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केएसएम का उद्देश्य प्राचीन गुरु - शिष्य परम्परा पद्धति में "भारतीय को मजबूत और आत्मनिर्भर बनाना" है।
यूनेस्को द्वारा ‘विश्व धरोहर स्थलों’ की घोषणा
संदर्भ:
संस्कृति मंत्रालय द्वारा सूचित किया गया है कि:
- ‘धोलावीरा: एक हड़प्पाकालीन नगर’ को वर्ष 2019-2020 में ‘विश्व धरोहर स्थल’ में शामिल किए जाने हेतु नामांकन के लिए प्रस्तावित किया गया है।
- ‘शांतिनिकेतन, भारत’ तथा ‘होयसल के मंदिर समूहों’ को वर्ष 2021-22 में ‘विश्व धरोहर स्थल’ में शामिल करने हेतु नामांकन दस्तावेज यूनेस्को के लिए भेजे गए हैं।
वर्तमान में, भारत में 38 विश्व विरासत संपत्तियां हैं। इसके अलावा, भारत में 42 स्थलों को ‘संभावित सूची’ में सूचीबद्ध किया गया हैं जोकि ‘विश्व विरासत स्थल’ में शामिल होने के लिए एक पूर्व शर्त होती है।
‘विश्व विरासत स्थल’ क्या है?
‘विश्व धरोहर स्थल’ ‘विश्व विरासत स्थल’ (World Heritage site), को अंतर्राष्ट्रीय महत्व के तथा विशेष सुरक्षा की आवश्यकता वाले प्राकृतिक अथवा मानव निर्मित क्षेत्रों या संरचनाओं के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
- इन स्थलों को ‘संयुक्त राष्ट्र’ (UN) तथा संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) द्वारा आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त होती है।
- यूनेस्को, विश्व धरोहर के रूप में वर्गीकृत स्थलों को मानवता के लिए महत्वपूर्ण मानता हैं, क्योंकि इन स्थलों का सांस्कृतिक और भौतिक महत्व होता है।
प्रमुख तथ्य:
- विश्व धरोहर स्थलों की सूची, यूनेस्को की ‘विश्व विरासत समिति’ द्वारा प्रशासित ‘अंतर्राष्ट्रीय विश्व धरोहर कार्यक्रम’ द्वारा तैयार की जाती है। इस समिति में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा निर्वाचित यूनेस्को के 21 सदस्य देश होते है।
- प्रत्येक विश्व धरोहर स्थल, जहाँ वह अवस्थित होता है, उस देश के वैधानिक क्षेत्र का भाग रहता है तथा यूनेस्को द्वारा इसके संरक्षण को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के हित में माना जाता है।
- विश्व विरासत स्थल के रूप में चयनित होने के लिए, किसी स्थल को पहले से ही भौगोलिक एवं ऐतिहासिक रूप से विशिष्ट, सांस्कृतिक या भौतिक महत्व वाले स्थल के रूप में अद्वितीय, विशिष्ट स्थल चिह्न अथवा प्रतीक के रूप में वर्गीकृत होना चाहिए।
- किसी स्थल को ‘विश्व विरासत स्थल’ किसके द्वारा घोषित किया जाता है?
- संकटग्रस्त सूची क्या है?
- संभावित सूची क्या है?
- भारत में ‘विश्व विरासत स्थल’ और उनकी अवस्थिति
स्रोत: पीआईबी
सामान्य अध्ययन- II
विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।
उच्चतम न्यायालय द्वारा 50% आरक्षण सीमा पर राज्यों के विचारों की मांग
संदर्भ:
सर्वोच्च न्यायालय ने, ‘1992 के इंदिरा साहनी फैसले पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता’ का परीक्षण करने का निर्णय लिया है।
संबंधित प्रकरण:
वर्ष 1992 में, उच्चतम न्यायालय दवारा अधिकारहीन तथा गरीबों के लिए सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में, ‘असाधारण’ परिस्थितियों को छोड़कर, 50% आरक्षण निर्धारित किया गया था।
हालांकि, बीते सालों में, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे कई राज्यों द्वारा इस सीमा को पार करते हुए 60% से अधिक तक आरक्षण का प्रावधान करने वाले क़ानून पारित किए गए हैं।
- हाल ही में, मराठा आरक्षण क़ानून चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई हेतु गठित एक पांच सदस्यीय पीठ ने आरक्षण प्रदान करने में 50% सीमा का उल्लंघन करने संबंधी सवाल को केवल ‘महाराष्ट्र’ तक सीमित नहीं करने का निर्णय किया है।
- न्यायिक पीठ ने इस मामले के दायरे का विस्तार करते हुए अन्य राज्यों को भी इसमें पक्षकार बनाया है, और उनसे ‘50% आरक्षण सीमा को जारी रखने अथवा इसमें सुधार करने के सवाल पर’ अपना पक्ष स्पष्ट करने के लिए बुलाया है।
50% सीमा का कारण:
भारत में अंतिम बार जातियों की गणना वर्ष 1931 की जनगणना के दौरान की गयी थी, इसके आधार पर, मंडल आयोग द्वारा ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ को चिह्नित किया गया। इस जनगणना के अनुसार, ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ की जनसँख्या देश की कुल आबादी का 52% थी। हालांकि, अदालत ने अपने निर्णय में आरक्षण को उचित ठहराया और कहा कि इसके लिए एक सीमा निर्धारित की जानी चाहिए, किंतु फैसला सुनाते समय जनसंख्या से संबंधित सवाल पर विचार नहीं किया।
तमिलनाडु का मामला:
राज्य की विधानसभा द्वारा ‘तमिलनाडु पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (शैक्षणिक संस्थानों में सीटों और राज्य-सेवाओं में नियुक्ति या पदों का आरक्षण) अधिनियम, 1993 पारित कर तमिलनाडु द्वारा निर्धारित 69% आरक्षण सीमा को बरकरार रखा।
बाद में, इस कानून को 1994 में संसद द्वारा पारित 76 वें संविधान संशोधन के माध्यम से संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल कर दिया गया।
मराठा आरक्षण कानून का अवलोकन:
जून 2019 में, बॉम्बे उच्च न्यायालय ने, गायकवाड़ आयोग की सिफारिशों के आधार पर मराठा आरक्षण को 16% से घटाकर शिक्षा में 12% और रोजगार में 13% कर दिया था।
- महाराष्ट्र द्वारा पारित कानून लागू होने पर, राज्य में ऊर्ध्वाधर आरक्षण 68% तक पहुँच सकता है, इससे पहले इसकी अधिकतम सीमा 52% थी। इस पहलू को भी सवालों के घेरे में लिया गया है।
- चूंकि इंद्रा साहनी फैसले में, केवल असाधारण परिस्थितियों में 50% आरक्षण नियम के उल्लंघन करने की अनुमति दी गयी थी, अतः अदालत इस बात पर विचार करेगी कि, महाराष्ट्र सरकार द्वारा पारित क्या ‘अपवाद’ के अंर्तगत आता है?
मराठा आरक्षण, इंद्रा साहनी मामले से किस प्रकार संबंधित है?
- संविधान में 102 वें संशोधन के तहत राष्ट्रपति को ‘पिछड़े वर्गों को अधिसूचित करने की शक्ति’ प्रदान की गयी है। अदालत को, ‘राज्य के पास इस प्रकार की शक्तियाँ होने के बारे में’ विचार करना होगा।
- इसके अलावा, राष्ट्रपति को उपरोक्त शक्ति संविधान द्वारा प्रदान की गयी है, क्या फिर भी उसके लिए मंडल मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित मानदंडों का पालन करना आवश्यक है।
- इंद्र साहनी मामले में निर्धारित मानदंडों की प्रासंगिकता, संविधान के 103 वें संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाले एक अन्य मामले में भी सवालों के घेरे में है। 2019 में पारित 103 वां संशोधन, अनारक्षित वर्ग में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 10% आरक्षण का प्रावधान करता है।
- 103 वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम के बारे में
- 102 संवैधानिक संशोधन अधिनियम – अवलोकन
- मराठा आरक्षण कानून के बारे में
- भारतीय संविधान की 9 वीं अनुसूची क्या है?
- इंदिरा साहनी निर्णय
हाल ही में, मराठा आरक्षण कानून को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई हेतु गठित पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने आरक्षण प्रदान करने में 50% सीमा का उल्लंघन करने संबंधी सवाल को केवल ‘महाराष्ट्र’ तक सीमित नहीं करने का निर्णय किया है। इस कदम के निहितार्थ पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय।
बैंक बोर्ड ब्यूरो (BBB)
(Banks Board Bureau)
संदर्भ:
बुनियादी ढांचा वित्तपोषण में तेजी लाने हेतु प्रस्तावित 1 लाख करोड़ के विकास वित्तीय संस्थान (Development Financial Institution – DFI) के प्रबंध निदेशकों (MDs) तथा उप प्रबंध निदेशकों (DMDs) को चयन करने का कार्य ‘बैंक बोर्ड ब्यूरो’ (BBB) को सौंपा जा सकता है।
प्रस्तावित विकास वित्तीय संस्थान (DFI) के बारे में:
‘अवसंरचना वित्तपोषण एवं विकास हेतु राष्ट्रीय बैंक’ (National Bank for Financing Infrastructure and Development), बुनियादी ढांचा के वित्तपोषण करने वाली (इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंसर) संस्था है तथा यह महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (National Infrastructure Pipeline– NIP) परियोजना के वित्तपोषण हेतु प्रमुख केंद्र है।
बैंक बोर्ड ब्यूरो (BBB) के बारे में:
फरवरी 2016 में स्थापित ‘बैंक बोर्ड ब्यूरो’ एक स्वायत्त निकाय है। इसकी स्थापना आरबीआई द्वारा नियुक्त नायक समिति की सिफारिशों के आधार पर की गयी थी।
- यह ‘इन्द्रधनुष योजना’ का एक भाग था।
- इसका कार्य सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) तथा सरकारी स्वामित्व वाले वित्तीय संस्थानों के पूर्णकालिक निदेशकों तथा गैर-कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति के लिए सिफारिश करना है।
- प्रधान मंत्री कार्यालय के परामर्श से, वित्त मंत्रालय द्वारा इन नियुक्तियों पर अंतिम निर्णय लिया जाता है।
सरचना:
‘बैंक बोर्ड ब्यूरो’ में एक अध्यक्ष तथा तीन पदेन सदस्य, अर्थात सार्वजनिक उद्यम विभाग के सचिव, वित्तीय सेवा विभाग के सचिव और भारतीय रिज़र्व बैंक के उप-गवर्नर होते हैं।
इनके अतिरिक्त, बोर्ड में पाँच विशेषज्ञ सदस्य भी होते हैं, जिनमें से दो निजी क्षेत्र से चुने जाते हैं।
- बैंक बोर्ड ब्यूरो के बारे में।
- संरचना
- कार्य
- आरबीआई द्वारा नियुक्त ‘नायक समिति’ किससे संबंधित है?
बैंक बोर्ड ब्यूरो की भूमिकाओं और कार्यों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
केयर्न एनर्जी को 1.4 अरब डॉलर के मध्यस्थता निर्णय पर पांच अदालतों की सहमति हासिल
संदर्भ:
पांच देशों (यू.एस., यू.के., नीदरलैंड, कनाडा और फ्रांस) की अदालतों द्वारा, केयर्न एनर्जी के लिए भारत सरकार को 1.4 अरब डॉलर चुकाने संबंधी मध्यस्थता निर्णय को मान्यता प्रदान की गयी है।
पृष्ठभूमि:
केयर्न एनर्जी ने, भारत के खिलाफ अपने 1.4 अरब डॉलर के मध्यस्थता निर्णय के कार्यान्वयन हेतु नौ देशों में अदालतों का रुख किया था।
केयर्न एनर्जी के लिए, देश के राजस्व प्राधिकरण के विरुद्ध पूंजीगत लाभ पर ‘पूर्वव्यापी कर कानून’ (retrospective tax law) संबंधी मामले में जीत हासिल हुई थी।
निहितार्थ:
सरकार द्वारा फर्म को भुगतान नहीं करने की स्थिति में, निर्णय का पंजीकरण, इसके प्रवर्तन की दिशा में पहला कदम है।
जब न्यायालय द्वारा, एक बार, किसी ‘मध्यस्थता निर्णय’ को मान्यता प्रदान कर दी जाती है, तो इसके बाद कंपनी, अपनी राशि की वसूली हेतु उन न्यायालयों में, किसी भी भारतीय सरकारी संपत्ति जैसे कि बैंक खातों, सरकारी स्वामित्व वाली संस्थाओं को भुगतान, हवाई जहाज और उनके क्षेत्राधिकार में खड़े जहाजों को जब्त करने की याचिका दायर कर सकती है।
संबंधित्त प्रकरण:
भारत सरकार द्वारा ब्रिटेन-भारत द्विपक्षीय निवेश समझौते का हवाला देते हुए वर्ष 2012 में लागू पूर्वव्यापी कर कानून (retrospective tax law) के तहत आंतरिक व्यापार पुनर्गठन पर करों (taxes) की मांग की गयी थी, जिसे केयर्न एनर्जी ने चुनौती दी थी।
- वर्ष 2011 में, केयर्न एनर्जी ने केयर्न इंडिया में अपनी अधिकांश हिस्सेदारी वेदांता लिमिटेड को बेच दी थी, इसके बाद भारतीय कंपनी में इसकी हिस्सेदारी लगभग 10 प्रतिशत की बची है।
- वर्ष 2014 में, भारतीय कर विभाग द्वारा कर के रूप में 10,247 करोड़ रुपए ($ 1.4 बिलियन) की मांग की गयी थी।
- ‘मध्यस्थता’ क्या है?
- हालिया संशोधन।
- अन्तर्राष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय के बारे में।
- भारतीय मध्यस्थता परिषद के बारे में।
- 1996 अधिनियम के तहत मध्यस्थों की नियुक्ति।
- स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (PCA) – संरचना, कार्य और सदस्य।
मध्यस्थता एवं सुलह (संशोधन) अधिनियम के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
सामान्य अध्ययन- III
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
वन धन विकास केंद्र पहल
संदर्भ:
अब तक, देश के 22 राज्यों और एक केन्द्र शासित प्रदेशों में 1770 वन धन केंद्रों के लिए मंजूरी दी जा चुकी है।
‘वन धन विकास केंद्र’ पहल के बारे में:
- इस पहल का उद्देश्य, आदिवासी संग्राहकों तथा कारीगरों की लघु वनोत्पादों (MFPs) पर आधारित आजीविका के विकास को बढ़ावा देना है।
- इस पहल के तहत, जमीनी स्तर पर लघु वनोत्पादों के प्राथमिक स्तर मूल्य संवर्धन को बढ़ावा देकर आदिवासी समुदाय को मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया जाता है।
महत्व: इस पहल के माध्यम से, गैर-इमारती लकड़ी के उत्पादन की मूल्य श्रृंखला में आदिवासियों की हिस्सेदारी, वर्तमान में 20% से बढ़कर लगभग 60% होने की उम्मीद है।
कार्यान्वयन:
- यह योजना केन्द्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण विभाग के तौर पर जनजातीय कार्य मंत्रालय और राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण एजेंसी के रूप में ट्राइफेड के माध्यम से लागू की जाएगी।
- योजना के कार्यान्वयन में राज्य स्तर पर लघु वनोत्पादों के लिये राज्य नोडल एजेंसी तथा ज़मीनी स्तर पर ज़िलाधीश महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
- स्थानीय स्तर पर इन केंद्रों का प्रबंधन, एक प्रबंध समिति (स्वयं सहायता समूह-SHG) द्वारा किया जाएगा, इस समिति में वन धन स्वयं सहायता समूह के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
संरचना: योजना के अनुसार, ट्राइफेड द्वारा लघु वनोत्पाद- आधारित बहुउद्देश्यीय वन धन विकास केंद्रों की स्थापना की सुविधा प्रदान की जाएगी। जनजातीय क्षेत्रों में, प्रत्येक दस स्वयं सहायता समूहों के क्लस्टर / समूह में 30 लघु वनोत्पाद संग्राहक आदिवासी शामिल होंगे।
स्रोत: पीआईबी
विषय: सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ एवं उनका प्रबंधन- संगठित अपराध और आतंकवाद के बीच संबंध।
विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (UAPA)
(Unlawful Activities (Prevention) Act)
संदर्भ:
सूरत की एक अदालत ने, दिसंबर 2001 में आयोजित एक बैठक में प्रतिबंधित संगठन ‘स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया’ (SIMI) के सदस्यों के रूप में भाग लेने के आरोप में विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (UAPA) के तहत गिरफ्तार किए गए 122 लोगों को को बरी कर दिया।
उनके बरी होने के बाद, कुछ अभियुक्तों और अल्पसंख्यक समुदाय के कार्यकर्ताओं द्वारा, बिना सबूत “पुलिस द्वारा अवैध रूप से फंसाए जाने” के लिए मुआवजा देने की मांग की जा रही है।
विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम के बारे में:
- 1967 में पारित, विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम [Unlawful Activities (Prevention) Act-UAPA] का उद्देश्य भारत में गैरकानूनी गतिविधि समूहों की प्रभावी रोकथाम करना है।
- यह अधिनियम केंद्र सरकार को पूर्ण शक्ति प्रदान करता है, जिसके द्वारा यदि केंद्र किसी गतिविधि को गैरकानूनी घोषित कर सकता है।
- इसके अंतर्गत अधिकतम दंड के रूप में मृत्युदंड तथा आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
UAPA के तहत, भारतीय और विदेशी दोनों नागरिकों को आरोपित किया जा सकता है।
- यह अधिनियम भारतीय और विदेशी अपराधियों पर सामान रूप से लागू होता है, भले ही अपराध भारत के बाहर विदेशी भूमि पर किया गया हो।
- UAPA के तहत, जांच एजेंसी गिरफ्तारी के बाद अधिकतम 180 दिनों में चार्जशीट दाखिल कर सकती है और अदालत को सूचित करने के बाद इस अवधि को और आगे बढ़ाया जा सकता है।
2019 के संशोधनों के अनुसार:
- यह अधिनियम राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) के महानिदेशक को एजेंसी द्वारा मामले की जांच के दौरान आतंकवाद से होने वाली आय से बनी संपत्ति पाए जाने पर उसे ज़ब्त करने का अधिकार देता है।
- यह अधिनियम राज्य में डीएसपी अथवा एसीपी या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी के अतिरिक्त आतंकवाद के मामलों की जांच करने हेतु NIA के इंस्पेक्टर रैंक या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों को जांच का अधिकार देता है।
- विधिविरूद्ध क्रियाकलाप की परिभाषा।
- अधिनियम के तहत केंद्र की शक्तियां।
- क्या ऐसे मामलों में न्यायिक समीक्षा लागू है?
- 2004 और 2019 में संशोधन द्वारा किये गए परिवर्तन।
- क्या विदेशी नागरिकों को अधिनियम के तहत आरोपित किया जा सकता है?
क्या आप सहमत हैं कि विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) संशोधन अधिनियम मौलिक अधिकारों के लिए हानिकारक साबित हो सकता है? क्या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए स्वतंत्रता का बलिदान करना न्यायसंगत है? चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
सोशल मीडिया बोल्ड है।
सोशल मीडिया युवा है।
सोशल मीडिया पर उठे सवाल सोशल मीडिया एक जवाब से संतुष्ट नहीं है।
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सोशल मीडिया उत्सुक है।
सोशल मीडिया स्वतंत्र है।
सोशल मीडिया अपूरणीय है।
लेकिन कभी अप्रासंगिक नहीं। सोशल मीडिया आप हैं।
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)
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