सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उन याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की, जिसमें ‘वरिष्ठ वकील’ पदनाम देने के लिए वर्ष 2017 में उसके और और उच्च न्यायालयों के लिए दिशानिर्देश निर्धारित किए गए थे, पर फिर से विचार करने की जरूरत है।
न्यायमूर्ति S. K कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने बुधवार को जैसे ही इस पर सुनवाई शुरू की एक वकील ने अदालत को बताया कि वरिष्ठ वकीलों के रूप में वकीलों के पदनाम के खिलाफ एक अलग याचिका दायर की गई है। उस याचिका पर भी इसके साथ ही सुनवाई की जानी चाहिए।
वकील मैथ्यूज जे नेदुमपारा ने बेंच को बताया कि CJI D. Y चंद्रचूड़ ने मंगलवार को कहा था कि याचिका को 20 मार्च के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा। इस पर न्यायमूर्ति A. अमानुल्लाह और अरविंद कुमार की बेंच ने कहा कि मामला जब भी आएगा, अगर यह हमारे सामने सूचीबद्ध है, तो हम इसे सुनेंगे। याचिका को बुधवार यानी आज के लिए सूचीबद्ध नहीं किया गया था।
इस पर नेदुमपारा ने कहा कि याचिका में वकीलों को 'वरिष्ठ वकील' नामित करने की प्रथा को समाप्त करने की मांग की गई है। इस दौरान उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकांश वरिष्ठ वकील न्यायाधीशों और वकीलों के 'परिजन' हैं। इस पर बेंच ने उनके दावे का जवाब देते हुए कहा कि कई नामित वरिष्ठ वकील पहली पीढ़ी के वकील हैं।
बेंच ने नेदुमपारा से कहा कि वह याचिका पर तब सुनवाई करेगी जब यह अदालत के सामने आएगी और अगर हम आपसे सहमत होते हैं, तो पदनाम वापस लिया जाएगा। इसके बाद बेंच ने वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह की दलीलें सुनीं, जिनकी याचिका पर 2017 का फैसला सुनाया गया था।
बेंच ने कहा कि जहां तक वर्तमान कानून का सवाल है, पहले से ही एक निर्णय है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या इसमें किसी बदलाव की जरूरत है या नहीं है। इस दौरान वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने भी अपनी दलीलें पेश कीं। गौरतलब है कि इस मामले में सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी।
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