झारखंड सरकार ने 13 अनुसूचित इलाकों की नौकरियों में स्थानीय लोगों के लिए सौ फीसदी आरक्षण की व्यवस्था लागू की थी। झारखंड सरकार के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है। झारखंड सरकार के फैसले को संविधान के खिलाफ बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सभी को समान अवसर दिया जाना चाहिए। सरकार का ये फैसला असंवैधानिक है।
समाचार पत्रों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नागरिकों के अधिकार सामान्य हैं। एक वर्ग के लिए अवसर उत्पन्न करने के लिए दूसरे वर्ग को पूरी तरह बाहर कर देना भारतीय संविधान का निर्माण करने वालों के विचार के अनुरूप नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एमआर शाह और बीवी नागरत्ना की बेंच ने हाईकोर्ट का आदेश बरकरार रखा जिसमें सरकार की ओर से 14 जुलाई 2016 को जारी अधिसूचना को असंवैधानिक करार दिया गया था।
गौरतलब है कि झारखंड सरकार ने 2016 में प्रशिक्षित स्नातक अध्यापक की भर्ती निकाली थी। सरकारी हाईस्कूल में रिक्त पदों के लिए निकली इस भर्ती में 13 अनुसूचित इलाकों के निवासियों के लिए सौ फीसदी आरक्षण की व्यवस्था लागू की गई थी। 11 अप्रैल 2007 को झारखंड सरकार ने 13 जिलों को अनुसूचित एरिया घोषित किया था।
झारखंड सरकार ने रांची, लोहरदगा, गुमला, सिमडेगा, लातेहार, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिम सिंहभूम, सरायकेला खरसवान, साहेबगंज, दुमका, पाकुड़, जामताड़ा के साथ ही पलामू जिले के सतबरवा ब्लॉक के रबदा और बकोरिया पंचायत, गोड्डा जिले सुंदरपहाड़ी और बोरिजोर ब्लॉक को अनुसूचित घोषित किया था। झारखंड सरकार की ओर से भर्ती में इन इलाकों के लिए सौ फीसदी आरक्षण का मामला कोर्ट पहुंच गया था।
झारखंड हाईकोर्ट ने इस फैसले को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था। हाईकोर्ट ने जब झारखंड सरकार के फैसले को खारिज कर दिया तब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। अब सुप्रीम कोर्ट ने भी झारखंड सरकार के इस फैसले को असंवैधानिक बताते हुए खारिज कर दिया है।
Source Link
सोशल मीडिया बोल्ड है। सोशल मीडिया युवा है। सोशल मीडिया सवाल उठाता है। सोशल मीडिया एक जवाब से संतुष्ट नहीं है। सोशल मीडिया बड़ी तस्वीर देखता है। सोशल मीडिया हर विवरण में रुचि रखता है। सोशल मीडिया उत्सुक है। सोशल मीडिया फ्री है। सोशल मीडिया अपूरणीय है। लेकिन कभी अप्रासंगिक नहीं। सोशल मीडिया तुम हो। (समाचार एजेंसी की भाषा से इनपुट के साथ) अगर आपको यह कहानी अच्छी लगी हो तो इसे अपने दोस्त के साथ शेयर करें!
हम एक गैर-लाभकारी संगठन हैं। हमारी पत्रकारिता को सरकार और कॉर्पोरेट दबाव से मुक्त रखने के लिए आर्थिक रूप से हमारी मदद करें !
0 Comments