बमुश्किल से, बड़ी तकलीफों से, बहुत कुछ खो देने के बाद साल 2020 अलविदा हो रहा है। पिछले 365 दिनों में ज्यादातर समय संक्रमण का खौफ ही छाया रहा। न तो शहर के विकास की बातें हो सकीं और न ही किसी को तरक्की की कोई तरकीब सूझी। साल के आखिरी दिन अगर मुड़कर भी देखते हैं तो यादों में शायद ही कोई खुशहाली नजर आए।
वहीं दौड़ती-भागती और खौफजदा करतीं एम्बुलेंस, डरे-सहमे चेहरे, सुनसान सड़कें। बस… यादों को यहीं रोक लेना बेहतर है, क्योंकि गुजरते हुए साल ने यही तो दिखाया है। अब दूसरे नजरिए से देखते हैं। अगर कोविड-19 न आया होता तो भोपाल सड़क का पहला हिस्सा कब का तैयार हो चुका होता। सरस्वती घाट और ग्वारीघाट में पुल खड़े हो चुके होते। लम्हेटा में केबल ब्रिज भी झूल रहा होता। 3 जनवरी से ब्राॅडगेज पर शुरू होने जा रही पहली यात्री ट्रेन के अब तक कई फेरे भी लग चुके होते।
जब कभी भी साल की शुरूआत होती है तो उम्मीदों का होना लाजिमी है, लेकिन साल 2020 ने जिस तरह से मंसूबों पर पानी फेरा वह आसानी से भूलने वाला नहीं है। गुजरते हुए साल ने और भी कई तरह के दर्द दिए। 242 जानें बेवक्त चली गईं। सैकड़ों-हजारों लोग बेरोजगार हुए। और भी कई अनछुए, अनदेखे पहलू होंगे जिन्हें वक्त पर याद करने का जी नहीं करता।
मदन महल टर्मिनल की साैगात मिल नहीं पाई
मदन महल टर्मिनल की साैगात वैसे इस साल में ही मिल जानी चाहिए थी, लेकिन अफसोस की बात है कि प्रोजेक्ट पर महज 50 फीसदी काम ही पूरा हो सका। स्टेशन को टर्मिनल के रूप में विकसित किए जाने के बाद यहाँ से दक्षिण भारत के लिए ट्रेनों का संचालन होने वाला है।
नगर सत्ता और न नेता, अटक गई निकाय चुनाव की प्रक्रिया
चुनावी पंचांग के हिसाब से देखा जाए तो नगरीय निकाय के लिए मतदान इसी वर्ष हो जाने चाहिए थे। हाल-फिलहाल न तो नगर सत्ता और न ही वार्डवार नेता। जाहिर है कि क्षेत्रीय समस्याओं का तेजी के साथ समाधान नहीं मिल सका। कोविड ने चुनावी तारीखें बढ़ा दी।
स्टेट कैंसर हॉस्पिटल बनकर तैयार, अब शुरूआत का इंतजार
साल 2020 में स्टेट कैंसर हॉस्पिटल की शुरूआत निश्चित थी, लेकिन कोविड ने इस अस्पताल की तकदीर बदल दी। आधी अधूरी तैयारियों के साथ कैंसर के इलाज की सुविधा तो मुमकिन हो नहीं सकती लिहाजा, जरूरत को देखते हुए इसे कोविड सेंटर में तब्दील कर दिया गया।
अधूरे सपने
- ब्रॉडगेज 2020 मार्च में तैयार होना था, लेकिन दिसंबर तक यात्री ट्रेन नहीं दौड़ पाई।
- फ्लाई ओवर का कार्य वक्त पर शुरू होता तो आकार ले चुका होता।
- 421 करोड़ से एयरपोर्ट के अपग्रेडेशन के कार्य तो शुरू हुए, लेकिन रफ्तार नहीं मिली।
- 76 करोड़ की लागत से केबल स्टे ब्रिज बनने की दिशा में शुरूआत तक नहीं हो पाई।
- रिछाई में 28 करोड़ की लागत वाला रेल ओवर ब्रिज पूरे साल में पूरा नहीं हो सका।
- डिफेंस क्लस्टर, उर्वरक कारखाना जैसे मुद्दे इस साल भी फाइलों से बाहर नहीं आ सके।
- जबलपुर से मंडला रोड पर 14 किमी का पेच साल भर में भी पूरा नहीं हो पाया।
- पिछले 3 साल से सुनाई दी जाने वाली टाइगर सफारी इस साल भी सिर्फ सुनी जा सकी।
शुरूआती दिनों की सौगात
- इस साल में अगर कुछ याद कर संतोष करना है तो राष्ट्रीय स्तर का नर्मदा महाकुंभ एक बड़ा आयोजन रहा।
- सौगात की बात की जाए तो शास्त्री ब्रिज फ्लाई ओवर की स्वीकृति इकलौती उपलब्धि है।
- सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल की शुरूआत हो सकी। सुविधा और सर्विस के मामले में इसे काफी सराहा भी गया।
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from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3pG4ZX1 December 31, 2020 at 05:21AM https://ift.tt/1PKwoAf
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