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मिसरोद फेज-3 फिर लॉन्च होगी, 463 एकड़ में से 35% पर तो पहले ही हो गया डेवलपमेंट

बीडीए ने मिसरोद और सलैया के साथ आसपास के कुछ गांवों की 187.836 हेक्टेयर यानी 463 एकड़ जमीन पर मिसरोद फेज-3 के नाम से डेवलपमेंट स्कीम लॉन्च करने की मंशा जताई है। दस साल पहले बनी इस स्कीम को उस समय राज्य शासन ने अनुमति नहीं दी थी। इतने वर्षों में इस जमीन के लगभग 35 प्रतिशत हिस्से पर टीएंडसीपी कम से कम छह बड़ी काॅलोनियों के डेवलपमेंट की परमिशन जारी कर चुका है।

इसके अलावा बीडीए ने लागत कम दिखाने के लिए इतने बड़े एरिया में डेवलपमेंट के लिए केवल 235 करोड़ का एस्टीमेट बनाया है, जबकि यह कम से कम 750 करोड़ रुपए होना चाहिए। ऐसे में इस स्कीम की सफलता पर संदेह होना स्वाभाविक है। बीडीए अपनी मिसरोद-फेज-1 और फेज-2 स्कीम में भी प्लॉट नहीं बेच पा रहा है।

बीडीए ने बरसों से बंद पड़ी 12 योजनाओं को फिर से शुरू करने का एक प्रस्ताव राज्य शासन को भेजा है। उसमें यह मिसरोद फेज-3 भी शामिल है। खस्ता माली हालत के बावजूद बीडीए जिस तरह बड़ी-बड़ी योजनाओं को शुरू करने की मंशा जाहिर कर रहा है उससे यह आशंका जताई जा रही है कि इन स्कीम के माध्यम से बीडीए के अधिकारी जमीन का खेल करने की तैयारी कर रहे हैं। स्कीम में जमीन को शामिल करने और फिर उसे छोड़ने के लिए अनापत्ति जारी करने में बीडीए के अफसरों पर पहले भी आरोप लगते रहे हैं। 235 करोड़ रुपए का एस्टीमेट बनाया है, लेकिन 750 करोड़ रुपए होंगे खर्च

160 एकड़ पर कॉलोनियां
जिस जमीन पर बीडीए मिसरोद फेज-3 स्कीम लाॅन्च कर रहा है उसमें लगभग 160 एकड़ जमीन पर या तो काॅलोनियां विकसित हो चुकी है या उनके विकास की अनुमति जारी हो चुकी है। लगभग 53 एकड़ जमीन सरकारी है। इस जमीन में से यदि गोचर, सड़क और नाला आदि को हटा भी दिया जाए तब भी कुछ सरकारी विभागों को भी यहां जमीन आवंटित की गई है। कुल मिलाकर कम से कम 185 एकड़ जमीन बीडीए को छोड़ना पड़ सकती है।

ऐसे में एक बड़ा सवाल है कि शेष भूमि पर बीडीए आधा-अधूरा डेवलपमेंट क्या उपयोग रहेगा? खास बात यह है कि नए कानून को आधार बनाकर बीडीए ने पानी की मुख्य पाइप लाइन, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और बिजली सब स्टेशन जैसे बड़े खर्चों वाले डेवलपमेंट को अपनी स्कीम से हटा दिया है। तर्क दिया जा रहा है कि बीडीए बड़े प्लॉट डेवलप करेगा। इन्हें खरीदने वाला व्यक्ति वहां यह सब डेवलपमेंट करेगा।

बीडीए की माली हालत की स्थिति यह है कि हर महीने 18 से 20 तारीख को तनख्वाह बंट पा रही है। यानी कर्मचारियों को वेतन बांटने के लिए लगभग दो करोड़ रुपए की व्यवस्था करना बीडीए को भारी पड़ रहा है।

अनुमति मिलने पर अधिग्रहण के लिए दावे-आपत्ति बुलाए जाएंगे
मिसरोद फेज-3 का यह प्रारंभिक प्रकाशन है। शासन की अनुमति मिलने पर अधिग्रहण के लिए दावे-आपत्ति बुलाए जाएंगे। उस आधार पर अंतिम रूप से योजना का आकार तय होगा। नए कानून के हिसाब से ही लागत तय की गई है। अंतिम निर्णय शासन को ही करना है। - बुद्धेश वैद्य, सीईओ, बीडीए



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बीडीए को... 185 एकड़ जमीन छोड़ना पड़ सकती है


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