हाईकोर्ट ने दुष्कर्म और हत्या के आरोपी को अलग-अलग धाराओं में सुनाई गई फांसी की सजा से बरी कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि अभियोजन अपना पक्ष साबित करने में सफल नहीं रहा। इस वजह से ट्रायल कोर्ट के फैसले को निरस्त करते हुए आरोपी को फांसी की सजा से बरी किया जाता है। यह फैसला न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति समीर जैन की दो जजों की खंडपीठ ने नाजिल की याचिका पर सुनाया है।
कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा है कि मृतक को अंतिम बार अपीलकर्ता के साथ जीवित देखा गया था। याची के खिलाफ कोई चिकित्सकीय साक्ष्य भी नहीं मिले हैं। इकबालिया बयान को छोड़कर पुलिस के पास कोई ऐसा साक्ष्य नहीं है जो घटना को साबित करने में मदद करता हो। कोर्ट ने कोई स्वतंत्र गवाह और घटनास्थल पर आपत्तिजनक साक्ष्य न मिलने से अभियोजन के सभी तर्कों को नजरअंदाज कर दिया।
कहा कि अपीलकर्ता बरी होने का हकदार है। याची की अपील स्वीकार की जाती है। मृत्युदंड की पुष्टि के लिए निचली अदालत द्वारा भेजा गया संदर्भ खारिज किया जाता है। याची को उन सभी आरोपों से बरी किया जाता है, जिसके लिए उस पर मुकदमा चलाया गया और उसे दोषी ठहराया गया। सीआरपीसी की धारा 437 (ए) के प्रावधानों के तहत याची को तत्काल जेल से रिहा किया जाए।
मामला रामपुर शहर का है। याची पर आरोप है कि उसने छह वर्ष की बच्ची केसाथ दुष्कर्म कर हत्या कर दी। बच्ची का शव कांशीराम कॉलोनी में अर्ध निर्मित घर में पाया गया था। मामले में सुनवाई कर फास्ट ट्रैक कोर्ट ने याची को भारतीय दंड संहिता की धारा 363, 376 एबी, 302 और पॉक्सो एक्ट की धारा छह के तहत फांसी की सजा सुनाई थी। याची ने फास्ट ट्रैक कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी। याची की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नजररूल इस्लाम जाफरी, नसिरा आदिल आदि ने बहस की।
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