बिहार में जातिगत जनगणना कराने के फैसले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सुप्रीम कोर्ट से एक और झटका लगा है। दरअसल नीतीश के इस फैसले के खिलाफ हिंदू सेना सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। उसने कोर्ट से जातिगत जनगणना कराने के निर्णय के अधिसूचना पर रोक लगाने की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका को मुख्य याचिका के साथ नत्थी करने की इजाजत दी है।
वकील मुदित कॉल के जरिए दायर की गई याचिका में हिंदू सेना ने कहा है कि नीतीश कुमार सरकार जातिगत जनगणना कराकर भारत की अखंडता व एकता को तोड़ना चाहती है। सुप्रीम कोर्ट अब 20 जनवरी को इस मामले की सुनवाई करेगा। राज्य सरकार ने पिछले साल 6 जून को जातिगत जनगणना कराने के लिए अधिसूचना जारी किया था।
पहले भी दाखिल हो चुकी है एक याचिका
इससे पहले जातिगत जनगणना के अधिसूचना को बिहार निवासी अखिलेश कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती थी। याचिका में कहा गया कि जातिगत जनगणना का अधिसूचना मूल भावना के खिलाफ है और मूल ढांचे का उल्लंघन है, लिहाजा अधिसूचना को ही रद्द करने की गुहार सबसे बड़ी अदालत से लगाई गई है। याचिका में कहा गया कि क्या भारत का संविधान राज्य सरकार को जातिगत आधार पर जनगणना करवाने का अधिकार देता है? क्या 6 जून को बिहार सरकार के उप सचिव की ओर से जारी अधिसूचना जनगणना कानून 1948 के खिलाफ है?
याचिका में पूछा गया कि क्या किसी समुचित या विशिष्ट कानून के अभाव में जाति आधारित जनगणना के लिए अधिसूचना जारी करने की अनुमति हमारा संविधान राज्य को देता है? क्या राज्य सरकार का जातिगत जनगणना कराने का निर्णय सभी राजनीतिक दलों की सहमति से लिया गया एकसमान निर्णय है? क्या बिहार में जाति आधारित जनगणना के लिए राजनीतिक दलों का कोई निर्णय सरकार पर बाध्यकारी है? क्या बिहार सरकार का 6 जून का अधिसूचना सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का अभिराम सिंह बनाम सी.डी.कॉमचेन (C.D.Comchen) मामले में दिए गए फैसले के खिलाफ है।
याचिका में कहा गया कि बिहार राज्य की अधिसूचना और फैसला अवैध, मनमाना, तर्कहीन, असंवैधानिक और कानून के अधिकार के बिना है।
7 जनवरी से शुरू हो चुका है सर्वे
बिहार में सात जनवरी से जाति आधारित जनगणना की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
राज्य में यह सर्वे करवाने की जिम्मेदारी सरकार के जनरल एडमिनिस्ट्रेशन
डिपार्टमेंट (GAD) को सौंपी गई है। सरकार मोबाइल फोन ऐप के जरिए हर परिवार
का data digitize इकट्ठा करने की योजना बना रही है। सर्वे में शामिल लोगों
को पहले ही आवश्यक ट्रेनिंग दे दी गई है। यह जनगणना दो चरणों में होगी।
पहले चरण की जनगणना सात जनवरी से पटना से शुरू होगी।
इस दौरान वीआईपी इलाकों में घरों की गणना की जाएगी, जिनमें मंत्रियों, विधायकों के आवास शामिल होंगे। इनकी संख्या से जुटे आंकडे़ जुटाए जाएंगे। इसके अलावा हर परिवार के मुखिया और हर घर के सदस्यों के नाम का भी दस्तावेजीकरण किया जाएगा। इस सर्वे में परिवार के लोगों के नाम, उनकी जाति, जन्मस्थान और परिवार के सदस्यों की संख्या से जुड़े सवाल होंगे। इसके साथ ही उनके आर्थिक स्थिति और सालाना आय से जुड़े सवाल भी होंगे। दूसरे चरण की जनगणना एक अप्रैल से 30 अप्रैल तक होगी। इस दौरान जनगणना में शामिल लोग लोगों की जाति, उनकी उपजाति और धर्म से जुड़े डेटा जुटाएगी।
मई 2023 तक जनगणना पूरा करने का है लक्ष्यराज्य सरकार ने मई 2023 तक जातीय जनगणना की प्रक्रिया पूरी करने का लक्ष्य रखा है। जिला स्तर पर सर्वे करने की जिम्मेदारी संबंधित जिला मजिस्ट्रेटों को दी गई है, जिन्हें इस काम के लिए जिलों में नोडल अधिकारी के तौर पर नियुक्त किया गया है।
सरकार जातीय जनगणना के लिए 500 करोड़ रुपये खर्च कर सकती है। इससे पहले पिछले साल जून में फैसला किया गया था कि जातीनय जनगणना फरवरी 2023 तक पूरी की जाएगी। लेकिन बाद में सर्वे के काम को पूरा करने की डेडलाइन तीन महीने बढ़ाकर मई 2023 तक कर दी गई।
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