एक अविवाहित महिला ने अपने पेट में पल रहे 23 सप्ताह के भ्रूण को गिराने के लिए सुप्रीम कोर्ट से गर्भपात की इजाजत मांगी है। शीर्ष कोर्ट ने मंगलवार को उसकी याचिका पर विचार करने की सहमति दे दी। यह महिला सहमति से बनाए गए संबंध के चलते गर्भवती हो गई है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने उक्त महिला को गर्भपात की इजाजत देने से इनकार कर दिया था। हाईकोर्ट ने पिछले शुक्रवार को याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि यह भ्रूण हत्या के बराबर है। भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमण (N.V. Ramana), न्यायाधीश कृष्ण मुरारी (Krishna Murari) और न्यायमूर्ति हेमा कोहली (Hima Kohli) की पीठ को महिला के वकील ने बताया कि याचिका पर मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए तत्काल सुनवाई की जरूरत है। इस पर पीठ ने कहा, 'अभी हमें कागजात दिए गए हैं, हम देखते हैं।' 16 जुलाई को जारी आदेश में दिल्ली हाईकोर्ट की पीठ ने अविवाहित महिला को 23 सप्ताह के भ्रूण को गर्भपात करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। हाईकोर्ट कहा था कि गर्भपात कानून के तहत सहमति से संबंध की दशा में 20 सप्ताह से अधिक के गर्भ को गिराने की इजाजत नहीं है।
भेदभाव की दलील पर हाईकोर्ट ने मांगा केंद्र से जवाब
हाईकोर्ट ने इजाजत नहीं मांगी, लेकिन महिला की दलील पर केंद्र से जवाब मांगा है। महिला ने कहा है कि अविवाहित महिलाओं को 24 सप्ताह तक गर्भावस्था के चिकित्सकीय गर्भपात की अनुमति से वंचित रखना भेदभावपूर्ण है।
पार्टनर ने शादी से इनकार कर दिया था
18 जुलाई को 24 सप्ताह की गर्भवाती हो गई याचिकाकर्ता 25 वर्षीय महिला है। वह 18 जुलाई को गर्भधारण के 24 सप्ताह पूरे कर चुकी है। उसने अदालत को बताया था कि उसके साथी ने उससे शादी करने से इनकार कर दिया था, जबकि उन्होंने सहमति से संबंध बनाए थे।
पीड़िता ने कहा-अविवाहित मां सामाजिक कलंक होगी
गर्भवती अविवाहिता ने जोर देकर कहा था कि विवाह के बगैर बच्चे को जन्म देने से उसे मनोवैज्ञानिक पीड़ा होगी, इसके साथ-साथ यह सामाजिक कलंक भी होगा। वह मानसिक रूप से मां बनने के लिए तैयार नहीं थी। हाईकोर्ट ने याचिका पर विचार करते हुए कहा था कि वह संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए कानून से परे नहीं जा सकती। इसके बाद हाईकोर्ट ने 15 जुलाई के अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता, जो एक अविवाहित महिला है और वह सहमति से संबंध के चलते गर्भवती हुई है।
गर्भपात की इजाजत का यह मामला मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स 2003 के दायरे में नहीं आता है।
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