(अहद खान)
प्रायमरी और मिडिल स्कूलों के बच्चों की पढ़ाई के लिए हमारा घर, हमारा विद्यालय योजना चलाई जा रही है। इसमें शिक्षकों को गांवों-फलियों तक जाकर कुछ-कुछ बच्चों को हर दिन इकट्ठा करना है और उन्हें पढ़ाई कराना है। लेकिन गांवों में ऐसा नहीं हो रहा। ऐसे कई बच्चे हैं, जिन्होंने इस साल किताब खोलकर नहीं देखी। उनके पास किताबें-कॉपियां पहुंची ही नहीं। कई बच्चे पढ़ाई छोड़ कमाई में लग गए। गांवों की सड़कों के पास परिवार वालों ने छोटी कच्ची दुकानें लगा दी। माता-पिता या तो खेती कर रहे हैं या मजदूरी के लिए बाहर चले गए। बच्चे दुकान संभाल रहे हैं।
एक महीना हो चुका है योजना शुरू किए। शासन अब ये जानकारी निकलवा रहा है कि कितने बच्चों के पास मोबाइल है, ताकि वे पढ़ाई कर सकें। जिला शिक्षा केंद्र के अनुसार 3-4 दिन में जानकारी जुटा लेंगे।
अब तक कोर्स हो जाना चाहिए था
जिला शिक्षा केंद्र के डीपीसी एलएन प्रजापति ने बताया अभी तक काफी कोर्स हो जाना था। जहां बच्चों की पढ़ाई नहीं हो रही, वहां खुद जाकर देखेंगे। स्कूलों में नियमित कक्षाएं भी नहीं लगाना है। ऐसा करने वाले शिक्षकों को नसीहत दी जाएगी।
पहले समझें शिक्षकों को करना क्या है
1.शिक्षक बच्चों से मोबाइल फोन पर संपर्क कर उन्हें गाइड करेंगे। उनकी समस्याओं का समाधान करेंगे और पढ़ाई भी करवाएंगे। रेडियो पर भी हर दिन प्रसारण होगा, जिसे सुनकर बच्चे पढ़ पाएंगे।
2.मोबाइल पर संभव नहीं है तो घर-घर या फलियों, मोहल्लों में जाएंगे। यहां 4 से 5 बच्चों को एक जगह इकट्ठा कर पढ़ाई कराएंगे। हर दिन ऐसे कुछ नए बच्चों को पढ़ाना है। स्कूल में नियमित कक्षाएं नहीं लगेंगी और ज्यादा बच्चों को जमा नहीं करना है।
3.इस सारे काम का मोबाइल एप से फीडबैक भेजना है। ये फीडबैक पोर्टल पर दर्ज होगा और शिक्षक की परफॉर्मेंस तय होगी।
जिन हाथों में किताब होना थी उनमें जिम्मेदारियों का भार
कोटड़ा में पांचवी का छात्र अर्जुन पिता सुमला भूरिया अपने काका के साथ खेत से मूंगफली तोड़कर बाइक से रखने जाते हुए मिला। वह हर दिन यही काम कर रहा है। बोला-अभी घर वालों के साथ खेत में काम कर रहा हूं। पढ़ाई के बारे में कुछ नहीं पता। किसी ने कुछ नहीं बताया।
कैसे हो पढ़ाई : ना माता-पिता के पास मोबाइल ना स्कूल से किताब मिली
भोयरा में बुनियादी स्कूल, झाबुआ का कक्षा 2 का छात्र विजय पिता प्रकाश भूरिया घर के बाहर एक छोटी सी गोली बिस्किट की दुकान में मिला। इस साल एक भी दिन नहीं पढ़ा। बताता है कोई पढ़ाने ही नहीं आया। माता-पिता के पास मोबाइल नहीं है। दोनों खेत में काम करते हैं। विजय के किताबें-काॅपियां भी नहीं हैं।
कोई समझाने नहीं आया कि कैसे करना है पढ़ाई
कोटड़ा में कक्षा 5वीं का छात्र विनोद भी दुकान पर बैठा था। उसके पिता शंभू भाबर गुजरात में मजदूरी करते हैं, मां खेत में काम कर रही है और मवेशियों की देखभाल। एक छोटा भाई भी है राजेश। विनोद 5वीं और राजेश 2री में है। बल्लियां बांधकर खजूर की पत्तियों से ढंकी दुकान है। विनोद दुकान संभाल रहा है और भाई की देखभाल भी कर रहा है। उसने बताया, इस साल एक पन्ना भी नहीं पढ़ा। कोई समझाने, बताने नहीं आया। रेडियो की पढ़ाई के बारे में पता नहीं है।
और इधर... निर्देश दरकिनार, स्कूल में लगा रहे हैं कक्षा
नल्दी छोटी में सुखराम पिता पांगा बिलवाल की पढ़ाई चल रही है। सुखराम ने बताया, शिक्षक कुछ दिनों से स्कूल आ रहे हैं। पूरी क्लास नियमित स्कूल जा रही है। हर दिन कम से कम 25 से 30 बच्चे कक्षा में होते हैं। सुखराम भी ऐसी ही एक कच्ची टापरी में दुकान चला रहे हैं। बोले, एक घंटा स्कूल जाना होता है, बाकी टाइम दुकान पर रहता हूं।
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