मां के नाम नीलम और लीलम होने के कारण शुक्रवार को जिला अस्पताल में एसएनसीयू वार्ड स्टाफ की लापरवाही से बेटियां बदल गईं। दिनभर अपने स्तर पर खोजबीन करने के बाद जब अस्पताल प्रबंधन बालिकाओं को खोजने में नाकाम रहा तो फिर मामला पुलिस में देना पड़ा। शनिवार को कोतवाली पुलिस ने खोजबीन शुरू की और शाम को बिछड़ी हुई बालिका को अपने असली माता-पिता से मिला दिया। इधर, 24 घंटे से अपनी बेटी बिछड़ने के गम में मां ने एक निवाला तक नहीं
खाया। बालिका के मिलते ही मां ने पहली बार उसको गोद में उठाकर दुलार किया।
शुक्रवार को जिला अस्पताल में बेटियों की अदला बदली हो गई थी। सुबह से कोतवाली टीआई विवेक शर्मा ने अपनी बेटी समझकर दूसरी बेटी को ले जाने वाले माता-पिता की उनके गांव और रिश्तेदारों में खोजबीन शुरू कराई। इसके बाद एक रिश्तेदार से दूसरे रिश्तेदार फिर तीसरे से संपर्क का सिलसिला पुलिस का दिनभर चलता रहा। पुलिस को ईसागढ़ के डेंगा मोहचार में लीलम आदिवासी परिजनों के साथ मिल गई। पुलिस ने पहुंचकर परिवार को बताया कि उनकी बेटियां बदल गईं हैं। इसके बाद पुलिस के वाहन से जिला अस्पताल लाया गया जहां पहचान के बाद नीलम पत्नी विक्रम रजक को उनकी बेटी 24 घंटे बाद मिल सकी।
24 घंटे बाद भी अहसास नहीं हुआ कि ये उनकी बेटी नहीं: लीलम आदिवासी की तबीयत खराब होने पर जब एसएनसीयू वार्ड स्टाफ ने दूसरी बालिका को दे दिया तो लेकर गए परिजन भी समझ नहीं पाए कि ये उनकी बेटी है। यहां तक 24 घंटे दूसरी मां की बेटी उनके साथ रही लेकिन उनको इसका अहसास नहीं हुआ। जब पुलिस ने उनको बेटी बदलने की जानकारी दी तो वे तत्काल आने के लिए तैयार हो गए।
ऐसे हुई थी एसएनसीयू वार्ड में गड़बड़ी
गुरुवार को एसएनसीयू वार्ड में लीलम पत्नी बाईसाहब आदिवासी का प्रसव हुआ था। उसकी बेटी का वजन 2.5 किलोग्राम से कम होने पर बेटी देखरेख के लिए एसएनसीयू वार्ड में भर्ती कराया गया। वहीं शुक्रवार की सुबह नीलम पत्नी विक्रम रजक के भी पुत्री हुई जिसका वजन तो 2.5 किलो से अधिक था। लेकिन डॉक्टरों की सलाह पर उसको भी एसएनसीयू वार्ड में भर्ती कराया गया। लीलम आदिवासी को फिट्स आने पर डॉक्टरों ने भोपाल रेफर किया तो परिजनों एसएनसीयू वार्ड में बालिका लेने पहुंचे। जहां मां का नाम लीलम बताया तो जिस बालिका के पैर में नीलम का टैग डला था उसको उठाकर बगैर जांच पड़ताल के परिजनों को सौंप दिया गया। जबकि नियमानुसार वार्ड में भर्ती बच्चें की मां के लिए बच्चा सौपा जाता है। प्रशासन की टीम ने पटवारियों को सक्रिय कर दिया।
अस्पताल की लापरवाही सीसीटीवी कैमरे बंद
जिला अस्पताल की व्यवस्थाएं बुरी तरह से लड़खड़ा रही हैं। यहां तक सीसीटीवी कैमरे तक बंद मिले। अगर कैमरा चालू होते तो परिजन की फोटो को एक दिन पहले वायरल कर देते तो इतनी परेशानी नहीं आती।
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