महाराष्ट्र के 12 भाजपा विधायकों को एक साल के लिए विधान सभा से निलंबित किए जाने के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए तैयार हो गया है। मालूम हो कि इनको पीठासीन अधिकारी से कथित बदसलूकी के आरोप में विधान सभा से निलंबित कर दिया गया था। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमणा, जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई। अधिवक्ता सिद्धार्थ धर्माधिकारी ने दलील दी कि विधानसभा का शीतकालीन सत्र शुरू होने वाला है जिसे देखते हुए विधायकों के निलंबन के खिलाफ दाखिल याचिका पर तुरंत सुनवाई की दरकार है।
महाराष्ट्र सरकार 22 से 28 दिसंबर के बीच विधानसभा का शीतकालीन सत्र बुला रही है। निलंबित भाजपा विधायकों ने निलंबन संबंधी विधानसभा के प्रस्ताव को 22 जुलाई को सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी थी। विधायकों की ओर से पेश वकील की दलील पर शीर्ष अदालत ने कहा कि हम सुनवाई के लिए तैयार है। हम तारीख दे रहे हैं। राज्य सरकार का आरोप है कि पांच जुलाई को विधानसभा अध्यक्ष के कक्ष में पीठासीन अधिकारी भास्कर जाधव के साथ उक्त 12 विधायकों ने कथित रूप से दुर्व्यवहार किया जिसके बाद इन्हें निलंबित करने का प्रस्ताव सदन की ओर से पारित किया था।
निलंबित विधायकों में गिरीश महाजन, संजय कुटे, अतुल भातखलकर, आशीष शेलार, अभिमन्यु पवार, राम सतपुते, पराग अलवानी, जय कुमार रावत, नारायण कुचे, हरीश पिंपले, योगेश सागर और बंटी भांगड़िया शामिल हैं। राज्य के संसदीय कार्य मंत्री अनिल परब ने विधायकों को निलंबित करने का प्रस्ताव पेश किया था जिसे ध्वनि मत से पारित कर दिया गया था। विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस ने आरोप को बेबुनियाद बताते हुए कहा था कि भास्कर जाधव के आरोप एकतरफा थे। यह विपक्षी सदस्यों की संख्या कम करने की एक कोशिश है। भाजपा ने स्थानीय निकायों में ओबीसी कोटे पर सरकार के झूठ का पर्दाफांस किया है।
Source Link
सोशल मीडिया बोल्ड है। सोशल मीडिया युवा है। सोशल मीडिया सवाल उठाता है। सोशल मीडिया एक जवाब से संतुष्ट नहीं है। सोशल मीडिया बड़ी तस्वीर देखता है। सोशल मीडिया हर विवरण में रुचि रखता है। सोशल मीडिया उत्सुक है। सोशल मीडिया फ्री है। सोशल मीडिया अपूरणीय है। लेकिन कभी अप्रासंगिक नहीं। सोशल मीडिया तुम हो। (समाचार एजेंसी की भाषा से इनपुट के साथ) अगर आपको यह कहानी अच्छी लगी हो तो इसे एक दोस्त के साथ शेयर करें! हम एक गैर-लाभकारी संगठन हैं। हमारी पत्रकारिता को सरकार और कॉर्पोरेट दबाव से मुक्त रखने के लिए आर्थिक रूप से मदद करें !
0 Comments