दंदरौआधाम में कोरोना महामारी से दुनिया को बचाने के लिए चल रहे सिय-पिय महोत्सव में शनिवार को रामलीला आयोजन में श्रीराम और केवट संवाद का मंचन हुआ। वहीं मंचन के बाद श्रद्घालुओं ने भगवान राम दरबार की आरती करते हुए जयकारे लगाए।
रामलीला मंचन में भगवान श्रीराम को मां कैकयी द्वारा 14 साल का वनवास दिया गया। अयोध्या के राजा दशरथ ने अपने मंत्री सुमित को साथ भेजकर वापस लौटने का कहा। प्रभु श्रीराम गंगा पार करने के लिए केवट को बुलाया और कहा कि हमें गंगा पार करना है।
केवट कहने लगा आप कौन हैं, कहां से आए हैं? भगवान श्रीराम ने अपना परिचय दिया कि हम अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र हैं, हमें वन जाना हैं। केवट ने कहा कि तुम्हारे चरण कमलों में वो जादू है। गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या जो कि शिला के रूप में थी, आपके चरणों की रज पड़ते हीं वह नारी बन गईं।
हमारी तो काठ की नैया है। क्या से क्या हो जाए कुछ कह सकते। भगवान राम ने केवट को समझाया कि मेरे पैरों में कोई जादू नहीं है, तो फिर केवट ने कहा कि हम तुम्हारे मरम को बहुत पहले से हीं जानते हैं। केवट ने श्रीराम लक्ष्मण और सीताजी के चरणों को धोकर चरणामृत के रूप में ग्रहण किया और उसका उद्धार हुआ।
सच्चाई दिन में नहीं रात में पता चलती है
रामथकथा में पंडित रमेश शुक्ल ने कहा कि इस संसार में वही व्यक्ति धर्मरथ पर बैठ पाता है, जो व्यक्ति भक्ति के पथ पर चलता है। धर्म रथ के दो पहिए होते हैं, पहला पहिया शौर्य होता है और धर्मरथ का दूसरा पहिया धैर्य होता है, जो व्यक्ति शौर्य और धैर्य के साथ इन दोनों पहियों को लेकर चलते वही व्यक्ति भक्ति के पथ पर चलने के अधिकारी हैं।
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