मध्य प्रदेश के वकील हाईकोर्ट द्वारा निचली अदालतों को दिए एक आदेश से बेहद नाराज हैं। उन्होंने साफ चेतावनी दी है कि यदि 21 मार्च तक हाईकोर्ट ने अपना आदेश वापस नहीं लिया तो फिर वकील अनिश्चित काल के लिए हड़ताल पर चले जाएंगे। ऐसे में मध्य प्रदेश में आम लोगों को न्याय मिलने में कितनी तकलीफ होगी। स्टेट बार काउंसिल ऑफ मध्य प्रदेश ने शनिवार को एक प्रस्ताव पारित कर 23 मार्च से पूरे प्रदेश की अदालतों में प्रतिवाद दिवस मनाने का निर्णय लिया।
सदस्यों ने कहा कि यदि 21 मार्च तक हाईकोर्ट 25 पुराने प्रकरण तीन माह की समय-सीमा में निराकृत करने संबंधी आदेश वापस नहीं लेगा तो 23 मार्च से प्रदेश भर की अदालतों में वकील पैरवी नहीं करेंगे। काउंसिल के वाइस चेयरमैन आरके सिंह सैनी ने बताया कि न्याय के बदले निराकरण की नीति का जबलपुर सहित पूरे प्रदेश के वकील निरंतर विरोध करते आ रहे हैं। जिला अदालत जबलपुर में 13 मार्च से ही विरोध करते हुए न्यायालयों में पैरवी नहीं की जा रही है।
जानिये क्या है मामला?
जबलपुर जिला बार एसोसिएशन के सचिव राजेश तिवारी का कहना है कि प्रदेश
हाईकोर्ट का आदेश पक्षकारों के पक्ष में नहीं है। इससे उन्हें न्याय मिलने
में कठिनाई होगी। हाईकोर्ट चाहता है कि निचली अदालतों में 3 महीने में पांच
साल पुराने 25 प्रकरणों का निराकरण अनिवार्य रूप से किया जाए। सिर्फ
जबलपुर में 80 कोर्ट हैं, इस हिसाब से देखें तो वकील अपने सभी पक्षकारों के
हित में पैरवी ही नहीं कर पाएंगे।
इसके साथ ही नए मुकदमों की पैरवी भी बंद हो जाएगी। सचिव राजेश तिवारी के मुताबिक राज्य अधिवक्ता परिषद में भी वकीलों के इस आंदोलन से अपनी सहमति जाहिर की है। परिषद ने यह तय किया है कि यदि 21 मार्च तक हाईकोर्ट अपना आदेश वापस नहीं लेता है, तो 23 मार्च से जबलपुर, इंदौर और ग्वालियर बेंच में भी वकील कामकाज से अलग हो जाएंगे।
यहां बता दें कि मध्य प्रदेश में निचली अदालतों में वर्षों से लाखों की संख्या में मुकदमें लंबित हैं। हाईकोर्ट की इस आदेश के पीछे यही मंशा थी कि 5 साल पुराने प्रकरणों का निराकरण करके लंबित मुकदमों की संख्या कम की जाए, लेकिन अब वकील इस आदेश को व्यवहारिक नहीं मान रहे हैं। उनका कहना है कि किसी भी केस की सुनवाई के लिए कागजी खानापूर्ति में वक्त लगता है। अचानक से समय सीमा में बांधकर मुकदमे का निराकरण करना पक्षकारों के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
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