पारदर्शिता कार्यकर्ता और पूर्व पत्रकार साकेत गोखले ने ट्वीट करके पूर्व भारतीय राजनयिक लक्ष्मी पुरी द्वारा कथित तौर पर स्विट्ज़रलैंड में संपत्ति ख़रीदने का हवाला दिया था और उनके पति एवं केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी का भी संदर्भ दिया गया था. इसे लेकर पुरी ने गोखले के ख़िलाफ़ मानहानि याचिका दायर कर क्षतिपूर्ति के तौर पर पांच करोड़ रुपये की मांग की है.
नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने संयुक्त राष्ट्र की पूर्व सहायक महासचिव लक्ष्मी पुरी के खिलाफ तथ्यों की जांच किए बिना या किसी सरकारी अधिकारी से संपर्क किए बिना ‘अपमानजनक ट्वीट’ करने पर कार्यकर्ता साकेत गोखले से बीते गुरुवार को सवाल जवाब किया.
गोखले ने 13 और 26 जून को अपने ट्वीट में स्विट्जरलैंड में पुरी द्वारा कथित तौर पर संपत्ति खरीदने का हवाला दिया था और उनके पति एवं केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी का भी संदर्भ दिया गया था.
अदालत ने टिप्पणी की कि सम्मान के अधिकार को मौलिक अधिकार के तौर पर स्वीकार किया गया है और गोखले से पूछा कि वह कैसे किसी व्यक्ति को बदनाम कर सकते हैं, खासतौर पर ट्वीट करके जो प्रथमदृष्टया असत्य है. गोखले पारदर्शिता कार्यकर्ता और पूर्व पत्रकार हैं.
उच्च न्यायालय लक्ष्मी मृदेश्वर पुरी की मानहानि याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें उन्होंने साकेत गोखले से क्षतिपूर्ति के तौर पर पांच करोड़ रुपये की मांग की है. उन्होंने अदालत से उन ट्वीट और बयान को हटाने या मिटाने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया है, जो गलत हैं और उनके और उनके परिवार की व्यक्तिगत मानहानि और निंदा करते हैं.
जस्टिस सी. हरि शंकर ने गोखले के अधिवक्ता सरीम नावेद से पूछा, ‘मुझे स्पष्ट करें कि ट्वीट करने से पहले उसकी सत्यता जांचने के लिए वादी से संपर्क किया गया था?’
इसका जवाब अधिवक्ता ने नहीं में दिया. साथ ही कहा कि कानूनी रूप से इसकी जरूरत नहीं है और एक ट्वीट में उन्होंने वित्त मंत्री को भी टैग किया था.
I have to say:
— Saket Gokhale (@SaketGokhale) July 8, 2021
This is VERY important in the context of freedom of the media & freedom of expression overall.
Does a journalist/whistleblower need to approach the authorities before publishing an investigative piece?
Do they have to be complainants first?
(1/4) pic.twitter.com/aBmLpNZzIK
जस्टिस हरिशंकर ने इस मामले में 13 जुलाई तक फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा, ‘यानी आपकी कानूनी समझ के मुताबिक कोई टॉम, डिक और हैरी किसी के बारे में कुछ भी इंटरनेट पर लिखा देगा, चाहे उससे व्यक्ति की प्रतिष्ठा को ही हानि क्यों नहीं हो.’
बहस के दौरान पुरी का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने कहा कि ट्वीट मानहानि करने वाले, शरारतपूर्ण और गलत सूचना पर आधारित थे और गोखले को पुरी से सवाल करने का अधिकार नहीं है.
उन्होंने कहा कि पुरी सार्वजनिक पद पर नहीं हैं, जिसके आधार पर इन जानकारियों को सार्वजनिक मंच पर डाला जाए. वह उनका नाम सार्वजनिक मंच पर उल्लेख कर रहे थे, तो उन्हें इतनी सभ्यता को दिखानी ही चाहिए थी कि पुरी से पहले पूछ लें, लेकिन उन्होंने जान-बूझकर ट्वीट करने से पहले जानकारी नहीं ली.
मनिंदर सिंह ने अदालत से मामले को एक उदाहरण बनाने का अनुरोध किया. सिंह ने यह भी तर्क दिया कि गोखले क्राउडफंडिंग के लिए ट्विटर पर अपने फॉलोवर्स को बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक गोखले की ओर से पेश हुए वकील सरीम नावेद ने अदालत को बताया कि उनकी टिप्पणी केंद्रीय मंत्री के चुनावी हलफनामे पर आधारित थी और तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि एक उम्मीदवार और उनके जीवनसाथी की संपत्ति सार्वजनिक टिप्पणी का विषय है. नावेद ने कहा कि उसने यह मुद्दा इसलिए उठाया क्योंकि उसकी संपत्ति घोषित आय से कहीं अधिक है.
जब गोखले के वकील ने अदालत के एक सवाल के जवाब में कहा कि वह एक नागरिक हैं, तो अदालत ने कहा कि नागरिक होने का मतलब यह नहीं है कि वह किसी और की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकते हैं. अदालत ने कहा, ‘अदालत ने प्रतिष्ठा को मौलिक अधिकार माना है, जो अनुच्छेद 21 का हिस्सा है.’
अदालत के समक्ष वित्तीय विवरण रखते हुए पुरी ने बताया कि साल 2005 में खरीदे जाने वाले अपार्टमेंट की कीमत 1,600,000 स्विस फ्रैंक (13.02 करोड़ रुपये से अधिक) थी, जिसमें से 6,00,000 स्विस फ्रैंक (4.88 करोड़ से अधिक) उनकी बेटी, जो कि एक अंतरराष्ट्रीय निवेश बैंक में वरिष्ठ उपाध्यक्ष हैं, ने उपलब्ध कराई थी. इसके अलावा शेष राशि एक बैंक से उधार ली गई थी, जिसका अभी भुगतान किया जा रहा है.
SOURCE ; THE WIRE
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(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)
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