उत्तराखंड के विभिन्न ज़िलों में भीड़ हिंसा और नफ़रत की राजनीति के विरोध में लोगों ने प्रदर्शन करते हुए राज्य में अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ बढ़ रहे अपराधों पर चिंता जताई है. कोरोना की पहली लहर में सरकार ने ताली-थाली बजवाई थी, उसी तर्ज पर इस दौरान कनस्तर बजाकर नारे लगाए गए और हिंसा ख़त्म करने की अपील की गई. साथ में नारे लिखे पोस्टर दिखाकर सरकार के प्रति अपना रोष व्यक्त किया गया.
उत्तराखंड: शनिवार को उत्तराखंड के विभिन्न जिलों में सैकड़ों बुद्धिजीवियों, आंदोलनकारियों और राजनेताओं ने देश में बढ़ती नफरत और भीड़ की हिंसा के खिलाफ अनोखे तरीके से प्रदर्शन किया. जिसमें मुख्य तौर पर बीते दिसंबर माह में हरिद्वार में आयोजित धर्म संसद की आलोचना की गई और इसे नफरत की राजनीति बताया गया.
कोरोना महामारी और आगामी विधानसभा चुनावों के चलते राज्य में लगी आचार संहिता को ध्यान में रखते हुए प्रदर्नकारियों ने अपने घर में ही या फिर छोटे-छोटे समूहों में धरना दिया और नारा लगाया कि ‘नफरत नहीं, रोजगार दो’.
कोरोना की पहली लहर में सरकार ने ताली-थाली बजवाई थी, उसी तर्ज पर इस दौरान कनस्तर बजाकर नारे लगाए गए और हिंसा खत्म करने की अपील की गई. साथ में नारे लिखे पोस्टर (प्ले कार्ड) दिखाकर सरकार के प्रति अपना रोष व्यक्त किया.
इस प्रदर्शन में उत्तराखंड के प्रमुख जन संगठन, सेवानिवृत सरकारी अधिकारी, महिला आंदोलनकारी, रंगकर्मी, राजनेता, लेखक, पत्रकार, बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की. जिनके आह्वान पर देहरादून, टिहरी, रामनगर, हरिद्वार, चमोली, नैनीताल, श्रीनगर, बागेश्वर, उधम सिंह नगर और अन्य स्थानों पर सैकड़ों लोग कार्यक्रम में शामिल हुए.
प्रदर्शनकारियों में उत्तराखंड क्रांति दल के अध्यक्ष काशी सिंह ऐरी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के समर भंडारी, सीपीआई(एम) के एसएस सजवान, सीपीआई(एमएल) के इंद्रेश मैखुरी, तृणमूल कांग्रेस के राकेश पंत और समाजवादी हपार्टी के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. एसएन सचान शामिल थे.
साथ ही 19 विभिन्न संगठनों के अध्यक्ष, सचिव और प्रतिनिधि व तीन लेखक, पत्रकार और बुद्धिजीवी भी शामिल थे. इन सभी के आह्वान पर ही प्रदर्शन का आयोजन हुआ था.
प्रदर्शन के दौरान कहा गया कि दिसंबर में हरिद्वार में धर्म संसद में खुल्लम-खुल्ला मुस्लिमों के नरसंहार का आह्वान हुआ, उससे पहले 2017-18 में ऐसे ही नजारे देशभर में देखे गए और हाल में रुड़की और नैनीताल में हिंसक घटनाएं हुई हैं, लेकिन आयोजकों या हिंसा फैलाने वाले संगठनों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. धर्म संसद मामले में जिन दो लोगों को पकड़ा गया है, उन पर भी सख्त धाराएं नहीं लगाई गई हैं.
इस दौरान कहा गया कि सेवानिवृत सैनिकों से लेकर सुरक्षा विशेषज्ञों ने उत्तराखंड सरकार के रवैये की निंदा की है. पुलिस के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी भी निंदा करने वालों में शामिल हैं, जो मानते हैं कि राज्य में अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं हैं.
इस दौरान मुख्य तौर पर चार मांगें उठाई गईं, जिनमें भीड़ की हिंसा और नफरत की राजनीति करने वालों पर कार्रवाई, बढ़ती हुई बेरोजगारी पर तत्काल कदम उठाने, लोगों की सुविधा के लिए एक प्रभावी स्वास्थ्य हेल्पलाइन शुरू करने और सुप्रीम कोर्ट द्वारा भीड़ की हिंसा संबंधी दिए गए फैसले को तुरंत अमल में लाने की मांगें शामिल थीं.
द वायर से बात करते हुए सीपीआई के प्रदेशाध्यक्ष समर भंडारी ने कहा, ‘उत्तराखंड हमेशा से शांतिप्रिय राज्य रहा है लेकिन 2014 से अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘पिछले कुछ सालों में मुनि, सतपुली और मसूरी के पहाड़ी इलाकों में भी अल्पसंख्यकों के खिलाफ कई घटनाएं हुईं. इनका विरोध करने के लिए हमने ‘जन हस्तक्षेप’ संस्था का गठन किया है, जिसमें राजनीतिक दल, आम लोग और कुछ सामाजिक संगठन शामिल हैं. इसलिए हमने अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने वाली ऐसी घटनाओं के खिलाफ प्रदर्शन रखा.’
हालांकि, भंडारी ने बताया कि जिस स्तर पर संघ, भाजपा और उनके सहयोगी संगठन काम करते हैं, उनकी बराबरी कर पाना मुश्किल है. पुलिस और प्रशासन भी उनके दबाव में काम करते हैं. इसलिए हरिद्वार की हालिया घटना के खिलाफ हमने प्रदर्शन करने की ठानी.
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