(विश्वनाथ सिंह) नवरात्रि के लिए माताजी की मूर्तियां बनवाने के लिए कोलकाता से विशेष तौर पर पांच कारीगर शहर के एक मूर्तिकार द्वारा बुलवाए गए हैं। इसमें खास बात यह रही कि कोरोना संक्रमण काल में बस और ट्रेनें नहीं चल रही थीं तो मजबूरन बंगाल के कारीगरों को फ्लाइट से इंदौर बुलवाया और करीब 250 प्रतिमाएं तैयार की गई हैं। अब ये सभी कारीगर 22 अक्टूबर को फ्लाइट से ही वापस कोलकाता के लिए रवाना होंगे।
बंगाली चौराहा स्थित एक मूर्तिकार अतुल पाल ने हर साल की तरह इस साल भी फरवरी में नवरात्रि में खासतौर पर बंगाली समाज के लिए मूर्तियां तैयार करने के लिए आॅर्डर लिए। मार्च में कोरोना संक्रमण के कारण लॉकडाउन लग गया। इसके कारण देशभर में बस, ट्रेन सभी बंद हो गए। इस पर अतुल ने कोलकाता में कारीगरों से फोन पर संपर्क किया और टिकट बुक करवाकर केवल पांच कारीगरों को फ्लाइट से इंदौर बुलवाया। इसके बाद प्रतिमाएं बनाने का काम शुरू हुआ। ये प्रतिमाएं छठ के दिन शहर के बंगाली परिवारों में विराजित की जाएंगी। अतुल ने बताया वे खुद कभी प्लेन में नहीं बैठे, लेकिन मूर्तियां तैयार करवाने के लिए कारीगरों को फ्लाइट से बुलाना पड़ा।
इन स्वरूपों में तैयार हुईं मूर्तियां, 3 से 10 फीट तक है मूर्तियों की ऊंचाई
बंगाली कारीगर सोमनाथ पाल, देवनाथ पाल, महादेव पाल, संदीप पाल, सुजीत पाल ने 3 से 10 फीट तक की कई मूर्तियां तैयार की हैं। इसमें बिजासन, देवास वाली चामुंडा माता, सप्तशृंगी माता, काल भैरवी के स्वरूप शामिल हैं।
गंगा की मिट्टी, कानपुर का बांस व बैतूल से बुलवाई घास से हुई तैयार हुईं मूर्तियां
मूर्तिकार अतुल ने बताया कि प्रतिमा को तैयार किए जाने को लेकर देशभर के अलग-अलग शहराें से सजावट का सामान बुलाया जा रहा है। इसमें जहां कारीगर कोलकाता से आए हैं तो मिट्टी गंगा नदी की बुलवाई है। बांस कानपुर से और कुशा/घास बैतूल से मंगवाई गई है।
साढ़े आठ हजार रुपए है लौटने का टिकट, कल रवाना होंगे
नवरात्रि में बंगाली समाज के प्रमुख पर्व अष्टमी के बाद 22 अक्टूबर को सभी पांच कारीगरों के लाैटने का टिकट किया गया है। हालांकि यह टिकट काफी महंगा साढ़े आठ हजार रुपए प्रति व्यक्ति किया गया है।
हर साल 25 कारीगर आकर तैयार करते थे 1200 से ज्यादा मूर्तियां
अतुल ने बताया कि पिछले साल तक कोलकाता से ही नवरात्रि पर्व के छह महीने पहले ही कारीगर आ जाते थे। हर बार 25 कारीगरों को बुलाया जाता था, जो कि 1200 से ज्यादा मूर्तियां तैयार करते थे।
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