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चाल में रहने वालों के नाम सूरत में बनीं दर्जनों फर्जी हीरा कंपनियां, करोड़ों विदेश भेजकर लापता

इंदौर में चाल में रहने वाले युवकों के नाम सूरत में फर्जी हीरा कंपनियां बनाकर हजारों करोड़ के कालेधन ठिकाने लगाने का नया मामला सामने आया है। इनमें से कई कंपनियां तो सूरत के एक खंडहर नुमा मकान के पते पर चल रही हैं।

गरीब बस्ती में रहने वाले इन युवकों को खुद के 100-200 करोड़ वाली हीरा कंपनियों के डायरेक्टर होने का पता तब चला, जब उन्हें आयकर विभाग से करोड़ों के वसूली नोटिस मिलने लगे। सूत्रों के मुताबिक इंदौर में अब तक ऐसे 30 से ज्यादा नोटिस जारी हो चुके हैं।अंदेशा है कि काले धन को ठिकाने लगाने वाले गिरोह ने अकेले इंदौरी युवकों के पहचान पत्र का दुरुपयोग कर करीब 5 हजार करोड़ का काला धन सिंगापुर और दूसरे देशों में ठिकाने लगाया है।

इंदौर में सोमनाथ की जूनी चाल में रहने वाले अंकित कुशवाहा और आशीष वर्मा इन दिनों आयकर विभाग के चक्कर लगा रहे हैं। इन्हें हाल ही में मिले नोटिस से पता चला है कि वे सूरत की हीरा कंपनियों अन्विता एग्जिम, वारिस इंपैक्स, राही इंपैक्स और नूर एग्जिम प्राइवेट लिमिटेड के मालिक हैं।
रजिस्ट्रार ऑफ कंपनी के दस्तावेजों में इन्हें मुंबई का पता दर्ज है।

हमारी जांच में वह भी मुंबई की एक चाल का निकला। पड़ताल से यह भी सामने आया कि जून 2012 में बनी यह कंपनियां 380 करोड सिंगापुर जैसे देशों में ठिकाने लगा लापता हो गई। इसके पहले भी कॉल सेंटर में काम करने वाले इंदौर के सचिन शर्मा और अनिल काले को दो करोड़ से ज्यादा का वसूली नोटिस मिल चुका है। यह कंपनियां भी 266 करोड़ का कारोबार कर लापता है।

पूरी जिंदगी में एक लाख का ट्रांजेक्शन नहीं : अंकित

रजिस्ट्रार ऑफ कंपनी (आरओसी) के दस्तावेजों में अंकित का पता मुंबई का है जबकि उनका कहना है कि वे कभी इंदौर के बाहर गए ही नहीं। 2012 से अब तक का बैंक ट्रांजेक्शन दिखाते हुए कहते हैं कि उन्होंने पूरी जिंदगी में एक लाख का ट्रांजेक्शन नहीं किया है।

हीरा नहीं, मैं तो दोना-पत्तल बेचता हूं : आशीष वर्मा

कभी 2012-13 में मेरे खाते में 8-10 हजार आए थे उसके बाद कोई ट्रांजेक्शन नहीं है। न कभी मुंबई गया न कभी सूरत की शक्ल देखी। अब मुझे आयकर वाले हीरा खरीदने बेचने वाली 4 कंपनियों का डायरेक्टर बता रहे।

कहीं आईडी दें तो उस पर देने का कारण लिखें : हर्ष

चार्टर्ड अकाउंटेंट हर्ष विजयवर्गीय कहते हैं कि यह एक संगठित गिरोह का काम है। इसमें आरओसी ,चार्टर्ड अकाउंटेंट से लेकर कंपनी सेक्रेटरी तक की भूमिका संदिग्ध रहती है। गिरोह कॉल सेंटर, मोबाइल सिम शॉप आदि से आधार ,वोटर कार्ड की फोटो कॉपी हासिल करते हैं।

उनसे फर्जी नाम पते डालकर असली जैसे आईडी बनाकर डायरेक्टर बना देते है। जब तक आयकर विभाग की स्क्रुटनी में मामला पकड़ में आता है तब तक असली किरदार, 100-200 करोड़ विदेशों में ठिकाने लगा लापता हो चुके होते हैं।



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