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भारतीय सेना के जवान को फांसी की सजा, कोर्ट बोली- ट्रेनिंग देश को बचाने की थी, लोगों को मारने की नहीं

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भारतीय सेना की घातक प्लाटून के एक जवान को हरियाणा की एक अदालत ने फांसी की सजा सुनाई। जवान ने छह लोगों को नृशंष तरीके से मौत के घाट उतारा था। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जवान को जो ट्रेनिंग दी गई थी वो देश को बचाने की थी न कि लोगों को मारने की। कोर्ट को नहीं लगता कि फांसी से कम कोई सजा इस मामले में कारगर रहेगी।

सेना के जवान नरेश धनखड़ को पलवल के अतिरिक्त सत्र जज प्रशांत राना की कोर्ट ने सजा सुनाई। वो सेना की घातक प्लाटून में काम करता था। इस प्लाटून के जवानों को विशेष ट्रेनिंग दी जाती है, जिससे वो किसी भी दुश्मन का बखूबी मुकाबला कर सकें। घातक एक संस्कृत का शब्द है। इसका मतलब होता है किलर

 

घातक प्लाटून के जवानों को मिलती है कमांडो ट्रेनिंग
घातक प्लाटून के जवानों को इस तरह की ट्रेनिंग दी जाती है जिससे वो औचक तरीके से दुश्मन पर हमला करके उसे तितर बितर कर सकें। उसके बाद बटालियन अपना काम करती है। इस प्लाटून के जवानों को कमांडो ट्रेनिंग दी जाती है, जिसमें तरह तरह के हथियारों का इस्तेमाल सिखाया जाता है। हालांकि ये ट्रेनिंग दुश्मन को मारने के लिए दी जाती है। लेकिन जवान ने इन तरीकों को नागरिकों पर ही आजमा दिया।

अतिरिक्त सत्र जज प्रशांत राना ने कहा कि ये केस दुर्लभ से दुर्लभ की श्रेणी में आता है। नरेश धनखड़ ने जिन लोगों की हत्या कीं उनमें अंजुम, नरेश, सीताराम, मुंशी राम खेमचंद, सुरेंद्र की हत्या की थी।

 

छह पुलिस अफसरों पर भी किया था जानलेवा हमला
इसके साथ नरेश ने छह पुलिस अफसरों पर भी जानलेवा हमला किया। इनमें ASI राजेश, मो. इलियास, रामदेया, हेड कांस्टेबल संदीप, कांस्टेबल लुकमान, SOP हर प्रसाद शामिल थे। 307 (हत्या के प्रयास) के मामले के साथ सरकारी अफसरों की ड्यूटी में बाधा डालने के मामले में भी उसे सजा सुनाई गई।

एक और 2 जनवरी 2018 की रात में पलवल में 500 गज के दायरे में छह लोगों की लाश मिली थीं। इन सभी लोगों के सिर पर घातक वार किए गए थे। सिर बुरी तरह से कुचला हुआ था। जबकि ब्रेन टिश्यू सभी के गायब थे। Scientific Expert ने मौका ए वारदात का दौरा करने के बाद पाया कि सभी छह हत्याओं में काफी समानता है।

फंसा तो बोला सब कुछ पागलपन में हो गया
कोर्ट ने लाश पर मिले एक से खून के धब्बों, प्रत्यक्षदर्शियों, CCTV फुटेज और नरेश धनखड़ के मोबाइल फोन रिकॉर्ड के आधार पर उसे दोषी माना। हालांकि आरोपी ने सुनवाई के दौरान खुद को पागल करार देकर माफी की गुहार भी लगाई। लेकिन 2001 की आर्मी की रिपोर्ट को देखने के बाद भी कोर्ट ने माना कि वारदात के वक्त नरेश धनखड़ पागल नहीं था।

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