पिता मजदूरी करते हैं, उनको टीबी है, दादी की किडनी खराब। मां बीड़ी बनाकर परिवार के गुजर-बसर में मदद करती हैं। आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं कि पिता और दादी का इलाज किसी बड़े अस्पताल में करा सकूं। मन में ठान लिया था कि एक दिन डॉक्टर बनूंगा और दोनों का इलाज करवाऊंगा। यह मार्मिक कहानी है छतरपुर जिले के छाेटे से गांव कुंडलिया में रहने वाले छात्र पन्नालाल अहिरवार की। पन्नालाल ने कड़ी मेहनत की और नीट क्लियर की। गांव के कुछ लाेगाें से 40 हजार रुपए उधार लेकर फीस जमा की। नेताजी सुभाषचंद्र बाेस मेडिकल काॅलेज जबलपुर में उसका एडमिशन हाे गया है। अब वह डॉक्टर बनेगा।
10वीं में था तो रोज 10 किमी साइकिल से स्कूल जाता था
मैं 10वीं में पढ़ता था ताे कुंडलिया से 5 किमी दूर भगवां गांव के हायर सेकंडरी स्कूल पढ़ने के लिए साइकिल से आना-जाना करता था। राेजाना 10 किमी का सफर करना पड़ता था। भाेपाल के सुभाष एक्सीलेंस स्कूल से 12वीं कक्षा पास की है। ठान कर बैठा था डॉक्टर ही बनना है। गांव में 15-15 दिन लाइट नहीं रहती थी, ताे बोतल में मिट्टी का तेल डालकर रोज 10 से 12 घंटे पढ़ाई की। दो महीने पहले ही नीट का रिजल्ट आया है। ऑल इंडिया में मेरी 85819 रैंक आई है। मेरी मेहनत और माता-पिता का आशीर्वाद रहा कि मैं सफल रहा।
बूढ़े पिता की मासूमियत... मेरा बेटा डॉक्टर बनेगा... अब टीबी का इलाज हो सकेगा
पन्नालाल के पिता सटुआ अनपढ़ हैं। उन्होंने बताया कि पता चला है कि बेटा डॉक्टर बनने वाला है। अब टीबी का इलाज हो सकेगा।
कुंडलिया से भाेपाल के सुभाष एक्सीलेंस स्कूल तक का सफर
10वीं का रिजल्ट आया ताे एक टीचर जीवनलाल जैन ने मार्गदर्शन किया और बताया कि आगे पढ़ने के लिए स्काॅलरशिप मिलती है। उन्हाेंने सुपर 100 स्कीम के बारे में भी जानकारी दी। बस से 3-4 बार 70 किमी दूर छतरपुर डीईओ ऑफिस गए, फिर भगवां स्कूल आकर फार्म भरा। जैन सर ने बताया कि भाेपाल एक्सीलेंस स्कूल में सुपर 100 के लिए तुम्हारा चयन हाे गया है। 9 अगस्त 2017 काे पहली बार भाेपाल पहुंचा। यहां दाे साल पढ़ाई की। एक्सीलेंस स्कूल के प्राचार्य और शिक्षकों ने भी बहुत सहयोग किया।
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