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भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।

 


 

 KANISHKBIOSCIENCE E -LEARNING PLATFORM - आपको इस मुद्दे से परे सोचने में मदद करता है, लेकिन UPSC प्रीलिम्स और मेन्स परीक्षा के दृष्टिकोण से मुद्दे के लिए प्रासंगिक है। इस 'संकेत' प्रारूप में दिए गए ये लिंकेज आपके दिमाग में संभावित सवालों को उठाने में मदद करते हैं जो प्रत्येक वर्तमान घटना से उत्पन्न हो सकते हैं !


kbs  हर मुद्दे को उनकी स्थिर या सैद्धांतिक पृष्ठभूमि से जोड़ता है।   यह आपको किसी विषय का समग्र रूप से अध्ययन करने में मदद करता है और हर मौजूदा घटना में नए आयाम जोड़कर आपको विश्लेषणात्मक रूप से सोचने में मदद करता है।

 केएसएम का उद्देश्य प्राचीन गुरु - शिष्य परम्परा पद्धति में "भारतीय को मजबूत और आत्मनिर्भर बनाना" है।

 

विनियोग विधेयक को लोकसभा की मंजूरी


संदर्भ:

हाल ही में, लोकसभा द्वारा केंद्र सरकार के लिए अपने कामकाज हेतु जरूरतों को पूरा करने और विभिन्न कार्यक्रमों के कार्यान्वयन हेतु भारत की संचित निधि से धन निकालने की अनुमति देने वाले  विनियोग विधेयक (Appropriation Bill) को मंजूरी दे दी गई है।

यह विधेयक, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला द्वारा ‘गिलोटिन’ (Guillotine) प्रक्रिया के अंतर्गत वर्गीकृत करने के पश्चात पारित किया गया। ‘गिलोटिन’ सदन में बगैर चर्चा के बकाया अनुदानों संबंधी मांगों को तत्काल पारित करने हेतु एक विधायी प्रक्रिया होती है।

‘विनियोग विधेयक’ क्या होता है?

विनियोग विधेयक, एक धन विधेयक होता है, जिसके माध्यम से सरकार को वित्तीय वर्ष के दौरान अपने व्ययों को पूरा करने के लिए भारत की संचित निधि से धन आहरित करने की अनुमति प्रदान की जाती है।

  • संविधान के अनुच्छेद 114 के अनुसार– सरकार, संसद से अनुमोदन प्राप्त करने के बाद ही संचित निधि से धन निकाल सकती है।
  • इसे सीधे शब्दों में कहें, तो वित्त विधेयक में सरकार के व्यय हेतु वित्तपोषण संबंधी प्रावधान किये गए हैं, और विनियोग विधेयक में धन निकालने हेतु राशि एवं उद्देश्यों को निर्दिष्ट किया गया है।

विनियोग विधेयक हेतु प्रक्रिया:

  • बजट प्रस्तावों और अनुदानों की माँग पर चर्चा के उपरांत संसद के निचले सदन में सरकार द्वारा विनियोग विधेयक पेश किया जाता है।
  • विनियोग विधेयक को पहले लोकसभा द्वारा पारित किया जाता है और फिर राज्यसभा में भेजा जाता है।
  • राज्य सभा को विनियोग विधेयक में संशोधन करने की सिफारिश करने की शक्ति हासिल होती है। हालांकि, संसद के ऊपरी सदन द्वारा की गई सिफारिशों को स्वीकार करने या अस्वीकार करने के संबंध में लोकसभा को विशेषाधिकार प्राप्त होता है।
  • विनियोग विधेयक की अनूठी विशेषता, इसका स्वत: निरसन अनुच्छेद होती है, जिसके तहत यह अधिनियम अपने वैधानिक उद्देश्य को पूरा करने के बाद स्वतः ही निरसित हो जाता है।

विधेयक पारित नहीं पाने की स्थित में:

चूंकि, भारत में वेस्टमिंस्टर प्रणाली का संसदीय लोकतंत्र है, इसके तहत, संसदीय मतदान में  विनियोग विधेयक (और वित्त विधेयक) के पराजित हो जाने पर सरकार को इस्तीफ़ा देना होता है या फिर से आम चुनाव कराए जाते हैं। हालांकि, भारत में ऐसा आज तक कभी नहीं हुआ है।

चर्चा का दायरा:

  • विधेयक पर चर्चा का दायरा, इसके तहत कवर किए गए अनुदानों में निहित सार्वजनिक महत्व या प्रशासनिक नीति संबंधी मामलों, तथा जिन मामलों को अनुदान मांगों पर चर्चा के दौरान पहले नहीं उठाया गया था, तक सीमित है।
  • लोकसभा अध्यक्ष, चर्चा में भाग लेने के इच्छुक सदस्यों से, उनके द्वारा उठाए जाने वाले मुद्दों के बारे में पहले से सूचना देने की मांग कर सकता है, और अपनी राय में, जिन मुद्दों पर अनुदान मांगों के समय चर्चा हो चुकी है, उनकी पुनरावृत्ति रोकने हेतु इस प्रकार के मुद्दों पर अपनी अनुमति रोक सकता है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. विनियोग बनाम वित्त विधेयक- समानताएँ एवं भिन्नताएं।
  2. विनियोग विधेयक पर चर्चा और संशोधन संबंधी गुंजाइश।
  3. विनियोग विधेयक बनाम लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका के संदर्भ में राज्य सभा की शक्तियाँ।
  4. विनियोग विधेयक तथा वित्तीय विधेयकों को पारित करने हेतु अपनाई जाने वाली प्रक्रिया।
  5. संचित निधि बनाम आकस्मिकता निधि।
  6. गिलोटिन- प्रयोज्यता और निहितार्थ।
  7. ‘वार्षिक वित्तीय विवरण’ के घटक।

मेंस लिंक:

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 110 के तहत विनियोग विधेयक और वित्त विधेयक के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिए।

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान।

न्यायालय मित्रों द्वारा अदालत की सहायता करने की हदबंदी की जाए: सॉलिसिटर जनरल  


संदर्भ:

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उच्चतम न्यायालय से विभिन्न मामलों, विशेष रूप से संवेदनशील मामलों में अदालत के ‘न्यायालय मित्र’ अर्थात ‘एमिकस क्यूरी’ (Amicus Curiae) के रूप में नियुक्त वकीलों पर लगाम लगाने हेतु दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए एक जोरदार अपील की है।

दिशानिर्देशों की आवश्यकता:

  • अदालत द्वारा नियुक्त ‘एमिकस क्यूरी’ अपनी निर्धारित भूमिका से आगे बढ़ रहे हैं। ये सीबीआई जैसे संगठनों के ‘कामकाज’ में भी हस्तक्षेप करते हैं।
  • कुछ मामलों में, ये खुद ही प्रशासन चलाने लगते हैं अथवा कार्यपालिका को निर्देशित करने लगते हैं।

‘एमिकस क्यूरी’ कौन होता है?

‘एमिकस क्यूरी’ (Amicus Curiae) का शाब्दिक अर्थ ‘अदालत का मित्र’ अर्थात न्यायालय मित्र होता है, और ये अदालत द्वारा नियुक्त तटस्थ या निरपेक्ष वकील होते है जिन्हें विशिष्ट कानूनी जानकारी की आवश्यकता वाले मामलों की सुनवाई में सहायता के लिए नियुक्त किया जाता है।

‘एमिकस क्यूरी’ महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई में अदालत की सहायता के लिए नियुक्त वकील होते हैं।

भूमिकाएँ और कार्य:

  • भारत में, जेल में होने की वजह से अथवा किसी अन्य आपराधिक मामले में फंसे होने के करणवश यदि कोई अभियुक्त अपना वकील नहीं कर पाता है, और इस संबंध में अदालत के लीये याचिका दी जाती है, तो आरोपी का बचाव करने और बहस करने के लिए अदालत द्वारा एक वकील को ‘एमिकस क्यूरी’ के रूप में नियुक्त किया जाता है।
  • सिविल मामलों में भी, किसी आरोपी द्वारा अपना वकील नहीं कर पाने की स्थिति में अदालत को जरूरी लगने पर, वह किसी वकील को ‘एमिकस क्यूरी’ के रूप में नियुक्त कर सकती है।
  • आम जनता के लिए महत्वपूर्ण अथवा जनता के व्यापक हितों से संबंधित मामलों में भी अदालत द्वारा ‘एमिकस क्यूरी’ की नियुक्ति की जा सकती है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘एमिकस क्यूरी’ के रूप में किसे नियुक्त किया जा सकता है?
  2. भूमिकाएं और जिम्मेदारियां।
  3. इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देश

मेंस लिंक:

एमिकस क्यूरी की भूमिकाओं और कार्यों पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

MMDR संशोधन विधेयक, 2021


संदर्भ:

हाल ही में, खदान एवं खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक, 2021  (Mines and Minerals (Development and Regulation) Amendment Bill), 2021  लोकसभा में पेश किया गया। इस विधेयक में खदान एवं खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 में संशोधन करने का प्रावधान किया गया है।

विधेयक की प्रमुख विशेषताएं:

  • खनिजों के अंत्य उपयोग पर प्रतिबंध को हटाना: विधेयक में यह प्रावधान किया गया है कि किसी भी खदान को किसी विशेष अंत्य उपयोग (end-use) के लिए आरक्षित नहीं किया जाएगा।
  • स्वोपयोगी निजी खदानों द्वारा खनिजों की बिक्री: विधेयक में प्रावधान है कि स्वोपयोगी निजी खदानों (captive mines) द्वारा परमाणु खनिजों के अलावा, अपनी स्वयं की जरूरतों को पूरा करने के बाद खुले बाजार में अपने वार्षिक खनिज उत्पादन का 50% तक बेचा जा सकता है। केंद्र सरकार द्वारा इस सीमा के लिए एक अधिसूचना के माध्यम से बढ़ाया भी जा सकता है।
  • कुछ मामलों में केंद्र सरकार द्वारा नीलामी: यह विधेयक केंद्र सरकार को, राज्य सरकार के परामर्श से, नीलामी प्रक्रिया पूरी करने हेतु एक समयावधि निर्धारित करने का अधिकार देता है। यदि राज्य सरकार इस अवधि के भीतर नीलामी प्रक्रिया को पूरा करने में असमर्थ होती है, तो केंद्र सरकार द्वारा नीलामी का आयोजन किया जा सकता है।
  • वैधानिक मंजूरी का हस्तांतरण: विधेयक में यह प्रावधान किया गया है कि हस्तांतरित वैधानिक मंजूरी, नए पट्टेदार के लिए आवंटित लीज अवधि के दौरान मान्य रहेगी।
  • लीज़ समाप्त हो चुकी खदानों आवंटन: विधेयक के अनुसार, खदानों (लिग्नाइट, और परमाणु खनिज के अलावा), जिनके पट्टे की अवधि समाप्त हो गई है, उन्हें कुछ मामलों में सरकारी कंपनी के लिए आवंटित किया जा सकता है। राज्य सरकार ऐसी खदानों के लिए सरकारी कंपनी को 10 साल तक या नई पट्टेदार का चयन होने तक, जो भी पहले हो, लीज़ पर दे सकती है।

महत्व:

  • इन संशोधनों से परियोजनाओं के कार्यान्वयन प्रक्रिया में तेजी आएगी, व्यापार करने में सुगमता होगी, प्रक्रिया का सरलीकरण होगा और खनिज स्थलों पर सभी पक्षों को लाभ होगा।
  • इससे एक कुशल ऊर्जा बाजार का निर्माण होगा तथा प्रतिस्पर्धा में वृद्धि होगी और साथ ही कोयला आयात में कमी आएगी। भारत में पिछले वर्ष 235 मिलियन टन कोयले का आयात किया गया, जिसमें से 171,000 करोड़ रुपये की कीमत के 135 मिलियन टन कोयले की आपूर्ति घरेलू भंडारों से की जा सकती थी।
  • इससे संभवतः, कोयला क्षेत्र में ‘कोल इंडिया लिमिटेड’ का एकाधिकार भी समाप्त हो सकता है।
  • इससे, भारत को, विश्व भर में खदान मालिकों द्वारा भूमिगत खनन के लिए उपयोग की जा रही अत्यधिक नवीन प्रौद्योगिकी तक पहुंच प्राप्त करने में भी मदद मिलेगी।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. प्रमुख और गौण खनिज कौन से होते हैं?
  2. इन्हें किस प्रकार विनियमित किया जाता है?
  3. इनके खनन हेतु अनुमति कौन देता है?

मेंस लिंक:

खान एवं खनिज कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

 


सामान्य अध्ययन- III


 

विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।

यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI)


(Universal Basic Income)

संदर्भ:

हाल ही में, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा वर्ष 2021 में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए तृणमूल कांग्रेस पार्टी का घोषणापत्र जारी किया गया है।

घोषणापत्र में अन्य बातों के अलावा, प्रत्येक परिवार के लिए ‘सार्वभौमिक बुनियादी आय’ अर्थात यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) देने का वादा किया गया है।

घोषणा के अनुसार:

  • आय योजना के तहत, सामान्य श्रेणी के अंतर्गत आने वाले सभी 6 करोड़ परिवारों के लिए 500 रुपए प्रति माह तथा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के परिवारों को 1,000 रुपए प्रति माह प्रदान किये जाएँगे।
  • यह राशि, परिवार की महिला मुखिया के नाम पर सीधे ट्रांसफर की जाएगी।

‘यूनिवर्सल बेसिक इनकम’ क्या है?

यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI), किसी देश अथवा किसी भौगोलिक क्षेत्र / राज्य के सभी नागरिकों को बिना शर्त आवधिक रूप से धनराशि प्रदान करने का कार्यक्रम है। इसके अंतर्गत नागरिकों की आय, सामजिक स्थिति, अथवा रोजगार-स्थिति पर विचार नहीं किया जाता है।

  • ‘यूनिवर्सल बेसिक इनकम’ की अवधारणा के पीछे मुख्य विचार, गरीबी कम करना अथवा रोकना और नागरिकों में समानता की वृद्धि करना है।
  • यूनिवर्सल बेसिक इनकम अवधारणा का मूल सिद्धांत है, कि सभी नागरिक, चाहे वे किसी परिस्थिति में पैदा हुए हों, एक जीने योग्य आय के हकदार होते हैं।

UBI के महत्वपूर्ण घटक

  1. सार्वभौमिकता (सभी नागरिक)
  2. बिना शर्त (कोई पूर्व शर्त नहीं)
  3. आवधिक (नियमित अंतराल पर आवधिक भुगतान)
  4. नकद हस्तांतरण (कोई फ़ूड वाउचर या सर्विस कूपन नहीं)

यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) के लाभ

  1. नागरिकों के लिए सुरक्षित आय प्राप्त होती है।
  1. समाज में गरीबी तथा आय-असमानता में कमी आती है।
  2. निर्धन व्यक्तियों की क्रय शक्ति में वृद्धि होती है, जिससे अंततः सकल मांग बढ़ती है।
  3. लागू करने में आसान है क्योंकि इसमें लाभार्थी की पहचान करना शामिल नहीं होता है।
  4. सरकारी धन के अपव्यय में कमी होती है, इसका कार्यान्वयन बहुत सरल होता है।

UBI अवधारणा के समर्थक:

  • भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 में यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) की अवधारणा का समर्थन किया गया है, सर्वेक्षण में UBI को निर्धनता कम करने हेतु जारी विभिन्न सामाजिक कल्याण योजनाओं के विकल्प के रूप बताया गया।
  • UBI कार्यक्रम के अन्य समर्थकों में अर्थशास्त्र नोबेल पुरस्कार विजेता पीटर डायमंड और क्रिस्टोफर पिसाराइड्स, प्रौद्योगिकी क्षेत्र के मार्क जुकरबर्ग और एलन मस्क (Elon Musk) सम्मिलित हैं।

भारत में ‘यूनिवर्सल बेसिक इनकम’ लागू करने में चुनौतियां:

  • भारत में ‘यूनिवर्सल बेसिक इनकम’ को लागू करने में होने वाले भारी व्यय को देखते हुए राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, इस कार्यक्रम के कार्यान्वयन हेतु प्रमुख चुनौती है।
  • यूनिवर्सल बेसिक इनकम के लागू होने से इस बात की प्रबल संभावना है कि लोगों को बिना शर्त दी गई एक निश्चित आय उन्हें आलसी बना सकती है तथा इससे वे काम ना करने के आदी हो सकते हैं।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘यूनिवर्सल बेसिक इनकम’ के घटक

मेंस लिंक:

भारत में यूनिवर्सल बेसिक इनकम के लागू करने के पक्ष तथा विरोध में दी जाने वाली दलीलों की जाँच कीजिए।

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि।

रेलवे का निजीकरण नहीं किया जाए: विपक्ष


संदर्भ:

विपक्षी दलों द्वारा, पिछले सात वर्षों में सरकार द्वारा रेलवे का ‘निजीकरण’ करने हेतु सारे प्रयास करने के लिए मोदी सरकार की कड़ी आलोचना की गई।

चिंताएं:

  • विपक्षी नेताओं का कहना है, कि रेलवे के विभिन्न बुनियादी ढांचों का निजीकरण करने से केवल कॉर्पोरेट्स को लाभ और रेलवे के लिए राजस्व का नुकसान होगा।
  • इससे रेलवे भी एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस जैसे स्थिति में पहुँच जाएगी। रेलवे के निजीकरण का मतलब किराए में वृद्धि भी होगी।
  • इसके अलावा, निजीकरण का मतलब हमेशा दक्षता में सुधार नहीं होता है। लगभग दो दशक पहले खानपान सेवाओं का निजीकरण किया गया था, यात्रियों को फिर भी इससे शिकायतें रहती हैं।

बिबेक देबरॉय समिति की सिफारिशें:

बिबेक देबरॉय समिति को भारतीय रेलवे के लिए संसाधन जुटाने और रेलवे बोर्ड का पुनर्गठन करने संबंधी तरीकों का सुझाव देने हेतु गठित किया गया था। इस समिति ने रोलिंग स्टॉक अर्थात वैगन और कोचों के निजीकरण करने की सिफारिश की थी।

रेलवे निजीकरण:

लाभ:

बेहतर अवसंरचना: रेलवे निजीकरण से बेहतर बुनियादी ढांचे का निर्माण होगा, जिससे यात्रियों को बेहतर सुविधाएं मिलेंगी।

उच्च किराये तथा सेवा-गुणवत्ता में संतुलन: इस कदम से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और इससे सेवाओं की गुणवत्ता में समग्र रूप से सुधार होगा।

दुर्घटनाओं में कमी: निजी स्वामित्व से रखरखाव बेहतर होगा। निजीकरण के समर्थकों का मानना है कि इससे दुर्घटनाओं की संख्या में कमी आएगी, जिसके परिणामस्वरूप दीर्घावधि में सुरक्षित यात्रा और उच्च मौद्रिक बचत होती है।

हानियाँ:

लाभप्रद क्षेत्रों तक सीमित विस्तार: भारतीय रेलवे के सरकारी होने का एक फायदा यह है कि यह लाभ की परवाह किये बगैर राष्ट्रव्यापी संपर्क प्रदान करता है। निजीकरण में संभव नहीं होगा क्योंकि इसमें कम चलने वाले रुट्स को समाप्त कर दिया जाएगा, इस प्रकार कनेक्टिविटी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। वस्तुतः, इससे देश के कुछ हिस्से और दुर्गम हो जायेंगे तथा निजीकरण इन क्षेत्रों को विकास की प्रक्रिया से बाहर कर देगा।

किराया: निजी उद्यम प्रत्यक्षतः लाभ आधारित होते है। अतः यह मान लेना स्वाभाविक है कि भारतीय रेलवे में लाभ अर्जित करने का सबसे आसान तरीका, किराए में वृद्धि होगी। अतः रेल सेवा, निम्न आय वर्ग की पहुंच से बाहर हो जायेगी। इस प्रकार, यह भारतीय रेल के बगैर भेदभाव के सभी आय-वर्ग के लोगों को सेवा प्रदान करने के मूल उद्देश्य की पराजय होगी।

जवाबदेही: निजी कंपनियां व्यवहार में अप्रत्याशित होती हैं तथा अपने प्रशासन तरीकों को विस्तार से साझा नहीं करती हैं। ऐसे परिदृश्य में किसी इकाई विशेष को जवाबदेह बनाना मुश्किल होगा।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. रेलवे और साधारण बजट कब मिलाए गए?
  2. भारत की पहली निजी ट्रेन
  3. बिबेक देबरॉय समिति किससे संबंधित है?

मेंस लिंक:

रेलवे के निजीकरण तथा उसमें समाहित चुनौतियों के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू

 


सामान्य अध्ययन- IV


 

विषय: लोक प्रशासन में लोक/सिविल सेवा मूल्य तथा नीतिशास्त्रः स्थिति तथा समस्याएँ; सरकारी तथा निजी संस्थानों में नैतिक चिंताएँ तथा दुविधाएँ।

पुलिस की जांच कौन करेगा?: हरियाणा कोर्ट


संदर्भ:

हाल ही में, हरियाणा की एक अदालत द्वारा साइकिल चोरी के मामले में एक धोबी को बरी कर दिया गया और कहा कि ‘लापरवाही से की गई इस जांच’ ने अदालत की अंतरात्मा को हिला दिया है।

साथ ही अदालत ने, दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की भी सिफारिश की है।

संबंधित प्रकरण:

एक साइकिल चोरी मामले में, एक पुलिस अधिकारी ने निर्दोष व्यक्ति के खिलाफ अपना निजी प्रतिशोध पूरा करने के लिए पूरी पुलिस प्रणाली तथा जांच अधिकारियों का कुशलतापूर्वक प्रयोग किया था।

चिंता का विषय:

यह, ‘पूर्णतया बुरी नियत’ और ‘लापरवाही से की गयी जांच’ का एक उदहारण देने वाला मामला था, जिसमे कुछ पुलिस अधिकारियों ने एक निर्दोष व्यक्ति को एक सामान्य कारण की वजह से परेशान करने के लिए अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया था। उस व्यक्ति ने संबंधित पुलिस अधिकारियों के एक सहकर्मी के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का दुस्साहस किया था, और इस मामले में पुलिस कर्मी को अदालत द्वारा दंडित किया गया था।

इस प्रकरण की वजह से अदालत ने प्रश्न किया कि, यदि समाज और कानून के रक्षक ही खुद इस तरह का गैर-कानूनी काम करेंगे, तो पुलिस की जांच कौन करेगा?

स्रोत: द हिंदू

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


केंद्रीय मोटर वाहन (पांचवां संशोधन) नियम, 2021

संदर्भ: हाल ही में जारी किये गए।

इन नियमों के अनुसार:

  • वाहनों में खराबी को स्वेच्छा से जाहिर नहीं करने पर वाहन निर्माताओं पर 1 अप्रैल से 1 करोड़ रुपए तक के जुर्माना लगाया जा सकता है।
  • छह लाख से अधिक दोपहिया वाहनों, एक लाख से अधिक चार-पहिया वाहनों और तीन लाख से अधिक तीन-पहिया और क्वाड्रिसाइकिल (Quadricycles) वाहनों को वापस लेने पर 1 करोड़ रुपए तक का जुर्माना हो सकता है।
  • 6,000 दोपहिया वाहनों को वापस लेने के लिए, निर्माता को 10 लाख रुपए तक का भुगतान करना होगा।
  • दोपहिया वाहनों की सालाना 3,000 यूनिटों की बिक्री वाले वाहनों के संद्भे में यदि 20% वाहन मालिकों द्वारा एक जैसी समस्या की रिपोर्ट की जाती है, तो सरकार सारे वाहनों को वापस लेने का आदेश देगी।
  • 6,000 यूनिटों की सालाना बिक्री वाले वाहनों के संद्भे में यदि कुल बेचे गए वाहनों के 11% से 30% वाहनों में एक जैसी शिकायत पायी जाती है तो सारे वाहनों को वापस लिया जाएगा।
  • यात्री बसों और ट्रकों के लिए इस संदर्भ में वार्षिक बिक्री के 3% की सीमा निर्धारित की गयी है।

 

सोशल मीडिया बोल्ड है।

 सोशल मीडिया युवा है।

 सोशल मीडिया पर उठे सवाल सोशल मीडिया एक जवाब से संतुष्ट नहीं है।

 सोशल मीडिया में दिखती है ,

बड़ी तस्वीर सोशल मीडिया हर विवरण में रुचि रखता है।

 सोशल मीडिया उत्सुक है।

 सोशल मीडिया स्वतंत्र है। 

 सोशल मीडिया अपूरणीय है। 

लेकिन कभी अप्रासंगिक नहीं। सोशल मीडिया आप हैं।

 (समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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