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संतों के आगम गुरु का मृत्यु पूर्व उत्सव पूरा, सहपाठियों की आंखों से छलके आंसू

साधु-साध्वियों को आगम (जैन धर्म के 32 ग्रंथाों) का ज्ञान देने वाले जैन धर्म को आईकॉन माने जाने वाले डॉ. सागरमल जैन ने दो दिन के मृत्यु उत्सव के बाद बुधवार शाम देह त्याग दी। दो दिन पहले से ही उनका मृत्यु पूर्व उत्सव शुरू हो गया था। अपने शरीर से मोह त्याग करने के करीब 50 घंटे बाद वे दुनिया से रुखसत हो गए।

इधर, उनके अंतिम सांस लेने से पहले बुधवार को पूरे दिन शाजापुर, इंदौर सहित राजस्थान, महाराष्ट्र से भी उनके अनुयायी अंतिम दर्शन करने पहुंचे। सुबह से शाम तक सभी धर्मों के लोग उनके नई सड़क स्थित निवास पर पहुंचे और अंतिम दर्शन किए। इस दौरान जैन साध्वी प्रियदर्शनाश्रीजी आदिठाणा 7 ने उन्हें सुबह व शाम के समय धार्मिक पाठ सुनाया।

शाम 6.30 बजे उन्होंने अंतिम सांस लेते हुए अपनी देह त्याग दी। राष्ट्रपति पुरस्कृत डॉ. जैन पूरे देश में जैन धर्म के आईकॉन टीचर के रूप में पहचाने जाने थे। उन्होंने 300 से ज्यादा साधु-साध्वियों को आगम ज्ञान यानी जैन धर्म के ग्रंथों का ज्ञान कराया, जबकि 42 जैन संतों को पीएचडी की उपाधि दिलाई। आज गुरुवार को उनकी पालकी यात्रा निकालकर उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।

संथारा : जैन धर्म में सबसे पुण्य काम है

खुद इच्छा से संथारा लेने का मतलब कि वे अपने शरीर से अपना मोह छोड़ देते हैं। ऐसे में उनकी इच्छा के विरुद्ध उन्हें दवाई से लेकर आहार व पानी तक कुछ भी नहीं दिया जा सकता और इसी अवस्था में ही वे शरीर का त्याग कर देते हैं। जैन धर्म में संथारा लेना सबसे पुण्य माना गया है।

मुख्यमंत्री सिंह के भी गुरु हैं डॉ. जैन

डॉ. जैन ने हमीदिया कॉलेज में रहते हुए मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को भी पढ़ाया है। कुछ साल पहले शाजापुर आगमन पर शिवराजसिंह चौहान ने खुले मंच से यह बात कही थी। बाकायदा उस समय उन्हाेंने डॉ. जैन को सम्मानित भी किया था।

सहपाठी ने कहा- आचरण में ही जैन धर्म रचा बसा था

जैन विद्वान डॉ. सागरमल जैन के बचपन के साथी सेवानिवृत्त लेक्चरर राजनारायण चौधरी को जैसे ही पता चला कि उनके मित्र ने संथारा ले लिया। वे खुद को राेक नहीं पाए। सहसा उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े। खुद को संभालते हुए बोले- मुझे दुख हो रहा है कि मेरे बचपन के साथ दुनिया से रुखसत हो रहे हैं। संथारा लेकर उन्होंने अंतिम समय में भी यह साबित कर दिया कि वे उनके आचरण में ही जैन धर्म रचा बसा था। जैन धर्म के अलावा डॉ. जैन ने बौद्ध व हिंदू धर्म ग्रंथ का अध्ययन भी कराया है।

कर्मयोगी की तरह जीवन जीने वाले व आईकॉन टीचर डॉ. जैन पूरी समता में लीन होकर उत्सवपूर्वक देह त्याग कर गए

जैन धर्म के एनसाइक्लोपीडिया यानी चलते फिरते विश्वकोष या जैन धर्म के आईकॉन टीचर के रूप में विश्वभर में पहचाने जाने वाले डॉ. सागरमल जैन पूरे जीवन कर्मयोगी की तरह रहे। कर्मयोगी की तरह ही उन्होंने अपना पूरा जीवन जिया। अब उसी प्रकार मृत्यु से पहले मृत्यु का उत्सव भी पूरा कर लिया। जैन धर्म में संथारा को आर्ट ऑफ डेथ यानी मरने की कला कहा गया है।

जब उन्हें लगा कि वे शारीरिक रूप से धार्मिक क्रिया करने में असमर्थ हो रहे तो उन्होंने सारे सांसारिक वस्तुओं को त्याग करने का निर्णय और पूरी समता में लीन होकर लेट गए। इस स्थिति में अन्न से लेकर फल व पानी यहां तक कि दवाई का सेवन भी नहीं किया। बावजूद उनके चेहरे पर पीड़ा तक दिखाई नहीं दी। यानी वे पूरी समता में रहते हुए उत्सवपूर्वक देह त्याग धर्म का पालन किया।

- डाॅ. आर.के. जैन, सेवानिवृत्त प्रोफेसर, प्राच्य विद्यापीठ शोध संस्थान शाजापुर में शिक्षण के दौरान डॉ. जैन का हाथ बंटा रहे हैं।

शहर में कॉलेज खुलवाने से शुरू हुआ डॉ. जैन का सफर, अंतिम समय तक वे शिक्षा के लिए ही काम करते रहे

डॉ. जैन को बचपन से ही किताबों से लगाव था। उनकी इसी जिद ने शाजापुर जिले में उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज की शुरुआत हुई। ठीक से सन तो याद नहीं, लेकिन उस समय प्रभागचंद्र शर्मा शाजापुर के विधायक थे। उस समय डॉ. जैन ने शाजापुर में कॉलेज खुलवाने की मांग उठाई। जब विधायक शर्मा ने उन्हें फंड की बात कही तो खुद की आगवानी में उन्होंने शहर से चंदा जुटाया।

आखिरकार शहर में शासकीय कॉलेज की स्वीकृति मिल गई और वर्तमान में शासकीय उमावि क्रमांक 2 है, वहां कॉलेज लगना शुरू हो गया। जैन ने यहां एडमिशन लेकर पढ़ाई की। इसके बाद सीधे इंदौर चले गए। वहां से शासकीय सेवा के बाद जब लौटे तो फिर प्राच्य विद्यापीठ संस्थान खोलकर यहां भी पढ़ाई का अलख लगाने का काम जारी रखा।

(जैसा सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. मोहनसिंह तोनगरिया ने बताया। )



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डॉ. जैन के अंतिम दर्शन करने के लिए उनके निवास पर पूरे दिन ऐसे रिश्तेदार व अनुयायियों का आना-जाना लगा रहा।


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