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महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, गरीबी और विकासात्मक विषय, शहरीकरण, उनकी समस्याएँ और उनके रक्षोपाय।

 

KANISHKBIOSCIENCE E -LEARNING PLATFORM - आपको इस मुद्दे से परे सोचने में मदद करता है, लेकिन UPSC प्रीलिम्स और मेन्स परीक्षा के दृष्टिकोण से मुद्दे के लिए प्रासंगिक है। इस 'संकेत' प्रारूप में दिए गए ये लिंकेज आपके दिमाग में संभावित सवालों को उठाने में मदद करते हैं जो प्रत्येक वर्तमान घटना से उत्पन्न हो सकते हैं ! 

तलाक और गुजारा भत्ता पर ‘समान नागरिक कानून’ के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिका

 

 

संदर्भ:

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हाल ही में, सभी धर्मों के लिए ‘समान कानून’ उपलब्ध कराने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। इस याचिका में कहा गया है, कि उपरोक्त क़ानून की आड़ में मुस्लिम महिलाओं को उनके धर्म का पालन करने संबंधी मौलिक अधिकार छीनने की ‘खुल्लम-खुल्ला कोशिश’ की जा रही है।

संबंधित प्रकरण:

याचिकाकर्ता ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा है कि, अदालत, तलाक, भरण-पोषण और गुजारा भत्ता के संबंध में एक ‘समान नागरिक कानून’ लागू होने से उसकी जैसी मुस्लिम महिलाओं की बेहतरी पर फैसला करने से पहले उसकी बात सुन ले।

  • पिछले वर्ष दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने, अधिवक्ता ए.के. उपाध्याय द्वारा दायर की गयी, सभी धर्मों के लिए तलाक, भरण-पोषण एवं गुजारा भत्ता हेतु एक कानून बनाए जाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करने हेतु सहमति प्रदान की थी।
  • अधिवक्ता ए.के. उपाध्याय ने तर्क दिया था, कि कुछ धर्मों में तलाक, भरण-पोषण एवं गुजारा भत्ता संबंधी क़ानून महिलाओं के साथ भेदभाव करते है और उन्हें हाशिए पर छोड़ देते हैं।
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‘एक समान कानून’ की आवश्यकता:

  • धर्मों के अनुसार भिन्न-भिन्न मौजूदा विसंगतियाँ समानता के अधिकार (संविधान का अनुच्छेद 14) और धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव (अनुच्छेद 15) और गरिमासे जीने का अधिकार (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन करती हैं।
  • अतः, तलाक, भरण-पोषण एवं गुजारा भत्ता संबंधी कानून ‘लिंग-तटस्थ और धर्म-तटस्थ’ होने चाहिए।

भारत में ‘पर्सनल लॉ’ की स्थिति:

‘पर्सनल लॉ’ संबंधी विषय, जैसे कि विवाह, संबंध-विच्छेद (तलाक), विरासत आदि, संविधान की समवर्ती सूची में आते हैं।

  • ‘हिंदू पर्सनल लॉज़’ को वैधानिक क़ानून (हिंदू विवाह अधिनियम, 1955) को लागू करके सामान्यतः धर्मनिरपेक्ष और आधुनिक बनाया जा चूका है।
  • दूसरी ओर, ‘मुस्लिम पर्सनल लॉज़’ (जैसे कि, 1937 का शरीयत कानून) अभी भी अपनी विषय वस्तु और नजरिए में पारंपरिक और अपरिवर्तित हैं ।
  • इसके अलावा, ईसाई और यहूदी धर्मो में अलग-अलग ‘पर्सनल लॉज़’ द्वारा लागू होते हैं।

अनुच्छेद 142:

अनुच्छेद 142 के तहत, उच्चतम न्यायालय को पक्षकारों के मध्य ‘पूर्ण न्याय’ करने की अद्वितीय शक्ति प्रदान की गयी है, अर्थात, जब कभी स्थापित नियमों एवं कानूनों के तहत कोई समाधान नहीं निकल पाता है, तो ऐसे में अदालत, मामले से संबंधित तथ्यों के मुताबिक़ विवाद पर ‘अंतिम फैसला’ सुना सकती है।

गुजारा-भत्ता

सभी समुदायों पर लागू होने वाली दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 के तहत, पत्नियों, बच्चों और माता-पिता को, अपने भरण-पोषण हेतु पर्याप्त और उचित साधनों से कमा पाने में अक्षम होने पर अथवा शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम होने पर, गुजारा-भत्ता दिए जाने का प्रावधान किया गया है। इस धारा के तहत, गैर-तलाकशुदा पत्नी को भी अपने पति से गुजारा-भत्ता प्राप्त करने का अधिकार है।

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प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘समान नागरिक संहिता’ क्या है?
  2. अनुच्छेद 13, 14 और 19 के बारे में।
  3. दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125
  4. अनुच्छेद 142 किससे संबंधित है?
  5. भारतीय संविधान की 7 वीं अनुसूची।

 

मेंस लिंक:

सभी धर्मों के लिए तलाक, भरण-पोषण एवं गुजारा भत्ता हेतु एकसमान दिशा-निर्देशों की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए।

https://epaper.thehindu.com/Home/MShareArticle?OrgId=G6J8EDVMB.1&imageview=0.

स्रोत: द हिंदू

 

 


सामान्य अध्ययन-II


 

विषय: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।

 

आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS)

(Emergency Credit Line Guarantee Scheme)

 

 

संदर्भ:

हाल ही में, सरकार द्वारा 3 लाख-करोड़ रुपए की आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (Emergency Credit Line Guarantee SchemeECLGS) को आगामी तीन महीनों की अवधि अर्थात 30 जून तक के लिए बढ़ा दिया गया है तथा योजना के दायरे का विस्तार करते हुए इसमें आतिथ्य, यात्रा और पर्यटन जैसे नए क्षेत्रों को भी शामिल किया गया है।

विवरण:

  • ECLGS 3.0 के तहत 29 फरवरी, 2020 तक सभी ऋण देने वाली संस्थाओं की कुल बकाया ऋण के 40 प्रतिशत तक का विस्तार शामिल किया जाएगा।
  • ECLGS 3.0 के तहत दिए गए ऋणों का कार्यकाल 6 वर्ष का होगा, जिसमें 2 वर्ष की छूट अवधि शामिल होगी।

योजना के बारे में:

आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS) को मई 2020 में आत्मनिर्भर भारत अभियान पैकेज के एक भाग के रूप में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य कोरोनोवायरस के कारण लगाए गए लॉकडाउन से उत्पन्न संकट को कम करने के लिए, विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) को क्रेडिट प्रदान करना था।

  • इसके अंतर्गत, राष्ट्रीय ऋण गारंटी ट्रस्टी कंपनी लिमिटेड (NCGTC) द्वारा 100% गारंटी कवरेज प्रदान की जाती है, जबकि बैंक और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) द्वारा ऋण उपलब्ध कराया जाता है।
  • यह ऋण, एक ‘गारंटी युक्त आपातकालीन क्रेडिट लाइन’ (Guaranteed Emergency Credit Line- GECL) सुविधा के रूप में प्रदान किया जाएगा।
  • योजना के तहत भागीदार ऋण प्रदाता संस्थानों (Member Lending Institutions- MLI) से NCGTC द्वारा कोई गारंटी शुल्क नहीं लिया जाएगा।
  • इस योजना के अंतर्गत बैंकों और वित्तीय संस्थानों (financial Institutions) के लिए 9.25% ब्याज दर तथा गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) के लिए 14% ब्याज दर की सीमा निर्धारित की गई है।

पात्रता:

  • 29 फरवरी, 2020 तक 50 करोड़ रुपए के बकाया ऋण वाले तथा 250 करोड़ रुपए तक का वार्षिक कारोबार करने वाले ऋणकर्ता इस योजना का लाभ उठाने हेतु पात्र होंगे।
  • 1 अगस्त 2020 को सरकार द्वारा3 लाख-करोड़ रुपए की आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS) का दायरा विस्तृत कर दिया गया। इसके तहत बकाया ऋण की सीमा को दोगुना कर दिया गया तथा व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए डॉक्टरों, वकीलों और चार्टर्ड एकाउंटेंट जैसे पेशेवरों को एक निश्चित ऋण ऋण प्रदान करना शामिल किया गया है।
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योजना के लाभ:

  • इस योजना के माध्यम से इन क्षेत्रों को कम लागत पर ऋण प्रदान किया जाएगा, जिससे MSME अपने परिचालन दायित्वों को पूरा करने और अपने व्यवसायों को फिर से शुरू करने में सक्षम होंगे।
  • वर्तमान अभूतपूर्व स्थिति के दौरान अपना कार्य जारी रखने के लिए MSMEs को सहयोग प्रदान करने से, इस योजना का अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ने और इसके पुनरुद्धार में सहायता मिलने की भी उम्मीद है।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. MSMEs का वर्गीकरण- पुराना बनाम नया।
  2. MSMEs का जीडीपी में योगदान।
  3. NBFCs क्या हैं?
  4. GECL सुविधा क्या है?
  5. NCGTC क्या है?

https://epaper.thehindu.com/Home/MShareArticle?OrgId=GGQ8EDQEJ.1&imageview=0.

स्रोत: द हिंदू

 

 

विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।

‘वैक्सीन की बर्बादी’ क्या है, और इसे किस प्रकार रोका जा सकता है?

 

संदर्भ:

स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा है, कि दूसरी खुराक के लिए टीकों को बचाकर रखने का कोई महत्व नहीं है तथा सभी सरकारी और निजी अस्पतालों में, जहां भी मांग होगी, शीघ्र आपूर्ति सुनिश्चित करने का निर्देश जारी किया है।

केंद्र द्वारा राज्यों को दिशानिर्देश:

  • ‘वैक्सीन की बर्बादी’ 1% से कम तक सीमित रखी जाए (वर्तमान में राष्ट्रीय स्तर पर ‘वैक्सीन बर्बादी’ 6 प्रतिशत है)।
  • सभी स्तरों पर होने वाली ‘वैक्सीन की बर्बादी’ की नियमित रूप से समीक्षा की जाए तथा इसे कम किया जाए।
  • टीकों की बिना उपयोग के, उनकी समाप्ति तिथि से पहले उपलब्ध स्टॉक का समय पर उपयोग सुनिश्चित करना।
  • स्वास्थ्य देखभाल और फ्रंटलाइन कर्मियों की श्रेणी में केवल पात्र लाभार्थियों को ही पंजीकृत तथा टीकाकरण किया जाना चाहिए।

 

‘वैक्सीन की बर्बादी’ (Vaccine Wastage) क्या होती है?

‘वैक्सीन की बर्बादी’ किसी भी बड़े टीकाकरण अभियान का एक अपेक्षित घटक होता है। लेकिन बड़े पैमाने पर ‘वैक्सीन की बर्बादी’ होने से वैक्सीन की मांग में वृद्धि होने लगती है, जिससे इससे अनावश्यक खरीद में वृद्धि होती है।

‘वैक्सीन की बर्बादी’ के विभिन्न चरण:

  1. कोल्ड चेन स्तर।
  2. जिला टीका भंडार।
  3. टीकाकरण लगाए जाने वाली जगहें।

 

‘वैक्सीन की बर्बादी’ रोकने के तरीके:

  • उचित योजना
  • प्रत्येक टीका सत्र में अधिकतम 100 लाभार्थियों को टीका दिया जाना चाहिए।
  • टीका कर्मियों को उचित प्रशिक्षण।

https://epaper.thehindu.com/Home/MShareArticle?OrgId=G6J8EDVMJ.1&imageview=0.

स्रोत: द हिंदू

 

 


सामान्य अध्ययन-III


विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।

 

मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण

(Inflation targeting)

 

 

Novakid Many GEOs

संदर्भ:

हाल ही में, केंद्र सरकार द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक की ‘मौद्रिक नीति समिति’ हेतु आगामी पांच वर्षों के लिए +/- 2 प्रतिशत अंकों की गुंजाइश सीमा के साथ 4 प्रतिशत मुद्रास्फीति लक्ष्य बनाए रखने का निर्णय लिया गया है।

‘मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण’ क्या है?

  • यह एक निर्दिष्ट वार्षिक मुद्रास्फीति दर प्राप्त करने हेतु मौद्रिक नीति के संयोजन पर आधारित केंद्रीय बैंक की एक नीति होती है।
  • मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (Inflation Targeting) का सिद्धांत इस विश्वास पर आधारित होता है कि दीर्घकालीन आर्थिक वृद्धि, सर्वोत्तम रूप से, कीमतों की स्थिरता बनाए रखने के माध्यम से हासिल की जा सकती है तथा ‘कीमतों की स्थिरता’, मुद्रास्फीति नियंत्रित करके हासिल की जा सकती है।

मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण फ्रेमवर्क:

वर्ष 2016 में, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अधिनियम, 1934 में संशोधन के बाद से भारत में एक ‘लचीला मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण फ्रेमवर्क’ (Flexible Inflation Targeting Framework) लागू है।

भारत में मुद्रास्फीति लक्ष्य कौन निर्धारित करता है?

संशोधित भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, भारत सरकार, प्रत्येक पाँच वर्ष में एक बार, रिजर्व बैंक के परामर्श से मुद्रास्फीति लक्ष्य निर्धारित करती है।

वर्तमान मुद्रास्फीति लक्ष्य:

केंद्र सरकार द्वारा, 5 अगस्त, 2016 से 31 मार्च, 2021 की अवधि के लिए 4 प्रतिशत उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति को अधिसूचित किया गया है। इसके साथ ही, 6 प्रतिशत की ऊपरी गुंजाइश सीमा तथा 2 प्रतिशत की निचली गुंजाइश सीमा निर्धारित की गयी है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. वर्तमान मुद्रास्फीति लक्ष्य क्या है?
  2. मुद्रास्फीति लक्ष्य कौन निर्धारित करता है?
  3. मौद्रिक नीति समिति (MPC) क्या है?
  4. कार्य
  5. संरचना

https://epaper.thehindu.com/Home/MShareArticle?OrgId=GGQ8EDQEP.1&imageview=0.

स्रोत: द हिंदू

 

 

Novakid Many GEOs

विषय: प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सहायता तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित विषय; जन वितरण प्रणाली- उद्देश्य, कार्य, सीमाएँ, सुधार; बफर स्टॉक तथा खाद्य सुरक्षा संबंधी विषय; प्रौद्योगिकी मिशन; पशु पालन संबंधी अर्थशास्त्र।

 

कृषि कानूनों पर गठित समिति ने उच्चतम न्यायालय में रिपोर्ट सौंपी

 

संदर्भ:

हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति ने तीन कृषि-सुधार कानूनों पर अपनी रिपोर्ट एक बंद कवर में अदालत में सौंप दी है। यह रिपोर्ट, मामले की अगली सुनवाई के दौरान सार्वजनिक की जाएगी।

पृष्ठभूमि:

सितंबर माह में, संसद द्वारा पारित किए गए तथा किसान संगठनों द्वारा विरोध किए जा रहे तीन कानून निम्नलिखित हैं:

  1. कृषि उपज व्‍यापार और वाणिज्‍य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम।
  2. आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम।
  3. मूल्‍य आश्‍वासन पर किसान समझौता (सशक्तीकरण और संरक्षण) और कृषि सेवा अधिनियम

12 जनवरी को, सुप्रीम कोर्ट ने तीन कानूनों के कार्यान्वयन को निलंबित कर दिया था तथा ‘कृषि कानूनों पर किसानों की शिकायतों और सरकार के विचारों को जानने तथा उचित सिफारिशें करने हेतु’ एक चार-सदस्यीय विशेषज्ञ समिति नियुक्त की थी।

संबधित प्रकरण:

इन कृषि-कानूनों का उद्देश्य भारत के विशाल कृषि क्षेत्र को नियंत्रण-मुक्त करना है। सरकार का कहना है कि ये कानून किसानों को बिचौलियों के उत्पीडन से ‘मुक्त’ करेंगे।

किंतु, कई किसानों को इन नए कानूनों से कुछ हासिल होने की अपेक्षा खोने का भय अधिक है और इसे विशाल वित्तीय शक्तियों वाले कृषि कारपोरेशन इनके मुख्य लाभार्थी होंगे।

नए कृषि कानूनों का उद्देश्य:

  1. ये क़ानून, किसानों को सरकार द्वारा विनियमित बाजारों (जिन्हें स्थानीय रूप से मंडियों के रूप में जाना जाता है) की उपेक्षा करने और अपनी उपज को सीधे निजी खरीदारों को बेचने हेतु सक्षम बनाते हैं।
  2. किसान, अब निजी कंपनियों के साथ अनुबंध कर सकते हैं, भारत में इसे अनुबंध कृषि (Contract Farming) के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा अपनी उपज को राज्य के बाहर बेच सकते हैं। वे अब निजी कंपनियों के साथ अनुबंध कर सकते हैं, भारत में अनुबंध खेती के रूप में जानी जाने वाली एक प्रथा, और राज्य की सीमाओं के पार बेच सकते हैं।
  3. नए कानूनों में व्यापारियों के लिए खाद्यान्न के भण्डारण की अनुमति दी गई है। यह जमाखोरी के खिलाफ लगाए गए प्रतिबंधों के विपरीत है, और इससे महामारी जैसी स्थितियों के दौरान व्यापारियों के लिए कीमतों में वृद्धि का लाभ उठाना आसान होगा। पुराने नियमों के तहत, इस प्रकार की व्यवस्था आपराधिक कृत्य के रूप में घोषित थी।

किसानों की चिंताएं:

भारत में 86 प्रतिशत से अधिक कृषि योग्य भूमि पर छोटे किसानों द्वारा खेती की जाती है,  इन किसानो में प्रत्येक के पास दो हेक्टेयर (पांच एकड़) से कम भूमि होती है।

  • नए क़ानून इन किसानों के कई सुरक्षात्मक उपायों को समाप्त कर देते हैं। छोटे किसानों को डर है, कि उनके पास बड़ी कंपनियों को अपनी उपज बेचते समय, अपने जीवन स्तर को बेहतर बनाने हेतु उपज की आवश्यक कीमतों की मांग करने हेतु पर्याप्त मोलभाव करने की शक्ति नहीं है।
  • नए कानूनों में अनुबंधों को लिखित में तैयार करना अनिवार्य नहीं बनाया गया है। इससे, अनुबंध की शर्तो के उल्लंघन होने पर, किसानों के पास अपनी तकलीफों को साबित करना बहुत कठिन हो सकता है, और क़ानून में राहत के लिए मामूली उपाय किए गए हैं।
  • नए नियमों में किसी भी उपज के लिए किसी प्रकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी नहीं दी गयी है, इससे किसानों को चिंता है कि मौजूदा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को किसी भी समय समाप्त कर दिया जाएगा।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. APMC क्या हैं? उनका नियमन कैसे किया जाता है?
  2. मॉडल अनुबंध कृषि अधिनियम का अवलोकन
  3. सरकार द्वारा जारी किये गए अध्यादेश कौन से है?
  4. आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश, 2020 में मूल्य सीमा में उतार-चढ़ाव की अनुमति।
  5. आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश, 2020 के तहत भण्डार सीमा विनियमन किसके लिए लागू नहीं होगा?

 

मेंस लिंक:

क्या आपको लगता है कि आत्मानिर्भर भारत अभियान के तहत कृषि क्षेत्र के लिए प्रस्तावित सुधार किसानों के लिए बेहतर मूल्य प्राप्ति सुनिश्चित करते हैं? स्पष्ट कीजिए।

https://epaper.thehindu.com/Home/MShareArticle?OrgId=G6J8EDVMR.1&imageview=0.

स्रोत: द हिंदू

 

 

 

विषय: प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सहायता तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित विषय; जन वितरण प्रणाली- उद्देश्य, कार्य, सीमाएँ, सुधार; बफर स्टॉक तथा खाद्य सुरक्षा संबंधी विषय; प्रौद्योगिकी मिशन; पशु पालन संबंधी अर्थशास्त्र।

 

खाद्य क्षेत्र प्रोत्साहन योजना को कैबिनेट की मंजूरी

 

संदर्भ:

हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा 10,900 करोड़ रुपए की राशि सहित ‘खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन योजना’ हेतु मंजूरी प्रदान की गई है।

योजना के उद्देश्य:

  1. वैश्विक स्तर पर खाद्य क्षेत्र से जुड़ी भारतीय इकाइयों को अग्रणी बनाना।
  2. वैश्विक स्तर पर चुनिंदा भारतीय खाद्य उत्पादों को बढ़ावा देना और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इनकी व्यापक स्वीकार्यता बनाना।
  3. कृषि क्षेत्र से इतर रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना।
  4. कृषि उपज के लिए उपयुक्त लाभकारी मूल्य और किसानों के लिए उच्च आय सुनिश्चित करना।

प्रयोज्यता:

  • इस योजना में पकाने के लिए तैयार/ खाने के लिए तैयार (रेडी टू कुक/ रेडी टू ईट) भोजन, प्रसंस्कृत फल एवं सब्जियां, जैविक उत्पाद, फ्री-रेंज अंडे, पोल्ट्री मांस और अंडा उत्पाद शामिल होंगे।
  • योजना के लिए चुने गए आवेदकों को पहले दो वर्षों में संयंत्र और मशीनरी में निवेश करने की आवश्यकता होगी।

पृष्ठभूमि:

कुल मिलाकर, वर्तमान में 13 ‘उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन योजनाएँ’ (PLI schemes) की जा रही हैं; जिनमें लैपटॉप, मोबाइल फोन और दूरसंचार उपकरण, सफेद वस्तुएं, रासायनिक सेल और वस्त्र सहित ऑटोमोबाइल, फार्मास्यूटिकल्स, आईटी हार्डवेयर आदि शामिल हैं।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन योजना – इसकी घोषणा कब की गई थी?
  2. योजना के तहत किन उद्योगों के लिए प्रोत्साहन उपलब्ध है?
  3. योजना के तहत किस तरह का निवेश किया जा सकता है?
  4. योजना की अवधि।
  5. योजना का कार्यान्वयन

 

मेंस लिंक:

इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माताओं के लिए उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन योजना क्या है? चर्चा कीजिए।

https://epaper.thehindu.com/Home/MShareArticle?OrgId=G6J8EDVMF.1&imageview=0.

स्रोत: द हिंदू

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

 

सैन्य फार्म

(Military farms)

 

सेना ने 132 साल तक कार्यरत रहने के पश्चात् सैन्य फार्म औपचारिक रूप से बंद कर दिया गया है। हाल ही में इसके लिए औपचारिक समापन समारोह आयोजित किया गया था।

‘सैन्य फार्म’ क्या हैं?

  • इन सैन्य फार्मों को ब्रिटिश भारत में किले या नगर की रक्षा करने वाली सेना के लिए गायों का स्वास्थ्यप्रद दूध उपलब्ध कराने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था। पहला सैन्य फार्म 1 फरवरी, 1889 को इलाहाबाद में स्थापित किया गया था।
  • स्वतंत्रता के बाद पूरे भारत में 30 हजार मवेशियों के साथ 130 सैन्य फार्म बनाए गए थे। यहाँ तक कि 1990 के दशक के अंत में लेह और कारगिल में भी सैन्य फार्मों की स्थापना की गई थी।
  • सैन्य फार्मों द्वारा एक सदी से अधिक समय तक 5 करोड़ लीटर दूध तथा 25,000 टन घास की आपूर्ति की जाती रही।

सैन्य फार्मों को बंद करने का सुझाव:

वर्ष 2012 में, क्वार्टर मास्टर जनरल ब्रांच द्वारा सैन्य फार्मों को बंद किए जाने की सिफारिश
  • की गई थी।
  • दिसंबर 2016 में, सशस्त्र बलों की लड़ाकू क्षमता को बढ़ाने तथा रक्षा व्यय के पुनर्संतुलन हेतु उपायों की सिफारिश करने के लिए गठित लेफ्टिनेंट जनरल डीबी शेकतकर (रिटायर्ड) समिति ने भी इन फॉर्म्स को बंद करने की सिफारिश की थी।

 

 

एआईएम-प्राइम

(AIM-PRIME)

  • यह कार्यक्रम, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन (BMGF) और वेंचर सेंटर की साझेदारी में अटल इनोवेशन मिशन द्वारा शुरू किया गया है।
  • एआईएम-प्राइम (नवाचार, बाजार परकता और उद्यमिता पर शोध कार्यक्रम), संपूर्ण भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधारित स्टार्टअप्स और उद्यमिता संस्थानों को प्रोत्साहित करने और उन्हें मदद करने के लिए शुरू की गई एक पहल है।

 

सोशल मीडिया बोल्ड है।

 सोशल मीडिया युवा है।

 सोशल मीडिया पर उठे सवाल सोशल मीडिया एक जवाब से संतुष्ट नहीं है।

 सोशल मीडिया में दिखती है ,

बड़ी तस्वीर सोशल मीडिया हर विवरण में रुचि रखता है।

 सोशल मीडिया उत्सुक है।

 सोशल मीडिया स्वतंत्र है। 

 सोशल मीडिया अपूरणीय है। 

लेकिन कभी अप्रासंगिक नहीं।

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