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पटाखों की दुकानें लगाने प्रशासन ने चिह्नित नहीं की जगह, दुकानदारों ने घर पर कर लिया स्टॉक

इस बार की दीपावली आतिशबाजी के बगैर फीकी रह सकती है। जी हां जिला प्रशासन ने अभी तक आतिशबाजी बेचने वाले दुकानदारों को दुकानें आवंटित करना तो दूर अभी तक आतिशबाजी बेचने के लिए स्थान तक चिन्हित नहीं किया है। पूर्व में जहां आतिशबाजी की दुकानें लगती थीं वहां लगने वाली सब्जी मंडी को भी अभी तक पुरानी जगह शिफ्ट नहीं किया है।

कोरोना महामारी के कारण पहले से ही सभी त्योहार एक-एक कर भेंट चढ़ चुके हैं। जो शेष बचे हैं वे प्रशासनिक उदासीनता के कारण भेंट चढ़ते जा रहे हैं। अगर यही हाल रहा तो दीपावली जैसे देश के सबसे बड़े पर्व पर छोटे-छोटे बच्चे फूलझडिय़ों के लिए भी तरस सकते हैं। यही नहीं जो दुकानदार अपने घर या फिर दूसरी जगह दुकानों पर आतिशबाजी बेचेंगे वहां लोगों के तीन से चार गुनी महंगी आतिशबाजी खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।

बता दें कि 90 प्रतिशत आतिशबाजी के पैकटाें पर देवी देवताओं की तस्वीरें छपी होती हैं। यही आतिशबाजी लोग खरीदकर अपने घर पर जलाते हैं। इसलिए इस बार मप्र सरकार ने देवी देवताओं वाली आतिशबाजी बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है। लेकिन जब यह आदेश शासन ने जारी किया तब तक व्यापारी आतिशबाजी खरीदकर स्टॉक कर चुके थे। इसलिए इन व्यापारियों को अब आतिशबाजी में नुकसान उठाना पड़ सकता है। दूसरी तरफ आतिशबाजी दुकानें लगाने के लिए जिला प्रशासन द्वारा अस्थाई लाइसेंस दिए जाते हैं।

लाइसेंस के लिए आवेदन आमंत्रित किए जाते हैं। इसके बाद लाला के ताल पर पहले आओ, पहले पाओ की तर्ज पर दुकानें आवंटित की जाती थीं। दीपावली आने में अब सिर्फ चार दिन शेष हैं लेकिन इस बार जिला प्रशासन ने अब तक लाइसेंस के लिए आवेदन ही आमंत्रित नहीं किए हैं और न ही दुकानें आवंटित करने के लिए लाला के ताल के पास लगने वाली मंडी वाली जगह को खाली कराया गया है। इसलिए इस बार आतिशबाजी की दुकानें लगने पर संशय है। दुकानदार बाजार में भीड़भाड़ वाली जगहों पर आतिशबाजी की दुकानें लगा सकते हैं। जिससे हादसे का भी आशंका है।

आतिशबाजी की दुकानें न लगने से होगा करोड़ों का नुकसान
देश का दीपावली पर्व ही ऐसा पर्व है जिस पर आतिशबाजी सबसे ज्यादा चलाई जाती है। लोग दीपावली के त्योहार पर एक हजार से एक लाख रुपए तक की आतिशबाजी खरीदकर ले जाते हैं और पूजन के बाद जलाते हैं। इस बार दुकानें न लगने से बाजार में आतिशबाजी का टोटा होगा। साथ ही जो दुकानदार पहले से ही आतिशबाजी का स्टॉक कर चुके हैं उन्हें करोड़ों का घाटा झेलना पड़ेगा। जिसके चलते व्यापारी और दुकानदार खासे परेशान हैं। व्यापारियों और छोटे दुकानदारों की रकम भी आतिशबाजी खरीदने में फंस चुकी है और दुकानें लगना निश्चित नहीं है।

अभी तक जगह उपलब्ध नहीं कराई
^हम हर साल लाला के ताल पर दीपावली पर आतिशबाजी बेचते थे। इस बार भी 10 लाख रुपए कीमत की आतिशबाजी लेकर आए हैं। लेकिन अभी तक प्रशासन ने लाइसेंस ही जारी नहीं किए हैं और न ही यह निश्चित है कि दुकानें लगना भी हैं या नहीं। कोई जगह भी हमें उपलब्ध नहीं कराई गई है। अगर दुकानें नहीं लगीं तो हमें बहुत नुकसान होगा। दीपावली पर दिवाला निकल जाएगा।
राजीव रायकवार, आतिशबाज

सब्जी मंडी नहीं की गई शिफ्ट
कोरोना महामारी के कारण पिछले आठ महीने से सब्जी मंडी हाथी खाना से हटाकर लाला के ताल पर लग रही है। सर्दी का मौसम प्रारंभ होने से व्यापारियों को यहां सुबह चार बजे से दुकानें लगाने में परेशानी होने लगी है। व्यापारी ठिठुरते हुए सब्जी बेचते देखे जा रहे हैं। व्यापारियों ने आतिशबाजी की दुकानें लगने से पहले सब्जी मंडी शिफ्ट करने की उम्मीद प्रशासन से की थी लेकिन जिला प्रशासन अभी मंडी को शिफ्ट करने के मूड में नहीं है।

खास बात यह है कि कोरोना महामारी कम होने से अब सब्जी के थोक और फुटकर व्यापारी भी मंडी को पुरानी जगह शिफ्ट करने के लिए तैयार बैठे हैं। लेकिन प्रशासनिक अफसरों की मंशा मंडी के शिफ्ट करने की नहीं दिख रही है।



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The administration did not identify the place for setting firecracker shops, shopkeepers took stock at home


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