समयसीमा की परवाह किए बिना सरकारी अधिकारियों द्वारा देर से अदालत आने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है। शीर्ष अदालत ने कहा, अगर सरकार को लगता है कि यह समयसीमा बेहद अपर्याप्त है तो वह अपील दायर करने की समयसीमा बढ़ाने के लिए विधायिका से संपर्क कर सकती है।
दरअसल, केंद्र सरकार ने पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के जुलाई, 2017 के आदेश के खिलाफ 1,356 दिनों की देरी से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इस पर जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हृषिकेश राय की पीठ ने याचिका को समयबद्ध बताते हुए खारिज कर दिया और 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया।
पीठ ने कहा कि उन्होंने ऐसे मामलों को प्रमाणपत्र केसों के रूप में वर्गीकृत किया है जो खारिज होने का प्रमाणपत्र हासिल करने के लिए ही शीर्ष अदालत में लाए जाते हैं ताकि दोषी अधिकारियों को बचाया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि ट्रिब्यूनलों के आदेशों पर वाटरमार्क उन्हें अपठनीय बना देते हैं। एनजीटी के एक आदेश के खिलाफ अपील पर सुनवाई के दौरान जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत की ई-कमेटी ट्रिब्यूनलों से संपर्क करेगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आदेशों पर ऐसे लोगो का इस्तेमाल न किया जाए।
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(समाचार एजेंसी की भाषा से इनपुट के साथ)
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