस्था की तो बात ही न करें।
यदि देश के 748 जिले के अस्पताल ठीक होते तो महामारी के दौरान ऐसी अफरातफरी नहीं मचती। महामारी के इस संकटकाल में देश ने बहुत ही बुरे मंजर देखे। महज वीआईपी लोगों के स्वास्थ्य की व्यवस्था के अलावा हर आम व्यक्ति सरकारी अथवा निजी अस्पतालों में भी धक्के खाता देखा गया। बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों के अलावे दूसरे रोगों से ग्रस्त मरीजों की हालत तो और बदतर थी। ऐसे में विशेष रूप से बच्चे, महिलाएं और बुजुर्गों के स्वास्थ्य रक्षा के लिये अस्पतालों में विशेष प्रबन्ध किया जाना चाहिए।
बजट 2022-23 में स्वास्थ्य व चिकित्सा क्षेत्र में क्षमता बढ़ाने की प्राथमिकता पर सरकार को ध्यान देना चाहिये। देश ने देखा कि आजादी के 75 वर्षों बाद भी सरकारी अस्पतालों का ढांचा और संरचना न तो पर्याप्त है और न ही आज की आवश्यकताओं के अनुरूप। अस्पतालों की विभिन्न आकस्मिक हालातों से निबटने के लायक बनाना आज की सबसे बड़ी जरूरत है।
प्रत्येक अस्पताल को मेडिकल इमरजेन्सी के जरूरतों के मुताबिक सक्षम बनाना, ऑक्सीजन प्लांट, सर्जरी की समुचित व पर्याप्त व्यवस्था, आवश्यक व जीवनरक्षक दवाओं की हर समय उपलब्धता, प्रत्येक अस्पताल में समुचित एम्बुलेन्स बायोमेडिकल वेस्ट डिस्पोजल व्यवस्था साफ सफाई आदि को सुनिश्चित करना एवं सुदृढ़ बनाना बेहद जरूरी है। कोरोनाकाल में हालांकि पूरी दुनिया में स्वास्थ्य व्यवस्था की कमियां दिखीं लेकिन हमारे देश में तो स्थिति विस्फोटक और डरावनी थी। बजट 2022 में यदि इन तथ्यों को ध्यान में रखा गया तो शायद कुछ सार्थक हो पाएगा।
भारत में अभी प्रशिक्षित चिकित्सकों की संख्या सम्भवतः, 13लाख होगी जो देश में 15-20 हजार व्यक्ति पर एक ही दर से बैठेगी। लेकिन प्रति दस हजार व्यक्ति पर एक चिकित्सक की उपलब्धता को यदि लक्ष्य माना जाए तो सन 2050 तक 20.7 प्रतिशत लाख चिकित्सक और चाहिए होंगे।
सच्चाई तो यह है कि प्रशिक्षण के बाद लगभग 10-20 फीसद चिकित्सक अपना व्यवसाय छोड़कर किसी और धन्धे में चले जाते हैं। पेशेवर चिकित्सकों की शिक्षा के निजीकरण के बन्द बाजार में व्यावसायिक चिकित्सकों की भरमार है। चिकित्सा सेवा के स्वभाव में परिवर्तन एवं देश में उपभोक्तावाद के हावी होने के बाद अधिकांश चिकित्सक निजी क्षेत्र के अस्पतालों में जाना पसन्द करते हैं मसलन सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था धीरे-धीरे उपेक्षित एवं नकारा होती जा रही है।
विगत कुछ वर्षों में चिकित्सक शिक्षा से सम्बन्धित सरकारी नीतियों में जटिलता की वजह से भी दिक्कतें आ रही हैं। कहा जा रहा है कि देश में 70 हजार ऐसे डाक्टर्स हैं जिन्होंने विदेशों में पढ़ाई की है और वे भारत में अपना रजिस्ट्रेशन चाहते हैं। इसके अलावा देश में फर्जी डॉक्टरों की भी एक बड़ी संख्या है जिसे सरकार पकड़ नहीं पा रही है।
भविष्य के स्वास्थ्य चुनौतियों से लड़ने के लिये चिकित्सा के क्षेत्र में बजट बढ़ाने के साथ-साथ ढांचे में आमूल-चूल परिवर्तन करने की भी जरूरत है। सरकार यदि निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान दे तो स्थिति बेहतर हो सकती है। बढ़े बजट मात्र से स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार नहीं होता।
अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था के लिये अच्छी स्वास्थ्य नीति और उसका सफल क्रियान्यवयन का होना जरूरी है। फौरी तौर पर ध्यान देने योग्य बिन्दु निम्नलिखित हो सकते हैं। सरकारी अस्पतालों की क्षमता को बढ़ाना, डाक्टरों की संख्या को बढ़ाना, टीकाकरण को मुफ्त उपलब्ध कराना, जेनेरिक दवाओं के दुकान प्रखंड स्तर पर खोलना, सरकार द्वारा सभी नागरिकों का स्वास्थ्य बीमा, अस्पतालों को चैरिटेबल संस्था के दायरे में लाया जाए, आदि प्रावधानों पर सरकार देश की स्वास्थ्य व चिकित्सा व्यवस्था को मजबूत कर सकती है।
हमारे देश में आयुष पद्धतियां चिकित्सा के 50 फीसद मामले को सफलतापूर्वक देख सकती है। वैसे तो होमियोपैथी, आयुर्वेद में उच्च अध्ययन के बाद गम्भीर रोगों के इलाज के लिये आयुष चिकित्सक आगे आ रहे हैं और सफलता भी प्राप्त कर रहे हैं। ऐसे में भारत सरकार आगामी बजट में आयुष एवं होमियोपैथी के लिये विशेष बजट का प्रावधान कर आबादी की आधी से ज्यादा आबादी के सहज इलाज का रास्ता आसान कर सकती है। अब तो बीमा क्षेत्र भी होमियोपैथी एवं आयुर्वेदिक उपचार के लिये सुविधाएं देने को तत्पर हैं और कई कम्पनियां तो कवर भी दे रही हैं। कोरोना वायरस संक्रमण के मामले में होमियोपैथी एवं आयुर्वेद की सकारात्मक भूमिका की आम जनता में बड़ी सराहना हुई है। यदि सरकार आगामी बजट में होमियोपैथी एवं आयुर्वेदिक अनुसंधान पर अतिरिक्त बजट आबंटित कर चिकित्सकों एवं वैज्ञानिकों को प्रेरित करे तो स्वास्थ्य और उपचार के क्षेत्र में काफी प्रगति देखी जा सकती है।रोगों महामारियों की चुनौती के दौर में आगामी बजट का स्वास्थ्य पर उदार नजरिया एक आशा का संचार कर सकता है। फिलहाल चिकित्सा के क्षेत्र में सरकार के बजट के सकारात्मक होने की अपेक्षा है।
(लेखक जन स्वास्थ्य वैज्ञानिक एवं राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त होमियोपैथिक चिकित्सक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं। )
SOURCE ; NEWSCLICK
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