Society for Education, Action, Research and Community Health
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उभरती वयस्कता’ का तात्पर्य किेशोरावास्था से युवावास्था में प्रवेश की अवस्था है, जहां उभरते वयस्क अपनी प्रामणिकता, जागरूकता, व्यक्तिगत परिभाषा और विश्व साक्षात्कार की खोज हेतु अथक प्रयासरत रहते हैं और आत्म पहचान के विकास हेतु इसे जीवन की एक जटिल अवस्था के रूप में लेते हैं। इस लेख में जयनेत्री मर्चेन्ट अपने शैक्षणिक कार्यक्रम निर्माण के बारे में बता रहीं हैं जिसका उद्देश्य भारत के युवा वर्ग जो कि एक उद्देश्यपूर्ण एवं सार्थक जीवन की तलाश में हैं, उनके एवं एवं समाज की समस्याओं के बीच की खाई को पाटना है।
एक महत्वाकांक्षी डाक्टर विक्रम से मिलिए, उनकी जीवन यात्रा क्रमबद्ध है। उन्होंने एक प्रसिद्ध संस्थान के मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई की, इंटर्नशिप में काम किया, स्नातकोत्तर प्रवेश परीक्षा में सफलता प्राप्त की, अपना एम.डी. (डॉक्टर आफ मेडिसिन) पाठ्यक्रम पूरा किया और अंत में उनके कैरियर का सबसे महत्वपूर्ण क्षण तब आया जब उन्हें कार्डियालोजी में विशेषज्ञता प्राप्त हुई। शुरू से मेधावी होने के कारण उन्हें महाराष्ट्र के प्रतिष्ठित इंजिनियरिंग एवं मेडिकल कॉलेजों में स्वीकार्यता प्राप्त हुई, फिर उन्होने अपने भाई के पदचिन्हों पर चलते हुए चिकित्सा क्षेत्र को चुना। वेअपनी कठिन और मेहनत से भरी जीवन यात्रा से अपने सामाजिक जीवन को खोने की वास्तविकता से सचेत थें। लगातार फैलते प्राइवेट प्रैक्टिस करने की संभावना उन्हें अपने सपनों को साकार करने से दूर करती रही। अपने मेडिकल कॉलेज के द्वितीय वर्ष में वे असंतुष्ट से थे और उन्होंने चिकित्सा क्षेत्र को प्राथमिकता देने की अपनी प्रेरणाओं पर संदेह करने लगे। उन्हें चिकित्सा के क्षेत्र में आगे बढने के अपने फैसले में सचेत तर्क और सक्रिय विकल्प की अनुपस्थिति का एहसास हुआ, क्योंकि उनके हिसाब से कोई उनके लिए कैरियर के अन्य विकल्पों संभव नहीं थें। वे इस बात से बहुत निराश थें कि उनके कैरियर और जीवन का बाकी समय एक वातानुकुलित कक्ष में बीतने वाला है। वो इस से अधिक चाहते थे, लेकिन यह नहीं था जानते थें कि वह क्या है, क्यों है और कैसे होगा।
भारत के कई लाखों युवाओं की तरह विक्रम भी हाल ही के मनोवैज्ञानिक शोध कार्य ‘उभरती वयस्कता’ के शीर्ष पर थे। किशोरावास्था से वयस्क अवस्था के इस प्रक्षेपवक्र चरण में उभरते वयस्क अपनी प्रामाणिकता, जागरूकता, व्यक्तिगत परिभाषा और विश्व साक्षात्कार की खोज करते हुए जीवन के कठिन दौर से गुजरते हैं। युवावस्था से वयस्कता में सहजता से प्रवेश का संघर्ष निम्न गुणवत्ता वाली शिक्षा, उचित संभावनाओं की कमी, सही कैरियर के चुनाव का दबाव और सबसे महत्वपूर्ण विद्यार्थियों में उलझन आदि की समस्या के कारण और बाधित होती है।
युवाओं के मन पर गहरा प्रभाव डालने वाले उद्देश्य
अमृत बंग ‘निर्माण’ कार्यक्रम, जो कि एक शैक्षिक कार्यक्रम है जो युवाओं से सामाजिक परिवर्तन का प्रेरक कार्यक्रम है, के प्रोग्राम लीड हैं। उन्होने पाया है कि पेशेवर डिग्री शिक्षारत विद्यार्थी में अक्सर व्यक्तिगत कैरियर आंकाक्षाओं को लेकर कमी होती है। उन्होंने पाया है कि कक्षाएं विद्यार्थियों को सिर्फ जानकारी प्रदान करने का काम करती हैं और उनमें कौशल का विकास कभी-कभार ही कर पाती हैं, लेकिन विद्यार्थियों को अपने उद्देश्य की पहचान नहीं करा पाती हैं। इससे व्यक्तियों में अपने कौशल को वास्तविक जीवन में उपयोग करने के सामर्थ्य का विकास नहीं हो पाता है, यह अध्ययन का एक क्षेत्र है जिसे अधिकांश शैक्षणिक संस्थानों द्वारा नजरअंदाज कर दिया जाता है। इस समाज निर्मित अवस्था में विद्यार्थी प्राय: आत्म-अन्वेषण किए बिना अन्य व्यक्तियों के कैरियर का अनुसरण करते हैं और यह नहीं जान पाते हैं कि उन्हें अपने कौशल का उपयोग कहाँ और मुख्य रूप से क्यों करना चाहिए।
मनोविज्ञानी डॉ. कोरी कीस के अनुसार जीवन में उद्देश्य की उपस्थिति सकारात्मक गतिविधियों एवं एवं युवा विकास का महत्वपूर्ण घटक हैं। उनके शोध कार्यों से पता चला है कि एक उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने वाला युवा अपने जीवन को सार्थक बना सकता है तथा भौतिक सुख से परे एक अनुकूलतम जीवन जीता है। उनको शोध से पता चलता है कि युवा विकास के लिए सतर्कता अपनाने (सुरक्षित सेक्स, सडक सुरक्षा, नशे एवं शराब से परहेज एवं रोजगार हासिल करना) के बजाय विकास को लेकर एवं एवं फलने-फूलने और उद्देश्य खोजने की दिशा में उनकी वृद्धि की बात करना चाहिए एवं । युवा विकास मकसद केवल रोजगार प्राप्ति हेतु कौशल का विकास नहीं होना चाहिए, जैसे कि एक उद्योग के संचालन हेतु तकनीकी ज्ञान प्राप्त करना है। यह अवधारणा केवल संस्थानिक उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होती है, लेकिन व्यक्ति को स्वयं के बारे में सोचने से वंचित करती है। इसके बजाय युवा विकास द्वारा व्यक्ति को तर्कपूर्ण एवं ज्ञान से परिपूर्ण सोच का विकास और उन्हें अपने उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु योग्य बनाने के लिए प्रोत्साहन देना चाहिए, जो युवाओं को अपने कौशल का उपयोग करने की इच्छा बढ़ाएगा। ‘उद्देश्य’पूर्णता प्राप्त करने हेतु अर्थहीन रहने वालों के लिए एक मनोवैज्ञानिक वैक्सीन की तरह होता है।
‘निर्माण’ की संकल्पना
मूलतः ‘निर्माण’ एक शैक्षणिक कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य भारत के युवा वर्ग, जो कि एक उद्देश्यपूर्ण एवं सार्थक जीवन की तलाश में हैं, और हल होने का इंतजार करती भारतीय समाज की समस्याओं के बीच की खाई को पाटना है। यह कार्यक्रम उभरते युवाओं को अपनी क्षमता को पहचानने एवं इसे सामाजिक विकास हेतु उपयोग में लाने के लिए प्रेरित करता है, जिसके लिए युवा नायकों की आवश्यकता होती है। ‘निर्माण’ की कल्पना डॉ. रानी एवं एवं डॉ. अभय बंग ने की थी जो सोसाइटी ऑफ एजुकेशन, एक्शन एंड रिसर्च इन कम्यूनिटी हेल्थ (एसईएआरसीएच) गढ़चिरोली और वे इसके संस्थापक हैं। इसके पीछे उनका उद्देश्य था कि परिवर्तनकारी युवाओं का पोषण एवं उन्हे व्यवस्थित करके, स्व-खोज की यात्रा के रूप में, विभिन्न सामाजिक समस्याओं का समाधान निकाला जा सके।
‘निर्माण’ के शैक्षणिक कार्यक्रम में तीन आठ-दिवसीय कार्यशालाएं हैं, जो प्रत्येक छह माह में एक बार आयोजित की जाती हैं। इनमें विभिन्न शैक्षणिक स्तर एवं अनुभव के लगभग 60 प्रतिभागी भाग लेते हैं। इसका आयोजन शोधग्राम (गढचिरौली) में किया जाता है तथा इसकी संरचना स्वयं की खोज तथा उच्च लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु युवाओं को तैयार करने के उद्देश्य से की जाती है। उन्हें विभिन्न सामाजिक समस्याओं की पहचान करवाई जाती है और उनसे इन समस्याओं के समाधान हेतु विभिन्न सुझाव पूछे जाते हैं। समाज सुधारकों द्वारा संचालित इन कार्यशालाओं में प्रतिभागियों को वास्तविक जीवन की सामाजिक समस्याओं से रूबरू करया जाता है, और उन्हें जीवन के वास्तविक उद्देश्य के बारे में बताया जाता है। ‘निर्माण’ की यात्रा में कार्यशालाओं के बाहर निकलकर पथ-प्रदर्शकों के दिशा-निर्देश, सामाजिक संस्थाओं में कार्य करने का अवसर, सामाजिक संगठनों के साथ जुडना तथा आर्थिक सहायता प्रदान करने के कार्य भी किए जाते हैं। समान विचारधारा वाले लोगों का यह समुदाय जीवनपर्यंत समाज में सार्थक उद्देश्यों की प्राप्ति एवं समाज में प्रभावकारी कार्य करने हेतु युवा संस्कृति का विकास करता है।
2006 में अपनी स्थापना के बाद से लगभग 1258 प्रतिभागियों ने ‘निर्माण’ समुदाय को 9 बैचों में शामिल हुए हैं जिनकी पृष्ठभूमि चिकित्सा, अभियांत्रिकी, मूलभूत भौतिकी, चार्टर्ड अकाउन्टेंट, कला एवं कृषि की है। लगभग 110 संसाधन-पूर्ण राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यक्ति जैसे कि डॉ. के श्रीनाथ रेड्डी, प्रोफेसर हितेश भट्ट, देवाजी तोफा एवं डॉ रिचर्ड कैश इत्यादि ‘निर्माण’ से जुडे हुए हैं जो कि युवाओं के मानसिक विकास में सहायक हैं। लगभग 350 पूर्व सदस्यों ने 80 विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के साथ मिलकर भारत भर में मौजूद विभिन्न सामाजिक समस्याओं के समाधान ढूंढने का का लक्ष्य बनाया है।
हमारे सहयोगी विक्रम (डॉ. विक्रम सहाने), ‘निर्माण’ से, वर्ष 2011 में जुडे और उन्होंने अपना सामाजिक सुधार लक्ष्य जमीनी स्तर पर स्वास्थ्य-सुधार को बनाया। निर्माण से जुड़ाव ने उन्हें दो महत्वपूर्ण लेखों के प्रकाशन पर कार्य करने को प्रेरित किया, जिनमें उन्होंने ‘सामुदायिक स्तर पर स्ट्रोक (आघात) के बोझ’ को सरल भाषा में समझाया है। डॉ. विक्रम को निर्माण के दो अन्य चिकित्सकों के साथ समाजसेवी कार्य करने पर महाराष्ट्र के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुधार हेतु उत्कृष्ट कार्य करने के लिए सम्मानित भी किया गया। निर्माणी प्रांजल कोराने ने अपना लक्ष्य शिक्षा को बनाया और अपने समाजसेवी कार्य के तहत 112 बच्चों को आश्रम विद्यालय (सरकार द्वारा संचालित अनुसूचित जन-जाति आवासीय विद्यालय) रांगी, महाराष्ट्र में पढ़ना सिखाया। निर्माणी डॉ. आरती गोरवाडकर ने मानसिक स्वास्थ्य को अपना मिशन बनाया। उन्होंने गढ़चिरोली के जनजाति बहुल इलाके में क्लीनिक केयर की सुविधा और नशे की लत छुडवाने की सुविधाएं उपलब्ध करवाईं। इस जिले की एकमात्र मनोविज्ञानी होने के नाते उन्होंने हाल ही में बौद्धिक स्वास्थ्य रूग्णता पर आदिवासी लोगों पर पहला सामुदायिक सर्वेक्षण कार्य किया। ‘निर्माण’ के माध्यम से इन परिवर्तनों द्वारा भारत में समाज सुधार गतिविधियों के लक्ष्य की प्राप्ति की राह आसान हो पाई है।
युवा होते हुए भी व्यक्ति स्वयं की पहचान हेतु निरंतर प्रयासरत रहते हैं। चूँकि ये भारत की जनसंख्या का सबसे बडा हिस्सा हैं और वे इस देश के भविष्य को परिवर्तित करने की क्षमता रखते हैं। अत: युवाओं को सामाजिक रूप से प्रेरित वयस्क के रूप में परिवर्तित होने को आसान बनाने के लिए शैक्षणिक कार्यक्रमों को उन्हे उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने के लिए प्रेरित करने की आवश्यकता है। आज के भागदौड़ और स्वार्थलोलुप जीवन में ‘निर्माण’ जैसे संगठन युवाओं को उनकी सामर्थ्य को पहचानने, उदाहरण प्रस्तुत करने और सामाजिक कार्य के प्रति एक सकारात्मक दृष्टि प्रदान करता है। भारत के समाज सुधारकों एवं स्वतंत्रता संग्राम के नायकों ने हमें, खुद से बढ़कर, सामाजिक समस्याओं में उद्देश्य तलाशना सिखाया है। ये उत्कृष्ट व्यक्ति भौतिक साधनों से परे, अच्छे उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु अपना कार्य करते हैं और अपनी जीवन यात्रा में उच्च लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु प्रयासरत रहते हैं। भारत में मूलभूत जीवन यापन बहुत बड़े वर्ग की एक सामान्य समस्या है। भारत को उत्साह से भरे युवा नायकों और युवा बुद्धिजीवियों की आवश्यकता है, जो जटिल और कठिन सामाजिक समस्याओं का समाधान कर सकें। वैसे भी, अन्य सभी कार्यों के लिए हमारे पास मशीन एवं कृत्रिम बुद्धिमत्ता उपलब्ध (आर्टिफ़िश्यल इंटेलिजेंस) हैं।
लेखक परिचय: जैनेत्री मर्चेंट सोसाइटी फॉर एजुकेशन, एक्शन, रिसर्च एंड कम्युनिटी हेल्थ (एसईएआरसीएच) में एक फैलो हैं।
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