प्राइवेट कंपनियां प्लांट डालने के नाम पर किसानों की जमीन अधिग्रहण कर उनके साथ किसी तरह का शोषण करती है। इसका उदाहरण जिले में सामने आया है। खोर में विक्रम सीमेंट फैक्टरी के लिए 21 बीघा जमीन देने वाले बुजुर्ग का फैक्टरी प्रबंधन ने सेवानिवृत्ति के 28 माह पहले 800 किमी दूर भेज दिया। कर्मचारी के पिता मानसिक तनाव से घर में गिर गए। उनकी आवाज चली गई। बेटे को लौटकर आना पड़ा। बुजुर्ग का नीमच के निजी अस्पताल में इलाज चल रहा है। अब थोड़ा बाेलने लगे हैं।
बुजुर्ग हरिसिंह ने बताया कि 1982-83 में खोर स्थित सड़क किनारे की 21 बीघा जमीन विक्रम सीमेंट फैक्टरी के लिए अधिगृहीत की थी। परिवार में चार लोगों के नाम से पांच-पांच बीघा जमीन की रजिस्ट्री करवाकर अनुबंध किया था। बेटे को प्लांट में नौकरी दी। 28 माह सेवानिवृत्ति के बचे हैं तब प्रबंधन ने उसका ट्रांसफर गांव से 800 किमी दूर सिकंदराबाद कर दिया। प्रबंधन द्वारा परिवार को प्रताड़ित किया जा रहा है। एचआर से बात करना चाही तो फोन नो रिप्लाई आ रहा है। एचओडी जेस्मीन भावसार से बात करना चाही तो उन्होंने कुछ भी बोलने से इन्कार कर दिया।
पत्नी व छोटे बेटे की हो चुकी है मौत- हरिसिंह ने बताया चार साल पहले लंबी बीमारी के बाद 2016 में पत्नी का निधन हो गया। इसी वर्ष 31 अगस्त को 40 वर्षीय छोटे बेटे का बुखार आने से निधन हो गया। एक बेटी का विवाह मुंडला फौजी गांव में कराया। मेरी देखरेख करने वाला कोई नहीं बचा। इससे तनाव में हूं। बुजुर्ग के पोते डिग्रेंदसिंह ने 6 दिसंबर को मुख्यमंत्री को मेल पर पत्र भेजकर पिता का ट्रांसफर निरस्त कराने की मांग की थी। इस पर मुख्यमंत्री कार्यालय से 8 दिसंबर को मेल का जवाब दिया। इसमें लिखा कि आपका मेल 8 दिसंबर 2020 को नियमानुसार कार्रवाई के लिए श्रम विभाग को प्रेषित कर दिया है। आगामी कार्रवाई के लिए संबंधित अधिकारी से संपर्क करें।
जून में दबाव बनाकर भेज दिया- बुजुर्ग ने बताया कि बेटे का प्रबंधन ने सिंकदराबाद ट्रांसफर कर दिया। लॉकडाउन के बीच जून में उसे ज्वाइन करने सिकंदराबाद जाना पड़ा। 31 अगस्त को छोटे का निधन होने पर उसे बुलाया। तीन दिन रुकने के बाद वापस चला गया। दीपावली का पहला त्योहार करने आया था। 23 नवंबर को वापस गया। मानसिक तनाव इतना बढ़ गया कि 26 नवंबर की रात में घर में गिरकर बेसुध हो गया। बहू व पोते मुझे अस्पताल ले गए। सिंकदराबाद से बेटे को फोन करके बुलाया। तब से वह यहीं मेरा इलाज करा रहा है। अब यह वापस चला जाएगा तो मैं जी नहीं सकूंगा।
मुआवजा कम देने पर लड़ा था केस
बुजुर्ग हरिसिंह ने बताया कि मूलत: भरभड़िया के निवासी हैं। खोर में सड़क किनारे खेती की 21 बीघा जमीन ली थी। फैक्टरी के कारण इसे अधिग्रहण कर लिया। मुआवजा राशि सरकारी दर से कम मिलने पर हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी। जहां प्रबंधन ने समझौता कर राशि दी। बेटे को आठ साल बाद 1990 में फैक्टरी में सुपरवाइजर की नौकरी दी। तब से वहीं पदस्थ है। अब ट्रेनिंग का नाम देकर उसका सिंकदराबाद ट्रांसफर कर दिया।
विभाग से जानकारी लेकर दे सकूंगा
^कर्मचारी के ट्रांसफर के संबंध में कुछ नहीं कह सकता। इस बारे में संबंधित विभाग के हेड से बात करके जानकारी दे सकूंगा।
राजेंद्र शर्मा, पीआरओ, विक्रम सीमेंट फैक्टरी, खोर
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