देश के प्रधानमंत्री मोदी ने कुछ दिन पहले हैंडलूम सेक्टर को मेरठ का ’प्राइड’ कहा था। न्यूज़क्लिक ने जब इस सेक्टर की पड़ताल की तो पता चला कि ये सेक्टर अपने सबसे ख़राब दिनों से गुजर रहा है। जिसकी ज़िम्मेदार सरकार की नीतियाँ भी हैं।
2 जनवरी 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेरठ में एक यूनिवर्सिटी के शिलान्यास कार्यक्रम में यहां के हैंडलूम सेक्टर को मेरठ का ’प्राइड’ कहा था। साथ ही उन्होंने रेवड़ी गजक और कुछ दूसरी चीजों का नाम भी लिया था। इससे पहले, 25 जुलाई 2021 को मन की बात कार्यक्रम में भी पीएम ने हथकरघा उद्योग की तारीफ करते हुए कहा था “7 अगस्त, राष्ट्रीय हथकरघा दिवस की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी है, क्योंकि 1905 में ’स्वदेशी आंदोलन’ भी इसी दिन शुरू हुआ था" साथ ही देशवासियों से अपील भी की थी कि हमारे देश के ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्र में, हथकरघा आय का एक बड़ा स्रोत है इसलिए बुनकरों, कलाकारों आदि का सहयोग करना हमारे स्वभाव में होना चाहिए।
आमतौर पर देखा गया है कि 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही प्रधानमंत्री मोदी खादी, बुनकर और लोकल चीजों को सपोर्ट करने के लिए गाहे-बगाहे कहते रहते हैं। लेकिन पीएम कि इस बात से क्या जमीन पर भी इस उद्योग के हालात बदले हैं? क्योंकि भाजपा शासित राज्य यूपी के उसी मेरठ में जहां प्रधानमंत्री मोदी ने इसे प्राइड बताया था जमीन पर बुनकरो और हैंडलूम सेक्टर की हालत चिंताजनक है।
न्यूज़क्लिक के लिए हमने मेरठ के कुछ इलाकों में ग्राउंड पर जाकर जब हैंडलूम इंडस्ट्री की पड़ताल की तो पता चला कि यहां का लगभग सौ साल पुराना हथकरघा उद्योग गंभीर संकट का सामना कर रहा है। लोगों का आरोप है कि नोटबंदी और जीएसटी से पहले ही झटका खा चुके इस उद्योग को सरकारी नीतियों ने और अधिक खराब कर दिया है, बावजूद इसके सरकार अभी भी उदासीन है। जिस कारण हथकरघा उद्योग और बुनकरों की हालत दिन पर दिन ख़राब होती जा रही है। मेरठ के इस्लामाबाद, कांच वाला पुल, अहमदनगर और आसपास के हजारों लोगों कि आजीविका हथकरघा उद्योग पर निर्भर है। इन लोगों के लिए एक नई चिंता का विषय गारमेंट्स पर जीएसटी को 5% से बढ़ाकर 12% करने की सरकार की नई योजना भी है, हालांकि फिलहाल सरकार ने इस पर रोक लगा दी है।
p.c. (मोहम्मद ताहिर)
मेरठ के अहमदनगर में हमारी मुलाकात मोहम्मद दानियाल से हुई, जिनका टेक्सटाइल और पावरलूम का पुश्तैनी बिजनेस है। बीकॉम की पढ़ाई कर चुके दानियाल इस उद्योग के बारे में बताते हैं, "पहले मेरठ में इस काम की हालत बहुत अच्छी थी और दिल्ली और दूसरी जगह माल सप्लाई किया जाता था। लेकिन आज हालत यह है कि जो लोगों ने यहां 7–8 लाख की मशीन लगाई थी उसे कबाड़ में कटा कर बेचना पड़ रहा है। हमने भी अभी छह लाख रुपए की मशीन लगाई थी लेकिन हम भी इसे बेचना चाहते हैं। आप यह समझ लीजिए कि मेरठ में 50 परसेंट काम खत्म हो चुका है. और आगे भी कोई उम्मीद नहीं है."
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आखिर इस उद्योग की यह हालत क्यों हो गई, इस सवाल के जवाब में दानियाल कहते हैं, "असल में पहले तो जीएसटी से फर्क पड़ा था उससे धीरे-धीरे रिकवर हुए तो अब काम ही नहीं है। दूसरा बिजली का रेट बहुत ज्यादा है। हमारा तो खैर अपना है लेकिन बहुत से लोगों ने किराए पर लेकर यह मशीन लगाई वह भी सब परेशान हैं। बाकी आगे अब यह मशीन खत्म ही हो जाएँगी, जिसके अपने काम हैं वह थोड़ा बहुत चलाते रहेंगे। साथ ही सरकार टैक्स और बढ़ाना चाहती है। लेकिन सरकार को हमारे कपड़ा व्यापार की तरफ ध्यान देना चाहिए"
मोहम्मद दानियाल p.c. (मोहम्मद ताहिर)
हम यहां घूम ही रहे थे, आस पास कुछ मशीनों के चलने की आवाजें भी आ रही थीं तभी पास ही रहने वाले मोहम्मद जाहिद अंसारी भी हमें देखकर अपने घर से निकल आए और बेहद दुखी मन से अपनी व्यथा हमसे बताई। इनकी भी हैंडलूम मशीनें लगी हुई हैं.
जाहिद अंसारी न्यूज़क्लिक को बताते हैं, "बहुत काम खराब है, और जब से यह सरकार (बीजेपी) आई है तब से और ज्यादा खराब है। बुनकर बहुत परेशान और भुखमरी के कगार पर हैं। सरकार से कोई सहायता नहीं मिल रही है। पहले सब्सिडी मिलती थी अब 18 महीने से बिजली बिल पर वह नहीं मिल रही तो बिल जमा नहीं हुआ। बाकी देख लो मशीनें बंद पड़ी हैं सब परेशान हैं। काम तो है ही नहीं, माल तैयार करके रख दो कोई आर्डर नहीं मिलता। सरकार की बड़ी मेहरबानी होगी अगर बुनकरों को कुछ राहत दे दे। बुनकर समाज के लोग कई बार लखनऊ जा भी लिए लेकिन मसला हल नहीं हो रहा।"
अपनी व्यथा बताते जाहिद अंसारी p.c. (मोहम्मद ताहिर)
कुछ ऐसी ही कहानी कांच वाला पुल के पास रहने वाले अतीक अंसारी की है जो लगभग 20 साल से कपड़े की मैन्युफैक्चरिंग का काम कर रहे हैं। अतीक अंसारी हमें अपने घर में अंदर ले जाते हैं और विस्तार से बताते हुए कहते हैं, "पिछले 10 साल से हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं और अब तो बिल्कुल डाउन पड़ा है। महंगाई ज्यादा है प्रॉफिट है नहीं और अगर जीएसटी आगे बढ़ा दिया तो अब कुछ नहीं बचेगा। बुनकर पिस रहा है, पीड़ित हो रहा है, सरकार सुनवाई नहीं करती। स्टॉक लगा रहता है बिक्री होती नहीं है। कुछ लॉकडाउन की वजह से डाउन हुआ और कुछ सरकार की पॉलिसी की वजह से। जैसे पहले एग्जीबिशन लगती थी तो कांग्रेस 500 करोड़ रुपए एग्जीबिशन के देती थी। लेकिन बीजेपी गवर्नमेंट कुछ नहीं दे रही तो वह भी बंद हो गई। बिजली के बिल पर समाजवादी सरकार सब्सिडी देती थी वह बीजेपी ने बंद कर दी, इससे और बुनकरों का उत्पीड़न होगा। धागे के रेट आसमान छू रहे हैं कपड़े का रेट मिलता नहीं। और फिलहाल आगे कोई सुविधा के आसार भी नहीं है"
अतीक अंसारी p.c. (मोहम्मद ताहिर)
हमसे बातचीत में अतीक, सरकार के ‘सबका साथ– सबका विकास’ के नारे पर भी सवाल उठाते हैं। वे कहते हैं, "जब सबका साथ–सबका विकास” का नारा लगा हुआ है तो बुनकरों का विकास क्यों नहीं हो रहा! और ना ही बुनकरों का साथ दिया जा रहा। सरकार सिर्फ जुमलेबाजी करती है। बुनकरों के लिए तो कम से कम कुछ नहीं हुआ। कई बार लखनऊ में कपड़ा और ऊर्जा मंत्री के साथ मीटिंग भी हो चुकी है लेकिन सिर्फ आश्वासन मिलता है। पहले कहा था कि 10 महीने का बिल जमा कर दिया जाएगा लेकिन वह भी पेंडिंग में पड़ा है"
अंत में बुनकर के महत्व के बारे में बताते हुए अतीक कहते हैं, "किसी भी बच्चे को पैदा होने के बाद खाने से पहले कपड़े की जरूरत पड़ती है। लेकिन आज बुनकर ही सबसे ज्यादा पीड़ित है."
मेरठ हैंडलूम एसोसिएशन के अध्यक्ष रईसुद्दीन अंसारी न्यूज़क्लिक से कहते हैं, "हैंडलूम उद्योग की वर्तमान स्थिति बहुत खराब है। रोजगार खत्म होता जा रहा है, हर आदमी रो रहा है। मेरठ में लगभग एक लाख मशीनें हैं। बिजली बिल सबसे बड़ी समस्या है क्योंकि पिछले डेढ़ साल से बीजेपी सरकार ने सब्सिडी बंद कर दी है। लोग इस बात से परेशान हैं कि सरकार इसमें क्या निर्णय लेगी, क्योंकि डेढ़ साल का बिल बकाया है। साथ ही धागा बहुत महंगा है, काम चल नही पा रहे। इस सिलसिले में हम लखनऊ में बीसों बार बिजली और कपड़ा मंत्रियों से मिले चुके हैं, उन्होंने समस्या के समाधान का आश्वासन तो दिया लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ। हमने पूरे उत्तर प्रदेश के बुनकरों की मीटिंग फिर से रखी है तो फिर बात करेंगे। और हमारी यही मांग रहेगी कि बिजली बिल पुराने रेट पर जमा कराया जाए। क्योंकि हर आदमी परेशान है और सरकार वादे पर वादे कर रही है"
गौरतलब है कि देश के पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में चुनावी बिगुल बज चुका है। देश के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण माने जाने वाले उत्तर प्रदेश में सात चरणों में चुनाव होगा और दस मार्च को नतीजे आएंगे। मेरठ में भी 10 फरवरी को पहले चरण में ही मतदान होगा।
(मोहम्मद ताहिर दिल्ली स्थित पत्रकार हैं. वे पॉलिटिक्स, कल्चर, हयूमन राइट्स, सोसाइटी, माइनॉरिटी आदि मुद्दे कवर करते हैं)
source ; newsclick.in
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