बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया कि वह कोरोना पीड़ितों के परिजन की ओर से मुआवजे के लिए दिए गए किसी भी आवेदन को केवल इसलिए लंबित न रखें, क्योंकि आवेदन ऑनलाइन दायर नहीं किया गया है.
चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस वीजी बिष्ट की खंडपीठ एक गैर सरकारी संगठन (NGO) की ओर दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी. एनजीओ की ओर से एक आवेदन दिया गया था जिसे उन्होंने ऑनलाइन पोर्टल के बजाय ऑफलाइन दायर किया था.
प्रमेय वेलफेयर फाउंडेशन के याचिकाकर्ता ट्रस्ट की ओर से पेश वकील सुमेधा राव ने तर्क दिया कि आवेदन करने वाले ज्यादातर झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले थे जो ऑनलाइन डॉक्यूमेंट्स जमा करना नहीं जानते थे. वकील की ओर से दावा किया गया कि सरकार की ओर से पोर्टल खोलने में देरी हुई है और लगभग 50 लोगों ने पोर्टल शुरू होने से पहले ही आवेदन कर दिया है. राव ने कोर्ट से कहा कि पोर्टल बनने से पहले ऑफलाइन आवेदन करने वालों के लिए राज्य को भुगतान करने में देरी नहीं करना चाहिए.
अतिरिक्त सरकारी वकील पूर्णिमा कंथारिया ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार को कुल 114 आवेदन ऑफलाइन मिले हैं. 54 ऐसे आवेदकों से अधिकारियों की ओर से सहायता के लिए संपर्क किया गया था. 14 ऐसे आवेदकों का पता नहीं लगाया जा सका, इसलिए राज्य उन्हें आवेदन करने की ऑनलाइन सिस्टम में सहायता करने में असमर्थ रहा.
खंडपीठ ने कंथारिया से कहा कि राज्य सरकार केवल इसलिए आवेदनों को खारिज नहीं करेगी क्योंकि किसी ने ऑफलाइन आवेदन किया था. हालांकि कंथारिया ने जवाब दिया कि आवेदकों को लाभ पहुंचाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार ऑनलाइन पोर्टल तैयार किया गया था. उन्होंने कहा कि ऑनलाइन पोर्टल आवेदकों और राज्य के लिए भी आसान थे.
सबमिशन को संक्षेप में सुनने के बाद बेंच ने सभी प्रतिवादियों को याचिका पर अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करने के लिए कहा और निर्देश दिया कि आवेदनों को तब तक लंबित नहीं रखा जाए जब तक कि वे ऑनलाइन फॉर्मेट में सब्मिट नहीं हो जाते. खंडपीठ ने निर्देश दिया कि आवेदन जो ऑनलाइन दाखिल नहीं किए गए हैं, उन्हें भी उसी तरह लिया जा सकता है जैसे ऑनलाइन आवेदन SARS-CoV-2 के पीड़ितों के परिजनों को सहायता प्रदान करने के लिए लिये गए थे. कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी जोड़ा कि यह सुनिश्चित करने के लिए पूरी कोशिश की जानी चाहिए कि सहायता जल्द से जल्द आवेदकों तक पहुंचे.
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