सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को अपनी अगस्त 2021 की छूट नीति पर पुनर्विचार करने के लिए कहा है, जिसने समय से पहले रिहाई के लिए आवेदन करने के लिए आजीवन कारावास के दोषियों के लिए न्यूनतम आयु 60 वर्ष निर्धारित की है। सुप्रीम कोर्ट ने इस नीति की वैधता पर संदेह व्यक्त किया है। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल (Justice Sanjay Kishan Kaul) और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश (Justice MM Sundaresh) की बेंच ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह नीति टिकाऊ नहीं लगती। बेंच ने यूपी सरकार से चार महीने में इस नीति पर जरूरी कदम उठाने को कहा है।
बेंच ने कहा, "हम समय से पहले रिहाई के लिए आवेदन करने के लिए 60 वर्ष की न्यूनतम आयु निर्धारित करने वाले इस खंड की वैधता पर बहुत संदेह व्यक्त करना चाहते हैं।" इस शर्त का मतलब है कि उम्र कैद की सजा पाने वाले 20 वर्षीय युवक को समय से पहले रिहाई के लिए आवेदन करने के लिए 40 साल सलाखों के पीछे रहना होगा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "हम चाहते हैं कि राज्य सरकार नीति के इस हिस्से की फिर से जांच करे।" यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि राज्यपाल राज्य सरकार द्वारा बनाई गई नीति के अनुसार दोषियों की समयपूर्व रिहाई के लिए संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करता है।
सुप्रीम कोर्ट माता प्रसाद द्वारा दायर एक अर्जी पर विचार कर रही थी। अर्जी में कहा गया है कि 26 जनवरी 2020 को उनके अनुरोध को मंजूरी मिलने के बावजूद उन्हें जेल से रिहा नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि उन्हें वर्ष 2004 में दोषी ठहराए जाने के बाद आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी और 17 साल से अधिक की सजा काटने के बाद उन्हें जेल से रिहा नहीं किया गया है।
राज्य सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि समय से पहले रिहाई की नीति में 28 जुलाई, 2021 को संशोधन किया गया था। याचिकाकर्ता के मामले में लागू होने वाला महत्वपूर्ण बदलाव यह है कि ऐसे सभी दोषियों के आवेदनों पर विचार करने के लिए यह बिना किसी छूट के 60 साल और 20 साल और छूट के साथ 25 साल की हिरासत में रहना अनिवार्य है।
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