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महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, गरीबी और विकासात्मक विषय, शहरीकरण, उनकी समस्याएँ और उनके रक्षोपाय।

 

 

KANISHKBIOSCIENCE E -LEARNING PLATFORM - आपको इस मुद्दे से परे सोचने में मदद करता है, लेकिन UPSC प्रीलिम्स और मेन्स परीक्षा के दृष्टिकोण से मुद्दे के लिए प्रासंगिक है। इस 'संकेत' प्रारूप में दिए गए ये लिंकेज आपके दिमाग में संभावित सवालों को उठाने में मदद करते हैं जो प्रत्येक वर्तमान घटना से उत्पन्न हो सकते हैं !


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 केएसएम का उद्देश्य प्राचीन गुरु - शिष्य परम्परा पद्धति में "भारतीय को मजबूत और आत्मनिर्भर बनाना" है। 


UNFPA की जनसंख्या रिपोर्ट


Cuemath CPL

संदर्भ:

हाल ही में, ‘संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष’ (United Nations Population Fund / UNFPA) द्वारा ‘मेरा शरीर मेरा अपना है’ (My Body is My Own) नामक शीर्षक से अपनी प्रमुख ‘विश्व जनसँख्या स्थिति रिपोर्ट’ (State of World Population Report)- 2021 जारी की गई है।

पहली बार संयुक्त राष्ट्र की किसी रिपोर्ट में ‘दैहिक / शारीरिक स्वायत्तता’ (Bodily Autonomy) पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

‘दैहिक स्वायत्तता’ क्या है?

रिपोर्ट में ‘दैहिक या शारीरिक स्वायत्तता’ को, बगैर किसी हिंसा के डर से अथवा आपके निर्णय किसी अन्य के द्वारा किए जाने के बिना, आपकी देह अथवा शरीर के बारे में स्वयं विकल्प चुनने की शक्ति तथा अभिकरण के रूप में परिभाषित किया गया है।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • 57 विकासशील देशों की लगभग आधी महिलाओं को अपने शरीर के संबंध में निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। ये महिलाएं, गर्भनिरोधक का उपयोग करने, स्वास्थ्य-देखभाल की मांग करने, और यहाँ तक अपनी काम—वासना के संबंध में भी खुद निर्णय नहीं ले सकती है।
  • जिन देशों में आँकड़े उपलब्ध है, उनमे केवल 55% महिलाओं को स्वास्थ्य सेवा, गर्भनिरोधक का उपयोग करने और सेक्स के लिए हां या ना कहने का विकल्प चुनने के लिए पूरा अधिकार हासिल है।
  • केवल 75% देशों में गर्भनिरोधक के लिए पूर्ण और समान पहुंच कानूनी रूप से सुनिश्चित की गयी है।
  • दुनिया भर में अधिकांश महिलाएं ‘शारीरिक स्वायत्तता के मौलिक अधिकार’ से वंचित कर दी जाती है, कोविड-19 महामारी के कारण इनके हालात और ख़राब हुए हैं।

रिपोर्ट में भारत संबंधी तथ्य:

  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत के, ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण’ (National Family Health Survey)- 4 अर्थात  NFHS -4 (2015-2016) के अनुसार, वर्तमान में केवल 12% विवाहित महिलाएं (15-49 वर्ष आयु वर्ग) अपनी स्वास्थ्य-देखभाल के बारे में स्वतंत्र रूप से निर्णय लेती हैं।
  • इसी आयुवर्ग की 63% विवाहित महिलाएं, इस संबंध में अपने जीवनसाथी के परामर्श से निर्णय लेती हैं।
  • एक चौथाई महिलाओं (23%) के जीवनसाथी, मुख्य रूप से उनकी स्वास्थ्य-देखभाल के बारे में निर्णय लेते हैं।
  • केवल 8% विवाहित महिलाएं (15-49 वर्ष आयुवर्ग) गर्भनिरोधक के उपयोग पर स्वतंत्र रूप से निर्णय लेती हैं, जबकि 83% महिलाओं द्वारा अपने जीवनसाथी के साथ मिलकर निर्णय लिए जाते हैं।
  • महिलाओं को गर्भनिरोधक के उपयोग के बारे में दी गई जानकारी भी सीमित होती है।
  • गर्भनिरोधक का उपयोग करने वाली केवल 47% महिलाओं को इस विधि के दुष्प्रभावों के बारे में बताया गया, और मात्र 54% महिलाओं को अन्य गर्भ निरोधक उपायों के बारे में जानकारी प्रदान की गई।

रिपोर्ट में प्रयुक्त की गई कार्यप्रणाली:

‘दैहिक स्वायत्तता’ के संदर्भ में महिलाओं की पहुँच, रिपोर्ट के निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर मापी जाती है:

  • उनकी प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य-देखभाल, गर्भनिरोधक उपयोग और यौन संबंधों के बारे में अपने निर्णय लेने की उनकी शक्ति; तथा
  • इन फैसलों को लेने संबंधी महिलाओं के अधिकार में किसी देश के द्वारा कानूनी सहयोग अथवा हस्तक्षेप की सीमा।

‘संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष’ (UNFPA) के बारे में:

UNFPA, ‘संयुक्त राष्ट्र की यौन और प्रजनन स्वास्थ्य संस्था’ (United Nations sexual and reproductive health agency) है।

  • इस संस्था का गठन वर्ष 1969 में किया गया था, इसी वर्ष संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा घोषणा की गई थी कि ‘माता-पिता को स्वतंत्र रूप से और जिम्मेदारी पूर्ण तरीके से अपने बच्चों की संख्या और उनके बीच अंतर को निर्धारित करने का विशेष अधिकार है।”
  • UNFPA का लक्ष्य, एक ऐसी दुनिया का निर्माण करना है, जिसमे प्रत्येक गर्भ को स्वीकार किया जाए, प्रत्येक प्रसव सुरक्षित हो तथा हर युवा की संभाव्यतायें पूरी होती है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. UNFPA के बारे में।
  2. रिपोर्ट
  3. ‘शारीरिक स्वायत्तता’ क्या है?
  4. नवीनतम रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

मेंस लिंक:

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्षों पर टिप्पणी कीजिए।

स्रोत: द हिंदू

 


सामान्य अध्ययन-II


 

विषय: विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति और विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ, कार्य और उत्तरदायित्व।

केंद्र सरकार द्वारा जजों की नियुक्ति-प्रक्रिया तेज करने पर जोर


Milanoo

संदर्भ:

हाल ही में, उच्चतम न्यायालय द्वारा केंद्र सरकार के लिए, उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति संबंधी, छह महीनों से अधिक समय से लंबित, उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम की सिफारिशों पर तीन महीने में फैसला करने का प्रस्ताव दिया गया है।

क्या भारत का संविधान, न्यायाधीशों की नियुक्ति हेतु कोई समय-सीमा निर्दिष्ट करता है?

नहीं।

एक ‘प्रक्रिया ज्ञापन’ (Memorandum of Procedure- MoP) के माध्यम से सरकार और न्यायपालिका को  नियुक्ति प्रक्रिया के संबंध में ‘गाइड’ किया जाता है। इस ‘प्रक्रिया ज्ञापन’ में किसी समय सीमा पर जोर नहीं दिया गया है, केवल अस्पष्ट से यह कहा गया है, कि नियुक्ति प्रक्रिया उचित समय के भीतर पूरी होनी चाहिए।

‘कॉलेजियम प्रणाली’:

‘कॉलेजियम प्रणाली’ (Collegium System), न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण संबंधी एक पद्धति है, जो संसद के किसी अधिनियम अथवा संविधान के किसी प्रावधान द्वारा गठित होने के बजाय उच्चतम न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है।

  • उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम की अध्यक्षता भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) द्वारा की जाती है, और इसमें न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं।
  • उच्च न्यायालय कॉलेजियम के अध्यक्ष संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश होते हैं और इसमें संबंधित अदालत के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं।

संबंधित संवैधानिक प्रावधान:

  1. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 (2) के अंतर्गत प्रावधान किया गया है कि उच्चतम न्यायालय के और राज्यों के उच्च न्यायालयों के ऐसे न्यायाधीशों से परामर्श करने के पश्चात्‌, जिनसे राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए परामर्श करना आवश्यक समझे, राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा उच्चतम न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को नियुक्त करेगा।
  2. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 217 कहता है, कि उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा, भारत के मुख्य न्यायमूर्ति, उस राज्य के राज्यपाल से परामर्श करने के पश्चात्‌ तथा मुख्य न्यायाधीश के अलावा उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में, संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करने के पश्चात्‌ की जाएगी।

 प्रीलिम्स लिंक:

  1. कॉलेजियम प्रणाली’ क्या है?
  2. सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश किस प्रकार नियुक्त किए जाते हैं?
  3. सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति
  4. संबंधित संवैधानिक प्रावधान
  5. शक्तियाँ और कार्य

मेंस लिंक:

न्यायाधीशों की नियुक्ति हेतु कॉलेजियम प्रणाली से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू

 


सामान्य अध्ययन-II


 

विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।

प्रवासी भारतीय नागरिक (OCI)


(Overseas Citizens of India)

संदर्भ:

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि, प्रवासी भारतीय नागरिकों (Overseas Citizens of IndiaOCI) के लिए, हर बार उनके नाम पर नया पासपोर्ट जारी करते समय फिर से नए ओसीआई कार्ड के लिए पंजीकरण कराना आवश्यक नहीं होगा।

पृष्ठभूमि:

वर्तमान में, किसी भी प्रवासी भारतीय नागरिक (OCI) के लिए नया पासपोर्ट जारी करते समय, आवेदक के चेहरे में होने वाले जैविक परिवर्तनों के मद्देनजर, 20 वर्ष की आयु तक, OCI कार्ड को हर बार, तथा 50 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद एक बार फिर से जारी कराना होता है।

नवीनतम परिवर्तनों के अनुसार:

  1. यदि किसी व्यक्ति द्वारा 20 वर्ष की आयु होने से पहले ओसीआई कार्डधारक के रूप में पंजीकरण करा लिया था, उसे 20 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद, नया पासपोर्ट जारी करते समय एक बार फिर से ओसीआई कार्ड जारी कराना होगा, जिससे उसके वयस्क होने के बाद उसके चेहरे की रूपरेखा दर्ज की सकेगी।
  2. यदि कोई व्यक्ति, 20 वर्ष की आयु के बाद ओसीआई कार्डधारक के रूप में पंजीकरण कराता है, तो उसके लिए ओसीआई कार्ड पुन: जारी कराने की कोई आवश्यकता नहीं होगी।

‘प्रवासी भारतीय नागरिक’ (OCI) कार्डधारक कौन होते हैं?

  • भारत सरकार द्वारा अगस्त, 2005 में नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन करते हुए प्रवासी भारतीय नागरिकता (Overseas Citizenship of IndiaOCI) योजना आरंभ की गई थी।
  • भारत सरकार द्वारा 09 जनवरी 2015 को भारतीय मूल के नागरिक (PIO) कार्ड को समाप्त करते हुए इसे ‘प्रवासी भारतीय नागरिक’ (OCI) कार्ड के साथ संयुक्त कर दिया गया।

पात्रता:

भारत सरकार द्वारा निम्नलिखित श्रेणियों के विदेशी नागरिकों को प्रवासी भारतीय नागरिकता कार्ड हेतु आवेदन करने की अनुमति दी गयी है:

  1. जो दूसरे देश का नागरिक है, किन्तु संविधान के लागू होने के समय, 26 जनवरी 1950 या उसके पश्चात् किसी समय भारत का नागरिक थे; या
  2. जो दूसरे देश का नागरिक है, किन्तु 26 जनवरी 1950 को भारत का नागरिक होने के लिए पात्र थे; या
  3. जो दूसरे देश का नागरिक है, किन्तु ऐसे राज्यक्षेत्र से संबद्ध थे, जो 15 अगस्त, 1947 के पश्चात् भारत का भाग बन गया था; या
  4. जो किसी ऐसे नागरिक का पुत्र/पुत्री या पौत्र/पौत्री, दौहित्र/दौहित्री या प्रपौत्र/प्रपौत्री, प्रदौहित्र/प्रदौहित्री है; या
  5. किसी ऐसे व्यक्ति को, जो खंड (क) में वर्णित किसी व्यक्ति का अप्राप्तवय पुत्र/पुत्री है।

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अपवाद:

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  • ‘प्रवासी भारतीय नागरिक’ (OCI) कार्ड के लिए आवेदन करने वाले व्यक्ति के पास किसी अन्य देश का वैध पासपोर्ट होना अनिवार्य है।
  • ऐसे व्यक्ति जिनके पास किसी अन्य देश की नागरिकता नहीं है, वे ‘प्रवासी भारतीय नागरिक’ का दर्जा प्राप्त करने के पात्र नहीं हैं।
  • ऐसे व्यक्ति जिनके माता-पिता या दादा-दादी पाकिस्तान और बांग्लादेश के नागरिक हैं, वे प्रवासी भारतीय नागरिक’ कार्ड हेतु आवेदन करने के पात्र नहीं हैं।

ओसीआई कार्डधारकों के लिए लाभ:

  1. भारत आने के लिए जीवनपर्यंत वीजा।
  2. प्रवास के दौरान विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण अधिकारी (FRRO) या विदेशी पंजीकरण अधिकारी (FRO) के पास पंजीकरण करने की आवश्यकता नहीं होती है।
  3. अनिवासी भारतीयों (NRI) को मिलने वाली आर्थिक, वित्तीय, शैक्षिक, सुविधा उपलब्ध होती है, किंतु कृषि, संपत्ति या बागान खरीदने की छूट नहीं होती है।
  4. भारतीय बच्चों के अंतर-देशीय गोद लेने के संबंध में अनिवासी भारतीयों के समान व्यवहार।
  5. राष्ट्रीय स्मारकों में प्रवेश शुल्क, डॉक्टरों, दंत चिकित्सकों, नर्सों, अधिवक्ताओं, वास्तुकारों, चार्टर्ड एकाउंटेंट और फार्मासिस्ट जैसे व्यवसाय अपनाने पर अनिवासी भारतीयों के समान व्यवहार।
  6. अखिल भारतीय प्री-मेडिकल परीक्षाओं एवं इस तरह की अन्य परीक्षाओं में भाग लेने के लिए अनिवासी भारतीयों समान व्यवहार।
  7. भारतीय घरेलू क्षेत्रों में वायु-यातायात के मामलों में भारतीय नागरिकों के समान व्यवहार।
  8. भारत के राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों में प्रवेश हेतु भारतीयों के लिए समान प्रवेश शुल्क।
  9. प्रवासी भारतीय नागरिक (OCI) बुकलेट का उपयोग सेवाओं का लाभ उठाने के लिए पहचान के रूप में किया जा सकता है। OCI कार्ड को स्थानीय पता और एक शपथपत्र लगाकर आवासीय प्रमाण के रूप में संलग्न किया जा सकता है।

ओसीआई कार्ड धारकों पर प्रतिबंध:

  1. वोट देने का अधिकार नहीं है।
  2. किसी भी सार्वजनिक सेवा / सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करने के पात्र नहीं है।
  3. प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उप-प्रधान, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश और उच्च न्यायालय, संसद के सदस्य या राज्य विधान सभा या परिषद के सदस्य – के पद पर नियुक्त का अधिकार नहीं होता है।
  4. कृषि संपत्ति को नहीं खरीद सकते हैं।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. नागरिक की परिभाषा।
  2. POI बनाम OCI बनाम NRI
  3. नागरिकता प्रदान करने और निरस्त करने की शक्ति?
  4. भारत में दोहरी नागरिकता।
  5. ओसीआई कार्ड धारकों के लिए चुनाव में वोट देने और चुनाव लड़ने का अधिकार।
  6. क्या ओसीआई धारक कृषि भूमि खरीद सकते हैं?
  7. ओसीआई कार्ड किसे जारी नहीं किए जा सकते हैं?

मेंस लिंक:

भारत के प्रवासी नागरिक कौन होते हैं? ओसीआई कार्ड धारकों के लिए क्या लाभ उपलब्ध हैं? चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय।

राष्ट्रीय स्टार्टअप सलाहकार परिषद (NSAC)


(National Startup Advisory Council)

संदर्भ:

हाल ही में, ‘राष्ट्रीय स्टार्टअप सलाहकार परिषद’ (National Startup Advisory Council-NSAC) की पहली बैठक आयोजित की गई थी।

NSAC क्या है?

  • ‘उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग’ (Department for Promotion of Industry and Internal Trade- DPIIT) द्वारा ‘राष्ट्रीय स्टार्टअप सलाहकार परिषद’ का गठन किया गया है।
  • इसका कार्य, सतत आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर पैदा करने हेतु, देश में नवाचार और स्टार्टअप्स को विकसित करने के लिए एक सशक्त परिवेश का निर्माण करने हेतु आवश्यक उपायों पर सलाह देना है।

‘राष्ट्रीय स्टार्टअप सलाहकार परिषद’ (NSAC) के कार्य:

  • नागरिकों और छात्रों में नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देने संबंधी उपायों का सुझाव देना।
  • अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों सहित पूरे देश में अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा देना।
  • उद्भवन (Incubation), अनुसंधान और विकास के माध्यम से रचनात्मक और अभिनव विचारों के लिए सहयोग देना तथा इन्हें कीमती उत्पादों के रूप में परिवर्तित करना।

NSAC की संरचना:

  • ‘राष्ट्रीय स्टार्टअप सलाहकार परिषद’ की अध्यक्षता ‘वाणिज्य और उद्योग मंत्री’ द्वारा की जाएगी।
  • ‘परिषद’ में केंद्र सरकार द्वारा नामित गैर-सरकारी सदस्य भी शामिल किए जाएंगे।
  • इस परिषद में, संबंधित मंत्रालयों / विभागों / संगठनों के सदस्य, पदेन सदस्य के रूप में शामिल होंगे, तथा इन सदस्यों के लिए भारत सरकार में संयुक्त सचिव के पद अथवा उससे ऊपर के पदों पर कार्य का अनुभव होना चाहिए।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. NSAC के बारे में
  2. संरचना
  3. कार्य

स्रोत: पीआईबी

 

विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।

‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ क्या है?

संदर्भ:

हाल ही में, ‘ऑल इंडिया पीपुल्स साइंस नेटवर्क’ (AIPSN) ने कहा है कि ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ का विचार पूरी तरह से गलत है, और इसे त्याग देना चाहिए।

संबंधित प्रकरण:

केंद्र सरकार द्वारा देश से होने वाले निर्यात पर कुछ प्रतिबंध लगाए गए हैं,  जिससे मैत्रीपूर्ण विकासशील देशों को टीकों की मुफ्त आपूर्ति तथा निम्न-आय वाले देशों को वैक्सीन आपूर्ति करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय COVAX कार्यक्रम में महत्वपूर्ण योगदान से अर्जित की गई ‘अच्छी साख’ खोने की संभावना है।

वैक्सीन राष्ट्रवाद क्या है?

  • वैक्सीन राष्ट्रवाद (Vaccine Nationalism) की स्थिति में कोई देश किसी वैक्सीन की खुराक को अन्य देशों को उपलब्ध कराने से पहले अपने देश के नागरिकों या निवासियों के लिए सुरक्षित कर लेता है।
  • इसके लिए सरकार तथा वैक्सीन निर्माता के मध्य खरीद-पूर्व समझौता कर लिया जाता है।

अतीत में इसका उपयोग:

वैक्सीन राष्ट्रवाद नयी अवधारणा नहीं है। वर्ष 2009 में फ़ैली H1N1फ्लू महामारी के आरंभिक चरणों में विश्व के धनी देशों द्वारा H1N1 वैक्सीन निर्माता कंपनियों से खरीद-पूर्व समझौते किये गए थे।

  • उस समय, यह अनुमान लगाया गया था कि, अच्छी परिस्थितियों में, वैश्विक स्तर पर वैक्सीन की अधिकतम दो बिलियन खुराकों का उत्पादन किया जा सकता है।
  • अमेरिका ने समझौता करके अकेले 600,000 खुराक खरीदने का अधिकार प्राप्त कर लिया। इस वैक्सीन के लिए खरीद-पूर्व समझौता करने वाले सभी देश विकसित अर्थव्यवस्थायें थे।

संबंधित चिंताएँ:

  • वैक्सीन राष्ट्रवाद, किसी बीमारी की वैक्सीन हेतु सभी देशों की समान पहुंच के लिए हानिकारक है।
  • यह अल्प संसाधनों तथा मोल-भाव की शक्ति न रखने वाले देशों के लिए अधिक नुकसान पहुंचाता है।
  • यह विश्व के दक्षिणी भागों में आबादी को समय पर महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य-वस्तुओं की पहुंच से वंचित करता है।
  • वैक्सीन राष्ट्रवाद, चरमावस्था में, विकासशील देशों की उच्च-जोखिम आबादी के स्थान पर धनी देशों में सामान्य-जोखिम वाली आबादी को वैक्सीन उपलब्ध करता है।

आगे की राह:

विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के दौरान टीकों के समान वितरण हेतु फ्रेमवर्क तैयार किये जाने की आवश्यकता है। इसके लिए इन संस्थाओं को आने वाली किसी महामारी से पहले वैश्विक स्तर पर समझौता वार्ताओं का समन्वय करना चाहिए।

समानता के लिए, वैक्सीन की खरीदने की क्षमता तथा वैश्विक आबादी की वैक्सीन तक पहुच, दोनों अपरिहार्य होते है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. वैक्सीन राष्ट्रवाद क्या है?
  2. COVID 19 रोग के उपचार में किन दवाओं का उपयोग किया जा रहा है?
  3. SARS- COV 2 का पता लगाने के लिए विभिन्न परीक्षण।
  4. H1N1 क्या है?

मेंस लिंक:

वैक्सीन राष्ट्रवाद क्या है? इससे संबंधित चिंताओं पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध।

भारत द्वारा 156 देशों के लिए ई-वीजा की सुविधा बहाल


संदर्भ:

हाल ही में, केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा 156 देशों से चिकित्सा परिचर्या सहित चिकित्सा कारणों, व्यापार और सम्मेलनों में भाग लेने के उद्देश्य से आने वाले विदेशियों के लिए इलेक्ट्रॉनिक वीजा (ई-वीजा) सुविधा बहाल कर दी गयी है।

पृष्ठभूमि:

वर्ष 2020 में प्रतिबंध लगाए जाने से पहले ई-वीजा सुबिधा 171 देशों के नागरिकों के लिए उपलब्ध थी।

ई-वीजा (e-visa) क्या होता है?

  • ई-वीजा, पांच श्रेणियों में प्रदान किया जाता है – पर्यटन, व्यवसाय, सम्मेलन, चिकित्सा और चिकित्सा-परिचर्या।
  • इस व्यवस्था के तहत, कोई विदेशी नागरिक यात्रा से चार दिन पहले ई-वीजा के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकता है।
  • आवेदक द्वारा दिए गए विवरण के सत्यापित होने के पश्चात, एक ‘इलेक्ट्रॉनिक यात्रा अधिकार-पत्र’ (electronic travel authorization- ETA) उत्पन्न होता है, जिसे देश में आगमन करने पर चेकपोस्ट पर दिखाना होता है।
  • भारत में केवल 28 निर्दिष्ट अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों और पांच प्रमुख बंदरगाहों पर, ई-वीजा के माध्यम से प्रवेश की अनुमति है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ई-वीजा क्या है?
  2. पात्रता
  3. लाभ

मेंस लिंक:

‘ई-वीजा’ योजना पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।

कुलभूषण जाधव प्रकरण


संदर्भ:

इस्लामाबाद उच्च न्यायालय द्वारा पाकिस्तान के विदेश विभाग से ‘अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय’ (International Court of JusticeICJ) के फैसले को लागू करने हेतु ‘कुलभूषण जाधव’ मामले पर सुनवाई करने के संबंध में न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के बारे में भारत की ‘गलतफहमी’ को दूर करने को कहा है।

संबंधित प्रकरण:

  • अप्रैल 2017 में एक 50 वर्षीय सेवानिवृत्त भारतीय नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव को एक पाकिस्तानी सैन्य अदालत ने जासूसी और आतंकवाद के आरोप में मौत की सजा सुनाई थी।
  • भारत ने जाधव के लिए वकील उपलब्ध कराने पर रोक लगाने तथा ‘मौत की सजा’ को चुनौती देने के लिए पाकिस्तान के खिलाफ ‘अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय’ (ICJ) में अपील की।
  • ‘अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय’ ने जुलाई 2019 में इस मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा कि, पाकिस्तान, जाधव की दोष-सिद्धि तथा सुनाई गयी सजा की प्रभावी समीक्षा तथा पुनर्विचार करे तथा बिना देरी किए भारत के लिए जाधव को वकील की सेवा उपलब्ध कराने की अनुमति प्रदान करे।
  • ‘अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय’ ने अपने 2019 के फैसले में पाकिस्तान से सैन्य अदालत द्वारा सेवानिवृत्त अधिकारी को दी गई सजा के खिलाफ अपील के लिए उचित मंच प्रदान करने के लिए भी कहा था।

‘अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय’ द्वारा की गई महत्वपूर्ण टिप्पणियां:

  • पाकिस्तान सेना द्वारा जाधव को हिरासत में लेने के तुरंत बाद उसकी गिरफ्तारी के बारे में भारत को सूचित नहीं करने पर इस्लामाबाद ने ‘वियना कन्वेंशन ऑन कॉन्सुलर रिलेशंस’ (Vienna Convention on Consular Relations) के अनुच्छेद 36 का उल्लंघन किया है।
  • भारत को जाधव से संपर्क करने और हिरासत के दौरान उससे मिलने तथा उसके लिए कानूनी प्रतिनिधित्व की व्यवस्था करने के अधिकार से वंचित किया गया है।

‘अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय’ (ICJ) के बारे में:

  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय’ (International Court of JusticeICJ) की स्थापना वर्ष 1945  में संयुक्त राष्ट्र के एक चार्टर द्वारा की गई थी और इसके द्वारा अप्रैल 1946 में कार्य आरंभ किया गया था।
  • यह संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख न्यायिक अंग है तथा हेग (नीदरलैंड) के पीस पैलेस में स्थित है।
  • यह, संयुक्त युक्त राष्ट्र के छह प्रमुख संस्थानों के विपरीत एकमात्र संस्थान है जो न्यूयॉर्क में स्थित नहीं है।
  • यह राष्ट्रों के बीच कानूनी विवादों का निपटारा करता है और अधिकृत संयुक्त राष्ट्र के अंगों तथा विशेष एजेंसियों द्वारा इसके लिए निर्दिष्ट किये गए कानूनी प्रश्नों पर अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार सलाह देता है।

संरचना:

  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में 15 न्यायाधीश होते हैं जिन्हें संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद द्वारा नौ वर्ष के कार्यकाल हेतु चुना जाता है। ये दोनों संस्थाएं एक ही समय पर, लेकिन अलग-अलग मतदान करती हैं।
  • न्यायाधीश के रूप में निर्वाचित होने के लिये किसी उम्मीदवार को दोनों संस्थाओं में पूर्ण बहुमत प्राप्त होना चाहिये।
  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में निरंतरता सुनिश्चित करने हेतु न्यायालय की कुल संख्या के एक-तिहाई सदस्य, प्रति तीन साल में चुने जाते हैं और ये सदस्य न्यायाधीश के रूप में पुन: निर्वाचित होने के पात्र होते हैं।
  • ‘अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय’ के लिए एक लेखागार (रजिस्ट्री), जोकि उसका स्थायी प्रशासनिक सचिवालय द्वारा सहायता प्रदान की जाती है। अंग्रेज़ी और फ्रेंच इसकी आधिकारिक भाषाएँ हैं।

‘अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय’ के 15 न्यायाधीश निम्नलिखित क्षेत्रों से चुने जाते हैं:

  1. अफ्रीका से तीन
  2. लैटिन अमेरिका और कैरेबियन देशों से दो
  3. एशिया से तीन
  4. पश्चिमी यूरोप और अन्य राज्यों से पाँच
  5. पूर्वी यूरोप से दो

न्यायाधीशों की स्वतंत्रता:

अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के अन्य निकायों के विपरीत अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में सरकार के प्रतिनिधि नहीं होते है। न्यायालय के सदस्य स्वतंत्र न्यायाधीश होते हैं, अपने कर्तव्यों की शपथ लेने से पूर्व, जिनका पहला काम खुली अदालत में यह घोषणा करना होता है, कि वे अपनी शक्तियों का निष्पक्षता और शुद्ध अंतःकरण से उपयोग करेंगे।

अधिकार क्षेत्र और कार्य:

  • ‘अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय’ दोहरे अधिकार क्षेत्र सहित एक ‘विश्व न्यायालय’ के रूप में कार्य करता है अर्थात् देशों के मध्य कानूनी विवादों का निपटारा करना (विवादास्पद मामले), जिनके लिए पक्षकार देशों द्वारा अदालत में लाया जाता है, तथा संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न अंगों और विशेष एजेंसियों द्वारा उसके लिए निर्दिष्ट किये गए कानूनी प्रश्नों पर सलाह प्रदान करना (सलाहकार कार्यवाही)।
  • केवल संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश तथा ‘अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय’ अधिनियम के पक्षकार देश अथवा विशेष शर्तों के तहत ‘न्यायालय’ के अधिकार क्षेत्र को स्वीकार करने वाले देश ही ‘विवादास्पद मामलों’ (Contentious Cases) के निपटान हेतु ‘अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय’ में पक्षकार हो सकते हैं।
  • ‘अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय’ का निर्णय अंतिम और पक्षकार देशों के लिए बाध्यकारी होता है, तथा इसके फैसले के खिलाफ अपील नहीं की जा सकती है (ज्यादा से ज्यादा, इसके फैसले की, मामले से संबंधित किसी नए तथ्य की खोज पर फिर से व्याख्या की जा सकती है)।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ICJ और ICC के बीच अंतर।
  2. इन संगठनों की भौगोलिक अवस्थिति स्थिति और आसपास के देशों का अवलोकन।
  3. यूएस और तालिबान के बीच दोहा समझौता।
  4. रोम संविधि क्या है?

मेंस लिंक:

‘अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय’ (ICJ) पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: द हिंदू

 


सामान्य अध्ययन-III


 

विषय: प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सहायता तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित विषय; जन वितरण प्रणाली- उद्देश्य, कार्य, सीमाएँ, सुधार; बफर स्टॉक तथा खाद्य सुरक्षा संबंधी विषय; प्रौद्योगिकी मिशन; पशु पालन संबंधी अर्थशास्त्र।

संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन 2021


(UN Food Systems Summit 2021)

संदर्भ:

हाल ही में, भारत में ‘संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन’-2021 पर राष्ट्रीय वार्ता का आयोजन किया गया।

‘खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन’ के बारे में:

  • संयुक्त राष्ट्र महासचिव द्वारा सितंबर 2021 में प्रथम संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन आयोजित करने का आह्वान किया गया है।
  • इसका उद्देश्य सतत विकास’ हेतु एजेंडा 2030 की परिकल्पना को साकार करने के लिए विश्व की कृषि-खाद्य प्रणालियों में सकारात्मक बदलाव लाने हेतु कार्रवाई की रणनीति तैयार करना है।
  • शिखर सम्मेलन में राष्ट्रीय स्तर और विश्व स्तर पर खाद्य प्रणालियों को आकार देने वाले तौर-तरीकों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा, ताकि सतत विकास के लक्ष्यों- SDGs की प्रगति को गति प्रदान की जा सके।

‘खाद्य प्रणाली’ का तात्पर्य:

‘खाद्य प्रणाली’ (Food Systems) शब्द का तात्पर्य, खाद्य पदार्थों के उत्पादन, प्रसंस्करण, परिवहन और उपभोग करने में शामिल गतिविधियों के समूहन से होता है।

  • खाद्य प्रणालियाँ. मानव-जीवन के हर पहलू को स्पर्श करती हैं।
  • हमारी खाद्य प्रणालियों का दुरुस्त होना, हमारे शरीर के स्वास्थ्य के साथ-साथ हमारे पर्यावरण, अर्थव्यवस्थाओं और संस्कृतियों के स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डालता है।
  • जब ये सुचारू रूप से कार्य करते हैं, तो खाद्य प्रणालियां हमें परिवारों, समुदायों और राष्ट्रों के रूप में एक साथ लाने में सक्षम होती हैं।

आवश्यकता:

मानवता को कोविड-19 महामारी से उत्पन्न हुए संकट के कारण भोजन और संबंधित प्रणालियों में विभिन्न चुनौतियों का में सामना करना पड़ रहा है, जिससे उत्पादन, वितरण और खपत सहित समूची कृषि-खाद्य प्रणालियों के तहत कृषि-पद्धतियों अथवा विशिष्ट फसल-उत्पादन से अलग हमारी कार्रवाईयों और रणनीतियों को दोबारा तैयार करने की आवश्यकता उत्पन्न हो चुकी है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. SDG बनाम MDG- समानता, अंतर और समय अवधि
  2. इन लक्ष्यों को अपनाना और इनका प्रशासन
  3. मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन बनाम पृथ्वी शिखर सम्मेलन।
  4. ‘खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन’ के बारे में।

मेंस लिंक:

सतत विकास लक्ष्यों के अंतर्गत निर्धारित कियर गए प्रमुख लक्ष्यों की गणना कीजिए।

स्रोत: पीआईबी

 

विषय: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास।

भारत का ‘राष्ट्रीय इंटरनेट एक्सचेंज’ (NIXI)


(National Internet Exchange of India)

संदर्भ:

‘भारत के राष्ट्रीय इंटरनेट एक्सचेंज’ (National Internet Exchange of India- NIXI) द्वारा इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के साथ देश में IPv6 जागरूकता और उसे अपनाने के लिए एक सहायक की भूमिका निभाने की घोषणा की है।

NIXI के बारे में:

भारत का राष्ट्रीय इंटरनेट एक्सचेंज (NIXI) एक गैर-लाभकारी संगठन है।

यह वर्ष 2003 से भारत के नागरिकों को निम्नलिखित गतिविधियों के माध्यम से इंटरनेट के बुनियादी ढांचे को फैलाने के लिए काम कर रहा है:

  1. इंटरनेट एक्सचेंज, जिनके माध्यम से विभिन्न आईएसपी और डेटा सेंटर के बीच इंटरनेट डेटा का आदान-प्रदान किया जाता है।
  2. .IN (डॉट आईएन) रजिस्‍ट्री, आईएन कंट्री कोड डोमेन का प्रबंधन व संचालन और भारत के लिए भारत IDN (आईडीएन) डोमेन।
  3. IRINN (आईआरआईएनएन), इंटरनेट प्रोटोकॉल (IPv4/IPv6) का प्रबंधन और संचालन।

स्रोत: पीआईबी

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमों की समीक्षा हेतु प्राधिकारी का गठन

  • हाल ही में, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा विनियम समीक्षा प्राधिकरण 0 का गठन किया गया है।
  • यह प्राधिकरण, आंतरिक रूप से विनियामक निर्धारण की समीक्षा करने हेतु और साथ ही उनके सरलीकरण और कार्यान्वयन को आसान बनाने के लिए रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमित संस्थाओं और अन्य हितधारकों से सुझाव प्राप्त करेगा।
  • विनियम समीक्षा प्राधिकरण के रूप में डिप्टी गवर्नर एम. राजेश्वर राव को नियुक्त किया गया है। यह प्राधिकरण, 1 मई से आगे एक वर्ष की अवधि के लिए वैध होगा।
  • आरबीआई द्वारा वर्ष 1999 में विनियमों, परिपत्रों, रिपोर्टिंग प्रणालियों की समीक्षा के लिए इसी प्रकार के एक प्राधिकरण की स्थापना की गई थी।

साइबरस्पेस में विश्वास और सुरक्षा हेतु पेरिस कॉल

(Paris Call for Trust and Security in Cyberspace)

माइक्रोसॉफ्ट के अध्यक्ष ब्रैड स्मिथ ने भारत और अमेरिका से ‘साइबरस्पेस में विश्वास और सुरक्षा हेतु पेरिस कॉल’ (Paris Call for Trust and Security in Cyberspace) नामक घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर करने का आग्रह किया है। विश्व के सामने खड़े नए साइबर सुरक्षा खतरों से निपटने के लिए इस ‘घोषणा’ में अब तक 75 देश शामिल हो चुके हैं।

  • ‘साइबरस्पेस में विश्वास और सुरक्षा हेतु पेरिस कॉल’ एक गैर-बाध्यकारी घोषणा (Nonbinding Declaration) है।
  • इसके तहत, देशों, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज संगठनों को साइबरस्पेस में सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक साथ काम करने, गलत सूचनाओं से निपटने, तथा नागरिकों और बुनियादी अवसंरचनाओं को खतरे में डालने वाले नए खतरों का समाधान करने का आह्वान किया गया है।
  • ‘पेरिस कॉल’ घोषणा, यूनेस्को और पेरिस शांति मंच में आयोजित इंटरनेट गवर्नेंस फोरम के दौरान, वर्ष 2018 में, फ्रांसीसी गणतंत्र के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन द्वारा प्रस्तुत की गई थी। 

 

 

सोशल मीडिया बोल्ड है।

 सोशल मीडिया युवा है।

 सोशल मीडिया पर उठे सवाल सोशल मीडिया एक जवाब से संतुष्ट नहीं है।

 सोशल मीडिया में दिखती है ,

बड़ी तस्वीर सोशल मीडिया हर विवरण में रुचि रखता है।

 सोशल मीडिया उत्सुक है।

 सोशल मीडिया स्वतंत्र है। 

 सोशल मीडिया अपूरणीय है। 

लेकिन कभी अप्रासंगिक नहीं। सोशल मीडिया आप हैं।

 (समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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