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भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे।

 


 

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 केएसएम का उद्देश्य प्राचीन गुरु - शिष्य परम्परा पद्धति में "भारतीय को मजबूत और आत्मनिर्भर बनाना" है।

असम के ‘सत्तरा’ (वैष्णव मठ)


Tetrika-school

संदर्भ:

राजनेताओं का, विशेष रूप से चुनावों के दौरान, विभिन्न ‘सत्तरा’ / सत्रा / थान / वैष्णव मठ (Sattras) में आशीर्वाद लेने या शंकरदेव के सद्गुणों की स्तुति करने के लिए जाना एक आम बात है।

‘सत्तरा’ क्या हैं?

  • सत्तरा /सत्रा, 16 वीं शताब्दी के नव-वैष्णव सुधारवादी आंदोलन के भाग के रूप में निर्मित वैष्णव मठ रूपी संस्थान हैं। नव-वैष्णव सुधारवादी आंदोलन, वैष्णव संत-सुधारक श्रीमंत शंकरदेव (1449-1596) द्वारा शुरू किया गया था।
  • इन सत्तरों/ थानों को 16 वीं शताब्दी के दौरान पूरे असम में धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक सुधार केंद्रों के रूप में स्थापित किया गया था।
  • सत्तरों में संगीत (बोरगीत), नृत्य (सत्रिया) और रंगमंच (भौना) के माध्यम से शंकरदेव की अनूठी ‘कला के माध्यम से पूजा’ पद्धति प्रचार किया जाता है।
  • प्रत्येक सत्तरा में, केंद्रक के रूप में एक नामघर (उपासना कक्ष) होता है, और इसका प्रमुख एक प्रभावशाली व्यक्ति होता है, जिसे ‘सत्तराधिकार’ कहा जाता है। सत्तरा में, साधुओं को ‘भक्त’ कहा जाता है, और इन्हें छोटी उम्र में ही दाखिल किया जाता है। ये साधू, शामिल होने वाले सत्तारों की परंपरा के अनुसार ब्रह्मचारी अथवा गैर- ब्रह्मचारी हो सकते हैं।

    ‘शंकरदेव का दर्शन’ क्या है?

  • शंकरदेव ने, ‘एका-शरणा-नाम-धरमा’ नामक भक्ति के एक रूप का प्रचार किया तथा समानता और भाईचारे के आधार पर, जातिगत मतभेदों, रूढ़िवादी ब्राह्मणवादी रिवाजों और बलि प्रथाओं से मुक्त समाज को प्रोत्साहित किया।
  • उनका शिक्षाएं, मूर्ति पूजा के स्थान पर प्रार्थना और जाप (नाम) पर केंद्रित थी। उनका धर्म, देव (भगवान), नाम (प्रार्थना), भक्त (श्रद्धालु) और गुरु (शिक्षक), चार घटकों पर आधारित था।      

 

  1. सत्तरा क्या हैं?
  2. नव-वैष्णव सुधारवादी आंदोलन के बारे में
  3. श्रीमंत शंकरदेव के बारे में
  4. उसकी शिक्षाएँ

मेंस लिंक:

‘सत्तरा’ क्या हैं? उनके महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस   


सामान्य अध्ययन- II


 

विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।

दुर्लभ रोग


(Rare Disease)

संदर्भ:

Gulliver Market

हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दुर्लभ बीमारियों (Rare Disease) से पीड़ित रोगियों को उपचार और चिकित्सा विकल्प प्रदान करने के तरीकों पर समयबद्ध समाधान खोजने हेतु एक विशेष समिति का गठन किया गया है।

समिति से, ‘दुर्लभ बीमारियों से ग्रसित बच्चों की उपचार लागत के लिए क्राउडफंडिंग करने हेतु तत्काल ठोस प्रस्ताव’ देने के लिया गया है।

संबंधित प्रकरण:

उच्च न्यायालय द्वारा, ‘ड्यूशेन पेशीय अपविकास’ (Duchenne Muscular DystrophyDMD) तथा हंटर सिंड्रोम (Hunter’s syndromes) जैसे दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित मरीजों की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश जारी किये गए हैं। याचिका में, इन दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित मरीजों ने, इलाज की अत्यधिक लागत के मद्देनजर निर्बाध मुफ्त इलाज मुहैया कराने के लिए अदालत से सरकार को दिशा-निर्देश जारी करने की माग की है।

  • DMD की दशा में पीड़ित की मांसपेशियां क्रमिक रूप से विकृत तथा कमजोर होती जाती है।
  • हंटर सिंड्रोम, एक वंशानुगत दुर्लभ बीमारी है। यह ज्यादातर लड़कों को प्रभावित करती है और इस बीमारी की दशा में रोगी का शरीर, हड्डियों, त्वचा, शिराओं और अन्य ऊतकों का निर्माण करने वाली एक प्रकार की शर्करा का विखंडन नहीं कर पाता है।

‘दुर्लभ रोग’ क्या हैं?

‘दुर्लभ बीमारी’ को अनाथ बीमारी या ‘ऑर्फ़न डिजीज’ (orphan disease) के रूप में भी जाना जाता है। ये आबादी के छोटे प्रतिशत को प्रभावित करने वाली बीमारियाँ होती है, अर्थात प्रायः कम लोगों में पायी जाती है।

अधिकांश दुर्लभ रोग आनुवंशिक होते हैं। किसी व्यक्ति में, ये रोग, कभी-कभी पूरे जीवन भर मौजूद रहते हैं, भले ही इसके लक्षण तत्काल दिखाई न देते हों।

भारत में प्रायः पाई जाने वाली सबसे आम दुर्लभ बीमारियाँ:

हीमोफिलिया, थैलेसीमिया, सिकल-सेल एनीमिया और बच्चों में प्राथमिक रोगप्रतिरोधक क्षमता की कमी, ऑटो-इम्यून डिजीज, लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर जैसे पॉम्पी डिजीज, हिर्स्चस्प्रुंग डिसीज, गौचर डिजीज, सिस्टिक फाइब्रोसिस, हेमांगीओमास तथा कुछ प्रकार के पेशीय विकृति रोग, भारत में प्रायः पाई जाने वाली सबसे आम दुर्लभ बीमारियों के उदाहरण है।

संबंधित चिंताएँ और चुनौतियाँ:

  1. इन बीमारियों के व्यापक रोग-विज्ञान संबंधी आंकड़ों को इकट्ठा करना कथन होता है, जिससे ये बीमारियाँ स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों के समक्ष महत्वपूर्ण चुनौती खड़ी करती है। इसके परिणामस्वरूप बीमारी की व्यापकता निर्धारित करने, उपचार लागत का अनुमान लगाने और अन्य परेशानियों के साथ-साथ, समय पर और सही निदान करने में बाधा उत्पन्न होती है।
  2. दुर्लभ बीमारियों से संबंधित के कई मामले गंभीर, पुराने और प्राणघातक भी हो सकते हैं। इन बीमारियों से ग्रसित कुछ मामलों में, प्रभावित व्यक्ति, जिनमें अधिकाँशतः बच्चे होते हैं, किसी तरह के विकलांगता का शिकार भी हो सकते हैं।
  3. वर्ष 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुर्लभ बीमारियों से संबधित दर्ज किये गए नए मामलों में 50 प्रतिशत से अधिक बच्चे थे, और ये बीमारियाँ, एक साल से कम आयु के मरीजों में 35 प्रतिशत, एक से पांच साल आयु के मरीजों में 10 प्रतिशत तथा पांच से पंद्रह वर्ष की आयु के मरीजों में 12 प्रतिशत  मौतों के लिए जिम्मेदार थीं।

भारत द्वारा इस दिशा में किये जा रहे प्रयास:

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने 450दुर्लभ बीमारियोंके इलाज हेतु एक राष्ट्रीय नीति जारी की है।

इस नीति का उद्देश्य, दुर्लभ बीमारियों की एक रजिस्ट्री शुरू करना है, जिसे भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा तैयार किया जाएगा।

इस नीति के तहत, दुर्लभ बीमारियों की तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:

  1. एक बार के उपचार की जरूरत वाली बीमारियाँ,
  2. दीर्घकालिक किंतु सस्ते उपचार की आवश्यकता वाली बीमारियाँ तथा
  3. महंगे एवं दीर्घकालिक उपचार की आवश्यकता वाली बीमारियाँ।

पहली श्रेणी के कुछ रोगों, ऑस्टियोपेट्रोसिस (osteopetrosis) तथा न्यून-प्रतिरक्षा विकार (immune deficiency disorders) आदि को शामिल किया गया है।

वित्तीय सहायता: नीति के अनुसार, एक बार के उपचार की जरूरत वाली दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित रोगियों को, राष्ट्रीय आरोग्य निधि योजना के तहत, 15 लाख रुपये की सहायता प्रदान की जाएगी। यह सुविधा केवल प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के लाभार्थियों तक सीमित रहेगी।

राजकीय हस्तक्षेप का औचित्य:

  • प्रत्येक नागरिक को सस्ती, सुलभ और विश्वसनीय स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं प्रदान करना राज्य की जिम्मेदारी है।
  • संविधान के अनुच्छेद 21, 38 और 47 में स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं के महत्व का उल्लेख किया गया है और इस प्रकार, राज्य अनुच्छेदों के गैर न्यायोचित होने का हवाला देकर इस जिम्मेदारी से पलायन नहीं कर सकते है।
  • यद्यपि, दवा कंपनियों को दुर्लभ बीमारियों के इलाज हेतु दवाओं को विकसित करने के लिए प्रोत्साहन दिया जाता है, फिर भी फार्मास्युटिकल कंपनियां अपना आर्थिक हित देखती हैं और ऑर्फ़न ड्रग्स की मांग कम होने के कारण, अपनी मनमर्जी के हिसाब से इन दवाओं की कीमत तय करती हैं। इसलिए इन दवाओं की अत्यधिक कीमतों को प्रतिबंधित करने हेतु सरकार द्वारा विनियमन किया जाना चाहिए।  

 

  1. दुर्लभ बीमारियों संबंधी भारत की नीति
  2. किन रोगों को दुर्लभ रोगों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है?

मेंस लिंक:

‘दुर्लभ रोग’ क्या हैं? ये किस प्रकार फैलते हैं और इनके प्रसार को कैसे रोका जा सकता है?

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।

ताइवान संबंधी अमेरिका के रूख पर चीन की चेतावनी


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संदर्भ:

हाल ही में, चीन द्वारा बिडेन प्रशासन को, पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा ताइवान के लिए समर्थन व्यक्त करने की ‘ख़तरनाक परिपाटी’ को वापस लेने के लिए चेतावनी दी गयी है।

चीन ने ताइवान को भी चेतावनी देते हुए कहा है, कि उसके द्वारा स्वतंत्रता के लिए किए गए किसी भी प्रयास का मतलब ‘युद्ध’ होगा।

संबंधित प्रकरण:

चीन, लोकतांत्रिक ताइवान को अपने एक अलग हो चुके प्रांत के रूप में देखता है, जबकि, ताइवान खुद को संप्रभु राज्य मानता है, जिसका एक संविधान और सेना है, तथा निर्वाचित नेताओं द्वारा शासन किया जाता है।

चीन- ताइवान संबंध: पृष्ठभूमि

चीन, अपनी ‘वन चाइना’ (One China) नीति के जरिए ताइवान पर अपना दावा करता है। सन् 1949 में चीन में दो दशक तक चले गृहयुद्ध के अंत में जब ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ के संस्थापक माओत्से तुंग ने पूरे चीन पर अपना अधिकार जमा लिया तो विरोधी राष्ट्रवादी पार्टी के नेता और समर्थक ताइवान द्वीप पर भाग गए। इसके बाद से ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ ने ताइवान को बीजिंग के अधीन लाने, जरूरत पड़ने पर बल-प्रयोग करने का भी प्रण लिया हुआ है।

  • चीन, ताइवान का शीर्ष व्यापार भागीदार है। वर्ष 2018 के दौरान दोनों देशों के मध्य 226 बिलियन डॉलर के कुल व्यापार हुआ था।
  • हालांकि, ताइवान एक स्वशासित देश है और वास्तविक रूप से स्वतंत्र है, लेकिन इसने कभी भी औपचारिक रूप से चीन से स्वतंत्रता की घोषणा नहीं की है।
  • एक देश, दो प्रणाली” (one country, two systems) सूत्र के तहत, ताइवान, अपने मामलों को खुद संचालित करता है; हांगकांग में इसी प्रकार की समान व्यवस्था का उपयोग किया जाता है।
  • ताइवान, विभिन्न नामों से विश्व व्यापार संगठन, एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग और एशियाई विकास बैंक का सदस्य है।

भारत-ताइवान संबंध

  • यद्यपि भारत-ताइवान के मध्य औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं, फिर भी ताइवान और भारत विभिन्न क्षेत्रों में परस्पर सहयोग कर रहे हैं।
  • भारत ने वर्ष 2010 से चीन की ‘वन चाइना’ नीति का समर्थन करने से इनकार कर दिया है।  

 

  1. ताइवान की अवस्थिति और इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि।
  2. वन चाइना नीति के तहत चीन द्वारा प्रशासित क्षेत्र।
  3. क्या ताइवान का WHO और संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधित्व किया गया है?
  4. दक्षिण चीन सागर में स्थित देश।
  5. कुइंग राजवंश (Qing dynasty)।

मेंस लिंक:

भारत- ताइवान द्विपक्षीय संबंधों पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध।

ब्रह्मपुत्र नदी के अनुप्रवाह पर चीन द्वारा बांध निर्माण की योजना


संदर्भ:

चीन की नई पंचवर्षीय योजना (2021-2025) में, ‘यारलुंग ज़ंगबो’ (Yarlung Zangbo) नदी के निचले अनुप्रवाह क्षेत्र पर पहला बांध बनाने का प्रस्ताव किया गया है। ब्रह्मपुत्र को भारत में प्रवेश करने से पूर्व तिब्बत में ‘यारलुंग ज़ंगबो’ के नाम से जाना जाता है।

पंचवर्षीय योजना की अन्य प्रमुख परियोजनाओं में, तटवर्ती परमाणु ऊर्जा संयंत्रों तथा विद्युत् पारेषण प्रणालियों का निर्माण शामिल किया गया है।

भारत की चिंताएं

  1. चीन की बांध निर्माण अतिसक्रिय गतिविधियाँ, भारत के लिए एक चिंता का विषय है क्योंकि, चीन के साथ भारत का कोई द्विपक्षीय या बहुपक्षीय समझौता नहीं हैं।
  2. चीन का मानना ​​है कि ब्रह्मपुत्र पर बांध बनाने से उसका अरुणाचल प्रदेश पर दावा मजबूत होगा।
  3. भारत का मानना ​​है कि तिब्बती पठार में चीन की परियोजनाएँ भारत में नदी के प्रवाह को कम करने की धमकी है।
  4. बांध, नहरें, सिंचाई प्रणालियाँ, युद्ध के समय अथवा शांति काल में सह-तटवर्ती देश को खिन्नता का सन्देश देने हेतु, जल को एक राजनैतिक हथियार में बदल सकती हैं।
  5. नदी में प्रवाह बहुत अधिक होने पर हाइड्रोलॉजिकल डेटा साझा करने से मना करने पर संकटमय हो जाता है।
  6. चीन, यारलंग जोंगबो (ब्रह्मपुत्र का तिब्बती नाम) की धारा, उत्तर की ओर मोड़ने पर भी विचार कर रहा है।
  7. ब्रह्मपुत्र नदी के प्रवाह में परिवर्तन करने संबंधी विचार पर चीन सार्वजनिक रूप से चर्चा नहीं करता है, क्योंकि इससे भारत के उत्तरपूर्वी मैदानी इलाकों और बांग्लादेश में या तो बाढ़ से, या फिर पानी की कमी से तबाही हो सकती है।

ब्रह्मपुत्र का भारत के लिए महत्व:

ब्रह्मपुत्र नदी, तिब्बत, भारत और बांग्लादेश से होकर 3,000 किमी की दूरी तक प्रवाहित होती है।

  • भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि ब्रह्मपुत्र नदी बेसिन, अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, सिक्किम, नागालैंड और पश्चिम बंगाल के लिए एक महत्वपूर्ण जल स्रोत है।
  • ब्रह्मपुत्र घाटी कई देशी स्थानीय समुदायों के जीवन-निर्वाह में सहायक है।  

 

  1. ब्रह्मपुत्र के प्रवाह मार्ग वाले देश
  2. ब्रह्मपुत्र पर निर्मित बांध
  3. ब्रह्मपुत्र को चीन में क्या कहा जाता है? इसकी सहायक नदियाँ कौन सी हैं?
  4. ब्रह्मपुत्र के प्रवाह मार्ग वाला हिमालयी क्षेत्र

ब्रह्मपुत्र नदी की उपरी धारा पर चीन द्वारा की जाने वाली गतिविधियों से, निचली धारा के तटवर्ती देशों और आसपास की पारिस्थितिकी पर क्या प्रभाव पड़ता है? चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू


सामान्य अध्ययन- III


 

विषय: प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सहायता तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित विषय; जन वितरण प्रणाली- उद्देश्य, कार्य, सीमाएँ, सुधार; बफर स्टॉक तथा खाद्य सुरक्षा संबंधी विषय; प्रौद्योगिकी मिशन; पशु पालन संबंधी अर्थशास्त्र।

कृषिवानिकी के लिए उप-मिशन’ (SMAF) योजना


(Sub-Mission on Agroforestry Scheme)

संदर्भ:

हाल ही में, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्तमान में जारी ‘कृषिवानिकी के लिए उप-मिशन’ योजना (Sub-Mission on Agroforestry (SMAF) Scheme) के तहत रेशम क्षेत्र में कृषिवानिकी शुरू करने के लिए ‘केंद्रीय रेशम बोर्ड’ के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए गए हैं।

महत्व:

इस समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने का उद्देश्य किसानों को सेरीकल्चर आधारित कृषि-वानिकी मॉडल अपनाने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करके मेक इन इंडिया और मेक फॉर द वर्ल्ड विजन में योगदान करना है।

यह संबद्धता, उत्पादकों के लिए तेजी से लाभ प्राप्त करने हेतु कृषि-वानिकी में एक नया नाम जोड़ेगी और साथ ही साथ भारत की प्रसिद्ध रेशम की किस्मों उत्पादन में सहयोग करेगी।

कृषि-वानिकी के लिए उप-मिशन’ (SMAF) योजना के बारे में:

  • राष्ट्रीय कृषि-वानिकी नीति 2014, की अनुशंसाओं के अनुरूप, कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग (DAC & FW) द्वारा वर्ष 2016-17 से ‘कृषि-वानिकी के लिए उप-मिशन’ (Sub-Mission on Agroforestry SMAF) कार्यान्वित किया जा रहा है।
  • यह उप-मिशन, राष्ट्रीय संवहनीय कृषि मिशन (National Mission for Sustainable Agriculture NMSA) के अंतर्गत लागू किया जा रहा है।
  • भारत वर्ष 2014 में ‘राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति’ तैयार करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया था, इस नीति को दिल्ली में आयोजित वर्ल्ड एग्रोफोरेस्ट्री कांग्रेस में लांच किया गया था।
  • वर्तमान में, यह योजना 20 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों में लागू की जा रही है।

मिशन का उद्देश्य:

SMAF का उद्देश्य किसानों को जलवायु-पुनरुत्थान हेतु कृषि-फसलों के साथ बहुउद्देश्यीय पेड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित करना तथा किसानों को आय का एक अतिरिक्त स्रोत उपलब्ध कराना है और इसके साथ ही लकड़ी आधारित और हर्बल उद्योगों के लिए फीडस्टॉक / कच्चे माल की उपलब्धता में वृद्धि करना है।

स्रोत: पीआईबी

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


स्विट्जरलैंड में सार्वजनिक रूप से चेहरा ढंकने पर प्रतिबंध

हाल ही में, स्विट्जरलैंड में, सार्वजनिक रूप से चेहरे को ढंकने पर प्रतिबंध लगाने के संदर्भ में एक जनमत संग्रह आयोजित कराया गया, जिसमे कम अंतर के साथ प्रतिबंध लगाने के पक्ष मतदान किया गया। इसमें मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला बुर्का या नकाब भी शामिल है।

अपवाद: पूजा स्थलों और अन्य धार्मिक स्थलों पर पूरे चेहरे को ढंकने की अनुमति दी गयी है।  इसके अलावा, स्वास्थ्य और सुरक्षा कारणों से तथा ‘कार्निवाल’ जैसे ‘स्थानीय रीति-रिवाजों’ के अवसर चेहरे को ढकने की अनुमति है।

पृष्ठभूमि: स्विट्जरलैंड में, देश की प्रत्यक्ष लोकतंत्र प्रणाली के तहत, नागरिकों को अपने मामलों में सीधे तौर राय देने का अधिकार है। नागरिकों को नियमित रूप से विभिन्न मुद्दों पर राष्ट्रीय या क्षेत्रीय जनमत संग्रह में मतदान करने के लिए आमंत्रित किया जाता है।

इस प्रकार के प्रतिबंध लागू करने वाला पहला यूरोपीय देश: फ्रांस, वर्ष 2011 में सार्वजनिक स्थानों पर बुर्का और नकाब प्रतिबंधित करने वाला यूरोप का पहला देश था।

एमटी स्वर्ण कृष्ण जहाज के सभी महिला-चालक दल ने रचा इतिहास

भारतीय नौवहन निगम (SCI) के जहाज एमटी स्वर्ण कृष्ण के सभी महिला-चालक दल ने इतिहास रचा है, यह विश्व समुद्री इतिहास में पहली बार है, कि किसी जहाज को सभी महिला अधिकारियों की टीम के साथ यात्रा के लिए रवाना किया गया है।

टेकभारत 2021

(Techbharat)

  • यह हेल्थटेक एवं एडुटेक (HealthTech & Edutech) क्षेत्रों के विभिन्न हितधारकों को एक साथ लाने वाली एक ई-कॉन्क्लेव (संगोष्ठी) कार्यक्रम है।
  • यह लघु उद्योग भारती और आईएमएस फाउंडेशन द्वारा आयोजित ई-कॉन्क्लेव का दूसरा संस्करण है।

मैत्री सेतु’ का उद्घाटन

  • ‘मैत्री सेतु’ पुल फेनी नदी पर बनाया गया है। ये नदी त्रिपुरा और बांग्लादेश में भारतीय सीमा के बीच बहती है।
  • इस पुल का निर्माण राष्ट्रीय राजमार्ग और बुनियादी ढांचा विकास निगम लिमिटेड ने 133 करोड़ रुपये की लागत से किया गया है।
  • 9 किलोमीटर लंबा पुल भारत के सबरूम को बांग्लादेश के रामगढ़ से जोड़ता है।   

 

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 सोशल मीडिया अपूरणीय है। 

लेकिन कभी अप्रासंगिक नहीं। सोशल मीडिया आप हैं।

 (समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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