STOCK MARKET UPDATE

Ticker

6/recent/ticker-posts

कहानी उसकी जिसने राममंदिर के पत्थरों के लिए जिंदगी के 30 साल दिए, कहते हैं- जबइतक मंदिर नहीं बन जाता तब तक यहां से हटेंगे नहीं (ksm News}

https://ift.tt/3f4aPeR

यहां कारसेवकपुरम से कुछ दूरी पर ही विश्व हिन्दू परिषद की कार्यशाला है। यह वही जगह है जहां पिछले 30 सालों से श्रीराम मंदिर के लिए पत्थर तराशने का काम चल रहा था। जब फैसला नहीं आया था, देशभर से हजारों लोग हर दिन कार्यशाला में सिर्फ पत्थरों को देखने के लिए आया करते थे। आज भी लोग पत्थरों को देखने आ रहे हैं, लेकिन कोरोना संकट की वजह से भीड़ कम है।

5 अगस्त को भूमिपूजन के कार्यक्रम को देखते हुए कार्यशाला में बड़ी संख्या में पुलिस फोर्स दिख रही है। साथ ही पीली टीशर्ट और कैप में दिल्ली की एक कंपनी के वर्कर दिखाई दे रहे हैं, जो तराशे गए पत्थरों की सफाई में जुटे हैं। फिलहाल पत्थरों पर नक्काशी का काम बन्द है। 3 मजदूर हैं जो पत्थरों में शाइनिंग का काम कर रहे हैं।

राममंदिर कार्यशाला में अभी पत्थरों को साफ करने का काम चल रहा है, इसके लिए दिल्ली की एक कंपनी से वर्कर आए हुए हैं।

पहली कहानी: कार्यशाला सुपरवाइजर अन्नू सोमपुरा, जिसने जिंदगी के 30 साल राम के नाम कर दिए

80 साल के अन्नू सोमपुरा पिछले 30 साल से अयोध्या में हैं। कहते हैं कि यहां आने से पहले मैं अहमदाबाद में ठेके पर मंदिर बनाया करता था। सितंबर 1990 में राममंदिर का काम मिलने के बाद चंद्रकांत सोमपुरा ने इसकी देख-रेख के लिए मुझे चुना। उस समय मेरी उम्र करीब 50 साल रही होगी।

जब मैं अयोध्या पहली बार आया था। तब बड़ी छावनी में एक कमरे में रुका था। पत्थर आना शुरू हो गए थे। हमने कारीगर बुलाना चाहा लेकिन कोई आने को तैयार नहीं हुआ। फिर मैंने अपने दो बेटे और भाई को बुलाया। 4 लोगों ने मिलकर यहां काम शुरू किया था। 30 साल में इतना पत्थर तराश दिया है कि मंदिर का लगभग आधे से ज्यादा काम हो सकता है। जीवन के 30 साल देने पर मुझे कोई दुख नहीं है। मैं अब राम के लिए ही जीता हूं। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे राम का काम देखने को मिला। मेरी पत्नी भी साथ ही रहती है। जबकि बेटे अहमदाबाद में अपना काम करते हैं। एक बेटा किसी प्राइवेट जॉब में है जबकि 2 बेटे पत्थर तराशने का ही काम करते हैं।

पति की मौत के बाद ज्योति अपने पिता के साथ रहती हैं, उनकी दो बेटियां भी हैं, जो पढ़ाई करती हैं।

अन्नू सोमपुरा के घर में एक लड़की और एक महिला भी दिखी। पूछने पर पता चला कि वह उनकी बेटी ज्योति और नातिन है। बेटी के पति रजनीकांत भी 2015 में कार्यशाला में पत्थर तराशने का काम करने आए थे। लेकिन 2019 में कार्यशाला में काम करते-करते उनकी मौत हो गयी। ज्योति कहती हैं कि पिता ने बगल में ही घर दिया था। काम भी बढ़ियां चल रहा था। 12 हजार रुपए तनख्वाह थी। पिछले साल एक दिन वह काम करने गए तो लौटे ही नहीं। मैं घर में काम कर रही थी। मुझे किसी ने बताया कि काम करते करते अचानक वह गिर पड़े हैं।

हम लोग जल्दी से उन्हें श्रीराम हॉस्पिटल ले गए। डॉक्टर ने बताया कि उन्हें हार्ट अटैक आया है। अगर साढ़े 3 घंटे निकल गए तो बच जाएंगे नहीं तो मुश्किल है। हम लोग इंतजार कर रहे थे लेकिन उन्होंने साथ छोड़ दिया और दुनिया से चले गए। बेटी रोशनी कहती है कि मैं उस वक्त स्कूल में थी जब 2 बजे लौटी तो पता चला पापा नहीं रहे। उस समय यकीन ही नहीं हो रहा था। लेकिन धीरे-धीरे उनकी यादों के सहारे जिंदगी कटने लगी है।

रोशनी के पिता की मौत यहां काम करने के दौरान हुई है, वह आगे इंजीनियर बनकर अपने पापा का सपना पूरा करना चाहती है।

ज्योति बताती हैं कि पिता न होते तो मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई होती। हमारे हाथ में न कुछ रुपए थे न ही जमीन-जायदाद। अब पिता के साथ रहती हूं। मां की मदद करती हूं, काम चल रहा है। बेटी रोशनी बताती है कि वह इंटर में है। उनकी पढ़ाई का खर्च विहिप के नेता चंपत राय उठा रहे हैं। फीस, कॉपी किताब सब कुछ वही देखते हैं। रोशनी कहती है पिता जी पत्थर तराशते थे। मंदिर का नक्शा भी बनाते थे। उनके बनाए पत्थर अक्षरधाम मंदिर में भी लगे हैं। इसलिए अब मैं आईआईटी में जाना चाहती हूं और इंजीनियर बनना चाहती हूं, ताकि पापा का सपना पूरा कर सकूं।

दूसरी कहानी: 19 साल से कार्यशाला में मजदूरी कर रहे हैं, अब बेटे को भी ले आए हैं

मिर्जापुर के रहने वाले झांगुर की उम्र करीब 50 साल है, वह 2001 से कार्यशाला में मजदूरी कर रहे हैं। वे बताते है कि 2001 में यहां आया तब युद्धस्तर पर काम चल रहा था। इस समय पूरी कार्यशाला में सिर्फ 3 मजदूर हैं, जिनमें से दो हम बाप-बेटे हैं। बाकी एक लोकल का है। इतनी दूर काम करने क्यों आए, इस पर वे कहते हैं कि यहां का काम परमानेंट है। रोज-रोज की हाय-हाय नहीं है। हमारा काम कारीगर की मदद करना होता है।

मिर्जापुर के रहने वाले झांगुर यहां 2001 से काम कर रहे हैं, उन्हें रोजाना 300 रुपए के हिसाब से महीने का 9 हजार रुपये मिलता है।

पत्थर उठवाना, रखवाना, मशीन से कटाई करना और पत्थरों को चमकाना। बड़े पत्थर हों तो चमकाने में दो से तीन दिन लग जाते हैं। 2014 में अपना परिवार भी ले आया। हमें कारसेवकपुरम में रहने की जगह भी मिल गयी है। अब बेटे भी परमानेंट कमाई के लिए यहीं काम करते हैं। फिलहाल अभी कोई कारीगर नहीं है। एक थे तो उनकी मौत हो चुकी है। अब बताया गया है कि जब मंदिर का काम शुरू होगा तब कारीगर बुलाया जाएगा। झांगुर को रोजाना 300 रुपए के हिसाब से महीने का 9 हजार रुपये मिलता है। कम पैसे में काम करने के सवाल पर झांगुर बोले- अब भगवान का काम है। थोड़े पैसे में भी जिंदगी चल रही है थोड़ा ज्यादा मिलेगा तब भी जिंदगी चलेगी ही। झांगुर को राममंदिर बनने से पैसे बढ़ने की उम्मीद है।

राम मंदिर कार्यशाला में तैयार की गई मंदिर की रेप्लिका।

कार्यशाला में हो चुकी है 2 की मौत, ज्यादातर कारीगर को हो जाता है टीबी और फेफड़े की बीमारी

अन्नू सोमपुरा ने बताया कि मैं यहां 30 साल से हूं। अब तक काम करते हुए 2 लोगों की मौत हो चुकी है। हालांकि दोनों नेचुरल डेथ रहीं। एक की मौत 2001 में हुई थी दूसरे की 2019 में। अन्नू सोमपुरा ने बताया कि कारीगर और पत्थर के काम से जुड़े मजदूरों की औसत उम्र ही 50 से 55 रहती है। ज्यादातर को या तो टीबी होती है या फिर फेफड़े की बीमारी हो जाती है। अन्नू सोमपुरा कहते है कि चूंकि पत्थरों का काम बहुत महीन होता है तो नक्काशी के समय जो गर्द-धूल और पत्थरों के छोटे- छोटे कण निकलते है वह मुंह के जरिए अंदर चले जाते हैं। जिसकी वजह से दमा, टीबी या फेफड़े की दूसरी बीमारियां हो जाती हैं।

केमिकल से साफ हो रहे पत्थर

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कार्यशाला में रखे पत्थरों से गंदगी हटाने का काम शुरू हो गया है। जिसे दिल्ली की एक कंपनी कर रही है। प्रोजेक्ट मैनेजर संजय ने बताया कि हमें इस काम का अनुभव है। अभी हम 7 लोगों के साथ काम कर रहे हैं, लेकिन हमें यदि टाइम बाउंड किया जाएगा तो हम कामगार बढ़ा देंगे। उन्होंने बताया कि हम 23 तरह के केमिकल का इस्तेमाल कर रहे हैं। हमने पहले राजस्थान के इन पत्थरों की स्टडी की है फिर काम शुरू किया है, क्योंकि स्टडी न की होती तो केमिकल का गलत असर भी पत्थरों पर पड़ सकता है।

1990 में बनी कार्यशाला की जमीन दान में मिली थी, 1992 के बाद से यहां पर्यटक भी आने लगे।

कार्यशाला का क्या है महत्व

अयोध्या के सीनियर जर्नलिस्ट वीएन दास बताते है कि 1990 में बनी कार्यशाला की जमीन राजा अयोध्या ने दान में दी थी। यह राममंदिर को लेकर जनजागरण का मुख्य बिंदु भी रहा है। यहां पर पत्थर तो तराशे ही गए साथ ही श्रीराम मंदिर की रेप्लिका भी तैयार की गई। 1992 के बाद से अयोध्या आने वाले पर्यटक कार्यशाला भी जाने लगे। यहां पर्यटकों को बताया जाता था कि किस तरह से मंदिर के लिए पत्थरों को तैयार किया जा रहा है। उन्हें मंदिर की रेप्लिका भी दिखाई जाती थी। साथ ही बताया जाता कि मंदिर कितना बड़ा होगा। क्या लंबाई-ऊंचाई होगी। श्रद्धा वश कुछ लोग दान पुण्य भी करते रहे हैं। इसकी वजह से देशभर में मंदिर के लिए जनजागरण भी होने लगा।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Ground report From Ayodhya, Karsewakpuram Ram Mandir Karyashala


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3g9irxX
via IFTTT

Post a Comment

0 Comments

Custom Real-Time Chart Widget

'; (function() { var dsq = document.createElement('script'); dsq.type = 'text/javascript'; dsq.async = true; dsq.src = '//' + disqus_shortname + '.disqus.com/embed.js'; (document.getElementsByTagName('head')[0] || document.getElementsByTagName('body')[0]).appendChild(dsq); })();

market stocks NSC