अदालत ने महरौली में कुतुब मीनार परिसर में स्थित कुव्वत उल-इस्लाम मस्जिद के अंदर हिंदू और जैन देवताओं के मंदिर के रूप में बहाली की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दी। अदालत ने स्पष्ट किया कि गलतियां अतीत में की गई हो सकती हैं लेकिन इस तरह की गलतियां हमारे वर्तमान और भविष्य की शांति को परेशान करने का आधार नहीं हो सकती हैं।
साकेत अदालत में सिविल जज नेहा शर्मा ने याचिका खारिज करते हुए कहा भारत का सांस्कृतिक रूप से समृद्ध इतिहास है। इस पर कई राजवंशों का शासन रहा है। अदालत ने कहा कि उनकी राय के अनुसार एक बार किसी स्मारक को संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया गया है और सरकार के स्वामित्व में है तो याची इस बात पर जोर नहीं दे सकते कि पूजा स्थल को वास्तव में और सक्रिय रूप से धार्मिक सेवाओं के लिए उपयोग किया जाना चाहिए।
दायर मुकदमे में 27 हिंदू और जैन मंदिरों की बहाली की मांग की गई, जो कुतुब-उद-दीन-ऐबक के आदेश के तहत ध्वस्त, अपवित्र और क्षतिग्रस्त कर दी गई थी। सुनवाई के दौरान याची ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 25 और 26 के तहत पूजा करने का अधिकार मौलिक अधिकार के रूप में दिया गया है जिसे अदालत ने योग्यता से रहित माना।
अदालत ने माना कि संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत निहित मौलिक अधिकार प्रकृति में पूर्ण नहीं हैं। अदालत ने माना कि यह एक स्वीकृत तथ्य है कि उक्त संपत्ति मंदिरों के ऊपर बनी एक मस्जिद है और इसका उपयोग किसी धार्मिक उद्देश्य के लिए नहीं किया जा रहा है, न ही वहां कोई प्रार्थना या नमाज अदा नहीं की जा रही है।
अदालत ने पूजा स्थल अधिनियम 1991 का हवाला देते हुए कहा कि अधिनियम का उद्देश्य इस राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को बनाए रखना है। हमारे देश का एक समृद्ध इतिहास रहा है और इसने चुनौतीपूर्ण समय देखा है। फिर भी इतिहास को समग्र रूप से स्वीकार करना होगा। क्या हमारे इतिहास से अच्छे को बरकरार रखा जा सकता है और बुरे को मिटाया जा सकता है?
उन्होंने 2019 में उच्चतम न्यायालय के अयोध्या फैसले का उल्लेख किया और अपने आदेश में इसके एक हिस्से पर प्रकाश डाला, जिसमें कहा गया है कि हम अपने इतिहास से परिचित हैं और राष्ट्र को इसका सामना करने की आवश्यकता है। स्वतंत्रता एक महत्वपूर्ण क्षण था। अतीत के घावों को भरने के लिए कानून को अपने हाथ में लेने वाले लोगों द्वारा ऐतिहासिक गलतियों का समाधान नहीं किया जा सकता है।
अदालत ने कहा ऐसे प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारकों का उपयोग किसी ऐसे उद्देश्य के लिए नहीं किया जा सकता है जो धार्मिक पूजा स्थल के रूप में इसकी प्रकृति के विपरीत है, लेकिन इसका उपयोग हमेशा किसी अन्य उद्देश्य के लिए किया जा सकता है जो इसके धार्मिक चरित्र से असंगत नहीं है।
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