सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून के प्रावधानों के तहत सरकारी कर्मचारी से रिश्वत लेने और मांगने के अपराध को साबित करने के लिए सबूत जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 के तहत लोक सेवकों द्वारा अवैध मांग और रिश्वत की स्वीकृति आवश्यक कारक हैं। जस्टिस अजय रस्तोगी (Justice Ajay Rastogi) और जस्टिस अभय एस ओका (Justice Abhay S Oka) की बेंच ने तेलंगाना हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए यह बात कही।
उल्लेखनीय है कि धारा 7 सरकारी अधिनियम के संबंध में कानूनी पारिश्रमिक के अलावा अवैध पारिश्रमिक लेने वाले लोक सेवकों के अपराध से संबंधित है। इस मामले में हाईकोर्ट ने एक महिला लोक सेवक की सजा को बरकरार रखा था। सिकंदराबाद में वाणिज्यिक कर अधिकारी के रूप में कार्यरत महिला अधिकारी को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 के तहत दोषी ठहराया गया था।
बेंच ने अपने फैसले में कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 के तहत लोक सेवकों द्वारा रिश्वत की अवैध मांग और स्वीकृति एक अनिवार्य कारक है। इस अपराध को साबित करने के लिए सबूत होने चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली आरोपी महिला अधिकारी की विशेष अनुमति याचिका पर यह फैसला सुनाया। बेंच ने पाया कि शिकायतकर्ता द्वारा रिश्वत मांगने के आरोप को साबित करने के लिए शिकायतकर्ता के साक्ष्य विश्वसनीय नहीं थे। इसलिए, हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि अपीलकर्ता द्वारा की गई मांग साबित नहीं हुई थी।
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