सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक अहम फैसला देते हुए आयकर अधिनियम के तहत तलाशी और जब्ती से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए उच्च न्यायालयों के लिए सिद्धांत तय किए। शीर्ष अदालत ने कहा कि राजस्व विभाग के दस्तावेजों पर राय बनाना या विश्वास करना न्यायिक या अर्ध न्यायिक कार्य नहीं बल्कि प्रशासनिक चरित्र का है।
गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यण की पीठ ने इसके साथ ही गुजरात उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें सात अगस्त 2018 को आयकर विभाग के प्रधान निदेशक (अन्वेषण) द्वारा जारी तलाशी और जब्ती वारंट को खारिज कर दिया गया था।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हमने पाया कि उच्च न्यायालय द्वारा सात अगस्त 2018 को तलाशी की अनुमति संबंधी वारंट को रद्द करना न्यायोचित नहीं है। इसलिए, अपील को स्वीकार किया जाता है और उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश को रद्द किया जाता है। इसके साथ ही राजस्व विभाग को अनुमति है कि वह आयकरदाता के खिलाफ कानून के तहत कार्रवाई करे।’’
उच्च न्यायालय ने अहमदाबाद के एक कारोबारी की याचिका पर आदेश पारित किया था जिसने गोवा में एक मनोरंजन कंपनी में निवेश किया था और राजस्व विभाग ने उसके परिसरों की तलाशी व जब्ती की कार्रवाई की थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि पूर्व के फैसलों के आलोक में तलाशी और जब्ती के प्राधिकरण की वैधता पर विचार करने के दौरान दर्ज किए गए कारणों की उपयुक्ता या अनुपयुक्तता पर विचार नहीं किया जा सकता।
पीठ ने कहा कि "अकेले दर्ज किया गया विश्वास न्यायसंगत है, लेकिन केवल वेडनसबरी सिद्धांत के तर्कसंगतता को ध्यान में रखते हुए। इस तरह की तर्कसंगतता दर्ज किए गए विश्वास करने के कारणों पर अपीलीय प्राधिकारी के रूप में कार्य करने का अधिकार नहीं है।"
पीठ ने कहा कि वह आयकर अधिनियम की धारा-132 के तहत तलाशी और जब्ती से जुड़े मामलों में रिट याचिका पर सुनवाई करने के लिए विस्तृत सिद्धांत देगी। न्यायालय ने कहा कि किसी भी बाहरी या अप्रासंगिक सामग्री पर विचार करने से विश्वास प्रभावित होगा।
पीठ ने कहा कि "राय का गठन और दर्ज किए गए विश्वास करने के कारण एक न्यायिक या अर्ध-न्यायिक कार्य नहीं है, बल्कि चरित्र में प्रशासनिक है।" यह कहते हुए कि जानकारी सामग्री के आधार पर अधिकृत अधिकारी के पास होनी चाहिए और राय का गठन ईमानदारी और प्रामाणिक तरीके से होना चाहिए, यह केवल दिखावा नहीं हो सकता।
पीठ ने कहा, ‘‘अधिकारियों के पास सूचना होनी चाहिए जिसके आधार पर तार्किक विश्वास बनता है कि व्यक्ति ने खाता या अन्य दस्तावेज छिपाया है या उसे पेश करने में असफल रहा है, जिसके बारे में नोटिस जारी किया गया या समन किया गया है...।’’
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